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जन्मदिन विशेष: चंद्रशेखर ‘जो प्रधानमंत्री होने के बावजूद खेतों में चले जाते थे’

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यादों को एक बहाना चाहिए. सियासत को शायद वो भी नहीं चाहिए. पर हम नेता नहीं हैं. साफ कहना चाहिए. एक जुलाई के दिन चंद्रशेखर पैदा हुए थे. पूर्व प्रधानमंत्री. बलिया के बाबू साहब. जो कभी न तो राज्य में मंत्री रहे और न ही केंद्र में. बने तो सीधे प्रधानमंत्री. 

1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए युवा चंद्रशेखर. तीखे तेवर थे. बात खुलकर कहते थे. जाहिर है कि ज्यादातर लोगों से पटती नहीं थी. इन लोगों में सोशलिस्ट पार्टी के लंबरदार राम मनोहर लोहिया भी थे. एक बार चंद्रशेखर आचार्य नरेंद्र देव को आमंत्रित करने इलाहाबाद गए. आचार्य बीमार थे. वहीं लोहिया मौजूद थे. उन्होंने कहा: आप डॉक्टर लोहिया को ले जाइए. लोहिया बोले, मुझे तो कलकत्ता जाना है. चंद्रशेखर ने कहा. बलिया से चले जाइएगा. बक्सर से ट्रेन है. वहां तक आपको जीप से भिजवा दूंगा.

लोहिया बलिया पहुंचे. स्टेशन पर ही पूछने लगे. जीप कहां हैं. चंद्रशेखर ने कहा, इंतजाम हो चुका है. गेस्ट हाउस पहुंचे तो लोहिया ने फिर सवाल दोहराया. चंद्रशेखर ने कहा, शाम तक आ जाएगी. आपको तो वैसे भी कल सुबह निकलना है. लोहिया भड़क गए. अनाप-शनाप बकने लगे. चंद्रशेखर भड़क गए. बोले. ऐसा है डाक्टर साहब. आपकी इज्जत है, तो हमारी भी है. आपको नहीं बोलना तो मत बोलिए. हमें झूठा मत ठहराइए. वो रही जीप और वो रहा रास्ता. आप चले जाएं.

लोहिया अवाक रह गए. फिर तीन सभाओं में बोले.

सोशलिस्ट पार्टी में टूट हुई तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए. युवा तुर्क कोटरी का हिस्सा बने. शुरू में इन्हीं के बूते इंदिरा गांधी ने ओल्ड गार्ड को किनारे लगाया. मगर चंद्रशेखर के बगावती तेवर यहां भी बने रहे. 1975 में इमरजेंसी लागू हुई तो चंद्रशेखर उन कांग्रेसी नेताओं में से एक थे, जिन्हें विपक्षी दल के नेताओं के साथ जेल में ठूंस दिया गया.

इमरजेंसी हटी, चंद्रशेखर वापस आए और विपक्षी दलों की एक हो बनाई गई जनता पार्टी के अध्यक्ष बने.

अपनी पार्टी की जब सरकार बनी तो चंद्रशेखर ने मंत्री बनने से इनकार कर दिया. सत्ता के संघर्ष में कभी इस तो कभी उस प्रत्याशी का समर्थन करते रहे.

चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने की बारी आई 1990 में. जब उनकी ही पार्टी के विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बीजेपी के सपोर्ट वापस लेने के चलते अल्पमत में आ गई. चंद्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल में टूट हुई. एक 64 सांसदों का धड़ा अलग हुआ और उसने दावा ठोंक दिया सरकार बनाने का. समर्थन दिया राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने.

पीएम बनने के बाद चंद्रशेखर ने कांग्रेस के हिसाब से चलने से इंकार कर दिया. सात महीने में ही राजीव गांधी ने सपोर्ट वापस ले लिया. बहाना बनाया हरियाणा पुलिस के दो सिपाहियों को. जो राजीव के घर के बाहर पाए गए थे. कहा गया कि सरकार राजीव की जासूसी करवा रही है.

चंद्रशेखर सत्ता जाने के बाद कई बार लोकसभा के सांसद रहे. मगर राजनीति में उनकी पूछ हर बीतते बरस के साथ सांकेतिक ही रह गई.

मगर आज भी चंद्रशेखर को उनके तीखे तेवरों और साफ बात के लिए याद किया जाता है. कहा जाता है कि राम जन्मभूमि मुद्दे पर वह दोनों पक्षों को समाधान के लिए लगभग मना चुके थे. मगर उनके पास समय नहीं था. सत्ता चली गई. चुनाव हुए. कांग्रेस आई. और फिर मस्जिद टूट गई.

चंद्रशेखर के समय में भी मुद्रा कोष का प्रेशर और भुगतान का संकट भी सामने आया था. जब देश को 55 टन सोना गिरवी रखना पड़ा था.

आज जब हर तरफ आर्थिक उदारीकरण के 25 साल पूरे होने का हल्ला है, ये याद रखना मौजू होगा कि चंद्रशेखर के आर्थिक सलाहकार डॉ. मनमोहन सिंह थे.

चंद्रशेखर के बाद उनकी बलिया सीट से बेटा नीरज शेखर सांसद बना. 2014 की मोदी लहर में हारे तो मुलायम सिंह यादव ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया.

व्यक्तिगत राग द्वेष से दूर रहने वाले राजनेता

एक और अंतिम प्रसंग है. कांग्रेस जब सत्ता से हट गई तो इंदिरा गांधी ने तो बहुत कोशिश की कि चंद्रशेखर फिर से कांग्रेस में आ जाएं लेकिन फिर चंद्रशेखर जी ने मना कर दिया. उन्होंने कहा, ‘मैं किस तरह वापस आऊं. मैंने तो कांग्रेस नहीं छोड़ी थी. मेरे वापस आने का मतलब होगा कि मैं गलत था. लेकिन जब वो चुनाव जीत कर आए तो इंदिरा गांधी के लिए उनके मन में कोई मैल नहीं था.’

जब मोरारजी की सरकार में जब चरण सिंह ने यह तय किया कि इंदिरा का सरकारी आवास खाली कराया जाए तो चंद्रशेखर ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा ये गलत काम नहीं होना चाहिए. वो इंदिरा गांधी से मिले और उन्हें आश्वस्त किया.

वो व्यक्तिगत राग द्वेष से दूर रहने वाले राजनेता थे. देश के बारे में सोचा करते थे. इसलिए लोग उन्हें सुनते भी थे. जब वो संसद में खड़े होते थे बोलने के लिए पक्ष-विपक्ष के सभी लोग उन्हें आदर के साथ सुनते थे. चंद्रशेखर जी का जाना इस देश की राजनीति से साहस की विदाई है. वैसा कोई नेता अभी दिखाई नहीं देता जो पद और राजनीति की चिंता छोड़कर सच कह सके.

प्रधानमंत्री रहते हुए भी चंद्रशेखर अपने सरकारी घर 7 रेसकोर्स रोड पर कभी नहीं रहे. वो या तो 3 साउथ एवेन्यू वाले घर में सोते या भोंडसी के भारत यात्रा आश्रम में.

उनके बेटे नीरज शेखर बताते हैं, “उनका दिन सुबह साढ़े चार बजे शुरू होता था. वो पहले योग करते थे, व्यायाम करते थे, पढ़ते थे और लिखते भी थे उसी समय. जब वो भोंडसी में रहते थे तो पहाड़ी के ऊपर चले जाते थे. ताउम्र वो आठ दस किलोमीटर रोज़ चला करते थे. वो छह फ़िट के थे, लेकिन उनका वज़न कभी 78 किलो के ऊपर नहीं गया.”

नीरज ने कहा, ”उनके चलने की गति इतनी तेज़ होती थी कि हम लोग उनसे पिछड़ जाते थे. उनका खाना बहुत साधारण होता था.. रोटी, सब्ज़ी, जो एक साधारण व्यक्ति गांव में खाता होगा. मांसाहारी खाना उन्होंने बहुत पहले छोड़ दिया था. प्रधानमंत्री होने के दौरान वो जब भी बलिया जाते थे, ऐसे कमरे में ठहरते थे, जिसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती.”

नीरज शेखर ने कहा, ”कोई एसी नहीं, कोई कूलर नहीं. मई के महीने में 45-46 डिग्री का तापमान भी उन्हें परेशान नहीं करता था. वो हमेशा कहते थे मुझे सर्दी ज़्यादा लगती है, गर्मी से मुझे परहेज़ नहीं है. बलिया में वो अक्सर शौच के लिए खेतों में जाते थे, क्योंकि घर में कोई शौचालय नहीं था.”

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बलिया DM ने किया कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण, बलिया में मुख्यमंत्री के दौरे को लेकर दिए ये निर्देश

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बलिया जिलाधिकारी रविंद्र कुमार बांसडीह मैरीटार मार्ग स्थित पिंडहरा गांव में बघौली मौजे में आयोजित होने वाले महिला सम्मेलन की तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने जनसभा स्थल, हैलीपेड,सेफ हाउस और रास्ते की मरम्मत और घास फूस एवं झाड़ियों की कटाई एवं साफ-सफाई के निर्देश दिए।

जिलाधिकारी के निर्देश के क्रम में लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता ने अपनी टीम लगाकर उपलब्ध भूमि की पैमाइश करवाकर जनसभा स्थल और हैलीपेड के लिए जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित की।

इस कार्यक्रम स्थल के लिए धान की फसल को कटवा लिया गया है और बचे धान की फसल को कटवा लिया जाएगा। इसके बाद जिलाधिकारी ने पास स्थित लोक निर्माण विभाग के गेस्ट हाउस की रंगाई पुताई करवाकर, शौचालय सहित अन्य व्यवस्थाएं दुरुस्त करने के निर्देश अधिशासी अभियंता को दिए।

जिलाधिकारी ने कार्यक्रम स्थल के मंच से 60 मीटर दूर हैलीपेड और जनसभा स्थल से कुछ मीटर की दूरी पर पार्किंग की व्यवस्था करने करने के निर्देश दिए। जिलाधिकारी ने मौके पर उपस्थित अधिकारियों को मुख्यमंत्री के आगमन की तैयारियों में तेजी लाने और अलर्ट मोड में रहने के निर्देश दिए।

इस निरीक्षण के दौरान सीआर‌ओ त्रिभुवन, अपर पुलिस अधीक्षक दुर्गा शंकर तिवारी,एसडीएम राजेश गुप्ता सहित अन्य अधिकारी और लोक निर्माण विभाग के अधिकारी मौजूद थे।

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भाजपा नेता राजेश सिंह दयाल ने परेशान हाल बुजर्ग महिला का कराया इलाज, जीता सबका दिल !

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सलेमपुर/ बलिया :  सलमेपुर लोकसभा के मशहूर समाजसेवी राजेश सिंह दयाल के एक काम ने लोगों का दिल जीत लिया। यूं तो राजेश सिंह लगातार अपने कामों सामाजिक कामों की वजह से चर्चा में रहते हैं। लेकिन इस बार जो हुआ उसकी हर जगह सराहना हो रही है।

बता दें कि सलेमपुर के रहने वाले अरुण चौहान की मां काफी बीमार थीं। उन्हें किडनी और लिवर में कुछ समस्या थी। वे अपनी मां को लेकर लखनऊ पीजीआई पहुंचे, लेकिन वहां हॉस्पिटल स्टाफ छुट्टी पर होने के चलते उनकी मां का इलाज नहीं हो पाया।

इसके बाद परेशान अरुण ने राजेश सिंह को फोन दिया। राजेश सिंह दयाल ने तत्परता दिखाते हुए फौरन महिला को पीजीआई लखनऊ में भर्ती करवाया और उनका इलाज करवाया। राजेश सिंह पिंडी में लगे मुफ्त स्वास्थ्य केंद्र में अरुण चौहान से मिले थे। इसी दौरान उन्होंने उनकी मां का इलाज पीजीआई में करवाने का वादा किया था। राजेश सिंह ने जो वादा किया, उसे निभाया भी और महिला का इलाज करवाया।

गौरतलब है कि सलेमपुर लोक सभा में स्वास्थ व्यवस्था बेहद लचर है। जिसको देखते हुए राजेश सिंह की संस्था दयाल फाउंडेशन लागतार इस इलाके में स्वास्थ कैंप आयोजित कर रही है। इस संस्था से अबतक 1 लाख लोग फायदा उठा चुके हैं। ये कैंप सभी के लिए एकदम फ्री लगाया जाता है। अबतक ये कैंप बलिया के बेलथरा रोड, सिकदंरपुर , रेवती, वहीं देवरिया के भाटपार , पिंडी , सलेमपुर में आयोजीत हो चुका है। दयाल फाउंडेशन की तरफ से बताया गया है कि आगामी नवम्बर माह में बांसडीह , नगरा समेत कई इलाकों में कैंप आयोजित किया जाएगा।

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‘इण्डिया’ गठबंधन में दलित लीडरशीप वाले चेहरे गायब!

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जयराम अनुरागी

लोकसभा 2024 के चुनाव को लेकर देश के दो प्रमुख गठबंधन एनडीए और इण्डिया अभी से अपना – अपना कुनबा बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दिये है। केन्द्र में सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने नये- नये साथियों की तलाश कर अपनी संख्या 38 तक कर ली है। वहीं दुसरी तरफ देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने 23 जून को पटना में एवं 17 व 18 जुलाई को कर्नाटक में बैठक कर 26 दलों की ” इण्डिया ” नामक गठबंधन बनाकर सतारुढ़ भाजपा की नींद उड़ा दी है।इसके बावजूद भी विपक्ष के लिए भाजपा को रोकने की राह आसान नहीं दिख रही है , क्योंकि देश की लगभग 20 प्रतिशत आबादी वाले दलित लीडरशीप वाले राजनैतिक दलो के चेहरे पटना एवं कर्नाटक की बैठक से गायब थे । दलित समुदाय से आने वाले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे उस बैठक में जरुर थे , लेकिन वह दलितों के प्रतिनिधि न होकर कांग्रेस के प्रतिनिधि थे।

देश की कुल 542 लोकसभा सीटों मे से 84 सींटे अनुसूचित जाति और 47 सींटे अनुसूचित जन जाति के लिए आरक्षित है और देश की 160 सीटों पर दलित मत सीधे निर्णायक भूमिका में है । इतनी बड़ी आबादी का ” इण्डिया ” गठबंधन में कोई प्रतिनिधि नहीं है, जो एक गम्भीर मामला है। देखा जाये तो समाजवादी पार्टी , राष्ट्रीय जनता दल , जनता दल ( यूनाईटेड) ,सीपीएम , टीएमसी , जनता दल ( सेक्युलर) , टीडीपी , टीआरएस, एनसीपी , अकाली दल , आम आदमी पार्टी और एआईडीएमके में दलित समाज का कोई ऐसा नहीं दिख रहा है , जिनकी राष्ट्रीय राजनीति में कोई चर्चा होती हो । विपक्षी दलों की इस दलित विरोधी मानसिकता के चलते देश के दलित असमंजस में दिख रहे है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसके साथ रहना है।

अब तक विपक्ष में जो राजनैतिक परिस्थितियां बनी है उसमें दलित चेहरे वैसे ही गायब है , जैसे 2020 के बिहार विधानसभा और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से गायब थे। यही कारण है कि बिहार में तेजस्वी यादव और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनते – बनते रह गये थे। यदि उस समय बिहार में तेजस्वी यादव हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ( हम) के जीतनराम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी( वीआइपी) के मुकेश साहनी तथा उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम) के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद को साथ ले लिए होते तो चुनाव परिणाम कुछ और होते । बिहार और उत्तर प्रदेश में दलितों की उठेक्षा कोई नयी बात नहीं है। बिहार में रामबिलास पासवान की भी वहां के तथाकथित पिछड़ो के मसीहा लगातार उपेक्षा करते रहे है। यही कारण है कि रामबिलास पासवान अपना अस्तित्व बचाने के लिए न चाहते हुए भी भाजपा गठबंधन में शामिल होने को मजबुर होते रहे है। वही गलती आज विपक्ष के नेता कर रहे है , जो विपक्षी एकजुटता के लिए कहीं से भी शुभ नहीं है।

सबको पता है कि बहुजन समाज पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी हैऔर इसका जनाधार कमोवेश देश के तेरह राज्यों में है। इसकी मुखिया सुश्री मायावती देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चार – चार बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी है। अपनी लगातार उपेक्षा देख बसपा सुप्रीमो अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। यदि समय रहते विपक्षी नेताओं ने मायावती से सम्पर्क साधा होता तो शायद ये विपक्षी खेमे में आ सकती थी । इनके बाद देश में दलित युवाओं के आइकान बन चुके आजाद समाज पार्टी( कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर आज़ाद है , जिनके नाम पर देश के दलित नौजवान अपनी जान छिड़कते है , जिन्हें टाइम पत्रिका ने फरवरी 2021 में 100 उभरते नेताओं की अपनी वार्षिक सूची में शामिल किया है। हालांकि इनके पास कोई सांसद और विधायक नहीं है , लेकिन ये देश के करोड़ो दलितों को किसी के साथ जोड़ने की कूबत रखते है। अभी हाल ही में 21 जुलाई को जंतर – मंतर पर लाखों की भीड़ जुटाकर अपनी ताकत को दिखा चुके है ।

इन दोनों दलित नेताओें के बाद देश में दलितों के लिए एक और बड़ा नाम है प्रकाश राव अम्बेडकर का , जो भारतीय संविधान के जनक भारत रत्न बाबा साहब डा० भीमराव अम्बेडकर के प्रपौत्र है और ये देश के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रह चुके है। देश के करोड़ो दलित इनके लिए भी अपनी जान छिड़कते हैं । ये फिलहाल भारतीय बहुजन महासंघ के संस्थापक अध्यक्ष है। यदि विपक्ष इन तीनों दलित नेताओं को अपने साथ जोड़ने में सफल हो जाते है तो विपक्ष की 2024 की राह बहुत हद तक आसान हो सकती है। इसके लिए विपक्ष के नेताओं को अपना दिल थोड़ा बड़ा करना होगा ।

इन दोनों बैठको में कई दलो से एक ही परिवार के कई – कई सदस्य शामिल हुए थे , लेकिन इसके आयोजकों ने विपक्ष के किसी दलित लीडरशीप वाले नेता को शामिल करना ऊचित नहीं समझा । दलित चिंतक लक्ष्मण सिंह भारती का कहना है कि आजादी के 75 साल बीतने के बावजूद आज भी दलितों के प्रति मानसिकता में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। गांव के दलितों के साथ अलग भेदभाव , दलित ब्यूरोक्रेट के साथ अलग भेदभाव और दलित राजनेताओं के साथ अलग तरह का भेदभाव आज भी जारी है। केवल उसका स्वरुप बदला है। यदि विपक्ष के नेता वास्तव में भाजपा गठबंधन को शिकस्त देना चाहते है तो उसमें दलित हेडेड लीडरशीप को ससम्मान शामिल करना चाहिए । यदि हो सके तो विपक्ष के तरफ से किसी दलित प्रधानमंत्री की घोषणा भी करनी चाहिए । यदि ऐसा होता है तो देश के दलित 1977 के बाद दुसरी बार दलित प्रधानमंत्री बनते देख इण्डिया गठबंधन के साथ तेजी से जुड़ सकते है , जिसका लाभ राष्टीय स्तर पर विपक्ष को मिल सकता है ।

 

लेखक –  दलित सामाजिक संगठनों के प्रादेशिक नेटवर्क ” दलित एक्शन सिविल सोसाइटी उत्तर प्रदेश ” के अध्यक्ष है तथा ” डा० अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2002 ” राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं पत्रकार है ।

 

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