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ई बलिया है बाबू, जिसकी राजनीति में बहुत घुमाव है, ना भरोसा हो तो सदर सीट पर चल रही ये कहानी पढ़ लीजिए

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बलिया की सदर सीट से भाजपा के दयाशंकर सिंह, सपा से नारद राय और बसपा से नागेंद्र पांंडेय चुनावी मैदान में हैं।

खांटी चाय की चर्चा वाली भाषा में उत्तर प्रदेश का चुनाव अब चढ़ चुका है। वजह ये है कि लगभग सभी पार्टियों ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। यानी अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। अब टिकट मिलने के साथ कई लोगों का पत्ता कट भी चुका है। अब जिनको टिकट नहीं मिला है वो नाराज़ हैं। तो एक तरफ तैयारियों का जोर है तो दूसरी ओर रस्साकस्सी का। यूं तो प्रदेश के कई जिलों का चुनाव बेहद दिलचस्प और सुर्खियों भरा है। लेकिन हम बलिया खबर हैं। यानी दुनिया की हर प्रपंच को बलिया की निगाह से देखने के लिए प्रतिबद्ध। तो बात बलिया की राजनीति की होगी।

बलिया और सियासत। इससे ज्यादा मजेदार कॉकटेल तो दुनिया भर में शायद ही कोई होगा। अब जबकि चुनाव का मौसम है ये कॉम्बिनेशन कुछ ज्यादा ही चटपटा हो चुका है। मुद्दे पर आते हैं। बलिया में सात विधानसभा सीटें हैं। सदर, बांसडीह, फेफना, रसड़ा, बेल्थरा रोड, सिकंदरपुर, और बैरिया। सत्तारूढ़ भाजपा ने सभी सातों सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। सदर सीट से दयाशंकर सिंह, बांसडीह से केतकी सिंह, बैरिया से आनंद स्वरूप शुक्ला, फेफना से उपेंद्र तिवारी, सिकंदरपुर से संजय यादव, बेलथरा से छट्ठु राम और रसड़ा से बब्बन राजभर भाजपा गठबंधन की ओर से मैदान में हैं।

हालांकि लड़ाई तो हर सीट पर तलवार की धार पर चल रही है। यानी जरा इधर-उधर हुआ नहीं कि पूरा खेल पलट जाए। लेकिन बलिया सदर, बांसडीह, फेफना और बैरिया की चुनावी भिड़ंत दिलचस्प है। चलिए थोड़ा विस्तार में जाते हैं। हाल जैसा पूरे यूपी में है वही बलिया में भी है। यानी एक सीट को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर भाजपा और सपा के बीच ही सीधी लड़ाई है। अब ये एक सीट कौन सी है? इस सवाल को छेड़कर यहां मुद्दा घुमाना ठीक नहीं। तो आते हैं सदर सीट पर।

बलिया सदर से विधायक आनंद स्वरूप शुक्ला की सीट बदल दी गई है। सदर की सीट पर उतारा गया है दयाशंकर सिंह को। जानते तो होंगे ही स्वाति सिंह के पति हैं दयाशंकर सिंह। बलिया के चौक-चौराहों पर एक लाइन वाली सीधी चर्चा थी की आनंद स्वरूप शुक्ला का या तो टिकट कटेगा या फिर सीट बदली जाएगी। भाजपा के सर्वे में भी पार्टी आलाकमान ने साफ देखा कि क्षेत्र में आनंद स्वरूप शुक्ला के प्रति नाराज़गी है।

हुआ भी यही। आनंद स्वरूप शुक्ला की सीट बदल गई। आनंद स्वरूप शुक्ला को बैरिया भेज दिया गया। बैरिया से भाजपा के ही विधायक सुरेंद्र सिंह का टिकट काट दिया गया। अब सुरेंद्र सिंह नाराज़ हैं। खैर, इस बात को थोड़ देर के लिए गठरी बांध कर साइड धर दे रहे हैं। दिलचस्प ये है कि सदर सीट पर दयाशंकर सिंह के उतारे जाने को लेकर भाजपा के कार्यकर्ताओं में ही भीतरखाने नाराज़गी है। कार्यकर्ताओं को ये पैराशूट लैंडिंग लग रहा है। समाजवादी पार्टी ने इस सीट से अपने पुराने नेता नारद राय को चुनावी दंगल में उतार दिया है। यही वजह है कि सदर की लड़ाई जबरदस्त मोड़ पर पहुंच चुकी है। नारद राय बनाम दयाशंकर सिंह। दो सियासी चतुर सैनिक अपनी-अपनी पार्टी के लिए तिकड़म भिड़ाएंगे।

नारद राय 2002 और 2012 में सपा के टिकट पर विधायक बने थे। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते समाजवादी पार्टी के मंत्री भी रहे। हालांकि सपा के अंदरुनी झगड़े का खामियाजा नारद राय को भी भुगतना पड़ा। 2016 में अखिलेश यादव ने नारद राय को मंत्री पद से हटा दिया। उसके बाद नारद राय ने भी साइकिल की सवारी छोड़कर हाथी पर सवार होने का मन बना लिया। 2017 के विधानसभा चुनाव में नारद राय सदर सीट से ही मैदान में उतरे लेकिन इस बार उनका चुनाव चिन्ह साइकिल नहीं हाथी था। यानी बसपा की टिकट पर। जाहिर है नारद राय चुनाव हार गए और भाजपा के आनंद स्वरूप शुक्ला यहां से विधायक बने। अब एक बार फिर नारद राय अपनी पुरानी पार्टी में आ चुके हैं। चुनाव भी लड़ रहे हैं। सामने भाजपा के दयाशंकर सिंह हैं।

बलिया की सियासत कितनी सीधी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि जिस वक्त यह आर्टिकल लिखी जा रही थी ठीक उसी वक्त खबर आई कि भाजपा से नाराज चल रहे नागेंद्र पांडे ने बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया है। नागेंद्र पांडेय बलिया सदर से भाजपा से टिकट मांग रहे थे। भाजपा ने दयाशंकर सिंह को टिकट दिया। नागेंद्र पांडेय को यह बात नागवार गुजरी। चर्चा थी कि वह कांग्रेस से हाथ मिला लेंगे। लगभग सब कुछ तय हो चुका था। सियासी गलियारे में यह शोर था कि नागेंद्र पांडेय की बातचीत उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सर्वे-सर्वा प्रियंका गांधी से भी हो चुकी है। लेकिन इसी बीच खबर आ गई कि रसड़ा से बसपा के विधायक उमाशंकर सिंह ने नागेंद्र पांडेय को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया है। अब बसपा ने नागेंद्र पांडेय को सदर सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। जिसके बाद सदर की लड़ाई त्रिकोणीय हो चुकी है।

दयाशंकर सिंह उतने ही पके चावल हैं जितने कि नारद राय। दयाशंकर सिंह के सियासी सफर की शुरुआत भी बलिया से ही हुई थी। एकदम पारंपरिक स्टाइल में दयाशंकर सिंह राजनीति में यहां तक पहुंचे हैं। बलियाटिक लोगों में चर्चा कि कांटे की टक्कर है। बहरहाल इस बतकही को यहीं विराम देते हैं। बलिया में 3 मार्च को मतदान होने हैं। 10 मार्च को नतीजे सामने होंगे। तब पता चलेगा कि इस चुनावी महाभारत का सियासी सूरमा कौन साबित हुआ।

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बलिया में नए सिरे से होगी गंगा पुल निर्माण में हुए करोड़ों के घोटाले की जांच, नई टीम गठित

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बलिया में गंगा पुल के निर्माण में हुए घोटाले के मामले से जुड़ी बड़ी अपडेट सामने आई है। अब निर्माण में हुए करोड़ों के घपले की जांच के लिए नई समिति गठित की जाएगी। समिति नए सिरे से पूरे मामले की जांच करेगी। बता दें कि विधानसभा में प्रकरण उठने के बाद पुनः जांच समिति गठित करने के आदेश दे दिए गए हैं। साथ ही कहा गया है कि ड्राइंग के मद में 16.71 करोड़ रुपये का प्रावधान शामिल था या नहीं, यह शासन ही स्पष्ट कर सकता है।

जानकारी के मुताबिक, बलिया में श्रीरामपुर घाट पर गंगा पर करीब 2.5 किमी लंबे पुल का निर्माण कराया गया है। यह काम वर्ष 2014 में मंजूर हुआ था। साल 2016 में संशोधित एस्टीमेट और 2019 में पुनः संशोधित एस्टीमेट मंजूर किया गया। कुल 442 करोड़ रूप का एस्टीमेट रखा गया, जबकि ये नियमानुसार 424 करोड़ रूपये होना चाहिए था। दोबारा संशोधित स्वीकृति में बिल ऑफ क्वांटिटी में 16.7 करोड़ का डिजाइन चार्ज के मद में अतिरिक्त प्रावधान किए जाने से निगम और शासन को यह नुकसान हुआ। जीएसटी लगाकर यह राशि करीब 18 करोड़ रुपये बनती है।

जब इस मामले में जांच हुई तो पता चला कि डिजाइन चार्ज से संबंधित दस्तावेज आजमगढ़ में मुख्य परियोजना प्रबंधक के कार्यालय से उपलब्ध नहीं कराए गए हैं और न ही कोई दस्तावेज सेतु निगम मुख्यालय में उपलब्ध हैं। ऐसे में इस मामले में अब गहराई से जांच की जायेगी।

बता दें कि सेतु निगम की ओर से भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यय वित्त समिति को प्रस्तुत किए जाने से पूर्व किसी भी परियोजना की लागत दरों का मूल्यांकन, परियोजना मूल्यांकन प्रभाग करता है। इसलिए इस संबंध में वास्तविक स्थिति प्रभाग ही स्पष्ट कर सकता है। यह भी बताया गया है कि पुनः जांच समिति की जांच प्रक्रियाधीन है।

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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत

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आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.

बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.

चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,

लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.

1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.

‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,

जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि

सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.

(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)

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बलिया में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो वायरल करने वाले युवक पर मुकदमा दर्ज

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बलिया के बांसडीहरोड थाना क्षेत्र में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो और वीडियो वायरल करने के मामले में पुलिस ने एक युवक पर नामजद मुकदमा दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि युवक ने एक युवती के अश्लील वीडियो बना रखे हैं और बार बार उन्हें वायरल करके किशोरी को बदनाम कर रहा है। इस मामले में पीड़ित पक्ष ने आरोपी युवक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।

जानकारी के मुताबिक, इलाके के एक गांव की रहने वाली युवती को टकरसन निवासी पवन वर्मा कई दिनों से परेशान कर रहा है। युवती का आरोप है कि कुछ दिनों पहले आरोपी ने सोशल मिडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम पर अश्लील फोटो और वीडियो डालकर बदनाम करने की कोशिश की है। पीड़िता का कहना है कि अब तक तीन बार विवाह तय हो चुका है, लेकिन पवन के चलते हर बार वह ससुराल पक्ष के लोगों के व्हाट्सएप पर अश्लील फोटो व वीडियो भेजकर शादी तुड़वा चुका है।

तीन बार युवती का रिश्ता टूट चुका है। युवती का कहना है कि आरोपी युवक किसी भी तरह से मेरी शादी नहीं होने दे रहा है। इस सम्बंध में एसओ अखिलेश चंद्र पांडेय का कहना है कि तहरीर के आधार पर आईटी एक्ट व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है। इधर युवती के परिवारवालों ने आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग की है।

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