बलिया स्पेशल
बलिया- आवास के नाम पर 25 हजार घूस, बिफर पड़े मंत्री, दिया मुकदमा दर्ज करने का निर्देश !
रतसर डेस्क : राज्य मन्त्री स्वतन्त्र प्रभार उपेन्द्र तिवारी द्वारा गड़वार क्षेत्र के सिकटौटी (चाफी) गांव में जन चौपाल के दौरान अधिकारियों की जमकर फटकार लगाई गई। उन्होंने कहा कि शिकायत है कि योजनाओं का लाभ लाभार्थियों तक नही पहुंचाया जा रहा है। हर हाल में एक सप्ताह के अन्दर उन्हें योजनाओं का लाभ दिया जाए।
राज्यमन्त्री शनिवार को “आपकी सरकार, जनता के द्वार” कार्यक्रम के तहत गांव-गांव, घर-घर पदयात्रा के क्रम में कोड़रा, एकडेरवा,कोठियां,अरईपुर, तपनी, जगदेवपुर, मसहां गांव में केन्द्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी दी। देर शाम सिकटौटी गांव स्थित चाफी पुरवा के प्राथमिक विद्यालय परिसर में आयोजित जन चौपाल में पात्र लोगों को शौचालय, आवास तथा पेंशन न बनने की शिकायत पर सम्बन्धित अधिकारियों की फटकार लगाई।
कहा कि सरकार की जनकल्याण कारी योजनाएं प्रत्येक पात्रों तक पहुंचाना उनकी प्राथमिकता है। चौपाल में चकरोड निर्माण के लिए भूमि की पैमाइश का मुद्दा ग्रामीणों ने उठाया तो मौके पर राजस्व निरीक्षक और लेखपाल को तलब किया। चौपाल में लेखपाल के अनुपस्थित रहने पर दो दिनों के अन्दर स्पष्टीकरण लेकर आख्या प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। वहीं गांव की ही महिला संगीता देवी एवं कुन्ती देवी ने आवास के नाम पर पच्चीस हजार रुपए तथा शौचालय निर्माण में दो हजार रुपए बिचौलिए को देने की बात कही।
महिलाओं ने बताया कि हम लोगों ने ब्याज पर कर्ज लेकर गांव के ही एक व्यक्ति आवास के लिए पैसे दिए थे। आज तक न आवास ही मिला और न ही पैसा लौटाया गया। इस पर मन्त्री बिफर पड़े और तत्काल थाना प्रभारी को मुकदमा दर्ज कर सम्बन्धित व्यक्ति को जेल भेजने का निर्देश दिया। कुछ पात्र महिलाओं के आवास की सूची में जांच के नाम पर आवास कटने की बात कही। इस पर मन्त्री ने जांच अधिकारी के उपर ही एडीपीआरओ से जांच कर आख्या प्रस्तुत करने को कहा।
वोटर लिस्ट में नाम कटने का मुद्दा ग्रामीणों ने उठाया। इस पर सम्बन्धित अधिकारियों से जांच कर वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने का निर्देश दिया। सफाई कर्मियों को गांव में न आने की शिकायत पर एडीओ पंचायत को फटकार लगाते हुए एक सप्ताह के अन्दर रिपोर्ट तलब करने निर्देश दिया। वहीं स्वास्थ्य विभाग से जुड़े गोल्डन कार्ड एवं समुचित स्वास्थ्य सेवाओं पर ग्रामीणों ने संतोष जाहिर किया। इस पर मन्त्री ने सीएचसी प्रभारी की तारीफ करते हुए सराहना की।
भाजपा उपाध्यक्ष उपेन्द्र पाण्डेय द्वारा नहर में टेल तक पानी न पहुंचने का मुद्दा उठाया। इस पर नहर विभाग के एई ने 24 घंटे के अन्दर नहर में पानी छोड़े जाने का आश्वासन दिया। इस दौरान जन चौपाल में टुनटुन उपाध्याय, पिन्टू पाठक, डा० मदन राजभर,उमेश सिंह, कृपाशंकर तिवारी, मनोज पाण्डेय, अखिलेश तिवारी, राजेन्द्र तिवारी मौजुद रहे।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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