बलिया स्पेशल
VIDEO- बागी बलिया में पीएम मोदी ने ख़ुद को बताया ‘बागी’ !
लोकसभा चुनाव-2019 के आखिरी चरण में 19 मई को होने वाले मतदान के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंगलवार को बलिया में भाजपा विजय संकल्प रैली को संबोधित किया। भदोही के सांसद वीरेन्द्र सिंह मस्त बलिया लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं। बलिया के माल्देपुर मोड़ पर ग्राम हैबतपुर में आयोजित इस रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि बलिया गुलामों के खिलाफ बागी हो हुआ तो मोदी गरीबी के खिलाफ बागी हो गया।
मोदी ने कहा कि बलिया जिस प्रकार गुलामी के खिलाफ बागी हुआ यह मोदी भी गरीबी से लड़ते-लड़ते बागी हो गया। मेरी भी जाति बागी है और गरीबी के खिलाफ बगावत की है। पीएम मोदी ने कहा कि बचपन में मैंने मां को धुएं से जूझते देखा है। टपकती छत के कारण लोगों को रात में जागते देखा है, गरीबी के कारण खेत बिकते देखा है, ढिबरी में पढ़ाई कितनी मुश्किल होती है देखा है। इन्हीं वजहों ने मुझे गरीबी के खिलाफ बगावत करना सिखाया है। इसी गरीबी को दूर करना है।
जनसभा को संबोधित करने की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने भोजपुरी भाषा में करते हुए कहा कि बलिया और सलेमपुर लोकसभा सीट के रउवा सबके प्रणाम करत बानी।
शेरे बलिया चित्तू पांडे जी, वीर कुंवर सिंह जी के नमन करत बानी। यही धरती के सपूत युवा तुर्क उपाधि से सुशोभित स्वर्गीय चंद्रशेखर जी के नमन करत बानी और अपनी तरफ से श्रद्धांजलि देत बानी। यहां बलिया, सलेमपुर और पूर्वांचल के दूसरे हिस्सों से भी सभी लोग पधारे हैं।
सभी का अभिनंदन हैं। इससे पहले मई के महीने में ही मैं आपके बीच आया था। तब क्रांतिवीरों की धरती से गरीब बहनों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाली उज्जवला योजना शुरू हुई थी। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना से आज देश की 7 करोड़ से अधिक गरीब बहनों की रसोई में मुफ्त गैस कनेक्शन पहुंच रहा है।
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए बलिया बागी हुआ था। इसलिए देश की गरीब बहनों को धुएं से मुक्ति दिलाने के लिए यहीं से इस योजना की शुरुआत की गई। महामिलावट वाले सपा, बसपा, कांग्रेस यह सारे एक ही काम में जुट गए हैं। मोदी को गाली दो, गाली दो, गाली दो। ऐसा कोई दिन नहीं है जब मोदी के लिए उनके मुंह से गाली न निकलती हो। छह चरणों के चुनाव के बाद यह बौखलाहट है। हार की हताशा साफ-साफ दिख रही है लेकिन मैं इनकी गलियों को प्रसाद मानता हूं।
इनकी गालियों का जवाब मोदी को नहीं देना पड़ेगा बल्कि देश की जनता जनार्दन देगी। इसी हताशा में अब महामिलावटी लोग पूछ रहे हैं कि मोदी की जाति क्या है। साथियों यह बुआ और बबुआ दोनों मिलकर जितने साल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, उससे ज्यादा समय मैं गुजरात का सीएम रहा। मैंने अनेक चुनाव लड़े भी और लड़ाए भी हैं लेकिन कभी अपनी जाति का सहारा नहीं लिया। मैं पैदा भले ही अति पिछड़ी जाति में हुआ हूं लेकिन मेरा लक्ष्य हिंदुस्तान को दुनिया में अगड़ा बनाना है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अभी योगी जी बता रहे थे कि मेरे दिमाग में जाति नहीं है, मेरे जेहन में जाति नहीं है। इसलिए गैस, गैस का चूल्हा, शौचालय और आवास भी जाति पूछ कर नहीं दिया। इसलिए जाति के नाम पर वोट भी नहीं मांग रहा हूं। ना देता हूं जाति के नाम पर, ना लेता हूं जाति के नाम पर।
मुझे तो अपने देश के लिए जीना है। इसलिए वोट भी देश के लिए मांगता हूं। मैं यह नहीं चाहता कि आपकी संतान आपकी तरह पिछड़ी हुई जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो। मैं नहीं चाहता कि आपकी संतानों को विरासत में पिछड़ापन मिले। मैं नहीं चाहता कि आपके बच्चों को विरासत में गरीबी मिले। पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही इस स्थिति को मुझे बदलना है। इसलिए आपका आशीर्वाद चाहिए।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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