Connect with us

featured

भाजपा की केतकी सिंह ने इस इंटरव्यू में खोले कई राज़ कहा,’अपनी शर्तों पर करती हूं राजनीति’

Published

on

बलिया डेस्क :  2017 में  उत्तर प्रदेश के विधानसभा के लिए चुने गए 403 विधायकों में मात्र 40 महिला विधायक हैं। यह आंकड़ा ‘आधी आबादी’ के ‘33 प्रतिशत की हिस्सेदारी’ के स्लोगन को मुंह चिढ़ाता दिखाई देता है। बहरहाल, प्रदेश के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने औसतन 8 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया जिसके बाद कुल 445 महिला उम्मीदवारों में से 40 विधायक चुनी गईं।

यह आंकडा इसलिए भी गौरतलब है कि राजनीतिक दल जातिगत फैक्टरों और सीट जीतने की उठापटक के बीच महिला के उम्मीदवारी को कोई चुनाव जीताऊ फैक्टर भी नहीं मान पाते। यह दलों विचारधारओं की समस्या अथवा राजनीति हो सकती है। हमारा उद्देश्य आपको बलिया की प्रभावी महिला नेत्री और केतकी सिंह से अवगत कराना है। अब तक दो विधानसभा चुनाव लड़ चुकी केतकी सिंह बलिया के बासंडीह विधानसभा की प्रभावी उम्मीदवार हैं। शाश्वत उपाध्याय  से लंबी बातचीत की है।

क्या है राजनीतिक करियर

2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार रहीं केतकी सिंह बलिया के बांसडीह विधानसभा से लगभग 30000 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं। तब यह सीट सपा के रामगोविंद चौधरी के हाथ लगी। सपा की सरकार बनी और उनका कार्यकाल बतौर शिक्षा मंत्री पूरा हुआ। बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में केतकी सिंह दुबारा बांसडीह से ही 49514 वोट पाकर वर्तमान नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी से लगभग 1600 वोटों से निर्दल चुनाव हारीं। भाजपा से टिकट की दावेदार रहीं केतकी सिंह को भाजपा के सुभासपा के गठबंधन के बाद टिकट नहीं मिला। हालांकि 2017 विधानसभा चुनाव में ऐसा उल्लेखनीय प्रदर्शन लगभग दो साल बाद दिसंबर 2018 में पार्टी में लौटने का बड़ा कारण रहा। फिलहाल भाजपा नेत्री के तौर पर अपने राजनीतिक हस्तक्षेप को मजबूत करतीं केतकी सिंह ने बलिया खबर से बात की है।

बी.कॉम की पढ़ाई के दौरान ही हो गया विवाह

बेहद मुखर और ‘फायर ब्रांड’ कही जाने वाली केतकी सिंह ने नवीं कक्षा तक की पढ़ाई छत्तीसगढ़ में पूरी की। 2003 में बलिया के ज्ञान पीठिका स्कूल से 12वीं पास करने के बाद जिले के ही टी.डी. कॉलेज से बी.कॉम की पढ़ाई पूरी की। कंप्यूटर सीखने का दौर था तो उसका कोर्स पूरा किया और फिर पढ़ाई के दौरान ही 2005 में शादी हो गई। कॉलेज में छात्र राजनीति में हस्तक्षेप के सवाल पर केतकी सिंह बताती हैं,

“मैं कॉलेज की राजनीति में नहीं आई। उस समय या अब भी लड़कियों की भूमिका बहुत कम ही रहती है। प्रत्याशी भी कभी इक्का-दुक्का मिल जाएं तो बहुत है। उन्हें कई तरह की समस्या और ह्रासमेंट झेलना पड़ता है। ना हीं लड़कों में वैसे संस्कार हैं और ना हीं समाज एक बेटी को उतनी सुरक्षा दे पाता है।“

राजनीति में अचानक एंट्री का कारण क्या था?

एकदम से मुख्यधारा की राजनीति में आ जाने के सवाल पर केतकी सिंह बताती हैं, ‘यह एक बेहद जरूरी बात है और मुझे लगता है कि सबको जानना चाहिए। घर परिवार की जिम्मेदारियों के बीच जब मैं शादी करके यहां (ससुराल) आयी तो यहां का माहौल दूसरा था। अगर हमें कहीं जाना भी होता तो हमारी गाड़ी तक एकदम बरामदे के पास खड़ी होती। फिर साल 2010 में ग्राम पंचायत के चुनाव के दौरान एक घटना हुई।‘

2010 के ग्राम पंचायत चुनाव का जिक्र करते हुए केतकी सिंह बताती हैं, ‘ग्राम पंचायत के चुनाव में मेरी सास उम्मीदवार थीं। मतदान के कोई 3-4 दिन पहले जब घर के सारे पुरूष चुनाव प्रचार में निकले थे, दोपहर के वक्त मैं अपनी 1 साल की बेटी के साथ अपने कमरे में थी। तभी मेरी सासू मां कमरे में आईं और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। मुझे बिस्तर के बगल में छुपाने की कोशिश करने लगीं। मैंने जानना चाहा मगर वो बस रोए जा रहीं थीं। मैंने खिड़की से बाहर देखा, घर के पीछे की तरफ पुलिस और साथ में बहुत सारे लोग घर में लाठी डंडों के साथ घुस आएं हैं। इतने में मेरे ही बेडरूम का दरवाजा तोड़ कर पुलिस वाले घुस आए। यह सबकुछ इतना जल्दी हो रहा था कि कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला। इसके बाद मैंने पुलिस वालों के साथ चिल्ला कर बात की, उन्हें घर के बाहर किया और पहली बार अपने ही घर के सबसे बाहर निकली।‘

 

केतकी सिंह इस घटना के प्रभाव को राजनीतिक हस्तक्षेप का ट्रिगर प्वाइंट मानती हैं। यह घटना क्यों अथवा कैसे हुई का नपातुला जवाब उनकी राजनीतिक परिपक्वता जानने के लिए काफी है। केतकी सिंह कहती हैं, ‘बाद में पता चला, तब के हमारे बसपा विधायक ने गैरकानूनी तरीके से हमारे घर में यह कह कर पुलिस भेजी थी कि इनके घर में चुनाव जीतने और प्रचार के लिए अवैध सामग्रियां मौजूद हैं’

निर्दलीय चुनाव लड़ने के दौरान केतकी सिंह के पोस्टर पर ऊपर के राजनीतिक चेहरे उल्लेखनीय हैं।

हालांकि केतकी सिंह के ससुर विश्राम सिंह इलाके में पहले से राजनीतिक हस्तक्षेप रखते थे। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखऱ के करीबी माने जाने वाले विश्राम सिंह ने भी अपने राजनीतिक अनुभव और खुली सोच को स्पष्ट किया और केतकी सिंह के लिए विधानसभा की राजनीति में हस्तक्षेप के द्वार खोल दिए।

खैर, क्या केतकी सिंह का राजनीति में आना इतना ही आसान या मुश्किल रहा? यह प्रश्न आने वाले समय का हो सकता है फिलहाल बासंडीह और बलिया की राजनीति में इस स्तर पर केतकी सिंह भाजपा के लिए एकमात्र महिला नेत्री हैं। साथ ही यह और भी उल्लेखनीय बात है कि चुनाव में उतरने वाले सभी राजनीतिक दलों को देखें तो भी केतकी सिंह ही एकमात्र महिला नेत्री हैं।

भाजपा ही क्यों

केतकी सिंह मानती हैं कि भारतीय जनता पार्टी से जुड़ाव का कारण उनकी राष्ट्रवादी सोच रही है मगर 2010 के ग्राम पंचायत चुनाव के दौरान की घटना में भाजपा के नेताओं की मदद भी उनका इस दल से जुड़ने का बड़ा कारण है। वो कहती हैं, ‘जब मैंने भाजपा में जुड़ने को सोचा तब तो पार्टी की हालत इतनी अच्छी नहीं थी लेकिन एक राजनीतिक दल अथवा नेता से आप यही उम्मीद करते हैं कि आपके और समाज के सुख-दुख में वो खड़ा हो। इसलिए मैंने भाजपा जॉइन किया।‘

पहली बार चुनाव लड़ने का अनुभव

केतकी सिंह पहली बार चुनाव लड़ने को लेकर कहती हैं, ‘मैंने देखा कि एक MLA होकर आप पुलिस और लोगों का इस तरह दुरूपयोग कर सकते हैं तो आपके पास चीजें बेहतर करने की कितनी ताकत है। यही कारण था औऱ मैंने सोचा की पहले MLA  बनेंगे और फिर अपने इलाके के स्तर से चीजें ठीक करेंगे’

निर्दल चुनाव लड़ने पर ये स्टैंड

केतकी सिंह 2012 में पहली बार भाजपा के टिकट पर बांसडीह से चुनाव लड़ीं। वोट मिले लगभग 30 हज़ार। इसके बाद के 2017 के चुनाव में भाजपा ने सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) के साथ गठबंधन किया और बांसडीह विधानसभा की सीट सुभासपा के हाथ चली गई। केतकी सिंह का टिकट काट कर सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को टिकट दे दिया गया। केतकी सिंह निर्दलीय उम्मीदवार बनीं और 49514 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। केतकी सिंह ने निर्दल चुनाव लड़ने के सवाल पर कहा, ‘मैंने पहले दिन से ये तय किया है कि मुझे अपने मान-सम्मान के साथ अपनी शर्तों पर राजनीति करनी है। बसपा के चलते मैं राजनीति में आयी, सपा की सरकार देखी है। इसके बाद अगर देखें तो राजनीतिक तौर पर खुल कर तत्कालीन सरकारों का विरोध करने का स्पेस भाजपा में मिला। मैं भाजपा के विरोध में चुनाव में नहीं उतरी थी। यहां से भाजपा का उम्मीदवार होता तो मैं जरूर समर्थन करती। मैं चुनाव लड़ने वाले सहयोगी दल के उम्मीदवार को अपना नेता नहीं मानती थी। मैं विचारधारा की राजनीति करती हूं ऐसे में किसी भी दल के उम्मीदवार के लिए वोट नहीं मांग सकती थी और यही आत्मविश्वास है कि आज मैं नेता प्रतिपक्ष के विरोध में उम्मीदवारी दर्ज करा रही हूं।‘

 

कितना प्रभावी है जातिगत फैक्टर

जातिगत राजनीति और समीकरणों को लेकर केतकी सिंह काफी बेफिक्र नज़र आती हैं। अपनी बातचीत में महात्मा गांधी, चंद्रशेखऱ और जेपी का जिक्र करते हुए चुनावों में इस फैक्टर के प्रभाव पर केतकी सिंह कहती हैं,  ‘ मुझे अपने दूसरे चुनाव की तैयारी के दौरान ये जाति का फैक्टर समझ आया। कहीं कुछ होनी-अनहोनी  होती जैसे मान लीजिए किसी बस्ती में आग लग गई तो लोग कहते थे,  वहां मत जाइए, वो आपको कभी वोट नहीं देंगे। हालांकि मैंने अब तक के अपने दोनों चुनाव में इस बात का ध्यान नहीं रखा। दूसरी बार निर्दल चुनाव लड़ने के बाद तो यह और साफ हो गया’

2019 लोकसभा से पूर्व भाजपा की ‘कमल संदेश यात्रा’ में शामिल केतकी सिंह व अन्य भाजपा नेता

बलिया की लड़कियों के लिए बतौर भाजपा नेत्री ने केतकी सिंह ने सबसे आखिर में कुछ रेखांकित करने लायक बात कही। पूरी बातचीत में अपनी दो बेटियों का लगातार जिक्र करती हुई केतकी सिंह खुद में आत्मविश्वास रखने की बात करती हैं। केतकी सिंह कहती हैं, ‘मैं बलिया की लड़कियों को कहना चाहती हूं कि राजनीति में आइये और पूरी तरह आत्मविश्वास के साथ आइये। जनता आत्मविश्वासी नेता के बारे में कभी भी पुरूष या महिला के भेद के साथ नहीं सोचती है। अभिवावकों से अनुरोध है कि बेटे जितना विश्वास बेटी पर भी करें, उनकी उड़ान हर किसी से बेहतर होगी’

पूरी बातचीत में केतकी सिंह के तेवर ने बहुत से नए सवालों को स्थान दिया। पूर्वांचल में भाजपा सहित किसी भी राजनीतिक दल में फिलवक्त इतनी मुखर और बिना प्रभावी पारिवारिक सहयोग की शायद ही कोई महिला नेता हों। अब इस प्रभावशाली तेवर का कारण एक बार की बगावत है या राजनीतिक महत्वकांक्षा, इसका मूल्यांकन तो समय के हाथों है। फिलहाल केतकी सिंह चुनाव से लगभग साल भर पहले ही पूरी तैयारी के साथ लैस हैं। सुबह 11 बजे तक लोगों के मिलती हैं और फिर क्षेत्र में जाती हैं। जब हम केतकी सिंह से बातचीत करने पहुंचे, पंचायत चुनावों में समीकरणों की उठा-पटक के बीच कुछ लोग उनसे मिलने आए थे, वो पंचायत चुनाव के आरक्षण की नई नियमावली से नाखुश थे। उन्हें उम्मीद है कि केतकी सिंह उनकी कुछ मदद करेंगी। उन्हें सहयोग के लिए पूर्णतया आश्वस्त करती केतकी सिंह बड़ी जिम्मेदारी से अभिवादन स्वीकार करती रहीं।

featured

बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

Published

on

बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

Continue Reading

featured

बलिया में दूल्हे पर एसिड अटैक, पूर्व प्रेमिका ने दिया वारदात को अंजाम

Published

on

बलिया के बांसडीह थाना क्षेत्र में एक हैरान कर देने वाले घटना सामने आई हैं। यहां शादी की रस्मों के दौरान एक युवती ने दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया, इससे दूल्हा गंभीर रूप से झुलस गया। मौके पर मौजूद महिलाओं ने युवती को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल पुलिस बारीकी से पूरे मामले की जांच कर रही है।

बताया जा रहा है की घटना को अंजाम देने वाली युवती दूल्हे की पूर्व प्रेमिका है। उसका थाना क्षेत्र के गांव डुमरी निवासी राकेश बिंद के साथ बीते कई वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने युवक से शादी करने का कई बार दबाव बनाया, लेकिन युवक ने शादी करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में कई बार थाना और गांव में पंचायत भी हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं।

इसी बीच राकेश की शादी कहीं ओर तय हो गई। मंगलवार की शाम राकेश की बारात बेल्थरारोड क्षेत्र के एक गांव में जा रही थी। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दूल्हे के साथ परिछावन करने के लिए गांव के शिव मंदिर पर पहुंचीं। तभी घूंघट में एक युवती पहुंची और दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया। इस घटना से दूल्हे के पास में खड़ा 14 वर्षीय राज बिंद भी घायल हो गया। दूल्हे के चीखने चिल्लाने से मौके पर हड़कंप मच गया। आनन फानन में दूल्हे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

मौके पर पहुंची पुलिस युवती को थाने ले गई और दूल्हे को जिला अस्पताल भेज दिया। थानाध्यक्ष अखिलेश चंद्र पांडेय ने कहा कि तहरीर मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

Continue Reading

featured

कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

Published

on

‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
Continue Reading

TRENDING STORIES

error: Content is protected !!