Connect with us

featured

बलिया: 2022 के चुनाव में बेल्थरा रोड की जनता किसे सिरमौर बनाएगी?

Published

on

इस पन्ने पर बात होगी बलिया के बेल्थरा रोड विधानसभा सीट की। बेल्थरा रोड के सियासी समीकरणों की। किस पार्टी ने किसे टिकट दिया है? कौन उम्मीदवार क्या दांव-पेंच चल रहा है, इस पर भी बात होगी। शुरू से शुरुआत करते हैं। बात 2008 की है। जब परिसीमन के बाद बेल्थरा रोड विधानसभा सीट वजूद में आया। यानी अब तक इस इस सीट पर महज दो बार ही विधानसभा चुनाव हुए हैं। गिनती के हिसाब से 2022 का विधानसभा चुनाव बेल्थरा रोड के लिए चुनाव का तीसरा ही अनुभव है।

अब इतिहास को किनारे रखकर वर्तमान पर आ जाते हैं। सभी बड़ी पार्टियों ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार उतार दिया है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा ने छट्ठू राम को टिकट दिया है। सवाल आता है कि कौन हैं छट्ठू राम? नेता तो पुराने हैं छट्ठू राम लेकिन उनके कंधे पर रखे गमछे का रंग अब बदल चुका है। रंग नीले से भगवा हो गया है। छट्ठू राम ने पार्टी बदली है। वो भी इस कदर कि इस बदलाव को उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की यात्रा कहा जा सकता है। कभी बहुजन समाज पार्टी के नेता रहे छट्ठू राम बेल्थरा रोड से भाजपा उम्मीदवार हैं।

सपा गठबंधन में सुभासपा को मिली बेल्थरा रोड सीट:

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी यानी का सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी सुभासपा के साथ गठबंधन है। सपा गठबंधन में बेल्थरा रोड सीट सुभासपा के खाते में गया है। सुभासपा ने इस सीट पर हंसू राम को टिकट दिया है। हंसू राम मूल रूप से देवरिया जिले के सलेमपुर के निवासी हैं।

गोरखपुर यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस से परास्नातक की पढ़ाई हंसू राम ने कर रखी है। गोरखपुर मंडल के उप सूचना निदेशक पद भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। 2015 में हंसू राम ने सेवानिवृत्त होकर बसपा में शामिल हुए। बाद में हंसू राम ओम ने नीले रंग को अलविदा कहा और गमछे को पीला कर लिया। यानी ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा में हंसू राम शामिल हो गए।

बसपा ने प्रवीण प्रकाश को बनाया उम्मीदवार:

तीसरे उम्मीदवार हैं ई. प्रवीण प्रकाश। बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा ने प्रवीण प्रकाश को टिकट दिया है। प्रवीण प्रकाश से बेल्थरा रोड की जनता परिचित है। हो भी क्यों न? आखिर प्रवीण प्रकाश 2012 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा की टिकट पर बेल्थरा रोड से चुनाव जो लड़ चुके हैं।

हालांकि अब प्रवीण प्रकाश जय सुहेलदेव के बजाए जय भीम के ध्वजवाहक बन चुके हैं। एक दिलचस्प बात ये भी है कि 2012 में छट्ठू राम और प्रवीण प्रकाश आमने-सामने थे। तब छट्ठू राम बसपा से थे। अब प्रवीण प्रकाश बसपा से उम्मीदवार हैं। सुभासपा-बसपा-सपा-भाजपा, इधर से उधर जाने की यह घोर राजनीतिक बदलाव की बात पढ़कर कन्फ्यूज नहीं होना है। बस इतना ध्यान रखना है कि नेता समानता में विश्वास रखते हैं। उनके लिए तो हर पार्टी समान है। वो कहीं भी कभी भी जा सकते हैं। आप जनता भले नेताओं के नाम पर सिर फुटव्वल करते रहें।

गीता गोयल को मिला हाथ का साथ:

अब बात हाथ छाप की। यानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी। कांग्रेस, भारत की सबसे पुरानी पार्टी। उत्तर प्रदेश की सत्ता से पिछले तीन दशकों का वनवास काट रही कांग्रेस पार्टी। प्रियंका गांधी की सक्रियता के बूते उत्तर प्रदेश में अपना सूखा समाप्त करने की जुगत कर रही कांग्रेस पार्टी। परिचय हो गया। बात बेल्थरा रोड से उम्मीदवार की कर लेते हैं। कांग्रेस ने इस सीट से गीता गोयल को टिकट दिया है। गीता गोयल पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। गीता गोयल रसड़ा विधानसभा के कुरेम गांव की मूल निवासी हैं। 43 साल की गीता गोयल पेशे से अध्यापिका हैं। पति संतोष गोयल रसड़ा जूनियर
हाईस्कूल के हेडमास्टर हैं।

ऐसा नहीं है कि गीता गोयल गैर-राजनीतिक बैकग्राउंड से आती हैं। हां, सीधे तौर पर तो उनका जुड़ाव अब तक नहीं था। लेकिन रसड़ा से दो बार विधायक रहे हरदेव राम गीता गोयल के फूफा हैं। तो वहीं रसड़ा से ही पूर्व विधायक स्व. अनिल पासी गीता के पति संतोष गोयल के ममेरे भाई हैं। परिवार पुराना कांग्रेसी रहा है। लड़की हूं, लड़ सकती हूं और विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने की घोषणा प्रियंका गांधी ने की थी। जिसकी बदौलत गीता गोयल को बेल्थरा रोड से कांग्रेस का टिकट मिला है।

चार बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों का हाल आपको बताया। अब यह भी जान लीजिए कि बेल्थरा रोड में तीन लाख से ज्यादा मतदाता हैं। दलित और यादव वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। मुस्लिम समुदाय की आबादी भी ठीक-ठाक है। बता दें कि बेल्थरा रोड बलिया के उन विधानसभा सीटों में से एक है जहां राजभर वोटरों की तादाद चुनाव की नतीजों पर असर डालने वाली स्थिति में है।

बहरहाल 3 मार्च को बलिया में मतदान होगा। बेल्थरा रोड में भी 3 मार्च को वोटिंग होगी। 10 मार्च को नतीजे सामने आएंगे। 10 मार्च को ही पता चलेगा कि कौन सा उम्मीदवार चुनाव मैदान में फतह हासिल करता है और किस पार्टी के खाते में ये सीट जाती है?

featured

बलिया में दूल्हे पर एसिड अटैक, पूर्व प्रेमिका ने दिया वारदात को अंजाम

Published

on

बलिया के बांसडीह थाना क्षेत्र में एक हैरान कर देने वाले घटना सामने आई हैं। यहां शादी की रस्मों के दौरान एक युवती ने दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया, इससे दूल्हा गंभीर रूप से झुलस गया। मौके पर मौजूद महिलाओं ने युवती को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल पुलिस बारीकी से पूरे मामले की जांच कर रही है।

बताया जा रहा है की घटना को अंजाम देने वाली युवती दूल्हे की पूर्व प्रेमिका है। उसका थाना क्षेत्र के गांव डुमरी निवासी राकेश बिंद के साथ बीते कई वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने युवक से शादी करने का कई बार दबाव बनाया, लेकिन युवक ने शादी करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में कई बार थाना और गांव में पंचायत भी हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं।

इसी बीच राकेश की शादी कहीं ओर तय हो गई। मंगलवार की शाम राकेश की बारात बेल्थरारोड क्षेत्र के एक गांव में जा रही थी। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दूल्हे के साथ परिछावन करने के लिए गांव के शिव मंदिर पर पहुंचीं। तभी घूंघट में एक युवती पहुंची और दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया। इस घटना से दूल्हे के पास में खड़ा 14 वर्षीय राज बिंद भी घायल हो गया। दूल्हे के चीखने चिल्लाने से मौके पर हड़कंप मच गया। आनन फानन में दूल्हे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

मौके पर पहुंची पुलिस युवती को थाने ले गई और दूल्हे को जिला अस्पताल भेज दिया। थानाध्यक्ष अखिलेश चंद्र पांडेय ने कहा कि तहरीर मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

Continue Reading

featured

कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

Published

on

‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
Continue Reading

featured

ब्राह्मण बहुल बलिया लोकसभा सीट से सपा ने सनातन पांडेय को दिया टिकट

Published

on

लोकसभा चुनाव का मंच सज चुका है. एकाध राउंड का प्रदर्शन (वोटिंग) भी हो चुका है. इस बीच बलिया लोकसभा सीट की गर्माहट भी बढ़ गई है. क्योंकि लंबे इंतज़ार के बाद आख़िरकार समाजवादी पार्टी ने अपने पत्ते खोल दिए हैं. सपा ने ब्राह्मण बहुल बलिया सीट से सनातन पांडेय को लोकसभा उम्मीदवार बनाया है.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने यहां से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे और राज्यसभा सांसद नीरज शेखर को टिकट दिया है. नीरज शेखर के सामने सनातन पांडेय को मैदान में उतारना ‘नहले पर दहला’ जैसा दांव माना जा रहा है. सनातन पांडेय 2019 में भी बलिया से सपा के उम्मीदवार थे. तब बीजेपी के वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ मैदान में थे. उस चुनाव में वीरेंद्र सिंह के हाथों सनातन पांडेय को शिकस्त मिली थी. लेकिन दोनों के बीच महज 15 हजार 519 वोटों का फासला था.

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बदल दिया. उनकी जगह लाए गए नीरज शेखर. ऐसे में सभी की निगाहें इस बात पर टिकी थीं कि सपा बलिया से किसे टिकट देती है. सनातन पांडेय के नाम को लेकर चर्चाएं पहलें से ही तेज़ थीं और अब हुआ भी ऐसा ही है.

ब्राह्मण बहुल बलिया सीट:

सनातन पांडेय और बलिया के चुनावी इतिहास में पर एक नज़र डालेंगे लेकिन पहले बात करते हैं जातीय समीकरण के बारे में. क्योंकि इस बार का खेल इसी समीकरण से सेट होता दिख रहा है. बलिया की कुल आबादी करीब 25 लाख है. मतदाता हैं करीब-करीब 18 लाख. इनमें सबसे ज्यादा वोट ब्राह्मण समुदाय का है. तीन लाख ब्राह्मण वोटर्स हैं. राजपूत, यादव और दलित वोटर लगभग ढाई-ढाई लाख हैं. इसके बाद मुस्लिम मतदाता हैं एक लाख. भूमिहार और राजभर जाति के वोट भी प्रभावी हैं.

यूपी में बीजेपी को लेकर 2017 के बाद से ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगता रहा है. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ये आरोप लगने शुरू हुए हैं. विपक्षी पार्टियां गाहे-बगाहें ब्राह्मणों के ख़फ़ा होने का दावा करती हैं. ऐसे में इस सीट से सपा ने एक ब्राह्मण प्रत्याशी उतारकर पर्सेप्शन की लड़ाई में तो बाज़ी मार ली है.

‘सनातन’ की सियासत:

साल 1996. गन्ना विभाग के इंजीनियर सनातन पांडेय ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया. क्योंकि सिर पर सियासत का खुमार सवार हो गया था इस्तीफे के बाद पहली बार 2002 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहा था. सनातन पांडेय ने निर्दलीय ताल ठोक दिया. लेकिन उनके हिस्से आई हार. इसके बाद उन्होंने सपा ज्वाइन कर लिया.

साल 2007. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. सपा ने चिलकहर सीट से सनातन पांडेय को टिकट दिया. वे चुनाव लड़े और नतीजे उनके पक्ष में रहे. पांच साल बाद 2012 में फिर विधानसभा चुनाव हो रहे थे. तब तक चिलकहर विधानसभा सीट को समाप्त कर दिया गया था. पार्टी ने उन्हें रसड़ा से टिकट दिया. इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उमाशंकर सिंह की जीत हुई थी.

2012 में यूपी में सपा की सरकार बनी. रसड़ा से हारने के बावजूद सनातन पांडेय को मंत्री पद मिला था. 2017 में भी उन्होंने रसड़ा से चुनावी मैदान में ताल ठोकी थी, लेकिन इस बार वे तीसरे नंबर पर खिसक गए थे.

2007 के बाद से चुनावी सियासत में सूखे का सामना कर रहे सनातन पांडेय के लिए 2024 लोकसभा चुनाव का स्टेज सेट है. इस बार उनके पास एक बड़ा मौका है सियासी ज़मीन पर झमाझम बारिश कराने की. ये बारिश कितनी मूसलाधार होगी और कौन-कितना सराबोर होगा, इसके लिए 4 जून की तारीख़ का इंतज़ार है.

Continue Reading

TRENDING STORIES

error: Content is protected !!