बलिया स्पेशल
निकाय चुनाव -12 सितंबर तक देना होगा खर्च का विवरण, पुर्नमतगणना कराने के लिए करना होगा ये!
नगरीय निकाय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को व्यय का विवरण दाखिल करना होगा। प्रत्याशियों को निर्वाचन में अपने द्वारा किये गये व्यय का विवरण निर्धारित प्रारूप पर शपथ-पत्र के साथ निर्वाचन परिणाम घोषणा की तिथि से 03 माह के अन्दर अनिवार्य रूप से दाखिल करना आवश्यक है। जिला मजिस्ट्रेट रविन्द्र कुमार ने कहा है कि नगर पालिका परिषद, नगर पंचायत के अध्यक्ष,सदस्य के जो प्रत्याशी अपना व्यय विवरण अभी तक उपलब्ध नहीं कराये हैं।वे तत्काल जमा करें। उन्होंने कहा कि सभी प्रत्याशी सम्बन्धित रिटर्निंग आफिसर के माध्यम से मुख्य कोषाधिकारी के जांच के बाद जिला निर्वाचन कार्यालय, पंचायत एवं नगरीय निकाय में अनिवार्य रूप से उपलब्ध करा दें। इसके अतिरिक्त जो प्रत्याशी निर्वाचित हुए हैं या असफल उम्मीदवार जो कुल वैध मतों के 1/5 अंश तक मत प्राप्त किये हैं या जो अपना अभ्यर्थन वापस ले लिए हैं। उनकी जमानत धनराशि नियमानुसार वापस योग्य हैं।
12 सितम्बर तक देना होगा विवरण
साथ ही जिसकी जमानत वापस करने योग्य है वे जमानत वापसी के लिए अपना आवेदन-पत्र जिला निर्वाचन कार्यालय, पंचायत एवं नगरीय निकाय बलिया में निर्धारित अवधि निर्वाचन परिणाम घोषणा की तिथि से 03 माह के अन्दर अर्थात 12 सितम्बर तक अनिवार्य रूप से व्यय विवरण रजिस्टर एवं शपथ-पत्र के साथ उपलब्ध करा दें। अन्यथा उनकी जमानत धनराशि जब्त मानी जायेगी।
पुर्नमतदान एवं पुर्नमतगणना कराए जाने हेतु सक्षम न्यायालय में ही निर्वाचन याचिका दायर कर अनुतोष प्राप्त कर सकते हैं
बलिया। जिला मजिस्ट्रेट, जिला निर्वाचन अधिकारी रवीन्द्र कुमार ने बताया है कि नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन-2023 के अर्न्तगत नगर पालिका परिषद, नगर पंचायतों के अध्यक्ष, सदस्य का निर्वाचन सम्पन्न हो गए हैं और इनके निर्वाचन परिणाम भी घोषित हो गए हैं, तथा निर्वाचन के सम्बन्ध में प्रत्याशियों द्वारा आयोग, जनपद स्तर पर पुर्नमतदान एवं पुर्नमतगणना कराए जाने हेतु प्रत्यावेदन प्राप्त हो रहे हैं। आयोग द्वारा यह स्पष्ट किया गया हैं कि उपर्युक्त निर्वाचन के रिटर्निंग आफिसर(निर्वाचन अधिकारी) द्वारा ज्यों ही निर्वाचन परिणाम घोषित कर दिया जाता हैं, राज्य निर्वाचन आयोग, उ०प्र० का अधिकार क्षेत्र समाप्त हो जाता है अर्थात् निर्वाचन परिणाम घोषित होने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
रिटर्निंग आफिसर (निर्वाचन अधिकारी) द्वारा निर्वाचन परिणाम घोषित किए जाने के बाद सक्षम न्यायालय में निर्वाचन याचिका दायर की जा सकती हैं। घोषित निर्वाचन परिणाम के विरुद्ध आयोग/जनपद स्तर पर प्रत्यावेदन देने की आवश्यकता नहीं है बल्कि यदि निर्वाचन परिणाम को चुनौती देना है तो सक्षम न्यायालय में ही निर्वाचन याचिका दायर कर अनुतोष प्राप्त किया जा सकता हैं।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में नक्सलियों के 11 ठिकानों पर NIA ने मारा छापा
बलिया में एनआईए ने नक्सलियों के 11 ठिकानों पर शनिवार को छापा मारा, जहां से तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और नक्सली साहित्य बरामद किया गया है। एनआईए ने यह कार्रवाई पिछले साल यूपी एटीएस द्वारा बलिया में पकड़े गए पांच नक्सलियों पर दर्ज केस को टेकओवर करने के बाद की है।
बता दें कि यूपीएटीएस ने 15 अगस्त, 2023 को बलिया से नक्सली संगठनों में नई भर्तियां करने में जुटी तारा देवी के साथ लल्लू राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राम मूरत राजभर व विनोद साहनी को गिरफ्तार किया था। आरोपितों के कब्जे से नाइन एमएम पिस्टल भी बरामद हुई थी। जांच में सामने आया है कि तारा देवी को बिहार से बलिया भेजा गया था। वह वर्ष 2005 में नक्सलियों से जुड़ी थी और बिहार में हुई बहुचर्चित मधुबन बैंक डकैती में भी शामिल थी।
इसके अलावा लल्लू राम उर्फ अरुन राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राममूरत तथा विनोद साहनी की गिरफ्तारी हुई थी। ये सभी बिहार के बड़े नक्सली कमांडरों के संपर्क में थे।
एनआईए की अब तक की जांच के अनुसार, प्रतिबंधित संगठन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत उत्तरी क्षेत्र अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है। जांच एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि भाकपा (माओवादी) के नेता, कार्यकर्ताओं और इससे सहानुभूति रखने वाले, ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) इस क्षेत्र में संगठन की स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
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