बलिया स्पेशल
किसान सम्मान दिवस- फसल उत्पादन में प्रथम स्थान लाने पर छह किसानों को मिला ट्रैक्टर
बलिया डेस्क : सबमिशन ऑन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन योजनातर्गत स्व0 चौधरी चरण सिंह पूर्व प्रधानमंत्री के जन्म दिवस के अवसर पर बुधवार को ऑफिसर्स क्लब में आयोजित किसान सम्मान दिवस एवं किसान मेला सह प्रदर्शनी का उद्घाटन सांसद विरेंद्र सिंह मस्त द्वारा फीता काटकर किया।
तत्पश्चात मा0 स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की फोटो पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया। साथ ही जनपद के छः किसानों को फसल उत्पादन में प्रथम स्थान लाने पर मुख्यमंत्री कृषक उपहार योजना में उत्तर प्रदेश छः ट्रैक्टर की चाबी अपने कर कमलों द्वारा दिया एवं किसानों को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
किसान मेला में दूर-दराज से आये किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि जब मैं किसानों के कार्यक्रम में होता तो मैं अपने को परिवार को होना समझता हूँ। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि किसान खाता भी है और खिलाता भी है। चौधरी चरण सिंह किसानो के पसीने और मेहनत को सलाम करते थे। उन्होंने कहा कि जो शान से रहता है वही किसान है।
मैंने मा0 प्रधानमंत्री जी से आग्रह करके किसानों के खाते में छः हजार रुपये भेजने की नियमावली बनवायी और किसान की उम्र 60 वर्ष पूर्व के बाद पेंशन की व्यवस्था करायी। जनपद के अधिकारियों को निर्देश दिया कि किसान को उत्तर प्रदेश एवं केंद्र सरकार की योजनाओं के बारे में पूरा पूरा सहयोग करें। जनपद में गंगा नदी एवं घाघरा नदी के किनारे ऑर्गेनिक खेती होगी एवं जल संरक्षण का कार्य आने वाले दिनों में किया जाएगा।
जिलाध्यक्ष भाजपा जयप्रकाश साहू ने किसानों को संबोधित किया और किसानों से आग्रह किया कि इसी तरह का कार्यक्रम सभी विकास खंडों पर पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 अटल बिहारी बाजपेयी की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित है। जिसमें किसानों से संबंधित योजना पर कार्यक्रम होगा। इसलिए आप लोग अपने-अपने विकास खंड मुख्यालय पर अधिक से अधिक संख्या में 25 दिसंबर को पूर्वान्ह 11 बजे पहुंचे।
किसानों को ऑर्गनिक खेती एवं अन्य योजनाओं के बारे दी जानकारी
किसान गोष्ठी में उपस्थित किसानों को उप कृषि निदेशक इंद्राज ने विभिन्न योजनाओं एवं फसलों को रोग से बचाव एवं मिट्टी शोधन के बारे में विस्तार से जानकारी दी। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा पशुपालन विभाग की सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के विषय में जानकारी दी। समस्त विकास खंडों में सीमन उपलब्ध है जिससे 95 प्रतिशत बछिया पैदा होगी। जिसकी कीमत तीन सौ रुपये हैं किसान इसका लाभ उठाएं।
जिला उद्यान अधिकारी नेपाल राम जी ने बताया कि किसानों को बागवानी, सब्जी, फूल, फल एवं पाली हाउस द्वारा खेती करने के विषय में जानकारी दी। कम लागत में अधिक उत्पादन पाएं उस पर प्रकाश डाला गया। इस कार्यक्रम में कृषि से संबंधित यंत्रों दुग्ध विभाग, मछली विभाग, पशुपालन विभाग एवं अन्य विभागों द्वारा प्रदर्शनी लगायी गयी थी। सूचना विभाग द्वारा एलईडी वैन से शासन की योजनाओं एवं मा0 मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम के लाइव प्रसारण का प्रदर्शन भी कराया गया है।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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