देश
लंदन- ‘ये मोदी है, उसी भाषा में जवाब देना जानता है’
चोगम (कॉमनवेल्थ हेड्स ऑफ़ गवर्नमेंट मीटिंग) सम्मेलन में हिस्सा लेने लंदन पहुंचे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त भारतीय समुदाय के लोगों के सामने वेस्टमिंस्टर के सेंट्रल हॉल से अपनी बात रख रहे हैं.
कार्यक्रम का संचालन मशहूर गीतकार प्रसून जोशी कर रहे हैं. कार्यक्रम की रूपरेखा ऐसी बनाई गई है जिसमें प्रसून जोशी उनसे अपने और लोगों के भेजे सवालों को लेकर बात कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के इस कार्यक्रम को ‘भारत की बात, सबके साथ’ नाम दिया गया है.
इससे पहले नरेंद्र मोदी ने ब्रितानी प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे और महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय से मुलाकात की.
नरेंद्र मोदी की लंदन यात्रा के दौरान उन्हें विरोध प्रदर्शनों का भी सामना करना पड़ा. पिछले दिनों भारत में कठुआ और उन्नाव में हुई रेप की घटनाओं और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में अभी तक इंसाफ़ न मिलने को लेकर लोगों ने लंदन की सड़कों पर प्रदर्शन किए और मोदी विरोधी नारे लगाए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन की मुख्य बातें:
- ‘रेलवे से रॉयल पैलेस’ के सफ़र से जुड़े पहले सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘एक कवि के लिए ये बात कहना सरल है लेकिन ज़िंदगी में ये सफ़र बहुत कठिन होता है.’
- जो जगह (संसद) कुछ परिवारों के लिए रिज़र्व रहती है वहां भी जनता के चाहने पर एक चाय वाला भी उनका प्रतिनिधित्व करके रॉयल पैलेस में हाथ मिलाने चला आता है. देश की सवा सौ करोड़ जनता की वजह से मैं रॉयल पैलेस में हूं.
- मैं मानता हूं जिस दिन मेरी बेसब्री ख़त्म हो जाएगी, उस दिन मैं देश के काम नहीं आऊंगा. वो मेरी ऊर्जा है.
- जहां तक निराशा का सवाल है मैं समझता हूं कि जब खुद के लिए कुछ लेना पाना बनना होता है तो वो आशा और निराशा से जुड़ जाता है लेकिन जब आप ‘सर्वजन हिताय’ को लेकर चलते हैं तो निराशा नहीं होती
- नीति स्पष्ट हो, नीयत साफ हो, इरादे नेक हों तो आप इसी व्यवस्था के तहत इच्छित परिणाम ले सकते हैं.
- 1857 से 1947 तक का (वक्त) लें. आज़ादी का संघर्ष किसी भी कोने में रूकी नहीं था. आज़ादी की बात रूकी नहीं थी. लेकिन महात्मा गांधी ने पूरी भावना को नया रूप दे दिया. उन्होंने जन सामान्य को (आज़ादी के संघर्ष से) जोड़ा. महात्मा गांधी ने आज़ादी को जन आंदोलन से जोड़ा. गांधी जी ने एक साथ हिंदुस्तान के हर कोने-कोन में कोटि कोटि जन को खड़ा कर दिया, जिससे आज़ादी पाना आसान हो गया. मैं समझता हूं कि विकास भी जन आंदोलन बन जाना चाहिए.
- आज़ादी के बाद एक माहौल बन गया कि जो करेगी सरकार करेगी. इससे जनता और सरकार के बीच दूरी बन गई.
- सरकार मेरी है देश मेरा है, ये भाव लुप्त हो गया है. मैं चाहता हूं कि ये भाव प्रबल होना चाहिए
- लोकतंत्र कोई कॉन्ट्रेक्ट एग्रीमेंट नहीं है. ये भागीदारी का काम है. मैं मानता हूं कि पार्टिसिपेटिव डेमोक्रेसी पर बल होना चाहिए.
- सर्जिकल स्ट्राइक के सवाल पर : भारत का चरित्र अजेय रहने का है. विजयी रहने का है लेकिन किसी के हक को छीनना, ये भारत का चरित्र नहीं है. भगवान राम और लक्ष्मण का जो संवाद है, तब भी उन सिद्धांतों को हमने देखा है. लेकिन जब कोई टेरीरिज्म एक्सपोर्ट करने का उद्योग बनाकर बैठा हो, मेरे देश के निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया जाता हो. पीठ पर वार होते हों तो ये मोदी है, उसी भाषा में जवाब देना जानता है.
- हमारे जवानों को, टेंट में सोए हुए थे रात में, कुछ बुजदिल आकर मौत के घाट उतार दें. आपमें से कोई चाहेगा कि मैं चुप रहूं. इसलिए सर्जिकल स्ट्राइक किया. मुझे देश के जवानों पर गर्व है. जो योजना बनी थी, उस पर इम्पलिमेंट किया और सूर्योदय के पहले वापस आ गए. सबसे पहले पाकिस्तान से बात की हमने ये किया है. तब जाकर हमने मीडिया और दुनिया को बताया. भारत का अधिकार था ये करने का हमने किया.
- सवा सौ करोड़ देशवासियों ने मुझे क्यों यहां बिठाया है. ना मेरी कोई जाति है और न मेरा कोई वंशवाद है. मेरे पास पूंजी एक ही है कठोर परिश्रम. मेरे पास पूंजी है प्रामाणिकता है. मेरे पास पूंजी है सवा सौ करोड़ देशवासियों का प्यार. मुझे ज्यादा से ज्यादा मेहनत करनी चाहिए. मैं देशवासियों को कहना चाहूंगा कि आप भी मुझे अपने जैसा मान लो. मैं वही हूं जो आप हैं. मेरे भीतर एक विद्यार्थी है. मैं शिक्षकों का आभारी हूं जिन्होंने मेरे भीतर के विद्यार्थी को कभी मरने नहीं दिया. मुझे जो दायित्व मिलता है मैं सीखने की कोशिश करता हूं. मैंने देशवासियों से कहा था कि मैं गलतियां कर सकता हूं लेकिन बद इरादे से कभी ग़लत नहीं करूंगा.
देश
बलिया DM ने किया कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण, बलिया में मुख्यमंत्री के दौरे को लेकर दिए ये निर्देश
बलिया जिलाधिकारी रविंद्र कुमार बांसडीह मैरीटार मार्ग स्थित पिंडहरा गांव में बघौली मौजे में आयोजित होने वाले महिला सम्मेलन की तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने जनसभा स्थल, हैलीपेड,सेफ हाउस और रास्ते की मरम्मत और घास फूस एवं झाड़ियों की कटाई एवं साफ-सफाई के निर्देश दिए।
जिलाधिकारी के निर्देश के क्रम में लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता ने अपनी टीम लगाकर उपलब्ध भूमि की पैमाइश करवाकर जनसभा स्थल और हैलीपेड के लिए जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित की।
इस कार्यक्रम स्थल के लिए धान की फसल को कटवा लिया गया है और बचे धान की फसल को कटवा लिया जाएगा। इसके बाद जिलाधिकारी ने पास स्थित लोक निर्माण विभाग के गेस्ट हाउस की रंगाई पुताई करवाकर, शौचालय सहित अन्य व्यवस्थाएं दुरुस्त करने के निर्देश अधिशासी अभियंता को दिए।
जिलाधिकारी ने कार्यक्रम स्थल के मंच से 60 मीटर दूर हैलीपेड और जनसभा स्थल से कुछ मीटर की दूरी पर पार्किंग की व्यवस्था करने करने के निर्देश दिए। जिलाधिकारी ने मौके पर उपस्थित अधिकारियों को मुख्यमंत्री के आगमन की तैयारियों में तेजी लाने और अलर्ट मोड में रहने के निर्देश दिए।
इस निरीक्षण के दौरान सीआरओ त्रिभुवन, अपर पुलिस अधीक्षक दुर्गा शंकर तिवारी,एसडीएम राजेश गुप्ता सहित अन्य अधिकारी और लोक निर्माण विभाग के अधिकारी मौजूद थे।
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भाजपा नेता राजेश सिंह दयाल ने परेशान हाल बुजर्ग महिला का कराया इलाज, जीता सबका दिल !
सलेमपुर/ बलिया : सलमेपुर लोकसभा के मशहूर समाजसेवी राजेश सिंह दयाल के एक काम ने लोगों का दिल जीत लिया। यूं तो राजेश सिंह लगातार अपने कामों सामाजिक कामों की वजह से चर्चा में रहते हैं। लेकिन इस बार जो हुआ उसकी हर जगह सराहना हो रही है।
बता दें कि सलेमपुर के रहने वाले अरुण चौहान की मां काफी बीमार थीं। उन्हें किडनी और लिवर में कुछ समस्या थी। वे अपनी मां को लेकर लखनऊ पीजीआई पहुंचे, लेकिन वहां हॉस्पिटल स्टाफ छुट्टी पर होने के चलते उनकी मां का इलाज नहीं हो पाया।
इसके बाद परेशान अरुण ने राजेश सिंह को फोन दिया। राजेश सिंह दयाल ने तत्परता दिखाते हुए फौरन महिला को पीजीआई लखनऊ में भर्ती करवाया और उनका इलाज करवाया। राजेश सिंह पिंडी में लगे मुफ्त स्वास्थ्य केंद्र में अरुण चौहान से मिले थे। इसी दौरान उन्होंने उनकी मां का इलाज पीजीआई में करवाने का वादा किया था। राजेश सिंह ने जो वादा किया, उसे निभाया भी और महिला का इलाज करवाया।
गौरतलब है कि सलेमपुर लोक सभा में स्वास्थ व्यवस्था बेहद लचर है। जिसको देखते हुए राजेश सिंह की संस्था दयाल फाउंडेशन लागतार इस इलाके में स्वास्थ कैंप आयोजित कर रही है। इस संस्था से अबतक 1 लाख लोग फायदा उठा चुके हैं। ये कैंप सभी के लिए एकदम फ्री लगाया जाता है। अबतक ये कैंप बलिया के बेलथरा रोड, सिकदंरपुर , रेवती, वहीं देवरिया के भाटपार , पिंडी , सलेमपुर में आयोजीत हो चुका है। दयाल फाउंडेशन की तरफ से बताया गया है कि आगामी नवम्बर माह में बांसडीह , नगरा समेत कई इलाकों में कैंप आयोजित किया जाएगा।
देश
‘इण्डिया’ गठबंधन में दलित लीडरशीप वाले चेहरे गायब!
जयराम अनुरागी
लोकसभा 2024 के चुनाव को लेकर देश के दो प्रमुख गठबंधन एनडीए और इण्डिया अभी से अपना – अपना कुनबा बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दिये है। केन्द्र में सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने नये- नये साथियों की तलाश कर अपनी संख्या 38 तक कर ली है। वहीं दुसरी तरफ देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने 23 जून को पटना में एवं 17 व 18 जुलाई को कर्नाटक में बैठक कर 26 दलों की ” इण्डिया ” नामक गठबंधन बनाकर सतारुढ़ भाजपा की नींद उड़ा दी है।इसके बावजूद भी विपक्ष के लिए भाजपा को रोकने की राह आसान नहीं दिख रही है , क्योंकि देश की लगभग 20 प्रतिशत आबादी वाले दलित लीडरशीप वाले राजनैतिक दलो के चेहरे पटना एवं कर्नाटक की बैठक से गायब थे । दलित समुदाय से आने वाले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे उस बैठक में जरुर थे , लेकिन वह दलितों के प्रतिनिधि न होकर कांग्रेस के प्रतिनिधि थे।
देश की कुल 542 लोकसभा सीटों मे से 84 सींटे अनुसूचित जाति और 47 सींटे अनुसूचित जन जाति के लिए आरक्षित है और देश की 160 सीटों पर दलित मत सीधे निर्णायक भूमिका में है । इतनी बड़ी आबादी का ” इण्डिया ” गठबंधन में कोई प्रतिनिधि नहीं है, जो एक गम्भीर मामला है। देखा जाये तो समाजवादी पार्टी , राष्ट्रीय जनता दल , जनता दल ( यूनाईटेड) ,सीपीएम , टीएमसी , जनता दल ( सेक्युलर) , टीडीपी , टीआरएस, एनसीपी , अकाली दल , आम आदमी पार्टी और एआईडीएमके में दलित समाज का कोई ऐसा नहीं दिख रहा है , जिनकी राष्ट्रीय राजनीति में कोई चर्चा होती हो । विपक्षी दलों की इस दलित विरोधी मानसिकता के चलते देश के दलित असमंजस में दिख रहे है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसके साथ रहना है।
अब तक विपक्ष में जो राजनैतिक परिस्थितियां बनी है उसमें दलित चेहरे वैसे ही गायब है , जैसे 2020 के बिहार विधानसभा और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से गायब थे। यही कारण है कि बिहार में तेजस्वी यादव और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनते – बनते रह गये थे। यदि उस समय बिहार में तेजस्वी यादव हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ( हम) के जीतनराम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी( वीआइपी) के मुकेश साहनी तथा उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम) के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद को साथ ले लिए होते तो चुनाव परिणाम कुछ और होते । बिहार और उत्तर प्रदेश में दलितों की उठेक्षा कोई नयी बात नहीं है। बिहार में रामबिलास पासवान की भी वहां के तथाकथित पिछड़ो के मसीहा लगातार उपेक्षा करते रहे है। यही कारण है कि रामबिलास पासवान अपना अस्तित्व बचाने के लिए न चाहते हुए भी भाजपा गठबंधन में शामिल होने को मजबुर होते रहे है। वही गलती आज विपक्ष के नेता कर रहे है , जो विपक्षी एकजुटता के लिए कहीं से भी शुभ नहीं है।
सबको पता है कि बहुजन समाज पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी हैऔर इसका जनाधार कमोवेश देश के तेरह राज्यों में है। इसकी मुखिया सुश्री मायावती देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चार – चार बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी है। अपनी लगातार उपेक्षा देख बसपा सुप्रीमो अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। यदि समय रहते विपक्षी नेताओं ने मायावती से सम्पर्क साधा होता तो शायद ये विपक्षी खेमे में आ सकती थी । इनके बाद देश में दलित युवाओं के आइकान बन चुके आजाद समाज पार्टी( कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर आज़ाद है , जिनके नाम पर देश के दलित नौजवान अपनी जान छिड़कते है , जिन्हें टाइम पत्रिका ने फरवरी 2021 में 100 उभरते नेताओं की अपनी वार्षिक सूची में शामिल किया है। हालांकि इनके पास कोई सांसद और विधायक नहीं है , लेकिन ये देश के करोड़ो दलितों को किसी के साथ जोड़ने की कूबत रखते है। अभी हाल ही में 21 जुलाई को जंतर – मंतर पर लाखों की भीड़ जुटाकर अपनी ताकत को दिखा चुके है ।
इन दोनों दलित नेताओें के बाद देश में दलितों के लिए एक और बड़ा नाम है प्रकाश राव अम्बेडकर का , जो भारतीय संविधान के जनक भारत रत्न बाबा साहब डा० भीमराव अम्बेडकर के प्रपौत्र है और ये देश के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रह चुके है। देश के करोड़ो दलित इनके लिए भी अपनी जान छिड़कते हैं । ये फिलहाल भारतीय बहुजन महासंघ के संस्थापक अध्यक्ष है। यदि विपक्ष इन तीनों दलित नेताओं को अपने साथ जोड़ने में सफल हो जाते है तो विपक्ष की 2024 की राह बहुत हद तक आसान हो सकती है। इसके लिए विपक्ष के नेताओं को अपना दिल थोड़ा बड़ा करना होगा ।
इन दोनों बैठको में कई दलो से एक ही परिवार के कई – कई सदस्य शामिल हुए थे , लेकिन इसके आयोजकों ने विपक्ष के किसी दलित लीडरशीप वाले नेता को शामिल करना ऊचित नहीं समझा । दलित चिंतक लक्ष्मण सिंह भारती का कहना है कि आजादी के 75 साल बीतने के बावजूद आज भी दलितों के प्रति मानसिकता में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। गांव के दलितों के साथ अलग भेदभाव , दलित ब्यूरोक्रेट के साथ अलग भेदभाव और दलित राजनेताओं के साथ अलग तरह का भेदभाव आज भी जारी है। केवल उसका स्वरुप बदला है। यदि विपक्ष के नेता वास्तव में भाजपा गठबंधन को शिकस्त देना चाहते है तो उसमें दलित हेडेड लीडरशीप को ससम्मान शामिल करना चाहिए । यदि हो सके तो विपक्ष के तरफ से किसी दलित प्रधानमंत्री की घोषणा भी करनी चाहिए । यदि ऐसा होता है तो देश के दलित 1977 के बाद दुसरी बार दलित प्रधानमंत्री बनते देख इण्डिया गठबंधन के साथ तेजी से जुड़ सकते है , जिसका लाभ राष्टीय स्तर पर विपक्ष को मिल सकता है ।
लेखक – दलित सामाजिक संगठनों के प्रादेशिक नेटवर्क ” दलित एक्शन सिविल सोसाइटी उत्तर प्रदेश ” के अध्यक्ष है तथा ” डा० अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2002 ” राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं पत्रकार है ।
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