देश
आंगन से निकलकर लुप्तप्राय प्रजातियों की ‘लाल सूची’ में कैसे पहुंच गई गौरैया!

राम जी की चिरइया, रामजी का खेत/ खाय ले चिरइया, भर-भर पेट।।”
‘चिरइया’ का रामजी के खेत में कोई खास हिस्सा नहीं था। रामजी के खेतों में केवल इंसानी सभ्यता अपना दावा कर सकती थी। उसने किया भी। गावों में लोग उदार थे। इसीलिए चिड़िया का घर मिट्टी पर न सही लेकिन मिट्टी या कंक्रीट के घरों पर जरूर निर्मित हो जाता था। तिनकों से निर्मित घर, जहां चिरिया अंडे देती, सेती और फिर उसके बच्चे हवा में तैरने की कला सीखने से पहले अपनी मासूम आंखों से इंसानों की जीवनशैली देखते। किसान के घर में बच्चों को हिदायत थी कि चिरिया के बच्चों को छूना नहीं। बहुत नाजुक है, मर जाएगी तो पाप लगेगा। इंसान और विहग-प्रजाति का यह अनोखा संबंध आत्मा की आवाज पर कायम था। वही आत्मा जिसके बारे में शास्त्र कहते हैं कि वह अलग-अलग घड़ों में प्रतिबिंबित सूरज के समान एक है।
ऐसी ही एक नन्हीं सी ”चिरइया” होती थी गौरैया। कविताओं में, कहानियों में और बोलचाल में गौरैया का जितना इस्तेमाल किया है उतना उसे देखा नहीं है। जबसे होश में आए तबसे अधिकांशतः उसे बचाने के आह्वान और उसके संरक्षण के कवायदों के किस्से सुने हैं। आंगन और गौरैया का अजीब रिश्ता हुआ करता था लेकिन आधुनिक जीवनशैली में विकास की छतों ने आंगन को आंगन न रहने दिया। गौरैया का प्राकृतिक आकाश और उसकी हवाओं के समानांतर इंसानों ने अपनी व्यवस्थाएं बनानी शुरू कर दीं। यही वजह रही होगी कि अब गौरैया को आंगन पर अपना वही अधिकार महसूस ही नहीं हुआ होगा जैसा वह पहले समझती थी। पिछले दो तीन दशकों में इस 14-16 सेमी लंबी चिड़िया की संख्या में तकरीबन 60-80 फीसदी की कमी आई है। ब्रिटेन के ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स’ ने इस नन्हीं चिड़िया को ‘लाल सूची’ में दर्ज किया है। मतलब कि यह नस्ल खत्म होने की कगार की ओर बढ़ रही है। हमारे आंगन की गौरैया हमारा साथ छोड़कर अब विलुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में अपना ठिकाना बना चुकी है।
‘अपराधबोध’ महसूस होने के बाद आपका यह जानना भी बेहद जरूरी है कि आखिर वो कौन सी वजहें हैं जो गौरैया की नस्ल तक खत्म करने पर आमादा हैं। कारण जानेंगे तभी तो संकट-मोचन बन पाएंगे। सीलिंग फैन-युक्त घरों की छतों, झरोखों और रोशनदानों में शरण नहीं मिली तो चिड़िया अपने परंपरागत घरों की ओर लौटी। पेड़ों पर घोसले बनाए लेकिन खतरा तो वहीं था। बड़े-बड़े टेलीकॉम टॉवरों से निकलने वाली तरंगें उनके अंडों को नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। शहरों में तो उन्हें पेड़ भी कम ही मिलते हैं। जंगल विकास के यज्ञ की आहूति बन रहे हैं। विधाता ने उनके हिस्से का पानी जो उन्हें सौंपा था वह नदियों, पोखरों और तालाबों से निकलकर 20 रूपए की बोतलों में समाते जा रहे हैं। फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल उनके भोजन को जहर में रूपांतरित कर रहा है। इतने खतरों के बीच में रहने के बाद गौरैया अगर लाल-सूची में है तो हैरत नहीं होनी चाहिए।
गौरैया तेजी से लुप्त हो रही है। पिछले बीस सालों के अंदर भारत में इनकी संख्या में तकरीबन 60 फीसदी की कमी देखी गई है। सिर्फ आंगन वाले देश भारत में ही नहीं बल्कि ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में भी गौरैया तेजी से लुप्त हो रही है। अब जब दुनिया भर में गौरैया की संख्या 80 फीसदी कम हो गई तब उसे बचाने की कवायद शुरू हुई है। ठीक है, जब जागो तभी सवेरा। इस जागरण का सबसे पहला कदम हुआ 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाने की परंपरा की शुरुआत। हर साल इस दिन गौरैया-संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जाती है। गौरैया को बचाने के लिए सरकारी या संस्थागत योजनाओं से ज्यादा मानवतावादी प्रयासों की आवश्यकता है। व्यक्तिगत स्तर पर होने वाले प्रयास सुबह के इस मधुर कलरव की रक्षा करने में मददगार हो सकते हैं। इसके लिए आप अपने घरों में उनके घोसलों के लिए कुछ स्थान निश्चित कर सकते हैं। उनके अंडों की सुरक्षा में दिलचस्पी लेते हुए गौरैया-वंश के संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। घरों की छतों पर कुछ दाने और पानी से भरे बर्तन रख उनके अन्नदाता बन सकते हैं। खेतों में कीटनाशकों और रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम कर उनकी प्राण-रक्षा कर सकते हैं। ये सारे प्रयास राजनीति, समाजनीति से ज्यादा भावनीति से प्रेरित होने पड़ेंगे।
धरती का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा हथियाने के इस दौर में हमें यह जरूर याद रखना चाहिए कि गौरैया भी उसी प्रकृति की संतान है जिसके हम हैं। इस धरती पर उसका भी उतना ही अधिकार है जितना कि हमारा। वो अपना अधिकार मांगते नहीं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम उनका हिस्सा छीन लें। ये सच है कि हमने अपनी सभ्यताओं के विकास के चक्कर में पक्षियों, जानवरों और अनेक प्राकृतिक सजीव अवयवों की सृष्टि के साथ खिलवाड़ किया है। यह प्राकृतिक असंतुलन हमारे द्वारा परिभाषित तथाकथित विकास की जमीन पर उपज रहा है। यह ऐसी फसल है जिस पर हम आम की आशा कर रहे हैं जबकि इसका बीज बबूल का है। यह विनाशक है। प्राकृतिक साहचर्य में ऐसे अनुचित हस्तक्षेप की सजा कहीं हमारी आने वाली नस्लों को झेलनी पड़े, यह चिंता भी हमारी ही है।






featured
दिल्ली पुलिस ने 17 साल बाद किडनैप की गई बलिया की लड़की को खोज निकाला!

बलिया: कई बार घर से गायब होने वाले व्यक्ति सालों साल नहीं मिलते, घरवाले उम्मीद छोड़ देते हैं, लेकिन कुछ मामलों में चमत्कार होता है। जब सालों से लापता व्यक्ति अचानक मिल जाता है। कुछ ऐसी ही आश्चर्यजनक घटना सामने आई है दिल्ली के गोकलपुरी इलाके में।
जहां करीब 17 साल पहले किडनैत की गई लड़की को पुलिस ने ढूंढ निकाला है। युवती का जब अपहरण हुआ तब उसकी उम्र महज 16 साल थी। अब युवती 32 साल की हो गई है। युवती सीमापुरी थाना पुलिस को गोकलपुरी इलाके से मिली।
जानकारी के मुताबिक साल 2006 में युवती के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। इस मामले में शाहदरा जिला डीसीपी रोहित मीणा ने बताया कि सीमापुरी पुलिस टीम को 22 मई को एक महिला के बारे में सूचना मिली थी। इसके बाद महिला के बारे में जानकारी जुटाई गई।
पुलिस की जानकारी में पता चला कि युवती 2006 में अपनी मर्जी से घर छोड़कर दीपक नाम के युवक के साथ उत्तर प्रदेश के बलिया में रहने लगी थी। वहीं जब लड़की घर अचानक गायब हो गई तो माता-पिता ने उसके अपहरण होने का शक जताते हुए गोकुलपुरी पुलिस स्टेशन में धारा 363 के तहत मामला दर्ज कराया था।
पुलिस ने बताया कि लड़की अपनी मर्जी से घर छोड़कर दीपक नामक के व्यक्ति के साथ बलिया के गांव चेरडीह चली गई थी। इतने सालों से वो वहीं उसके साथ रह रही थी, लेकिन कोविड-19 के दौरान हुए लॉकडाउन में उन दोनों के बीच काफी लड़ाई हुई और विवाद बहुत ज्यादा बढ़ गया। जिसके बाद युवती उसे छोड़कर दिल्ली आ गई और गोकलपुरी में किराए के मकान में रहने लगी।
पुलिस ने महिला के परिजनों को उसके वापस मिलने की सूचना दे दी है। इधर शाहदरा डीसीपी ने बताया कि 2023 में अब तक शाहदरा जिले से अपहरण हुए 116 लोग जिसमें बच्चे भी शामिल हैं और 301 लापता लोगों को ढूंढ निकाला है।
featured
जयंती विशेष: ‘चंद्रशेखर को और मौके मिलते तो वो सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में होते’

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ में सामयिक इतिहास ने न्याय नहीं किया. लगभग डेढ़ साल पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का संस्मरण आया था जिसमें उन्होंने लिखा था अगर चंद्रशेखर को और मौका मिला होता तो वो देश के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में से एक साबित हुए होते.
जब वेंकटरमन भारत के राष्ट्रपति थे और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने भी कहा कि चंद्रशेखर के पास अगर बहुमत होता तो बेहतर होता. क्योंकि एक तरफ वो अयोध्या में हल निकालने की कोशिश कर रहे थे तो दूसरी तरफ सिख समस्या को सुलझाने की कोशिशों में लगे थे. कश्मीर में सकारात्मक कदम उठाए जा रहे थे. असम में चुनाव कराए गए.
सिर्फ चार महीने की सरकार इतने बड़े काम लेकर निर्णायक रूप से आगे बढ़ रही थी और यही कांग्रेस को अखर रहा था. चंद्रशेखर सफलता की ओर और ज्यादा न बढ़ें इसलिए कांग्रेस ने सरकार को गिरा दिया. जबकि इस वादे के साथ चंद्रशेखर शपथ ली थी कि कम से कम एक साल तक सरकार को चलने दिया जाएगा.
कांग्रेस के डरने के पीछे भी अहम कारण थे. दरअसल चंद्रशेखर का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था. एक प्रसंग है.
चंद्रशेखर ने ऑपरेशन ब्लूस्टार को कहा था हिमालयन ब्लंडर
जब देश में ऑपरेशन ब्लूस्टार हुआ तो वह अकेले राजनेता थे जिन्होंने कहा था कि ये हिमालयन ब्लंडर है. देश को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी. उन्होंने ऐसा कहने के पीछे कारण भी बताया. दरअसल वो इमरजेंसी के दौरान लंबे समय तक पटियाला जेल में बंद रखे गए, वो भी तन्हाई में.
कम लोगों को पता होगा कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने जॉर्ज फर्नांडिस के बाद अगर किसी को सबसे लंबे समय तक जेल में रखा था तो वो चंद्रशेखर ही थे. उन्होंने बताया था कि इसी दौरान उन्होंने सिख इतिहास और पंजाब का इतिहास पढ़ा. और उसी इतिहास के अनुभव पर वो बोले कि मैं कह रहा हूं कि स्वर्ण मंदिर में हुई कार्रवाई का बहुत खराब असर पड़ने वाला है. दुर्भाग्य से कुछ दिनों बाद इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. उसके बाद देशभर में दंगे हुए.
इसके बाद खास तौर पर अरुण नेहरू ने कमान संभाली कि कैसे चंद्रशेखर को चुनाव हराना है. वो बलिया भी गए और कुछ अपने चुनिंदा पुलिस अधिकारियों के जरिए इस बात का भी इंतजाम कराया कि चंद्रशेखरजी को हराया जाए. जब लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई तो चंद्रशेखर बलिया गए. वो ट्रेन से स्टेशन पर जैसे ही उतरे तो अचानक कांग्रेसियों की प्रायोजित भीड़ ने उन्हें घेरकर नारे लगाने शुरू कर दिए कि बलिया के भिंडरावाले वापस जाओ और भिंडरावाले की थैली लाए हैं चुनाव में हराएंगे. चंद्रशेखर उतरे और वहीं पर खड़े हो गए तो नारा लगाने वाले सारे लोग स्तब्ध हो गए.
उन्होंने जो कहा वो आज के राजनेताओं के लिए एक सबक है. उन्होंने कहा, ‘भारत और पंजाब का इतिहास मैंने पढ़ा है और हां, मैने कहा है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार भारत के इतिहास में हिमालयन ब्लंडर है. मैंने ये देशहित के लिए कहा है. चुनाव तो आते-जाते रहते हैं. और मैं तो इतिहास का मामूली कॉमा या फुल स्टॉप भी नहीं हूं. दुनिया में बड़े-बड़े लोग आएंगे-जाएंगे लेकिन जो सच हो वो बोलना चाहिए. जिन लोगों को मेरी ये बात खराब लगे मुझे उन लोगों के वोट नहीं चाहिए. चुनाव जीतने के लिए मैं अपने मत नहीं बदलता.’
चंद्रशेखर ने इंदिरा से कहा था पूरे करें वादे
ऐसे और भी बहुत सारे प्रसंग है. बलिया के मामूली परिवार से निकले चंद्रशेखर देश की राजनीति में जब तक रहे निर्णायक रूप से उन्होंने अपनी जगह बनाई. इंदिरा गांधी की इच्छा के खिलाफ 1972 में शिमला में उन्होंने कांग्रेस वर्किंग कमेटी का चुनाव जीता. फिर इंदिरा गांधी को उनकी लोकप्रियता देखकर उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी में रखना पड़ा. और वो पहली आवाज थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को चेताया कि हमने जो वायदे किए 71 के चुनाव में, जीतने के बाद पहले हमें उनको पूरा करना चाहिए.
ये ऐतिहासिक तथ्य है कि इंदिरा गांधी के बाद उन दिनों कांग्रेस में जो नेता चुनाव प्रचार की दृष्टि से जो सबसे पॉपुलर नेता थे तो वो चंद्रशेखर ही थे. इसीलिए इंदिरा गांधी ने चंद्रशेखर से कहा कि आप राज्यसभा में ही रहिए क्योंकि आप चुनाव लड़ेंगे तो लड़ाएगा कौन?
जब चुनाव में भारी कामयाबी मिल गई तो चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से कहा कि आप वायदों को पूरा कीजिए नहीं तो देश में असंतोष होगा. जब बिहार आंदोलन खड़ा हुआ तो चंद्रशेखर ने कहा कि जयप्रकाश जी को मलीन न करें आप. वह ऋषितुल्य नेता हैं. उन्होंने देश से कुछ लिया नहीं है, दिया ही है. अगर राजसत्ता संतसत्ता से टकराएगी तो आगे नहीं बढ़ पाएगी. ये उन्होंने एडिटोरियल लिखा और कांग्रेस वर्किंग कमेटी जो उन दिनों नरौरा में मिल रही थी उसके बीच बहस का विषय रहा. वहां पर उसको लेकर काफी चर्चा हुई.
चंद्रशेखर ने की थी जेपी और इंदिरा में समझौता कराने की कोशिश
उन्हीं दिनों मध्य प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डीपी मिश्र, जो कांग्रेस के चाणक्य कहे जाते थे, उन्होंने चंद्रशेखर को देखा तो बाकी कांग्रेसियों से कहा कि इस आदमी से सावधान रहना क्योंकि इसे कुछ चाहिए नहीं. ये खरी बातें करता है. और चंद्रशेखर से कहा जिसकी पीठ पर कोई बोझ न हो वो ही तुम्हारी तरह हो सकता है. तुम बेलौस बोल रहे हो. लोग ध्यान नहीं देंगे तो इतिहास पलट जाएगा.
फिर उनकी बात सही साबित हुई. चंद्रशेखर के कहे अनुसार बिहार आंदोलन बढ़ता गया. उनकी कोशिश थी कि इंदिरा और जेपी में समझौता हो लेकिन इंदिरा गांधी के आस-पास ऐसे लोग थे जिन्होंने ऐसा नहीं होने दिया. फिर आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से हटी.
व्यक्तिगत राग द्वेष से दूर रहने वाले राजनेता
एक और अंतिम प्रसंग है. कांग्रेस जब सत्ता से हट गई तो इंदिरा गांधी ने तो बहुत कोशिश की कि चंद्रशेखर फिर से कांग्रेस में आ जाएं लेकिन फिर चंद्रशेखर जी ने मना कर दिया. उन्होंने कहा, ‘मैं किस तरह वापस आऊं. मैंने तो कांग्रेस नहीं छोड़ी थी. मेरे वापस आने का मतलब होगा कि मैं गलत था. लेकिन जब वो चुनाव जीत कर आए तो इंदिरा गांधी के लिए उनके मन में कोई मैल नहीं था.’
जब मोरारजी की सरकार में जब चरण सिंह ने यह तय किया कि इंदिरा का सरकारी आवास खाली कराया जाए तो चंद्रशेखर ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा ये गलत काम नहीं होना चाहिए. वो इंदिरा गांधी से मिले और उन्हें आश्वस्त किया.
वो व्यक्तिगत राग द्वेष से दूर रहने वाले राजनेता थे. देश के बारे में सोचा करते थे. इसलिए लोग उन्हें सुनते भी थे. जब वो संसद में खड़े होते थे बोलने के लिए पक्ष-विपक्ष के सभी लोग उन्हें आदर के साथ सुनते थे. चंद्रशेखर जी का जाना इस देश की राजनीति से साहस की विदाई है. वैसा कोई नेता अभी दिखाई नहीं देता जो पद और राजनीति की चिंता छोड़कर सच कह सके.
देश
बलिया में पहली ‘ऐशप्रा’ लगा रहा हीरे के आभूषणों की प्रदर्शनी, बम्पर आफर का उठायें लाभ

बलिया। अगर आप हीरे के आभूषणों के शौकीन हैं तो आपके पास अच्छा मौका है। जी हाँ बलिया (Ballia) जिले में पहली बार 6 अगस्त से लेकर 10 अगस्त तक हीरे के आभूषणों की प्रदर्शनी लगने जा रही है। ऐशप्रा जेम्स एण्ड ज्वैलर्स (Aisshpra Gems & Jewels) द्वारा इस प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। पाँच दिन तक चलने वाली हीरे के आभूषणों की डायमंड “ज्वेलरी फ़ेस्ट” सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक आम दर्शकों के लिए खुली रहेगी। ग्राहकों को ऐशप्रा बम्पर आफर भी दे रहा है जिसका लाभ आम लोग उठा सकेंगे।
ऐश्प्रा के प्रोपराइटर राहुल सर्राफ (Rahul Sarraf) ने मीडिया को बताया कि बलिया में आयोजित होने वाली आभूषणों की ये अबतक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी होने जा रही है। प्रदर्शनी में डायमंड के नेकपिस, ब्रेसलेट, झुमके, पेंडेंट, पोल्की, सोने और कुंदन से लेकर अनूठा संग्रह आदि प्रदर्शित किया जाएगा। राहुल सराफ (Rahul Sarraf) ने बताया कि इन आफर्स में गोल्ड और कुंदन की ज्वेलरी के मेकिंग चार्जेज पर 20 प्रतिशत की छूट, आभूषण में लगे डायमंड के कुल मूल्य पर 20 फीसदी छूट और ग्राहकों द्वारा खरीदे गये सोने के वजन के बराबर चांदी मुफ्त दी जाएगी। साथ ही इस प्रदर्शनी में खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया भी चलेगी। ऐसा पहली बार हो रहा है जब बलिया में इतने बडे पैमाने पर हीरों, रत्नों एवं आभूषणों को तवज्जो देने के लिए किसी प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है।
-
featured3 weeks ago
Result Live : यहाँ देखें बलिया के हर सीट के रुझान/नतीजे
-
featured2 weeks ago
बलियाः माल्देपुर से कदम चौराहा तक 4 किमी लंबे फोरलेन का निर्माण हुआ शुरू
-
featured5 days ago
SSC जूनियर इंजीनियर भर्ती परीक्षा का परिणाम जारी, बलिया के नीरज सिंह का हुआ चयन
-
featured6 days ago
बलिया में 422 गांव हुए ब्रॉडबैंड से लैस!
-
featured1 week ago
बलिया में हादसों का दिन! नाव डूबने के बाद अब स्कॉर्पियो से जीप की टक्कर में 2 की मौत
-
बलिया2 weeks ago
बलिया- छितेश्वर नाथ के पोखरे की 50 फीसदी मछलियां अचानक मरी, जिम्मेदारों ने नहीं ली सुध !
-
बलिया3 weeks ago
बलिया में 3 साल की मासूम से रेप और हत्या का आरोपी पुलिस मुठभेड़ में गिरफ्तार
-
बलिया3 days ago
बलिया- शादी समारोह में आर्टिफिशियल ज्वेलरी चढ़ाने पर बवाल, पुलिस पहुंची तो वधू निकली नाबालिग