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बलिया में एक्टिव मोड में आ गया विपक्ष! सपा, कांग्रेस और सुभासपा के कार्यकर्ता…
बलिया डेस्क : लखनऊ के साथ ही बलिया में भी समाजवादी पार्टी, सुभासपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता इन दिनों एक्टिव मोड में नज़र आ रहे हैं। लंबे समय से सड़कों से दूर रहे ये कार्यकर्ता तमाम मुद्दों पर सरकार और प्रशासन को घेरने के लिए अब सड़कों पर प्रदर्शन करते दिखाई दे रहे हैं।
हालांकि इन प्रदर्शनों की इन्हें कीमत भी चुकानी पड़ रही है। जहां लखनऊ में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पुलिस की बर्बरता का सामना करना पड़ रहा है, वहीं बलिया में समजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की जा रही है।
बलिया में सोमवार को ही पार्टी जिलाध्यक्ष राजमंगल यादव एवं पूर्व मंत्री मो. जियाउद्दीन रिजवी समेत पांच सपा नेताओं और 45 अज्ञात सपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज किया।
इनके खिलाफ केस इसलिए दर्ज किया गया क्योंकि ये सिकंदरपुर के उप जिलाधिकारी संगमलाल यादव की कार्यप्रणाली के विरोध में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे थे। एसडीएम पर आरोप है कि वो अपने कुछ चुनिंदा मातहतों के माध्यम से धन उगाही कराते हैं और उसी के आधार पर आवेदनों पर आदेश देते हैं।
वो फरियादियों की गुहार नहीं सुनते और उनके साथ बदसलूकी भी करते हैं। एसडीएम के इसी रवेये के खिलाफ सपा कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया था, जिससे नाराज़ होकर प्रशासन ने उनके खिलाफ केस दर्ज कर दिया। आरोप है कि प्रदर्शन के दौरान सपा कार्यकर्ताओं ने लॉकडाउन का उल्लंघन किया और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया।
संघर्षों के आदी है, हम समाजवादी हैं। @samajwadiparty @hafizgandhi @opsinghofficial @BirendraMla @yadavakhilesh https://t.co/KLgk1EW6ea
— Narad Rai (@NARADRAIBALLIA) June 30, 2020
धारा 188 के उल्लंघन और महामारी एक्ट के तहत इन लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया। जिले में ये पहला मौका नहीं है जब सपा कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया है। पिछले हफ्ते ही जलजमाव की समस्या को लेकर सपा कार्यकर्ताओं ने सरकार और प्रशासन के ख़िलाफ़ हल्ला बोला था।
सपाइयों ने तब जिलाधिकारी श्री हरिप्रताप शाही को ज्ञापन सौंपते हुए कहा था कि अगर उनकी मांगे नहीं सुनी गईं तो वो एक जुलाई से सड़कों पर उतरेंगे। वहीं कांग्रेस की बात करें तो वो भी जिले में काफी सक्रिय नज़र आ रही है।
आज भागीदारी संकल्प मोर्चा @SBSP4INDIA के तत्वावधान में पेट्रोल डीजल की बढ़ी हुई कीमतों को वापस करने व प्रदेश सरकार में हो रहे भ्रष्टाचार के विरोध में तहसील मुख्यालय बाँसडीह बलिया में बैलगाड़ी द्वारा पहुच कर sdm बाँसडीह को ज्ञापन दिए सुभासपा बलिया जनपद के पदाधिकारीगण। pic.twitter.com/RnNiVdvMts
— Suheldev Bhartiya Samaj Party (SBSP) (@SBSP4INDIA) July 1, 2020
वहीं सुभासपा के कार्यकताओं ने भी बुधवार को पेट्रोल व डीजल के मूल्यों में वृद्धि के खिलाफ तहसील परिसर में धरना दिया। कार्यकर्ता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष पुनीत पाठक के नेतृत्व में बैलगाड़ी से तहसील पहुंचे और धरना दिया।
आज बलिया तहसील में पेट्रोल डीज़ल के दामों को लेकर विरोध प्रदर्शन किया गया और जिलाधिकारी महोदय के संयुक्त सचिव जी को ज्ञापन सौंपा गया। pic.twitter.com/6f1MSWsMzv
— Ballia Congress (@INCBallia) July 1, 2020
कांग्रेस कार्यकर्ता भी पेट्रोल डीज़ल की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे इन प्रदर्शनों को देखकर कहा जा सकता है कि विपक्ष अब गहरी नींद से जाग चुका है, जो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।
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बलिया में नए सिरे से होगी गंगा पुल निर्माण में हुए करोड़ों के घोटाले की जांच, नई टीम गठित
बलिया में गंगा पुल के निर्माण में हुए घोटाले के मामले से जुड़ी बड़ी अपडेट सामने आई है। अब निर्माण में हुए करोड़ों के घपले की जांच के लिए नई समिति गठित की जाएगी। समिति नए सिरे से पूरे मामले की जांच करेगी। बता दें कि विधानसभा में प्रकरण उठने के बाद पुनः जांच समिति गठित करने के आदेश दे दिए गए हैं। साथ ही कहा गया है कि ड्राइंग के मद में 16.71 करोड़ रुपये का प्रावधान शामिल था या नहीं, यह शासन ही स्पष्ट कर सकता है।
जानकारी के मुताबिक, बलिया में श्रीरामपुर घाट पर गंगा पर करीब 2.5 किमी लंबे पुल का निर्माण कराया गया है। यह काम वर्ष 2014 में मंजूर हुआ था। साल 2016 में संशोधित एस्टीमेट और 2019 में पुनः संशोधित एस्टीमेट मंजूर किया गया। कुल 442 करोड़ रूप का एस्टीमेट रखा गया, जबकि ये नियमानुसार 424 करोड़ रूपये होना चाहिए था। दोबारा संशोधित स्वीकृति में बिल ऑफ क्वांटिटी में 16.7 करोड़ का डिजाइन चार्ज के मद में अतिरिक्त प्रावधान किए जाने से निगम और शासन को यह नुकसान हुआ। जीएसटी लगाकर यह राशि करीब 18 करोड़ रुपये बनती है।
जब इस मामले में जांच हुई तो पता चला कि डिजाइन चार्ज से संबंधित दस्तावेज आजमगढ़ में मुख्य परियोजना प्रबंधक के कार्यालय से उपलब्ध नहीं कराए गए हैं और न ही कोई दस्तावेज सेतु निगम मुख्यालय में उपलब्ध हैं। ऐसे में इस मामले में अब गहराई से जांच की जायेगी।
बता दें कि सेतु निगम की ओर से भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यय वित्त समिति को प्रस्तुत किए जाने से पूर्व किसी भी परियोजना की लागत दरों का मूल्यांकन, परियोजना मूल्यांकन प्रभाग करता है। इसलिए इस संबंध में वास्तविक स्थिति प्रभाग ही स्पष्ट कर सकता है। यह भी बताया गया है कि पुनः जांच समिति की जांच प्रक्रियाधीन है।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो वायरल करने वाले युवक पर मुकदमा दर्ज
बलिया के बांसडीहरोड थाना क्षेत्र में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो और वीडियो वायरल करने के मामले में पुलिस ने एक युवक पर नामजद मुकदमा दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि युवक ने एक युवती के अश्लील वीडियो बना रखे हैं और बार बार उन्हें वायरल करके किशोरी को बदनाम कर रहा है। इस मामले में पीड़ित पक्ष ने आरोपी युवक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।
जानकारी के मुताबिक, इलाके के एक गांव की रहने वाली युवती को टकरसन निवासी पवन वर्मा कई दिनों से परेशान कर रहा है। युवती का आरोप है कि कुछ दिनों पहले आरोपी ने सोशल मिडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम पर अश्लील फोटो और वीडियो डालकर बदनाम करने की कोशिश की है। पीड़िता का कहना है कि अब तक तीन बार विवाह तय हो चुका है, लेकिन पवन के चलते हर बार वह ससुराल पक्ष के लोगों के व्हाट्सएप पर अश्लील फोटो व वीडियो भेजकर शादी तुड़वा चुका है।
तीन बार युवती का रिश्ता टूट चुका है। युवती का कहना है कि आरोपी युवक किसी भी तरह से मेरी शादी नहीं होने दे रहा है। इस सम्बंध में एसओ अखिलेश चंद्र पांडेय का कहना है कि तहरीर के आधार पर आईटी एक्ट व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है। इधर युवती के परिवारवालों ने आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग की है।
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