बलिया स्पेशल
बलिया में कई संगठनों ने सरकार की श्रम, किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ निकाला जुलूस, डीएम को सौंपा ज्ञापन
बलिया डेस्क : देशव्यापी आम हड़ताल को लेकर दवा प्रतिनिधि संगठन यूपीएमएसआरए के सदस्यों ने जिला परिषद पर एकत्रित होकर केंद्र व राज्य सरकार की श्रम विरोधी, किसान विरोधी नीतियों एवं नए लेबर कोड का विरोध किया। साथ ही जुलूस निकालकर नारेबाजी की। मांग किया कि मजदूर विरोधी लेबर कोड वापस लिया जाए। आवश्यक वस्तु अधिनियम में कोई भी बदलाव न किया जाए।
वेतन में कटौती न किया जाए तथा कर्मचारियों को नौकरी से न निकाला जाए। यूनिफर्म कोड आफ फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस कोड को वैधानिकता प्रदान की जाए। दवा व चिकित्सीय उपकरणों पर जीएसटी शून्य किया जाए। न्यूनतम वेतनमान 21000 प्रतिमाह किया जाए। 6 माह का मातृत्व अवकाश सेल्स प्रमोशन एम्पलाइज के लिए घोषित किया जाए। सेल्स प्रमोशन एम्पलाइज के लिए काम के घंटे 8 का कार्य दिवस तय किया जाए। पेट्रोलियम पदार्थों के दाम कम किया जाए।
किसान विरोधी अध्यादेश व कानूनों को वापस लिया जाए। अनैतिक रूप से कर्मचारियों की छटनी बंद किया जाए। जुलूस में आशा कर्मचारी यूनियन, खेत मजदूर यूनियन, भवन निर्माण मजदूर सभा राज्य कर्मचारी परिषद, राज्य कर्मचारी महासंघ, आंगनबाड़ी ने भाग लिया। जुलूस टीडी कालेज एवं कुंवर सिंह होते हुए कलेक्ट्रेट में पहुुंचकर सभा के रूप में तब्दील हो गई। यहां जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। अध्यक्षता एनके सिंह तथा संचालन पंकज मेहता ने किया।
हड़ताल पर रहे बैंक कर्मचारी- नगरा में भी क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारी अपनी 17 सुत्रीय मांगों को लेकर गुरुवार को हड़ताल पर रहे। केन्द्रीय ट्रेड युनियनों, सिटू और एफएमआरएआई के आह्वान पर क्षेत्र में स्टेट बैंक को छोड़कर युनियन बैंक, सेन्ट्रल बैंक सहित अन्य बैंकों के कर्मचारी हड़ताल पर रहे। स्थानीय सेन्ट्रल बैंक में कुछ कर्मचारी हड़ताल पर रहे और कुछ कार्य किये। इसके चलते जरुरतमन्द लोगों को शादी विवाह व अन्य अवसर पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।
हड़ताल के समर्थन में एलआईसी कार्यालय में रही तालाबंदी– केंद्रीय श्रम संगठनों के आह्वान पर बुलाई गई एक-दिवसीय हड़ताल के कारण गुरुवार को भारतीय जीवन बीमा निगम के बलिया शाखा में पूर्ण तालाबंदी रही। निगम में कोई काम-काज नही हुआ। सभी कर्मचारियों ने हड़ताल के समर्थन में नारेबाजी की और शाखा कार्यालय के गेट पर प्रदर्शन किया।
दिनेश सिंह ने हड़ताल का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए अपनी मुख्य मांगों को सामने रखा। इनमें नया रोजगार सृजित किये जाने, महंगाई का विरोध, सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश का विरोध, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना, श्रम कानूनों को कमजोर किये जाने का विरोध, न्यूनतम वेतन 21 हजार करना, पुरानी पेंशन योजना को लागू करना जैसे 12 सूत्रीय मांगों का समर्थन करना था।
प्रधान डाकघर पर डाक कर्मियों का प्रदर्शन– अखिल भारतीय ग्रामीण डाक सेवक संघ के तत्वावधान में कर्मचारियों ने प्रधान डाकघर के प्रांगण में 12 सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। वक्ताओं ने कहा कि सरकार के कठौर रवैये के कारण जीडीएस कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग में कमलेश चन्द्रा कमेटी की रिपोर्ट में जीडीएस कर्मचारी हित में लागू करने की सिफारिस किया गया था।
वह आज तक लागू नहीं किया गया।जिस पद एवं स्केल पर जीडीएस कर्मचारी नियुक्त होता है, उसी पद पर सेवा मुक्त हो जाता है। आये दिन कर्मचारी अधिकारियों के उत्पीड़न के शिकार होते है।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में नक्सलियों के 11 ठिकानों पर NIA ने मारा छापा
बलिया में एनआईए ने नक्सलियों के 11 ठिकानों पर शनिवार को छापा मारा, जहां से तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और नक्सली साहित्य बरामद किया गया है। एनआईए ने यह कार्रवाई पिछले साल यूपी एटीएस द्वारा बलिया में पकड़े गए पांच नक्सलियों पर दर्ज केस को टेकओवर करने के बाद की है।
बता दें कि यूपीएटीएस ने 15 अगस्त, 2023 को बलिया से नक्सली संगठनों में नई भर्तियां करने में जुटी तारा देवी के साथ लल्लू राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राम मूरत राजभर व विनोद साहनी को गिरफ्तार किया था। आरोपितों के कब्जे से नाइन एमएम पिस्टल भी बरामद हुई थी। जांच में सामने आया है कि तारा देवी को बिहार से बलिया भेजा गया था। वह वर्ष 2005 में नक्सलियों से जुड़ी थी और बिहार में हुई बहुचर्चित मधुबन बैंक डकैती में भी शामिल थी।
इसके अलावा लल्लू राम उर्फ अरुन राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राममूरत तथा विनोद साहनी की गिरफ्तारी हुई थी। ये सभी बिहार के बड़े नक्सली कमांडरों के संपर्क में थे।
एनआईए की अब तक की जांच के अनुसार, प्रतिबंधित संगठन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत उत्तरी क्षेत्र अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है। जांच एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि भाकपा (माओवादी) के नेता, कार्यकर्ताओं और इससे सहानुभूति रखने वाले, ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) इस क्षेत्र में संगठन की स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
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