Connect with us

उत्तर प्रदेश

जन्मदिन विशेष: चाचा की साइकिल से स्कूल जाने वाले अखिलेश कैसे पहुंचे सिडनी टू सियासत

Published

on

करीब तीन दशक पुरानी बात है, पेड़ पर चढ़ा एक लड़का अपनी चाची के सामने अड़ गया कि जब तक उसे टॉफी नहीं मिलेगी, वह पेड़ से नीचे नहीं उतरेगा. ये लड़का कोई और नहीं बल्कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार का चश्म-ओ-चिराग है.

बचपन में लोग उसे टीपू बुलाते थे लेकिन आज संविधान से लेकर संसद के गलियारों तक दुनिया उन्हें अखिलेश यादव के नाम से जानती है. जिन चाची के सामने वह अपने बचपन में टॉफी के लिए अड़ गए थे, वह कोई और नहीं बल्कि उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव की पत्नी सरला यादव थीं. हालांकि आज शिवपाल और उनके परिवार से अखिलेश के रिश्ते बहुत मधुर नहीं हैं.

आज यानी 1 जुलाई को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का जन्मदिन है. इस साल वह 45 के हो जाएंगे. बचपन का टीपू कैसे यूपी की सियासत का राजा बना और कैसे इस राजा की कुर्सी पर परिवार और पार्टी के कुछ नेताओं की नजर लगी, यह एक दिलचस्प और विवादों से भरी कहानी है.

अखिलेश यादव उर्फ टीपू का जन्म 1 जुलाई, 1973 को यूपी के इटावा जिले में एक छोटे से गांव सैफई में हुआ. यह वही सैफई है जहां हर साल एक रंगारंग कार्यक्रम होता था और फिल्मी जगत की मशहूर हस्तियां अपनी कलाकारी का हुनर दिखाकर लाखों रुपए कमाकर ले जाती थीं. सैफई महोत्सव में बड़े-बड़े नेताओं और बिजनेसमैनों का जमावड़ा लगता था.

एक कहावत थी कि हिंदुस्तान की मशहूर हस्तियों का मेला देखना हो तो मुलायम सिंह के गांव में होने वाला सैफई महोत्सव देखना चाहिए. हालांकि पिछली बार इस महोत्सव को पारिवारिक और राजनीतिक विवादों की वजह से रद्द कर दिया गया था.

चाचा शिवपाल के साथ साइकिल पर बैठकर स्कूल जाते थे अखिलेश

टीपू जब छोटे थे तभी उनकी मां का देहान्त हो गया था, बचपन में ही मां का साया सर से उठ जाने की वजह से चाचा शिवपाल सिंह यादव और उनके परिवार ने ही टीपू का खयाल रखा. इटावा के सेंट मैरी स्कूल में कई बार चाचा की साइकिल पर बैठकर टीपू स्कूल जाया करते थे. स्कूल में भी अखिलेश के गार्जियन उनके चाचा शिवपाल और चाची सरला ही थीं.

हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद टीपू ने क्यों चाचा शिवपाल का खयाल रखना बंद कर दिया, यह सियासी कहानी का एक अलग पहलू है. राजनीति में एक दौर ऐसा आया जब मुलायम सिंह की जान को खतरा था, उस वक्त मुलायम ने अखिलेश को स्कूल जाने से मना कर दिया था और वह घर पर ही पढ़ाई करने लगे. 1980 से 1982 के बीच चाची सरला ही उन्हें पढ़ाती थीं क्योंकि टीपू की मां बीमार रहती थीं.

टीपू बचपन में काफी शर्मीले थे लेकिन दिमागी रूप से वह काफी तेज थे. एक बार स्कूल में सांप होने की वजह से सभी बच्चे डर गए लेकिन टीपू ने पूरी हिम्मत के साथ उस सांप का सामना किया और डंडे से उसे मार दिया, इस घटना के बाद टीपू स्कूल में बच्चों के लिए हीरो बन गए थे.

टीपू के स्कूल की पढ़ाई राजस्थान के धौलपुर मिलिट्री स्कूल से हुई. चाचा शिवपाल ही उन्हें इटावा से वहां लेकर गए थे. स्कूल में दाखिले से जुड़ी सारी औपचारिकताएं चाचा शिवपाल ने ही पूरी की थीं क्योंकि मुलायम सिंह अपनी राजनीति में व्यस्त थे. स्कूल की पढ़ाई करने के बाद टीपू ने सिविल इनवायरमेंट इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की.

बाद में वह सिडनी यूनिवर्सिटी से इनवायरमेंट इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए. सिडनी में पढ़ाई के दौरान उन्हें पॉप म्यूजिक का चस्का लगा. उन्हें किताबों और फिल्मों का भी शौक है. ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई जारी रहने तक उन्होंने अपनी पहचान छुपा कर रखी और किसी को नहीं बताया कि वह भारतीय राजनीति में नेताजी के नाम से प्रसिद्ध मुलायम सिंह यादव के बेटे हैं.

मीडिया को दिए गए इंटरव्यू में टीपू ने कई बार इस बात का जिक्र किया है कि उन्हें कभी नहीं पता था कि वह राजनीति में आएंगे. बस एक बार चुनाव लड़ने के लिए पिता का आदेश आया और वह सब छोड़कर यूपी लौट आए.

सिडनी से लिखे लेटर्स ने चार सालों तक बनाए रखा डिस्टेंस रिलेशनशिप 

एक पुरानी कहावत है कि प्यार और पढ़ाई एक साथ चलते हैं. अक्सर पढ़ाई के दौरान ही प्यार परवान चढ़ता है. टीपू के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. अखिलेश को एक लड़की से पहली नजर में प्यार हो गया. ये लड़की कोई और नहीं बल्कि डिंपल यादव थीं.

उस समय डिंपल यादव लखनऊ यूनिवर्सिटी में कॉमर्स की पढ़ाई कर रही थीं. एक कॉमन फ्रेंड के जरिए टीपू और डिंपल की पहली मुलाकात हुई थी. दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे और शादी करना चाहते थे. डिंपल यादव के पिता एससी रावत लेफ्टिनेंट कर्नल थे.

लेकिन, टीपू के पिता मुलायम सिंह यादव नहीं चाहते थे कि यह शादी हो. वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा से अखिलेश की शादी करवाना चाहते थे. लेकिन, प्यार कहां किसी की परवाह करता है. टीपू ने पिता मुलायम सिंह यादव को मनाने के लिए दादी को अपना जरिया बनाया.

टीपू ने दादी मूर्ति देवी को अपनी प्रेम कहानी सुनाई और कहा कि वह डिंपल से शादी करना चाहते हैं. आखिरकार टीपू की मेहनत रंग लाई और तमाम गतिरोधों के बावजूद 24 नवंबर, 1999 को डिंपल और अखिलेश की शादी हो गई.

अमर सिंह के मनाने पर हुई थी अखिलेश और डिंपल की शादी

कहा जाता है कि अखिलेश और डिंपल की शादी के लिए एक दौर में सपा के वफादार रहे अमर सिंह ने मुलायम सिंह को मनाया था. अखिलेश की जिद के सामने मुलायम को झुकना पड़ा, ये ठीक वैसे ही था जैसे बचपन में टीपू को पेड़ से नीचे उतारने के लिए सरला चाची को टॉफी देनी ही पड़ी थी.

‘अखिलेश यादव- बदलाव की लहर’ किताब की लेखिका सुनीत एरन ने लिखा है कि दोनों की पहली मुलाकात तब हुई थी जब अखिलेश 21 साल के थे और डिंपल 17 साल की थीं. डिंपल स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं, हालांकि दोनों तब एक दूसरे के साथ कभी नहीं रहे लेकिन डिस्टेंस रिलेशनशिप के दौरान दोनों ने एक-दूसरे को चार सालों तक डेट किया.

अखिलेश के सिडनी जाने के बाद भी दोनों लोग एक-दूसरे को लेटर लिखते रहे हालांकि आज की व्हाट्सऐप और फेसबुक वाली पीढ़ी इस दौर को करीने से नहीं समझ सकेगी. आज अखिलेश और डिंपल को एक आदर्श कपल माना जाता है. उनके दो बेटी और एक बेटा है. बेटियों का नाम अदिति और टीना है, जबकि बेटे का नाम अर्जुन है.

सुनीत ने अखिलेश के एक बयान को भी अपनी किताब में दर्शाया है जिसमें अखिलेश ने कहा, ‘अगर मैं राजनीतिक पिता का बेटा न होता तो फौजी होता.’

टीपू से टीपू सुल्तान कैसे बन गए अखिलेश यादव

टीपू एक आम आदमी की तरह अपना जीवन जी रहे थे. उन्हें जिप्सी चलाने का बहुत शौक था. मोटापे और सुस्ती से चिढ़ने वाले टीपू दूध से बने छाछ में देशी घी और जीरा का तड़गा लगवाकर पिया करते थे. अदरक की चाय और फोटोग्राफी का शौक उनके जीवन को सामान्य तरीके से चला रहा था.

साल 2000 में अचानक नेताजी(मुलायम सिंह) का पैगाम टीपू के पास पहुंचा जिसमें उन्हें यूपी की कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था. यह मुलायम सिंह की ही खाली की हुई सीट थी जिस पर उपचुनाव हो रहा था.

यहीं से टीपू के अखिलेश यादव बनने का सफर शुरू हुआ और पहली बार कन्नौज से चुनाव जीतकर 26 साल के अखिलेश यादव ने पिता की राजनीतिक विरासत को अपने कंधों का सहारा दिया. यूपी के सियासी दरवाजों पर ये अखिलेश की पहली दस्तक थी.

साल 2004 में फिर से आम चुनाव हुए और अखिलेश यादव दूसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए. अब लोगों में अखिलेश के अंदर पिता मुलायम की झलक दिखने लगी थी. हालांकि आलोचक अभी भी अखिलेश को परिपक्व नहीं मानते थे लेकिन समय गुजरने के साथ-साथ लोगों का यह भ्रम भी दूर हो गया.

 38 साल की उम्र में यूपी के मुख्यमंत्री बने थे अखिलेश यादव

अखिलेश ने लोकसभा में हैट्रिक मारते हुए 2009 में एक बार फिर जीत हासिल की. इस बार की जीत ने अखिलेश को विरोधियों के चेहरे का सबसे बड़ा सवाल बना दिया. अब विरोधी नेता भी अखिलेश में अपना राजनीतिक प्रतिद्वंदी देखने लगे थे.

जब तक विरोधी अपने सवालों के माकूल जवाब ढूंढ पाते तब तक यूपी के सियासी गलियारों में एक बड़ा धमाका हुआ.10 मार्च 2012 को अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी का नेता चुन लिया गया. 2012 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी भारी बहुमत से जीती.

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश ने अपने सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर अखिलेश यादव को बैठा दिया. यूपी की 404 सीटों में से 224 जीत कर समाजवादी पार्टी सत्ता पर कबिज हो गई. 15 मार्च, 2012 को अखिलेश यादव ने 38 साल की उम्र में यूपी के 20वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

हालांकि चाचा शिवपाल नहीं चाहते थे कि अखिलेश मुख्यमंत्री बनें लेकिन किसी तरह उन्हें मनाकर अखिलेश को सत्ता सौंप दी गई. यह वह दौर था जब अखिलेश यादव टीपू से टीपू सुल्तान बन चुके थे.

पारिवारिक विवादों ने चटकाया टीपू सुल्तान का किला

सबसे बड़ा लोकतंत्र, सबसे बड़ा राज्य और उस राज्य का सबसे बड़ा सम्राट. सब कुछ था अखिलेश यादव के पास. सियासी दंगल में अखिलेश लगातार अपने विरोधियों को पटखनी दे रहे थे लेकिन परिवार के अंदर जिस दंगल ने तबाही मचाई, उसने नेताजी (मुलायम सिंह) के कुनबे को ताश के पत्तों की तरह बिखेर दिया.

सत्ता के सिंहासन पर एक साथ भाई और भतीजे ताल ठोक रहे थे. अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के रिश्तों के बीच दरार पड़ चुकी थी. समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े किंगमेकर कहे जाने वाले अमर सिंह भी अखिलेश के आंखों की किरकिरी बन चुके थे. मतभेदों का सिलसिला मनभेदों में बदल गया था. मुलायम सिंह, भाई और बेटे के चुनाव की दहलीज पर अकेले पड़ गए थे.

उस दौर में यादव परिवार महाभारत के कुरुक्षेत्र से कम नहीं था. बयानों की बौछार से सियासी रणभूमि को रंग दिया गया था. समाजवादी पार्टी के टूटने की खबरें सामने आने लगी थीं. इसी बीच पार्टी के हाईकमान का एक फैसला टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज बन गया. अखिलेश और उनके चाचा रामगोपाल यादव को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.

हालांकि एक दिन के अंदर ही अखिलेश को पार्टी में वापस ले लिया गया. बाद में सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया. मुलायम सिंह को केवल नाम के लिए पार्टी का संरक्षक बनाया गया. मुलायम ने कहा था कि यह पार्टी उनके जीवनभर की मेहनत की कमाई है लेकिन बेटे ने उन्हें बेदखल कर दिया. वहीं अखिलेश कह रहे थे कि नेताजी लोगों के बहकावे में आ गए हैं.

अखिलेश के खिलाफ अमर को साथ लेकर EC पहुंच गए थे मुलायम

मुलायम सिंह, अमर सिंह को साथ में लेकर चुनाव आयोग गए और अखिलेश की समाजवादी पार्टी को असंवैधानिक बताया और मान्यता रद्द करने की गुजारिश की. लेकिन, अखिलेश और उनके चाचा रामगोपाल ने चुनाव आयोग को पार्टी के कुल 5731 डेलीगेट्स में से 4716 के शपथ पत्र सौंपे, इन लोगों ने अखिलेश को समर्थन दिया था.

पार्टी के 229 विधायकों में से 212 ने भी अखिलेश को समर्थन दिया था और 68 विधान परिषद सदस्यों में से 56 सदस्यों और 24 सांसदों में से 15 ने भी अखिलेश को अपना नेता माना था. इस तरह अखिलेश समाजवादी पार्टी के सशक्त नेता बनकर उभरे जिसमें फैसले लेने की ताकत दिखाई दे रही थी. अखिलेश ने अपनी पहचान जाति से हटकर बनाई थी.

लेकिन पार्टी और परिवार के अंदर मची उथल-पुथल ने 2017 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के पतन का नया अध्याय लिख दिया. 403 सीटों में से समाजवादी पार्टी 356 सीटें हार गई. पिछले विधानसभा चुनाव में 224 सीटें जीतने वाली समाजवादी पार्टी केवल 47 सीटों पर ही सिमट कर रह गई.

इस बार 312 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने राज्य में सरकार बनाई और समाजवादी पार्टी के हाथों से सत्ता की चाबी सरक गई. इस हार की वजह से अखिलेश यादव को परिवार और पार्टी दोनों का नुकसान उठाना पड़ा. 2017 के चुनावों में बुरी हार का मुंह देखने वाले अखिलेश यादव को यह जख्म भरने में काफी समय लगेगा.

अगर अखिलेश यादव 2019 के लोकसभा चुनाव में सही रणनीति के साथ चुनाव लड़ते हैं तो हो सकता है कि आने वाले नतीजे 2022 के विधानसभा चुनावों में कुछ मलहम लगा जाएं.

Advertisement
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

featured

बलिया के मुफ़्त स्वास्थ्य कैंप में उमड़ा जनसैलाब, ‘दयाल फाउंडेशन’ को लोगों ने बताया मसीहा!

Published

on

बलिया के बांसडीह (Bansdih) में शनिवार को राजेश सिंह दयाल फाउंडेशन (Rajesh Singh Dayal Foundation) की ओर से दो दिवसीय मेडिकल कैंप का आयोजन किया गया। मेडिकल कैंप के पहले दिन ही रिकार्ड तोड़ भीड़ उमड़ पड़ी। बांसडीह इन्टर कालेज  (Bansdih Inter College) में लगे कैंप में  मरीजों को देखने के लिए लखनऊ (Lucknow) से आयी चिकित्सकों की टीम द्वारा नि:शुल्क दवाइयां भी दी गयी। पहले दिन यहाँ तकरीबन 3500 लोगों का मुफ़्त इलाज किया गया।

Rajesh Dayal Foundation

स्वास्थ्य शिविर (Medical Camp) में पहुंचे मरीजों को कोई परेशानी न हो इसके लिए एडमिशन कांउटर,चिकित्सक कक्ष,जांच कक्ष से लेकर दवा वितरण कक्ष तक पर वालेंटियर तैनात थे। जो मरीजों का हर सम्भव सहायता के लिए तत्पर थे।शिविर के आयोजक तथा समाजसेवी राजेश सिंह दयाल स्वयं बराबर चक्रमण करते हुए अपनी नज़र रखे हुए थे। वे स्वयं भी मरीजों की सहायता कर रहे थे।

शिविर में ईसीजी (EGC),ब्लड टेस्ट (Blood Test) आदि की भी व्यवस्था थी। चिकित्सकों के परामर्श पर मरीजों का न केवल विभिन्न टेस्ट किया गया बल्कि नि:शुल्क दवा ( Free Medicine)भी वितरित किया गया।

मेडिकल कैंप (Medical Camp) में इलाज कराने पहुंचे मरीजों‌ ने की सराहना

मेडिकल कैंप  में इलाज कराने पहुंचे पुष्पा देवी, मोहम्मद शब्बीर,कुमारी रूबी,कुमारी जानकी,राधिका देवी,रमेश राम आदि ने कहा कि

“स्वास्थ्य शिविर से क्षेत्रवासियों को लाभ मिल रहा है। यहां जो सुविधा उपलब्ध है इससे पहले कभी नहीं हुई । चिकित्सकों का उचित परामर्श,टेस्ट तथा नि:शुल्क दवाएं मिल रही है। ऐसा शिविर अगर क्षेत्र में हमेशा लगता रहे तो निश्चित ही लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं से निजात मिलने में सहायक होगा। यह कार्य बेहद सराहनीय है और इस तरह के कार्य हमेशा होना चाहिए। यह इलाका पिछड़ा है और इस शिविर से यहां के लोगों को काफी लोगों को इससे फ़ायदा मिल रहा है। दयाल फाउंडेशन यहाँ के लोगों के लिए एक तरह से मसीहा का काम कर रहा है”

स्वास्थ्य शिविर के आयोजक समाजसेवी राजेश सिंह दयाल (Rajesh Singh Dayal)  ने कहा कि दूर दराज के क्षेत्रों में आज भी स्वास्थ्य की जरूरत है।आज भी स्वास्थ्य लोगों के लिए समस्या बनी हुई है। ऐसे लोगों को स्वास्थ्य की सुविधा हो जाए इसके लिए हम लोग काम कर रहे हैं। कहा कि इस प्रकार का स्वास्थ्य शिविर हमेशा जारी रहेगा।कहा कि लगातार काम करना है बच्चों की शिक्षा पर,कुपोषण पर कार्य करना है।

उन्होंने कहा कि अभी बहुत काम बाकी है। राजेश सिंह (Rajesh Singh) ने कहा कि अगर यहाँ डॉक्टर मरीजों को चिकित्सक रेफर करते हैं तो उनका इलाज लखनऊ ले जा कर कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 2014 से यह कार्य लगातार जारी है।

 

Continue Reading

featured

भाजपा नेता राजेश सिंह दयाल ने परेशान हाल बुजर्ग महिला का कराया इलाज, जीता सबका दिल !

Published

on

सलेमपुर/ बलिया :  सलमेपुर लोकसभा के मशहूर समाजसेवी राजेश सिंह दयाल के एक काम ने लोगों का दिल जीत लिया। यूं तो राजेश सिंह लगातार अपने कामों सामाजिक कामों की वजह से चर्चा में रहते हैं। लेकिन इस बार जो हुआ उसकी हर जगह सराहना हो रही है।

बता दें कि सलेमपुर के रहने वाले अरुण चौहान की मां काफी बीमार थीं। उन्हें किडनी और लिवर में कुछ समस्या थी। वे अपनी मां को लेकर लखनऊ पीजीआई पहुंचे, लेकिन वहां हॉस्पिटल स्टाफ छुट्टी पर होने के चलते उनकी मां का इलाज नहीं हो पाया।

इसके बाद परेशान अरुण ने राजेश सिंह को फोन दिया। राजेश सिंह दयाल ने तत्परता दिखाते हुए फौरन महिला को पीजीआई लखनऊ में भर्ती करवाया और उनका इलाज करवाया। राजेश सिंह पिंडी में लगे मुफ्त स्वास्थ्य केंद्र में अरुण चौहान से मिले थे। इसी दौरान उन्होंने उनकी मां का इलाज पीजीआई में करवाने का वादा किया था। राजेश सिंह ने जो वादा किया, उसे निभाया भी और महिला का इलाज करवाया।

गौरतलब है कि सलेमपुर लोक सभा में स्वास्थ व्यवस्था बेहद लचर है। जिसको देखते हुए राजेश सिंह की संस्था दयाल फाउंडेशन लागतार इस इलाके में स्वास्थ कैंप आयोजित कर रही है। इस संस्था से अबतक 1 लाख लोग फायदा उठा चुके हैं। ये कैंप सभी के लिए एकदम फ्री लगाया जाता है। अबतक ये कैंप बलिया के बेलथरा रोड, सिकदंरपुर , रेवती, वहीं देवरिया के भाटपार , पिंडी , सलेमपुर में आयोजीत हो चुका है। दयाल फाउंडेशन की तरफ से बताया गया है कि आगामी नवम्बर माह में बांसडीह , नगरा समेत कई इलाकों में कैंप आयोजित किया जाएगा।

Continue Reading

featured

राजेश सिंह दयाल फाउंडेशन के स्वास्थ शिविर में उमड़ी भीड़, 4500 मरीज़ों का हुआ मुफ़्त इलाज

Published

on

देवरिया में राजेश सिंह दयाल फाउंडेशन के चेयरमैन राजेश सिंह दयाल द्वारा देवरिया जिले के भाटपार रानी क्षेत्र में सेंट जोसेफ स्कूल में लगाये गये दो दिवसीय मुफ़्त स्वास्थ शिविर का आज समापन हुआ जिसमें लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। बता दें कि 4500 से अधिक मरीज़ों को मुफ़्त उपचार एवं औषधि का यहाँ लाभ प्राप्त हुआ। पिछले कई महीने से अलग अलग विधानसभाओं में लगाएं जा रहे कैंप में लागतार भीड़ उमड़ रही है।

रविवार को नवरात्रि का पहला दिन होने के बावजूद प्रातः 7 बजे से ही मरीज़ों की लंबी क़तारें पंजीकरण काउंटर पे लगी हुई थी। छेत्र के हर वर्ग – वर्ण के लोग इस शिविर में सुविधा प्राप्त करते हुए दिखे । प्रेस से बातचीत के दौरान श्री राजेश सिंह दयाल ने बताया की इस कैम्प में 2500 से अधिक लोगों का ब्लड टेस्ट एवं रिपोर्ट उसी समय उपलब्ध कराई गई । छेत्र में डेंगू एवं टाइफाइड के फैलाव के बीच इस कैम्प ने लोगों को काफ़ी राहत दी।

उन्होंने बताया कि बहुत से मरीज़ों को एम्बुलेंस सुविधा मुहैया कराई गई जिनमे से बुजुर्ग महिला की हालत गंभीर थी, स्थिति को देखते हुए कुछ ही मिनटों में डॉ देबब्रत मिश्रा सीनियर फिजिशियन ने उपचार करते हुए मरीज़ को दवा मुहैया कराई।  दिन ख़त्म होते होते सभी 4500 मरीज़ों की जाँच, उपचार एवं औषधि उपलब्ध करा दी गई ।

श्री राजेश सिंह दयाल ने जानकारी दी की 16 अक्तूबर को शहीद कैप्टन डॉ. अंशुमान सिंह की स्मृति में बरडीहा दलपत, ज़िला देवरिया में मुफ़्त स्वास्थ कैम्प लगाया जाएगा एवं उसके पश्चात् 4 एवं 5 नवंबर को बाँसडीह बलिया में इस शिविर का आयोजन होगा ।

स्वास्थ शिविर पर रिपोर्ट का पूरा वीडियो यहाँ देखें : 

Continue Reading

TRENDING STORIES

error: Content is protected !!