बलिया स्पेशल
बलिया में आत्मनिर्भर बनने की ओर किन्नर समाज, हुई इस नई पहल की शुरुआत
बलिया डेस्क : बलिया जिलाधिकारी एसपी शाही ने किन्नर समाज के लोगों के साथ बैठक की। समाज की मुख्यधारा से उनको जोड़ा जा सके, इसी उद्देश्य से यह बैठक हुई। जिले के विभिन्न क्षेत्र से आए किन्नरों ने अपने बहुमूल्य सुझाव दिए, जिस पर चर्चा हुई और पहल करने का भरोसा दिलाया गया।
डीएम श्री शाही ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं कि किन्नर समाज की तमाम दिक्कतें हैं। इसलिए हमारा प्रयास है कि पहले किन्नर समुदाय की दिक्कतों को नजदीक से जाना जाए और उसको दूर करने का हरसम्भव प्रयास किया जाए। फिलहाल शिक्षा व कौशल विकास पर पहल कर इसकी शुरुआत की जा रही है। हम भी चाहते हैं कि आप सब समाज की मुख्यधारा से जुड़े।
उन्होंने आगे कहा, नौजवान किन्नर में अगर किसी विशेष क्षेत्र में कुशलता है तो उस क्षेत्र में भी ट्रेंड करने के लिए व्यवस्था की जाएगी। सरकार की योजनाओं से हर पात्र को जोड़ा जाएगा। जिलाधिकारी ने यह भी कहा कि मतदाता सूची में हर किसी का नाम होना जरूरी है। अगर किसी का नहीं है तो वह अपने बीएलओ से सम्पर्क कर जोड़वा लें। वहां बनी कमेटी को भी यह जिम्मेदारी सौंपी।
जीवनशैली बेहतर बनाने के लिए हम सब प्रतिबद्ध
सीडीओ विपिन जैन ने कहा कि किन्नर समाज की जीवन शैली को बेहतर बनाने के लिए हम सब प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए सबसे पहले शिक्षा व कौशल विकास पर ध्यान देना होगा। इसके लिए तीन स्टेप जरूरी हैं। पहला, समुदाय की संख्या कमेटी तय कर ले। दूसरा, किन्नर समाज के बच्चों के लिए शिक्षा का वातावरण तैयार कर उन्हें शिक्षित करना है। इसके लिए बीएसए व आईटीआई के प्रधानाचार्य को गम्भीरता से पहल करने को कहा गया है। तीसरा, ट्रेनिंग दिलवाने के बाद समाज में कैसे स्थापित करें, उस पर बल दिया जाएगा।
स्वयं सहायता के जरिए कौशल का होगा सदुपयोग
सीडीओ जैन ने कहा कि अपनी कमाई में आप बचत जरूर करते हैं। ऐसे में स्वयं सहायता समूह से आपको जोड़ कर आपके कौशल का सदुपयोग किया जा सकेगा। उससे आपकी कमाई भी होगी और आपका नाम भी हर घर में होगा। आपका सिला हुआ कपड़ा स्कूली बच्चे पहनेंगे, आपका बनाया मसाला घरों में प्रयोग होगा। आपका जीवन अच्छे से चले, इसके लिए हम भी इच्छुक हैं। सीडीओ ने कहा कि अगला शहरी कैम्प यहीं लगेगा। मेडिकल चेकअप से लेकर योजनाओं से सम्बंधित पात्रता मिलने पर हर योजनाओं का लाभ दिलाने का भी प्रयास होगा।
जिलाध्यक्ष माधुरी किन्नर ने डीएम-सीडीओ के प्रति जताया आभार, मांग पत्र सौंपा
किन्नर समाज की जिलाध्यक्ष माधुरी पांडेय ने डीएम-सीडीओ का आभार जताते हुए कहा कि समाज के हम लोगों की इज्जत और प्रतिष्ठा बढ़ाने की पहल की गई। ऐसा पहली बार हो रहा है। इसके लिए पूरा किन्नर समाज आप लोगों का आभारी रहेगा। हम लोग सामने तमाम विकट परिस्थिति आती है, ऐसे में हम लोगों की सुविधाओं जैसे किन्नर शौचालय, पढ़ाई, चिकित्सा व अन्य जरूरी सुविधाओं का ख्याल रखा जाए। हम लोगों के कार्यक्रम के लिए कोई सार्वजनिक धर्मशाला या किन्नर भवन की व्यवस्था हो, ताकि किन्नर समाज का कोई कार्यक्रम हो जाए। जिले के विभिन्न क्षेत्रों से आए किन्नरों ने भी अपनी बात रखी।
पढ़े-लिखे किन्नर को सरकारी सेवाओं में मिले मौका
बैठक में किन्नर अनुष्का चौबे ने कहा कि पढ़े-लिखे किन्नरों को सरकारी सेवा में जाने का मौका मिले। ऐसे ही धीरे-धीरे हम लोगों का विकास होगा। यह भी कहा कि सरकार के विभिन्न अभियान जैसे गंगा स्वच्छता, स्वच्छ भारत मिशन आदि में भी हम सब अपना योगदान देना चाहते हैं। बशर्ते मौका दिया जाए। जिलाधिकारी ने पढ़ाई लिखाई से जुड़ी जानकारी ली तो पाया कि उनमें स्नातक की डिग्री एक के पास, जबकि चार-पांच इंटरमीडिएट व करीब 10-12 हाईस्कूल पास थे। इस पर खुशी जताते हुए कहा कि निश्चित रूप से हर सकारात्मक कार्य में आवश्यकतानुसार आप लोगों का सहयोग लिया जाएगा।
कैम्प में हुई एचआईवी की जांच
इस अवसर पर एचआईबी की जांच कैंप का शुभारंभ किया गया। डीएम-सीडीओ व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में किन्नर समाज के जिलाध्यक्ष माधुरी पांडे ने फीता काटकर शुभारंभ किया। कैंप में मौजूद सभी किन्नरों का टेस्ट किया गया। साथ ही इस से बचाव से जुड़े विषय पर चर्चा भी की गई। बीएसए शिवनारायण सिंह, डीएसओ केजी पांडेय, नपा ईओ दिनेश विश्वकर्मा व अन्य अधिकारी थे।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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