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ग्राउंड रिपोर्ट : बलिया में हुई किसान-मज़दूर महापंचायत का रूख क्या है?

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          किसान आंदोलन के समर्थन में सिकंदरपुर तहसील के चेतन किशोर में हुई किसान मज़दूर महापंचायत की ग्राउंड रिपोर्ट।

सिकंदरपुर । पूर्वांचल के बलिया में राकेश टिकैत ने किसान-मजदूर महापंचायत की। दिल्ली के बॉर्डरों पर जमें किसानों की खबरों के बाद पूर्वांचल के दोआब में संयुक्त किसान  मोर्चा का आंदोलन से जुड़ा हुआ यह पहला बड़ा कार्यक्रम था। बलिया के तहसील सिकंदरपुर में आयोजित इस महापंचायत में हज़ारों की भीड़ जुटी।

बैठने के लिए लगाई गईं कुर्सियों और बाकी की खाली जगहों पर भी लोग मौजूद रहे। लोग राकेश टिकैत और बाकी नेताओं को सुनने आए थे। महापंचायत में आए लोगों को मालूम था कि यहां दिल्ली के किसान आंदोलन से जुड़े लोग आ रहे हैं। हमने वहां मौजूद लोगों से बात की। कृषि कानूनों को लेकर ठीक-ठाक समझ रखे वहां आए लोग इस बात से भी आश्वस्त थे कि जो बातें कही जाएंगी उसे सुनने के बाद ही कोई फैसला लेंगे।

(किसान महापंचायत में 12 बजे तक पांडाल भर चुका था। )

80 साल की लीलावती भारती महिला दीर्घा में 60-70 महिलाओं के साथ बैठी थीं। पांचवी तक पढ़ी लीलावती चार दशकों से कम्यूनिस्ट पार्टी (माले) से जुड़ी हुई हैं। लीलावती खेतहीन हैं। दो बेटों और तीन बेटियों के परिवार वाली लीलावती के परिवार का हरेक व्यक्ति मजदूरी करता है। तीनों कानूनों पर काफी विस्तृत बात करने के बाद लीलावती ने कहा,

‘इस कानून से किसान तो प्रभावित होंगे ही, भारी संख्या में मजदूर प्रभावित होंगे। लॉकडाउन में यह कानून लाकर किसानों की जमीन और जिंदगी के साथ धोखा किया जा रहा है। आज हम अपने गांव की महिलाओं के साथ यहां आए हैं, पूरी बात सुनेंगे और फिर आगे की लड़ाई लडे़ंगे।’

लीलावती के भीतर कमाल का आत्मविश्वास है, वो पांचवी तक पढ़े होने का जिक्र करके खुश हो जाती हैं।

पंजाब के पटियाला के मूल निवासी और 1979 से भारतीय किसान यूनियन से जुड़े सरदार केसर सिंह किसान-मजदूर महापंचायत में मौजूद थे। गंभीर हाव-भाव वाले सरदार केसर सिंह बलिया के बिल्थरा से मोटर पार्ट्स की दुकान संचालित करते हैं। अपने गृह जनपद में सरदार केसर सिंह छ: एकड़ की खेती भी करते हैं। किसान-मजदूर महापंचायत के सकारात्मक प्रभाव को लेकर आश्वस्त केसर सिंह कहते हैं,

‘पूर्वांचल में मजदूर-किसानों की समस्या पर अब देश के बाकी हिस्सों का भी ध्यान जाएगा। यहां MSP जितने जरूरी मुद्दे और भी हैं। जैसे, खाद-बीज की आपूर्ति, बिचौलियों का पूर्ण हस्तक्षेप वगैरह। पूर्वांचल की समस्याओं पर इस महापंचायत में आ रहे किसान नेताओं की आगे की रणनीति भी इस किसान आंदोलन को प्रभावित करेगी। इस सरकार की नीतियों से किसान, मजदूर और व्यापारी सभी परेशान है।‘अजीत राय; अपने आधे से अधिक खेतों में मछलीपालन करने लगे हैं।

राष्ट्रीय किसान मोर्चा से पूर्वांचल के पदाधिकारी और आयोजनकर्ताओं में शामिल अजीत राय इस महापंचायत के प्रभाव को लेकर आश्वस्त दिखे। चार एकड़ की खेती कर रहे अजीत राय पूर्वांचल में बलिया को महापंचायत के लिए चुनने के पीछे का कारण बताते हुए कहते हैं, ‘चूंकि यह बिहार से सटा हुआ जिला है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे आखिरी छोर पर होने के कारण यहां से बिहार के सटे हुए जिलों में भी आंदोलन की सुगबुगाहट जाएगी। इसके अलावा भी  बलिया ‘बागी’ धरती है, यहां से शुरुआत हुई है तो लड़ाई लंबी चलेगी।’

11 बजे की तय समय तक लोगों का आना शुरू हो ही रहा था कि करीब 25-30 युवाओं का एक जत्था आया। उर्जा से भरे इन युवाओं ने राकेश टिकैत और जय जवान जय किसान का नारा लगाया और मंच के पास कुर्सियां ले लीं। इनमें दुरौंधा गांव के अजीत यादव भी थे। 22 साल अजीत ने बीए तक की पढ़ाई पूरी कर ली है और प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहे हैं। बलिया में संयुक्त किसान मोर्चा के कार्यक्रम की जानकारी अजीत को सोशल मीडिया से मिली। अजीत ने बताया,

‘हम लोगों ने गांव में तय किया कि चला जाएगा और फिर किसान महापंचायत थी तो ट्रैक्टर-ट्राली से आने को सोचा। सब लोगों ने चंदा लगाकर तेल डलाया और आ गए’ आगे क्या करने है के सवाल पर अजीत ने कहा, ‘आज यहां जो सुना वो जाकर गांव में लोगों को बताएंगे’ अजीत के पिता दो एकड़ की खेती करते हैं। पिता के  साथ धान, गन्ना और गेंहू उपजा रहे अजीत नौकरी को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हैं। SSC और उत्तर प्रदेश पुलिस की भर्ती परीक्षा के परिणामों का इंतज़ार कर रहे अजीत वर्तमान सरकार से नाराज़ हैं।

1985 से भारतीय किसान यूनियन से जुड़े अहसन सहवर्ती सुबह 9 बजे से यहां मौजूद थे। चार बीघे की खेती वाले अहसन बिल्थरा के अकोप ग्रामसभा के ईकाई अध्यक्ष हैं। 1985 से संगठन के लिए काम कर रहे अहसन बताते हैं कि इस जनसभा की जिम्मेदारी भी थी इसलिए जल्दी आए।  धान और गेंहू की खेती करने वाले अहसन अपनी फसल MSP पर नहीं बेंच पाते हैं। उन्होंने बताया,

‘हम लोग के लिए फसल का उचित दाम पाना संभव नहीं है। क्रय केंद्र पर ले जाने से पहले ही बिचौलिये आ जाते हैं और कुछ मजबूरी किसान की भी होती है। हमारी मांग यही है कि एक रेट हो जाए। उसी पर बनिया भी खरीददारी करे और सरकार भी। हमारी बस यही मांग है कि छोटा-बड़ा किसान सब एक समान रेट पर बिक्री कर सकें।’

किसान महापंचायत में सिकंदरपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर से आईं अनीता देवी स्वयं सहायता समूह चलाती हैं। अनीता खेतहीन हैं लेकिन गांव की कुछ महिलाओं के साथ मिलकर स्वरोजगार में लगी थीं। अनीता ने हमसे बातचीत में बताया कि उनके समूह पर कर्ज है और लॉकडाउन की वजह से महिलाएं कर्ज चुकाने में असमर्थ हैं। अब उनके घरों पर बैंक नोटिस दे रहे हैं। सरिता ने कहा, ‘जब बड़े-बड़े पूंजिपतियों का कर्ज माफ हो जा रहा है तो हम समूह की महिलोओं का कुछ हज़ार का कर्ज मोदी जी क्यों नहीं माफ कर सकते हैं।’अनीता अपने पति के साथ आईं थीं, कर्ज न चुकने से चिंतित थीं

इसी सबके बीच छोटे-बड़े जत्थों में महापंचायत में लोग आते रहे। और करीब 1:30 पर राकेश टिकैत की गाड़ी आई। बनारस से सड़क मार्ग से गाज़ीपुर में प्रेसवार्ता करके सिकंदरपुर पहुंचे राकेश टिकैत के साथ 6-7 गाड़ियां थीं। उनके पहुंचते ही किसी समान्य राजनैतिक रैली में होने वाली भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हुई और मंच तक आते-आते सेल्फियों का दौर शुरू हो गया। पत्रकार दीर्घा में नौजवानों सहित तमाम लोग सेल्फियां लेते रहे। और फिर मंच से घोषणा की गई,

‘आप सब से अनुरोध है कि ऐसी स्थिति न लाएं, हम पुलिस को नहीं बुलाएंगे लेकिन आपलोगों को खुद पीछे जाना होगा’। मंच से कुछ लोगों ने पुलिस का हस्तक्षेप चाहा भी लेकिन संचालक दो टूक में मना कर दिया। भीड़ थोड़ी देर में सेल्फियों से थकी और राकेश टिकैत मंच पर ही एकदम पीछे चले गए। टिकैत आयोजनकर्ताओं से अपनी बारी आने तक बात करते रहे। अपने साथ आए लोगों को लगातार कुछ लिख कर देते रहे।राकेश टिकैत की इस एंट्री के बाद लगभग 15 मिनट तक माहौल में अफरातफरी रही

लोग शांत होते तब तक मंच पर चहलकदमी बढ़ चुकी थी। इसी बीच किसान नेता युद्धवीर सिंह अचानक से मंच पर आए और शांत रहने की एक भावुकता से भरी अपील की। इसके बाद युद्धवीर सिंह ने अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कांट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर पंजाब का उदाहरण देते हुए कहा,

इन प्राइवेट कंपनियों ने पंजाब के आलू किसानों के साथ कांट्रेक्ट किया और लिखा कि कंपनी आलू के साइज़ ठीक न होने पर कांट्रेक्ट रद्द कर सकती हैं। अब बताइये, घर के दो बच्चों के हाथ पैर एक जैसे नहीं होते, गेंहू कैसे एक जैसे पैदा कर देगा? फसल के दाने मौसम पर निर्भर करते हैं। ये कहते हैं कि कांट्रेक्टर किसान की जमीन पर कब्जा नहीं ली पाएगा, ठीक बात है। लेकिन कांट्रेक्टर किसान की जिस जमीन पर फसल उगवाएगा उसपर लोन ले सकता है। अब बताइए जब कांट्रेक्टर लोन लेगा तो वो चढ़ेगा कहां? वो किसान की जमीन के खाते में जाएगा। कांट्रेक्टर तो भाग जाएगा, लेकिन लेखपाल और पटवारी तो कहेगा कि ये लोन भरो, सरकार को क्या मतलब कांट्रेक्टर कौन था।’

(युद्धवीर सिंह के भाषण को वहां मौजूद लोगों ने काफी सराहा। उन्होंने बहुत प्रभावी ढंग से अपनी बात रखी)

युद्धवीर सिंह ने अपने 15 मिनट के वक्तव्य में  किसान कानूनों और किसान आंदोलन से जुड़ी सारी बातें बहुत आसान भाषा में समझायीं। लोगों ने बहुत जिम्मेदारी से सुना। पूरी बातचीत में किसान कानूनों और खेतहीन मजदूर-किसानों का जिक्र आता रहा। संघ और भाजपा पर सीधा टिप्पणी करते हुए युद्धवीर सिंह ने 26 जनवरी की लालकिला की घटना पर भी बात रखी।

इसके बाद दो तीन वक्ताओं ने अपनी बात रखी और राकेश टिकैत मंच पर आए। पत्रकार दीर्घा में फिर अफरातफरी मची लेकिन कुछ तस्वीरों के साथ मामला शांत हो गया। राकेश टिकैत ने ‘भिर्गु बाबा की जय’ का उद्घोष किया और अपने पहले ही वाक्य में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, शहीद मंगल पांडेय का जिक्र कर दिया। बलिया को एक विचारधारा बताते हुए राकेश टिकैत ने लगभग 16 मिनट का भाषण दिया। किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए राकेश टिकैत ने कहा, ‘अगर पॉलिटकल पार्टियों को भी अपनी मीटिंग करनी होगी तो किसान महापंचायत का नाम देना होगा। वो ऐसा करेंगे तो ही किसान उनकी पंचायत में जाएंगे। यह हमारी ताकत है और इसे बनाए रखना है।’ उन्होंने कहा, ‘आपके इस आंदोलन के चलते दुनिया भर में भारत के किसानों की  चर्चा है।

Pictures credit- Nirbhay Yadav

सरकार MSP पर कानून नहीं बना सकी लेकिन दुनिया में बात पहुंच रही है।’ जाते-जाते राकेश टिकैत ने क्षेत्रवाद से बचने की सलाह दी और पूर्वांचल को दिल्ली की तरफ चलने के लिए तैयार रहने को कहा, ये आंदोलन आपको चलाना है। 2021 आंदोलन का साल है। आप नहीं जगेंगे तो आपको भूमहीन होना होगा। जैसे आदिवासी जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं, हमारी स्थिति भी ऐसी हो जाएगी। बलिया आंदोलन की धरती है, यहां टिकैत साहब भी आ चुके हैं। यहां से बड़ी क्रांतियां हुई हैं। इसलिए जब जरूरत पड़ेगी अपने ट्रैक्टर-ट्राली के साथ में आपको निकलना पड़ेगा। जिस दिन दिल्ली से यहां संदेश आये और आपके बीच किसान यूनियनों के लोग दिल्ली चलने का आह्वान करने आएं, आप जो भी साधन मिले, उससे पहुंचें।’

अंतत: राकेश टिकैत का काफीला गुज़रा। लोग अपने घरों को लौटने लगे। यहां मौजूद लोग चुनावी दौर में भी रैलियों में आते रहे हैं लेकिन इस बार कुछ अलग रहा। जैसे, राजनैतिक रैलियों में राजनीतिक दलों के द्वारा भीतरखाने से लोगों को साधन और धन मुहैया कराया जाता है। मौजूद लोगों ने चंदा जुटाकर गाड़ीयां बुक की आयोजन स्थल के बाहर कार्यक्रम खत्म होने के बाद चाय या फल की दुकानों पर अफरातफरी नहीं थी। लोग घर जाते रहे, दुकानें आंख तकती रहीं। कोई सफेद कुर्ते में अपने साथ आए लोगों को नाश्ता पानी की चिंता में नहीं दिखा। यह सकारात्मक सी एक आखिरी बात थी।  इसके इतर इस महापंचायत का जिक्र मेन स्ट्रीम मीडिया में कहीं नहीं था जबकि पूर्वांचल की इस महापंचायत को इतना आसानी से नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता है।

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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत

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आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.

बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.

चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,

लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.

1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.

‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,

जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि

सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.

(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)

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बलिया में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो वायरल करने वाले युवक पर मुकदमा दर्ज

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बलिया के बांसडीहरोड थाना क्षेत्र में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो और वीडियो वायरल करने के मामले में पुलिस ने एक युवक पर नामजद मुकदमा दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि युवक ने एक युवती के अश्लील वीडियो बना रखे हैं और बार बार उन्हें वायरल करके किशोरी को बदनाम कर रहा है। इस मामले में पीड़ित पक्ष ने आरोपी युवक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।

जानकारी के मुताबिक, इलाके के एक गांव की रहने वाली युवती को टकरसन निवासी पवन वर्मा कई दिनों से परेशान कर रहा है। युवती का आरोप है कि कुछ दिनों पहले आरोपी ने सोशल मिडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम पर अश्लील फोटो और वीडियो डालकर बदनाम करने की कोशिश की है। पीड़िता का कहना है कि अब तक तीन बार विवाह तय हो चुका है, लेकिन पवन के चलते हर बार वह ससुराल पक्ष के लोगों के व्हाट्सएप पर अश्लील फोटो व वीडियो भेजकर शादी तुड़वा चुका है।

तीन बार युवती का रिश्ता टूट चुका है। युवती का कहना है कि आरोपी युवक किसी भी तरह से मेरी शादी नहीं होने दे रहा है। इस सम्बंध में एसओ अखिलेश चंद्र पांडेय का कहना है कि तहरीर के आधार पर आईटी एक्ट व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है। इधर युवती के परिवारवालों ने आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग की है।

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बलिया में नक्सलियों के 11 ठिकानों पर NIA ने मारा छापा

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बलिया में एनआईए ने नक्सलियों के 11 ठिकानों पर शनिवार को छापा मारा, जहां से तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और नक्सली साहित्य बरामद किया गया है। एनआईए ने यह कार्रवाई पिछले साल यूपी एटीएस द्वारा बलिया में पकड़े गए पांच नक्सलियों पर दर्ज केस को टेकओवर करने के बाद की है।

बता दें कि यूपीएटीएस ने 15 अगस्त, 2023 को बलिया से नक्सली संगठनों में नई भर्तियां करने में जुटी तारा देवी के साथ लल्लू राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राम मूरत राजभर व विनोद साहनी को गिरफ्तार किया था। आरोपितों के कब्जे से नाइन एमएम पिस्टल भी बरामद हुई थी। जांच में सामने आया है कि तारा देवी को बिहार से बलिया भेजा गया था। वह वर्ष 2005 में नक्सलियों से जुड़ी थी और बिहार में हुई बहुचर्चित मधुबन बैंक डकैती में भी शामिल थी।

इसके अलावा लल्लू राम उर्फ अरुन राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राममूरत तथा विनोद साहनी की गिरफ्तारी हुई थी। ये सभी बिहार के बड़े नक्सली कमांडरों के संपर्क में थे।

एनआईए की अब तक की जांच के अनुसार, प्रतिबंधित संगठन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत उत्तरी क्षेत्र अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है। जांच एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि भाकपा (माओवादी) के नेता, कार्यकर्ताओं और इससे सहानुभूति रखने वाले, ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) इस क्षेत्र में संगठन की स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।

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