बलिया स्पेशल
बलिया: गंगा-घाघरा में उफान, प्रशासन हाई अलर्ट पर, भय से लोग घर छोड़ेंने को मजबूर
बलिया
जनपद में गंगा व घाघरा दोनों नदियों ने रौद्र रूप अख्तियार कर चुकी हैं। किसानों की उपजाऊ जमीन दोनों ही नदियां तेजी से निगलने लगी हैं। गंगा में अचानक आए उफान से बाढ़ जैसे हालात बनने लगे हैं। बाढ़ की संभावना को देखते हुए प्रशासन भी अलर्ट मोड में आ गयी है। तटवर्ती इलाकों में बाढ़ चौकियां स्थापित की जाने लगी हैं।
जिलाधिकारी भवानी सिंह खंगारौत ने बाढ़ की स्थिति के निपटने के लिए सभी मातहतों को जरूरी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पर्याप्त नावों की व्यवस्था कर ली जाए। राहत शिविर को अभी से चिह्नित कर लिया जाए। बताया कि बाढ़ प्रभावित तहसीलों में एक-एक मॉडल राहत शिविर बनाया जाएगा। सभी बाढ़ राहत शिविरों, चौकियों व केंद्रों के लिए फ्लैक्स बनवा लिए जाएं। स्वच्छ जल, कीटनाशक दवाएं, चूना व राहत कैंप पर जेनरेटर आदि की व्यवस्था कर ली जाए।
गंगा के जलस्तर में बुधवार को और वृद्धि दर्ज की गई। यह वृद्धि आगामी दिनों में भी जारी रहने के संकेत मिले हैं। लगातार हो रही बारिश और पहाड़ों की बारिश के असर से गंगा के जलस्तर में वृद्धि का प्रभाव आ रहा है। तटवर्ती इलाकों के ग्रामीण जलस्तर में वृद्धि से चिंतित हैं। ग्राम पंचायत गंगापुर का तेलिया टोक, रामगढ़, अवशेष चौबेछपरा, केहरपुर आदि तटवर्ती गांव के ग्रामीण भयभीत हैं। सबसे ज्यादा भयभीत केहरपुर के ग्रामीण दिख रहे हैं। यहां हर साल गंगा के फेटे में कई मकान समाहित हो जाता है। इसके बाद भी जिला प्रशासन की ओर से बचाव को लेकर बनी प्रोजेक्ट अभी तक ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।
केंद्रीय जल आयोग गायघाट के अनुसार गंगा के जल स्तर में सुबह 8 बजे 4 सेंटीमीटर प्रति घंटा बढ़ाव दर्ज किया गया। दोपहर में 3 सेंटीमीटर प्रति घंटा गंगा के जल स्तर में वृद्धि का क्रम जारी था, तो वही शाम 4 बजे गायघाट गेज पर गंगा का जल स्तर 55.710 दर्ज किया गया. जहाँ गंगा का खतरा बिंदु 57.610 है।
तटवर्ती क्षेत्र के लोगों में भय का माहौल कायम हो गया है। चौबेछपरा के लोगों ने अपने घरों पर हथौड़े चलाने और अपने घरों को उजाड़ने का सिलसिला शुरू कर दिया। घर उजाड़ने वालो में अशोक चौबे, नर्देश्वर चौबे, नंद जी यादव, ललू यादव, श्रीनाथ यादव आदि लोग है।
घाघरा में उफान जारी, खतरा निशान से अब महज 9 सेंटीमीटर दूर
विकास खण्ड मुरली छपरा क्षेत्र के चांददीयर पंचायत के चाददीयर गांव से कुछ दूरी पर घाघरा नदी करीब एक माह से अपना तांडव दिखाते हुए किसानों की कृषि योग्य भूमि अपने आगोश में लेती जा रही है। इसी क्रम में बीते तीन दिनों से लगातार बरसात होने से नदी को और सहयोग मिल रहा है। किसानों की करीब दस एकड़ जमीन को काटते हुए बीएसटी बांध की तरफ बढ़ना शुरू कर चुकी है।
दिनों दिन किसानों की चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही है। चांददीयर पंचायत के करीब तीन किमी दूर बहने वाली घाघरा नदी करीब एक माह में ग्राम पंचायत के अलावा कई गांवों के किसानों के कृषि योग्य भूमि को अपने आगोश में लेते हुए अब करीब गांव से दो किमी की दूरी पर बहने लगी है। यही नहीं गांव से निकट होते हुए बकुल्हा संसार टोला बांध की तरफ भी तेजी से बढ़ रही है।
क्षेत्र के चांददीयर निवासी जनार्दन यादव, मुखा यादव, बच्चा लाल यादव, रामप्रीत यादव, राजकिशोर यादव, शिवमंगल यादव, बशिष्ठ यादव, टोला बाज राय निवासी फागु यादव, बौधी पत्नी स्वर्गीय हरिकृष्ण यादव किसानों के करीब दस एकड़ कृषि योग्य भूमि को अपने आगोश में ले लिया। शासन प्रशासन व राजनीतिक दल इस पर अब तक मुड़कर देखना भी मुनासिब नही समझ रहा है।
वहीं बिल्थरारोड क्षेत्र में घाघरा नदी के उफनते जलस्तर में जारी बढ़ाव बुधवार को कुछ घंटों के ठहराव के बाद फिर से तेज हो गया। दोपहर बाद नदी का जलस्तर एक सेंटीमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से बढ़ने लगा और तीन बजे तक नदी खतरा निशान से महज नौ सेंटीमीटर दूर तक पहुंच गई और तेजी से खतरा निशान 64.01 मी. की तरफ बढ़ने लगी है। आधी रात तक नदी के खतरा निशान पार कर जाने की संभावना जताई जा रही है। इसे लेकर विभाग ने हाईअलर्ट पहले से ही कर रखा है.
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में नक्सलियों के 11 ठिकानों पर NIA ने मारा छापा
बलिया में एनआईए ने नक्सलियों के 11 ठिकानों पर शनिवार को छापा मारा, जहां से तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और नक्सली साहित्य बरामद किया गया है। एनआईए ने यह कार्रवाई पिछले साल यूपी एटीएस द्वारा बलिया में पकड़े गए पांच नक्सलियों पर दर्ज केस को टेकओवर करने के बाद की है।
बता दें कि यूपीएटीएस ने 15 अगस्त, 2023 को बलिया से नक्सली संगठनों में नई भर्तियां करने में जुटी तारा देवी के साथ लल्लू राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राम मूरत राजभर व विनोद साहनी को गिरफ्तार किया था। आरोपितों के कब्जे से नाइन एमएम पिस्टल भी बरामद हुई थी। जांच में सामने आया है कि तारा देवी को बिहार से बलिया भेजा गया था। वह वर्ष 2005 में नक्सलियों से जुड़ी थी और बिहार में हुई बहुचर्चित मधुबन बैंक डकैती में भी शामिल थी।
इसके अलावा लल्लू राम उर्फ अरुन राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राममूरत तथा विनोद साहनी की गिरफ्तारी हुई थी। ये सभी बिहार के बड़े नक्सली कमांडरों के संपर्क में थे।
एनआईए की अब तक की जांच के अनुसार, प्रतिबंधित संगठन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत उत्तरी क्षेत्र अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है। जांच एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि भाकपा (माओवादी) के नेता, कार्यकर्ताओं और इससे सहानुभूति रखने वाले, ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) इस क्षेत्र में संगठन की स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
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