बलिया स्पेशल
ओमप्रकाश राजभर की बड़ी रैली आज, BJP को दे सकते हैं तगड़ा झटका !
नई दिल्ली: सुहेलदेव भारत समाज पार्टी के अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर आज राजधानी लखनऊ के रमाबाई पार्क में बड़ी रैली करने जा रहे हैं. इस मौके पर राजभर बीजेपी से अलग और योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफे का ऐलान भी कर सकते हैं. राजभर ने इस रैली में बीजेपी का कच्चा चिट्ठा खोलने और गठबंधन पर विचार करने की चुनौती दी थी. देखना होगा कि राजभर अपनी चुनौतियों पर कायम रहते हैं या फिर सत्ता में बने रहकर सरकार के खिलाफ मुश्किल खड़ी करते रहेंगे.
राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर का कहना है कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले जो वादें किए थे उसे पूरा नहीं किया. इसलिए आज अपनी पार्टी के स्थापना दिवस पर कोई बड़ा फैसला लेने के लिए हम लोगों को मजबूर होना पड़ेगा. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी आज (27 अक्टूबर) को अपना 16वां स्थापना दिवस मना रही है.
12 अक्टूबर को राजभर में बीजेपी को 26 अक्टूबर तक का वक्त दिया था. उन्होंने कहा था कि बीजेपी ने कहा था कि वो पिछड़ी जाति के आरक्षण का बंटवारा करेगी. पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा करके सभी जातियों की भागीदारी तय करेगी, लेकिन ऐसा नहीं किया. राजभर ने कहा कि अगर जनता का अभिमत बीजेपी से गठबंधन को तोड़ने के पक्ष में रहा तो वह रैली में इसको लेकर फैसला कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने पिछड़े वर्ग के आरक्षण के वर्गीकरण को लेकर फैसला नहीं किया तो उसे आगामी चुनाव में अंजाम भुगतना पड़ेगा.
उन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट) में संशोधन के उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने को लेकर भी मोदी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि वह न्यायालय के फैसले के साथ हैं. वह इस मसले पर न तो दलित कार्ड खेल रहे हैं और न ही सवर्ण कार्ड.
ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि अब और कब तक कितना प्रतीक्षा करें. उनके लिए पिछड़ों का हित और उनकी समस्याओं का समाधान सत्ता से बड़ा है. उन्होंने कहा कि 6 महीने पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भरोसा दिया था कि हम जल्द ही पिछड़ों और अति पिछड़ों के आरक्षण बंटवारे के मुद्दे पर कुछ कारगर कदम उठाएंगे, लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है. उन्होंने कहा था कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनाव 2019 के छह माह पहले पिछड़े वर्ग के आरक्षण में वर्गीकरण को लागू करने का भरोसा दिलाया था. इसके साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सदन में इसको लेकर घोषणा कर चुके हैं. लेकिन सिर्फ वादे किए गए, उन वादों को पूरा नहीं किया गया.
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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