बलिया स्पेशल
बलिया : आसान नहीं है ‘मस्त’ की राह, इस समीकरण से बिगड़ रहा बीजेपी का खेल !
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की लोकसभा सीट बलिया पर अब दूसरे उम्मीदवार और दूसरी पार्टियां भी दांव लगाने लगी हैं. नहीं तो जब तक वे जिंदा रहे, कोई महत्वकांक्षी उम्मीदवार या दूसरी पार्टियां देखती भी नहीं थी. क्योंकि सबको स्वतः पता था, जीतेंगे तो चंद्रशेखर ही. क्योंकि बलिया में हुए अब तक के 16 लोकसभा चुनावों में आठ बार चंद्र शेखर ने इस सीट को जीता. साल 2007 में उनके निधन के बाद इस सीट पर अब तक तीन बार चुनाव हुए उसमें दो बार उनके बेटे नीरज शेखर ने जीता. लेकिन 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर में BJP ने इस सीट से चंद्रशेखर की सत्ता को उखाड़ दिया. लेकिन इस बार बीजेपी अपनी जीत दोहरा पाएगी.
चंद्रशेखर कभी कांग्रेस के युवा तुर्क हुआ करते थे. उनके बारे में कहा जाता था कि पूरी राजनीतिक गलियारे में अगर कोई ऐसा शख्स है जो इंदिरा गांधी से एक रत्ती नहीं डरता तो वे चंद्रशेखर है. वे अपनी बात को इंदिरा गांधी के सामने भी हूबहू उन्हीं शब्दों में रखते थे, जिन शब्दों में उनकी गैरमौजूदगी में बोलते थे.
यही वजह है कि जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल थोपा तो चंद्रशेखर चौधरी चरण सिंह की भारतीय लोक दल (BLD) में चले गए और पहली बार बलिया से कांग्रेस सत्ता को ललकारा और जीत दर्ज की. साल 1977 में पहली बार बलिया में चंद्रशेखर कूदे और जीते.
इसके बाद केवल 1984 की इंदिरा के मौत के बाद देशभर में दौड़ी कांग्रेस की लहर में बस एक बार चंद्रशेखर को कांग्रेस जगन्नाथ चौधरी से हार का सामने करना पड़ा वरना जब तक चंद्रशेखर जिंदा रहे, बलिया सीट पर 25 सालों के भीतर हुए छह लोकसभा सभा चुनाव में उनके अलावा जनता ने किसी और को मौका नहीं दिया.
उनकी पार्टी को कभी बहुत वरीयता नहीं मिली. लेकिन उनकी राजनीति जनता पार्टी से टूटी दूसरी पार्टियों के इर्द-गिर्द घूमती रही. 1998, 1999 और 2004 के अंतिम तीन चुनाव उन्होंने अपनी बनाई गई पार्टी समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) के उम्मीदवार रहे.
लेकिन उनके निधन के बाद उनके बेटे नीजर शेखर ने मुलायम-अखिलेश के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी में अपने पिता की पार्टी को मिला दिया. इसके बाद 2008 में हुए उपचुनाव में जीत हासिल की. इसके बाद 2009 में भी उन्होंने जीत दर्ज की. लेकिन 2014 में बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा जमा लिया.
बलिया लोकसभा चुनाव 2019 के प्रत्याशी
भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी, दोनों ने ही अबकी उम्मीदवार बदले हैं. भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पिछले बार के विजयी उम्मीदवार भरत सिंह को सीट ना देते हुए वीरेंद्र सिंह मस्त को अपना उम्मीदवार बनाया है. जबकि वीरेंद्र सिंह भदोही से चुनाव जीते थे. कहा जाता है की भदोही में मस्त का विरोध को देखते हुए भाजपा ने बलिया से टिकट दिया है. जबकि लंबी खींचतान के बाद आखिरकार समाजवादी पार्टी ने सनातन पांडेय को अपना टिकट दिया है. जबकि इस सीट पर जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) और कांग्रेस समर्थित अमरजीत यादव का परचा खारिज हो चूका है. सातवें चरण में आगामी 19 मई को इस सीट पर वोटिंग होगी.
बलिया लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम
बलिया जैसी एकमुश्त वोटिंग वाली सीट का समीकरण अब पूरी तरह बिगड़ चुका है. 2014 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार भरत सिंह ने बीते आठ लोकसभा चुनावों से एक ही परिवार की जीत की मिथ को तोड़ा था. उन्होंने 38.18 फीसदी (3,59,758) वोट हासिल किया था. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को चुनाव में 2,20,324 मत (23.38%) हासिल मिले थे.
जबकि बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अफजल अंसारी ने कौमी एकता दल के छाप पर 163943 वोट हासिल किए थे. चौथे स्थान पर बहुजन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार विरेंद्र कुमार पाठक को 141684 वोट मिले थे. ऐसे सपा-बसपा गठबंधन फिर से इस सीट पर कब्जा जमाने की कोशिश करेगी. लेकिन इस बार टिकट सनातन पांडेय को दिया गया है.
बलिया लोकसभा क्षेत्र का समीकरण
2014 में बलिया में हुए लोकसभा चुनाव के अनुसार कुल 17,68,271 वोटर थे. जबकि क्षेत्र की आबादी 32.4 लाख बताई जाती है. इनमें 52 फीसदी (16.7 लाख) पुरुष व 48 फीसदी (15.7 लाख) महिलाएं हैं.
इस सीट पर सपा के ब्राह्मण कार्ड खेलने का मतलब भी समझ लीजिए. असल में इस निर्वाचन क्षेत्र की कुल आबादी की करीब 81 फीसदी आबादी सामान्य वर्ग की है. जबकि यहां 15 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और तीन प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति की है. यहां ओबीसी आबादी बेहद कम है. असल यूपी के इस क्षेत्र में मुस्लिम समाज में भी एससी ओबीसी और सामान्य वर्ग में बंटी हुई है. इसलिए ऊपर दिए आंकड़ों में ही 6.61 फीसदी मुस्लिम समाज का वोट भी सम्मिलित है.
बलिया संसदीय क्षेत्र में कुल पांच विधानसभाएं, फेफना, बलिया नगर, बैरिया, जहूराबाद और मोहम्मदाबाद आती हैं. ये सभी सीटें फिलहाल एनडीए के कब्जे में हैं, जिनमें चार बीजेपी और एक सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के खाते में है.
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में नक्सलियों के 11 ठिकानों पर NIA ने मारा छापा
बलिया में एनआईए ने नक्सलियों के 11 ठिकानों पर शनिवार को छापा मारा, जहां से तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और नक्सली साहित्य बरामद किया गया है। एनआईए ने यह कार्रवाई पिछले साल यूपी एटीएस द्वारा बलिया में पकड़े गए पांच नक्सलियों पर दर्ज केस को टेकओवर करने के बाद की है।
बता दें कि यूपीएटीएस ने 15 अगस्त, 2023 को बलिया से नक्सली संगठनों में नई भर्तियां करने में जुटी तारा देवी के साथ लल्लू राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राम मूरत राजभर व विनोद साहनी को गिरफ्तार किया था। आरोपितों के कब्जे से नाइन एमएम पिस्टल भी बरामद हुई थी। जांच में सामने आया है कि तारा देवी को बिहार से बलिया भेजा गया था। वह वर्ष 2005 में नक्सलियों से जुड़ी थी और बिहार में हुई बहुचर्चित मधुबन बैंक डकैती में भी शामिल थी।
इसके अलावा लल्लू राम उर्फ अरुन राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राममूरत तथा विनोद साहनी की गिरफ्तारी हुई थी। ये सभी बिहार के बड़े नक्सली कमांडरों के संपर्क में थे।
एनआईए की अब तक की जांच के अनुसार, प्रतिबंधित संगठन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत उत्तरी क्षेत्र अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है। जांच एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि भाकपा (माओवादी) के नेता, कार्यकर्ताओं और इससे सहानुभूति रखने वाले, ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) इस क्षेत्र में संगठन की स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
बलिया स्पेशल
बीजेपी प्रत्याशी की जन आशीर्वाद यात्रा में उमड़ी भीड़, रवीन्द्र कुशवाहा बोले- तीसरी बार मोदी बनेंगे पीएम
बलिया। सलेमपुर लोकसभा से भाजपा के सांसद और वर्तमान प्रत्याशी रवीन्द्र कुशवाहा को फिर से टिकट मिलने के बाद बीजेपी कार्यकर्ता जगह- जगह स्वागत कर रहे हैं। इसी कड़ी में बृहस्पतिवार को स्वागत और जन आशीर्वाद यात्रा मनियर से प्रारंभ होकर बांसडीह पहुंची। बांसडीह स्थित सप्तऋऋषि चौराहे पर भव्य स्वागत किया गया।
स्वागत में उमड़े जनसैलाब ने सांसद रवीन्द्र कुशवाहा को फूल माला पहनाकर भव्य स्वागत किया। साथ ही सांसद के ऊपर पुष्प वर्षा किया। तत्पश्चात सांसद रवीन्द्र कुशवाहा ने कचहरी स्थित मां दुर्गा के दरबार में पहुंच कर पूजा अर्चना किया। जन आशीर्वाद यात्रा लेकर पहुंचे सांसद रवीन्द्र कुशवाहा का विधायक केतकी सिंह के नेतृत्व में बांसडीह चौराहे पर कार्यकर्ताओं ने स्वागत
किया। इस दौरान सांसद रवीन्द्र कुशवाहा ने अपने पांच वर्षों की उपलब्धियों को साझा करते हुए कहा कि पूरा देश प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी पर गर्व कर रहा है। देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिये प्रधानमंत्री अग्रसर है। अबकी बार 400 से ऊपर सीटे जीतकर तीसरी बार नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। विधायक केतकी सिंह ने कहा कि सलेमपुर क्षेत्र से पुनः रवीन्द्र कुशवाहा तीसरी बार भारी मतों से विजयी होंगे। भाजपा बांसडीह मंडल अध्यक्ष प्रतुल कुमार ओझा ने सांसद रवीन्द्र कुशवाहा को अभिनंदन पत्र और अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया।
इस मौके पर बैरिया चेयरमैन प्रतिनिधि शिवकुमार वर्मा मंटन, पूर्व चेयरमैन संजय कुमार सिंह मुन्ना, चंद्रबली वर्मा, राजू गुप्ता, रमेश कान्त, डब्लू गुप्ता, व्यापार मंडल अध्यक्ष अभिषेक मिश्र, चंद्रमा गिरी, तेज बहादुर रावत, सिंपी सिंह, शिवम गुप्ता, अजय यादव, अरुण पांडेय, अमित यादव, बिट्टूतिवारी, अभिजीत तिवारी, इरफान अहमद, विवेक उपाध्याय, बलिराम साहनी, राकेश वर्मा, गोपाल जी आदि उपस्थित रहे।
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