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बलिया: रसड़ा की चीनी मिल चुनावी मुद्दों में कहां खड़ी है?
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहा है। चुनाव है तो उत्तर प्रदेश की हवा में भारी संख्या में मुद्दे तैर रहे हैं। राजनीतिक दलों ने अपना घोषणा पत्र भी जारी कर दिया है। जिनमें किसानों को भी जगह मिली है। किसानों के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस पार्टी की ओर से कई बड़े वादे किए गए हैं। इन सब के बीच बलिया जिला के रसड़ा की चीनी मिल अपनी जगह तलाश रही है।
रसड़ा की चीनी मिल को बंद हुए एक दशक होने को हैं। इस दौरान दो पार्टियों की सरकार भी बन गईं। जब चीनी मिल बंद हुआ तो सपा की सरकार थी। अब भाजपा की सरकार है जब चीनी मिल दोबारा चालू होने की राह देख रही है। यूं तो चीनी मिल को चालू करने की मांग हमेशा से होती आ रही है। लेकिन ये मुद्दा उत्तर प्रदेश में कभी व्यापक रूप नहीं ले सका। जिले में भी कोई व्यापक आंदोलन देखने को नहीं मिला।
जिस चीनी मिल की बात हो रही है वो रसड़ा के माधवपुर में स्थित है और अब जंग खा रही है। 9 साल से बंद पड़ी मिल के कल-पुरजे खराब हो चुके। लोहा-लक्कड़ सड़ने लगे हैं। कभी जिसकी चमक से रसड़ा दमकता था अब उसका वीरानापन इलाके को डरा रहा है। चुनाव में लगभग सभी पार्टियों के उम्मीदवारों को रसड़ा में न चाहते हुए चीनी मिल के मुद्दे पर बात करनी पड़ रही है। भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीतने पर चीनी मिल चालू करवाने के लिए पहल करने की बात कह रहे हैं।
बेहाल पड़ी चीनी मिल:
रसड़ा के माधवपुर गांव में करीब 81 एकड़ में चीनी मिल है। किसी विशालकाय कारखाने की तरह चीनी मिल विराट रूप लिए खड़ी है। लेकिन पूरी तरह जर्जर और खस्ताहाल। हजारों लोगों को सीधे रोजगार देने वाला और लाखों जिंदगियों पर असर डालने वाली मिल अब जंग खा रही है। मशीनें तहस-नहस हो रही हैं। चीनी मिल में फिलहाल 3 कर्मचारी और 9 पीआरडी जवान तैनात हैं। मिल परिसर के सुरक्षा की जिम्मेदारी इन्हीं पर है।
चीनी मिल की देख-रेख के लिए चार स्थायी कर्मचारी और संविदा पर नियुक्त एक अकाउंटेंट हैं। मीडिया रपटों के मुताबिक पिछले चार सालों से ये कर्मचारी वेतन का इंतजार कर रहे हैं। चीनी मिल में तैनात कर्मचारियों का करीब 60 लाख रुपए बकाया हो चुका है।
बलिया भर के गन्ना किसान कभी इस मिल से जुड़े हुए थे। गन्ने की खेती किसानों के लिए रोजी-रोटी का जरिया थी। लेकिन मिल बंद होने के बाद किसानों के लिए गन्ना की खेती घाटे का सौदा साबित होने लगी। जिसके बाद किसानों ने गन्ने की खेती बंद कर दी। देखा जाए तो मिल के बंद होने से एक ही बार में लाखों लोगों की आजीविका को झटका लग गया।
कुछ इतिहास, कुछ वर्तमान:
रसड़ा के चीनी मिल की स्थापना 1974 में हुई थी। तब कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन 16 फरवरी, 2013 को इस मिल पर ताला जड़ दिया गया। जिसके साथ ही हजारों परिवारों की रोजी-रोटी का माध्यम भी ठप पड़ गया। 2012 में सपा की सरकार बनी। 2013 में मिल बंद हुई। मांग उठी की मिल को चालू किया जाए। लेकिन अखिलेश यादव की सरकार ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया।
2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। भाजपा की सरकार बनी। किसानों को उम्मीद थी कि चीनी मिल को लेकर सरकार गंभीरता से कोई कदम उठाएगी। 2018-19 के बजट में ये आस और भी मजबूत हुई। जब योगी सरकार ने 350 करोड़ की धनराशि का प्रावधान रसड़ा चीनी मिल को दोबारा शुरू करने के लिए किया। टेंडर निकाला गया। लेकिन मिल को चलाने के लिए कोई आगे नहीं आया। इसी के साथ आशा की जो किरण दिख रही थी वो भी गुम हो गई।
सुलगते सवाल:
रसड़ा चीनी मिल पर लगे ताले ने उन दोनों पार्टियों की सरकार को देख लिया है जो 2022 के चुनाव में सत्ता के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। बात भाजपा और सपा की हो रही है। सवाल है कि जिस मिल से हजारों लोगों को सीधे तौर पर रोजगार मिल सकता है उसे जर्जर हालत में क्यों छोड़ दिया गया है? योगी आदित्यनाथ सरकार गन्ना किसानों के भुगतान के लिए अपना पीठ थपथपा रही है। लेकिन इस बात का जवाब नहीं दे रही है कि आखिर रसड़ा चीनी मिल को दोबारा क्यों चालू नहीं किया गया?
स्थानीय तौर पर देखें तो रसड़ा में 2012 के बाद से बसपा के उमा शंकर सिंह विधायक हैं। लेकिन उनकी तरफ से भी कोई विशेष पहल इस मिल के लिए देखने को नहीं मिलती है। इस चुनाव में भाजपा, सपा और बसपा के उम्मीदवार रसड़ा में चीनी मिल को लेकर हल्की-फुल्की बात तो कर रहे हैं। लेकिन इस बातचीत में मिल को चालू करवाने का कोई ठोस प्लान नहीं दिखता है। ये एक कोरी चुनावी औपचारिकता ही लगती है। देखना होगा कि रसड़ा के चीनी मिल और बलिया के गन्ना किसानों की किस्मत का ताला कब तक खुलता है? बड़ा सवाल तो ये है कि ये ताला कभी खुलेगा भी या नहीं?
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बलिया में नए सिरे से होगी गंगा पुल निर्माण में हुए करोड़ों के घोटाले की जांच, नई टीम गठित
बलिया में गंगा पुल के निर्माण में हुए घोटाले के मामले से जुड़ी बड़ी अपडेट सामने आई है। अब निर्माण में हुए करोड़ों के घपले की जांच के लिए नई समिति गठित की जाएगी। समिति नए सिरे से पूरे मामले की जांच करेगी। बता दें कि विधानसभा में प्रकरण उठने के बाद पुनः जांच समिति गठित करने के आदेश दे दिए गए हैं। साथ ही कहा गया है कि ड्राइंग के मद में 16.71 करोड़ रुपये का प्रावधान शामिल था या नहीं, यह शासन ही स्पष्ट कर सकता है।
जानकारी के मुताबिक, बलिया में श्रीरामपुर घाट पर गंगा पर करीब 2.5 किमी लंबे पुल का निर्माण कराया गया है। यह काम वर्ष 2014 में मंजूर हुआ था। साल 2016 में संशोधित एस्टीमेट और 2019 में पुनः संशोधित एस्टीमेट मंजूर किया गया। कुल 442 करोड़ रूप का एस्टीमेट रखा गया, जबकि ये नियमानुसार 424 करोड़ रूपये होना चाहिए था। दोबारा संशोधित स्वीकृति में बिल ऑफ क्वांटिटी में 16.7 करोड़ का डिजाइन चार्ज के मद में अतिरिक्त प्रावधान किए जाने से निगम और शासन को यह नुकसान हुआ। जीएसटी लगाकर यह राशि करीब 18 करोड़ रुपये बनती है।
जब इस मामले में जांच हुई तो पता चला कि डिजाइन चार्ज से संबंधित दस्तावेज आजमगढ़ में मुख्य परियोजना प्रबंधक के कार्यालय से उपलब्ध नहीं कराए गए हैं और न ही कोई दस्तावेज सेतु निगम मुख्यालय में उपलब्ध हैं। ऐसे में इस मामले में अब गहराई से जांच की जायेगी।
बता दें कि सेतु निगम की ओर से भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यय वित्त समिति को प्रस्तुत किए जाने से पूर्व किसी भी परियोजना की लागत दरों का मूल्यांकन, परियोजना मूल्यांकन प्रभाग करता है। इसलिए इस संबंध में वास्तविक स्थिति प्रभाग ही स्पष्ट कर सकता है। यह भी बताया गया है कि पुनः जांच समिति की जांच प्रक्रियाधीन है।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो वायरल करने वाले युवक पर मुकदमा दर्ज
बलिया के बांसडीहरोड थाना क्षेत्र में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो और वीडियो वायरल करने के मामले में पुलिस ने एक युवक पर नामजद मुकदमा दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि युवक ने एक युवती के अश्लील वीडियो बना रखे हैं और बार बार उन्हें वायरल करके किशोरी को बदनाम कर रहा है। इस मामले में पीड़ित पक्ष ने आरोपी युवक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।
जानकारी के मुताबिक, इलाके के एक गांव की रहने वाली युवती को टकरसन निवासी पवन वर्मा कई दिनों से परेशान कर रहा है। युवती का आरोप है कि कुछ दिनों पहले आरोपी ने सोशल मिडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम पर अश्लील फोटो और वीडियो डालकर बदनाम करने की कोशिश की है। पीड़िता का कहना है कि अब तक तीन बार विवाह तय हो चुका है, लेकिन पवन के चलते हर बार वह ससुराल पक्ष के लोगों के व्हाट्सएप पर अश्लील फोटो व वीडियो भेजकर शादी तुड़वा चुका है।
तीन बार युवती का रिश्ता टूट चुका है। युवती का कहना है कि आरोपी युवक किसी भी तरह से मेरी शादी नहीं होने दे रहा है। इस सम्बंध में एसओ अखिलेश चंद्र पांडेय का कहना है कि तहरीर के आधार पर आईटी एक्ट व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है। इधर युवती के परिवारवालों ने आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग की है।
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