बलिया स्पेशल
पढ़ें ! सलेमपुर में प्रियंका गाँधी के भाषण की 10 बड़ी बातें !
सलेमपुर– कांग्रेस प्रत्याशी डॉ राजेश मिश्र के समर्थन में प्रियंका गांधी आज रैली करने सलेमपुर पहुची थी। निर्धारित समय से दो घंटे दस मिनट की देर से पहुची प्रियंका गाँधी ने विलम्ब से पहुचने पर खेद जताते हुए कहा कि आपने इतना लंबा इंतजार किया। मैंने सुना कि मंच ढह गया, फिर भी आप टिके रहे मेरी बातों को सुनने के लिए। इसके लिए मैं आपकी आभारी हूं। साथ ही उन्होंने पीएम मोदी और उनकी सरकार पर जमकर हमला बोला।
1- प्रियंका गाँधी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा यहाँ आ कर बहुत गर्व और खुशी हो रही है यह बाबा देवरहा बाबा धरती है। मेरी दादी इंदिरा गांधी उनका बहुत आदर करती थीं। यहां आकर मुझे बहुत खुशी हुई। बाबा देवरहा बाबा ने हमेशा प्रेम का संदेश दिया है।
2- आज नेता अहंकारी बन गया है। जनता उसे सच्चाई दिखा रही है। जब यहां का उम्मीदवार तय करना था तो मैंने बात की। राजेश मिश्रा को चुनने के पीछे कारण है कि यह आपके बीच के हैं। इन्होंने काम कर दिखाया है।
3- जब मैं वाराणसी पहुंची तो हमें लगा कि यहां बहुत विकास हुआ होगा। मैंने अपने पिता का क्षेत्र अमेठी देखा था। मैं उस समय दस साल की थी। मैंने पांच साल में अमेठी में जो बदलाव देखा उस तरह का विकास आज तक नहीं देखा। उस समय वह प्रधानमंत्री थे देश में भी कांग्रेस की सरकार थी और प्रदेश में मेरी सरकार थी। उस तरह का विकास वाराणसी में नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने पंद्रह किमी सड़क बनाई है जो हवाई अड्डे तक जाती है। मैंने पूछा तो पता चला कि इसके आगे गडढ़े ही गड़ढे हैं। मैंने पूछा कि प्रधानमंत्री क्षेत्र में आते तो हैं लेकिन सिर्फ बड़ी-बड़ी मीटिंग के लिए आते हैं जिससे प्रचार-प्रसार होता है। मीटिंग कर चले जाते हैं। आज तक एक भी गरीब व किसान परिवार में नहीं गए।
4- प्रियंका ने कहा कि पीएम मोदी ने वाराणसी में एक बार भी लोगों से हालचाल नहीं पूछा। हम अमेठी गांव में जाते हैं वहां पता चलता है कि हमारे पिताजी उस गांव में जा चुके हैं। हमारी बात में गहराई है। प्रधानमंत्री समझते हैं कि उनकी मजबूती उनकी सत्ता है।
5- आपने उनको चीन में देखा होगा, जापान में देखा होगा, पाकिस्तान में बिरयानी खाते देखा होगा। कभी भी आपने यह नहीं देखा होगा कि प्रधानमंत्री ने किसी गरीब के घर गए होंगे जो मुसीबत है। वह सत्ता के मोह व माया मे हैं।
6- यदि आपने 56 इंच का सीना ताना है तो किसानों की यह स्थिति क्यों है। आज किसान पीड़ित है। किसान कहता है कि वह दिन-रात खेतों में जाते हैं, लेकिन हमारी कोई सुनने वाला नहीं है।
7– बड़े-बडे़ उद्योगपतियों के कर्ज जिस तरह से माफ किए उस तरह से किसानों के कर्ज क्यों नहीं माफ नहीं किए। बीमा के पैसे उद्योगपतियों के जेब में गए हैं। देश भर से एकत्र पैसे उद्योगपतियों और बीमा कंपनियों की जेब में जा रहे हैं।
8- पांच सालों में इन्होंंने क्या किया ? इन्होंने कहा था कि पंद्रह लाख रुपये खाते में आएंगे लेकिन नहीं आए। ये झूठी सरकार है। मजबूत सरकार बनवाइए। इन्हाेंने सात करोड़ रोजगार घटा दिए। बैंक में कतार में खड़े हुए। आपने देशभक्ति दिखाई, लेकिन काला धन देश में वापस नहीं आया।
9- देश में स्वास्थ्य की सुविधाएं बेहाल हो चुकी हैं। देवरिया का जिला अस्पताल दलालों के जरिए चलाया जाता है। दवाएं बाहर से आती हैं। बच्चे आक्सीजन की कमी की वजह से मर गए। आपको अस्पताल में जांच की सुविधा नहीं मिल रही है। यदि इतनी मजबूत सरकार थी तो कम से कम बच्चों को बता सकती थी। कम से कम जनता की बात सुन तो लेते।
10- यह मजबूत सरकार नहीं यह मगरूर सरकार है। इनके भाषणों, इनके व्यवहार में अहंकार है। जिस तरह से ये बातें करते हैं। इससे साफ है कि ये सत्ता के लिए हैं। आपके ऊपर आज बड़ी जिम्मेदारी है। आप अपना वोट डालकर एक हथियार का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका सही इस्तेमाल कीजिए तब आपको मजबूत सरकार मिलेगी।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में नक्सलियों के 11 ठिकानों पर NIA ने मारा छापा
बलिया में एनआईए ने नक्सलियों के 11 ठिकानों पर शनिवार को छापा मारा, जहां से तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और नक्सली साहित्य बरामद किया गया है। एनआईए ने यह कार्रवाई पिछले साल यूपी एटीएस द्वारा बलिया में पकड़े गए पांच नक्सलियों पर दर्ज केस को टेकओवर करने के बाद की है।
बता दें कि यूपीएटीएस ने 15 अगस्त, 2023 को बलिया से नक्सली संगठनों में नई भर्तियां करने में जुटी तारा देवी के साथ लल्लू राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राम मूरत राजभर व विनोद साहनी को गिरफ्तार किया था। आरोपितों के कब्जे से नाइन एमएम पिस्टल भी बरामद हुई थी। जांच में सामने आया है कि तारा देवी को बिहार से बलिया भेजा गया था। वह वर्ष 2005 में नक्सलियों से जुड़ी थी और बिहार में हुई बहुचर्चित मधुबन बैंक डकैती में भी शामिल थी।
इसके अलावा लल्लू राम उर्फ अरुन राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राममूरत तथा विनोद साहनी की गिरफ्तारी हुई थी। ये सभी बिहार के बड़े नक्सली कमांडरों के संपर्क में थे।
एनआईए की अब तक की जांच के अनुसार, प्रतिबंधित संगठन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत उत्तरी क्षेत्र अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है। जांच एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि भाकपा (माओवादी) के नेता, कार्यकर्ताओं और इससे सहानुभूति रखने वाले, ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) इस क्षेत्र में संगठन की स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
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