पंचायतीराज विभाग की वेबसाईट प्रियासाफ्ट व एक्शन साफ्ट तथा प्लान प्लस पर विकास से सम्बन्धित पूरा व्योरा अपलोड करना होता है। इस कार्य के लिए सचिवों का प्रशिक्षण नहीं करवाया गया है इसलिए पूरे प्रदेश में कम्प्यूटर आपरेटरों को शुल्क देकर फीडिंग करवायी जाती है।
अर्थात यदि कोई गलत डेटा भी अपलोड हो जाती है तो वो भले ही गलती कम्प्यूटर आपरेटर करें लेकिन सजा सचिव व प्रधानों को भुगतनी पड़ती है। इसलिए प्रधान व सचिव जिन आपरेटरों पर पूर्ण विश्वास करते हैं वहीं फीडिंग करवाते हैं। इसके लिए वर्ष 2011 में जारी गाईडलाइन के अनुसार प्रत्येक ग्राम की फीडिंग का शुल्क 1000 रू0 प्रति ग्राम पंचायत निर्धारित था जो कि वर्ष 2016 -17 के बाद से 2000 रू0 प्रति ग्राम पंचायत हो गया है।
लेकिन बलिया जनपद में प्रत्येक ग्राम पंचायत से 5000 से 20000 रू0 तक फीडिंग के नाम पर वसूली करके जिले के आलाअधिकारियों को सोफा ए सी कार आदि उपहार देने के साथ साथ नकद कमीशन की परम्परा रही है। 1 जूलाई 2017 को मेरे पास एक अधिकारी महोदय का फोन बलिया से आया और पूंछा गया कि अगर आपको बलिया की फीडिंग करनी हो तो कितने दिन में अपना कार्यालय स्थापित कर सकते हैं।
मैने कहा साहब बस 3 दिन लगेंगे। चूंकि यह कार्य मैं वर्ष 2010 से कर रहा हूं और मेरे पास ट्रेंड आपरेटरों की पूरी एक टीम थी इसलिए मैने 3 दिन के अन्दर स्थापित करने की बात कही। तो अधिकारी महोदय बोले कि ठीक है आज मैने आपसे कहा अब तीन दिन के अन्दर आप अपना कार्यालय यहां बनायें। रेट तय हुआ 1600 रू0 प्रति ग्राम पंचायत।
मैने पूंछाा कि साहब कितने ग्राम पंचायतों की फाईल आपके पास हैं तो बताया कि लगभग 450 ग्राम पंचायतों के। काम बड़ा था इसलिए मैं अपने आपरेटरों को लेकर अपनी स्विफ्ट डिजायर में सारा सामान लादा और चल पड़ा बलिया के लिए।
बलिया आने पर मुझे होटल चन्द्रावली में रूकने का स्थान दिलाया गया। अधिकारी महोदय से मिला तो कहा गया कि आप वहीं इन्तजार करें और हम फाईल भेजवाते हैं।
हम इन्तजार करते रहे फाईल नहीं आयी तो मैने सस्ता होटल लेने की नीयत से होटल मंगलम में सुईट लिया जो 9000 रू0 प्रतिमाह था।
इन्तजार करते कई दिन बीत गये एक भी फाईल नहीं आयीं। फिर एक मनियर ब्लाक से फाईल आयी तो उसे हम लोगों ने अपलोड कर दिया
उसके बाद सुईट में ताला मारकर हम लोग लखनऊ वापस चले गये क्योंकि एक माह के किराये का भुगतान हम कर ही चुके थे तो वहीं से इन्तजार करना मुनासिब लगा क्योंकि लखनऊ की भी फीडिंग चल रही थी और वहां रहना अधिक आवश्यक था।
हम लखनऊ में ही थे तो मेरे पास फिर उन साहब का फोन आया और कहा गया कि आपने एक गांव की फीडिंग किया है जबकि उनका कोई अभिलेख ही तैयार नहीं है।
तो मैंने कहा कि मेरे कार्य के लिए जितने अभिलेख जरूरी थे उतने मुझे मिले हैं तभी फीडिंग की गयी है। लेकिन वे मेरे काम में 75 गलतियां गिनवाने लगे। शायद उनको यह मालूम नहीं था कि प्रियासाफ्ट का जन्म ही मेरे सामने हुआ था।
उसकी डिजाइनिंग आदि से रग रग से मैं वाकिफ हूं फिर भी वे मेरे काम में कमियां गिनवाने लगे तो मैने एक लाईन में कहा कि साहब खुल के बताइए बात क्या है। साहब नाराज होकर बोले कि तुम्हारा खुल के बताईए से मतलब क्या है? मैने कहा कि वही जो आप समझ रहे हैं।
फिर साहब ने नाना प्रकार की धमकियां दीं और कहा शाम को लखनऊ आ रहा हूं जितने माफियाओं से तुम्हारे सम्बन्ध हों सबको लेकर मिलना। मैने कहा मुझे इतनी फुर्सत नहीं है।
कहकर फोन काट दिया। फिर मैं बहुत अपशेट हो चुका था और तब मैने इस बात का पता लगाने का प्रयास आरम्भ किया कि आखिर क्यों बदले बदले सरकार नजर आते हैं तो पता चला कि:-
जिले में एक सफाई कर्मी जिले का सर्वोच्च अधिकारी बना हुआ है। सचिव और प्रधान उसे साहब साहब कहते हैं। वह मुख्य साहब का कमीशन अदा नहीं कर रहा था क्योंकि उसके अलावा बलिया में कोई अन्य यह कार्य करना नहीं जानता था। उसी पर दबाव बनाने के लिए साहब ने मुझे इस्तेमाल किया, काम मुझे देने का डर उसे दिखाया और अपना कमीशन वसूल लिया।
बात खुल न जाये इसलिए साहब मेरे काम में कमियां गिनवा रहे थे जबकि उस सफाई कर्मी के कार्य में इतनी खामियां थीं कि निर्दोष सचिव और प्रधान बे वजह प्रताड़ित किये जा सकते थे। फिर मैं अपने लगभग 20000 के हो चुके घाटे को रिकवर करने के लिए एक ए डी ओ पंचायत से फोन के द्वारा सम्पर्क किया
तो वे बहुत ही साहसी और भलेमानस थे और उन्होंने काम देने का आश्वासन दिया। मैं वापस बलिया आ गया और काम करने लगा। फिर एक और ब्लाक के ए डी ओ साहब ने पूरा साहस दिखाया और उन्होने भी अपने ब्लाक का काम दिया। इस तरह काम आने लगे और मेरा घाटा रिकवर हो गया उसक बाद मैं वापस लखनऊ चला गया। लेकिन मेरे लखनऊ जाने के बाद जिन्होंने मुझसे फीडिंग करवाया था
उनका उत्पीड़न आरम्भ किया गया उस सफाई कर्मी साहब द्वारा और बात बात में लखनऊ जाओ का ताना दिया जाने लगा। मुझे भगोड़ा तक कहा गया। जिससे आहत होकर बलिया ही बस जाने और इस घूसखोरी से पूरे प्रधानों को निजात दिलाने को मन में ठानकर मैं वापस आ गया। और काम करने लगा तो मुझे वहां के वर्तमान मुख्य असली साहब द्वारा बुलाया गया और कमीशन की मांग की गयी।
मैने कमीशन देने से इंकार कर दिया तो पूरे जिले का पासवर्ड बदल दिया गया और मेरे पास काम आने से विभागीय अधिकारियों द्वारा रोंका जाने लगा। फिर जैसे तैसे अपने अधिकार के लिए कुछ साहसी सचिवों ने मोर्चा खोला तो उनको पासवर्ड उपलब्ध करवाया गया और मैं कम से कम में सन्तोष करके कार्य करने लगा।
लेकिन पिछले महीने मुझसे पुनः एक दूसरे संविदा कर्मी जिला स्तर अधिकारी द्वारा लगभग ढाई लाख रूपये के कमीशन की मांग की गयी जो कि मैं साफ इंकार कर आया तो तब से पासवर्ड बदल दिया गया है और हर तरह से सचिवों को टार्चर करके कमीशन वाली जगह से फीडिंग करवाने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
लेकिन इस बात की खुशी भी मुझे है कि रेट अब मेरे ही लगभग बराबर लिया जा रहा है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरे वापस लखनऊ जाते ही उन सचिवों का चुनचुनकर शोषण आरम्भ किया जाने लगेगा इसलिए जबरन एक माह से बिना काम पाये भी इस उम्मीद में टिका हूं कि अधिक नहीं 15 से 20 सचिव भी साहस करके अपना पासवर्ड प्राप्त कर पाये तो मेरा खर्च उतने में भी चल जायेगा लेकिन मैं अपने नाम के साथ भगोड़ा शब्द का इस्तेमाल कतई बरदाश्त नहीं कर सकता हूं और न ही मेरी वजह से सचिवों का शोषण।
और इसी खींचतान के चलते नया वित्तीय वर्ष शुरू होने को है लेकिन अभी यहां बलिया में पुराने वित्तीय वर्ष के 948 में से केवल 568 ग्राम पंचायतों की फीडिंग हो सकी है। और खामियाजा ग्राम पंचायतों को लेट लतीफी के नाम पर 25 प्रतिशत कटौती करके प्राप्त धनराशि के रूप में भुगतना पड़ता है। इसलिए बलिया ग्राम वासियों से कहना चाहता हूं कि आपके यहां विकास में रोड़ा प्रधान या सचिव नहीं बल्कि जिले पर बैठे ये घूसखोर अधिकारी हैं जिनके साथ आप चित्तू पाण्डेय वाला इतिहास नहीं दुहरायेंगे तो विकास नहीं होने वाला है।
आपके प्रधान को औसतन साल में डेढ़ से तीन लाख रूपये मिलते हैं जिसके द्वारा जितना कार्य अब तक बलिया में देखा हूं बहुत विकास हुआ है। किन्तु मैं उन जिलों में भी काम कर चुका हूं जहां एक एक गांव में डेढ़ से दो करोड़ रूपये का आवंटन होता है।
विभाग एक है लेकिन विकास का रेट अनेक है जिसके जिम्मेदार ये चोर और रिश्वतखोर जिले के आला अफसर हैं न कि आपके प्रतिनिधि या छोटे स्तर के कर्मचारी। …….. आशुतोष पाण्डेय
साभार- swatantraprabhat
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