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इस बार जिला पंचायत में इन नेताओं की प्रतिष्ठा दावं पर, सियासी विरासत बचाने की जिम्मेदारी !

बलिया – प्रदेश में पंचायत चुनाव अपने जोर पर है। अपना जिला भी अब पीछे नहीं है। टिकट बंट चुका है। प्रचार-प्रसार चालू है। 58 जिला पंचायत की सीटों वाले बलिया जिले से हज़ारों प्रत्याशी अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने को तैयार हैं। सभी प्रत्याशियों ने अपने स्तर पर चुनावी दंगल जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। चुनाव के इस रौचक दौर में उन 6 परिवारों के नुमाइंदे कांटे की टक्कर में फंसे हैं, जिन्हें राजनीति में परिवारवाद की कहानी को आगे ले जाने की जिम्मेदारी मिली है। जिला पंचायत सदस्यों के कुल 58 सीटों में कांग्रेस, बसपा , सपा और भाजपा के आधा दर्जन ऐसे उम्मीदवारों की फेहरिस्त हैं जो ताल ठोक रहे हैं। आइये एक नज़र डालते हैं उन वार्डों पर।
वार्ड नंबर 45
गड़वार
गड़वार की इस अनारक्षित सीट पर बसपा के उम्मीदवार हैं आनन्द चौधरी। आनन्द चौधरी, सपा के पूर्व विधायक अंबिका चौधरी के बेटे हैं। अंबिका चौधरी फिलहाल बसपा में हैं।
वार्ड नंबर 24
सीयर
सीयर की इस अनारक्षित सीट पर मरगूब अख्तर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं। मरगूब अख्तर सपा अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष के बेटे हैं। जो पिछले 20 साल से पार्टी से जुड़े हुए हैं।
वार्ड नंबर 24
सीयर
सीयर की इस अनारक्षित सीट पर भाजपा ने अटल राजभर को उम्मीदवार बनाया है। अटल राजभर, पूर्व सांसद और भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हरिनारायन राजभर के पुत्र हैं।
वार्ड नंबर 27
सीयर
वर्ष 2021 में ओबीसी के लिए रिज़र्व इस सीट से बैरिया से पूर्व सपा विधायक जय प्रकाश अंचल के बेटे विनय अंचल को टिकट मिला है और ज़ाहिर है कि वह समाजवादी पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार हैं।
वार्ड नंबर 16
मनियर
वर्ष 2021 में ओबीसी के लिए रिज़र्व इस सीट से समाजवादी पार्टी ने वर्तमान नेता प्रतिपक्ष और बांसडीह विधानसभा के विधायक रामगोविंद चौधरी के बेटे रंजीत चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है।
वॉर्ड नंबर 42
सोहांव
वर्ष 2021 में सोहांव की यह सीट अनारक्षित है। इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने रंजू यादव को उम्मीदवार बनाया है। रंजू यादव निवर्तमान सपा जिलाध्यक्ष राजमंगल यादव की पत्नी हैं।



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बलिया- जिस चोरी बुलेट को खोज ना सके उसी से तिरंगा जुलूस में निकले थानाध्यक्ष, जांच के आदेश

बलिया में एक बेहद ही चौकाने वाला मामला सामने आया है। जहाँ एक चोर नहीं बल्कि नरहीं थानाध्यक्ष को चोरी की बुलेट पर घुमते देखा गया। मीडिया में वीडियो आने के बाद से हड़कंप मचा है। बताया जा रहा है कि ये वही बुलेट है जो 18 महीने पहले चोरी हो गई थी जिसे खोजने में पुलिस को सफलता भी नहीं मिली। पुलिस ने बुलेट चोरी की फ़ाइल भी बंद कर दी थी। अब इन तस्वीरों के सामने आने से कई सवाल उठ रहे हैं।
बता दें नगरा में पालचंद्रहा के ओमप्रकाश यादव की बुलेट यूपी 60 एएफ 7103 21 जनवरी 2021 को चोरी हो गई थी। काफी कोशिश के बाद नगरा पुलिस ने 27 जनवरी 2021 को मुकदमा पंजीकृत किया। जांच कर कुछ दिनों बाद फाइल बंद दी। पीड़ित ने उच्चाधिकारियों से गुहार लगाकर भी उम्मीद छोड़ दी। तभी नरहीं क्षेत्र में 14 अगस्त को पुलिस ने तिरंगा जुलूस निकाला था। चोरी वाली बुलेट पर नरही थानाध्यक्ष मदन पटेल सवार थे। यात्रा की फोटो और वीडियो इंटरनेट पर वायरल हुई तो बुलेट मालिक ने उसकी पहचान कर ली।
पुलिस को जब मामले की जानकारी लगी तो आनन फानन में बुलेट को थाने में मंगा लिया। हालांकि उक्त वाहन का नंबर गायब था। वाहन की पहचान होने के बाद जब बुलेट मालिक ओमप्रकाश यादव थाने में जाकर संबंधित से संपर्क किए तो उन्हें बताया गया कि उक्त वाहन के कागजात नहीं हैं। अब यह मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में भी आ
गया है। इससे संबंधित की परेशानी और भी बढ़ गई है।
वहीं अपर पुलिस अधीक्षक दुर्गा प्रसाद तिवारी का कहना है कि बुलेट से थानाध्यक्ष के घूमने और इंटरनेट मीडिया में प्रसारित इस प्रकरण की गहनता से जांच होगी। दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
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जिस जगह हुई थी बलिया के आजादी की घोषणा वहां लगा गंदगी का अंबार, अधिकारी बेख़बर

बलिया। पूरे देश ने बड़ी धूमधाम से आजादी का अमृत महोत्सव मनाया। 19 अगस्त को बलिया बलिदान दिवस है। पूरा प्रशासनिक अमला बड़े आयोजन की तैयारी में जुटा है। इस दिन सूबे के मुख्यमंत्री भी बलिदान दिवस के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगे। लेकिन साल 1942 में जिस स्थान पर बलिया की आजादी की घोषणा हुई, उस जगह का हाल विचलित कर देने वाला है।
जिले के क्रांति मैदान बापू भवन के बाहर गंदगी का अंबार लगा हुआ है। नगर पालिका का इस ओर ध्यान नहीं है। एक तरफ आजादी का जश्न मनाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ जिस जगह आजादी की घोषणा हुई, वहां गंदगी पसरी है। आजादी के अमृत महोत्सव में बलिया से सामने आई यह तस्वीर कई सवाल खड़े कर रही है।
Pic Credit- Roshan
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1947 से 5 साल पहले, आज ही के दिन बांसडीह तहसील को मिली थी आज़ादी!

बलिया डेस्क : आज 17 अगस्त है, बलियावासियों के लिए गौरव का दिन। आज ही के दिन बलिया की एक तहसील आज़ादी से पांच साल पहले अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से आज़ाद हो गई थी। हम बात बांसडीह तहसील की कर रहे हैं, जिसे 17 अगस्त 1942 को गजाधर शर्मा के नेतृत्व में तकरीबन 20 हज़ार किसानों-नौजवानों की टीम ने अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ाद करा लिया था।
वीर सेनानियों की इस टीम में सकरपुरा के वृंदा सिंह, चांदपुर के रामसेवक सिंह और सहतवार के श्रीपति कुंअर भी शामिल थे। बताया जाता है कि सेनानियों की टीम ने तहसील पर कब्ज़े की तैयारी इतनी खामोशी के साथ की थी कि इसकी भनक अंग्रेज़ी हुकूसत को भी नहीं लग सकी थी। 17 अगस्त की सुबह होते ही तकरीबन 8 बजे सेनानियों की एक टोली ने तहसील और थाने को चारों तरफ़ से घेर लिया। सेनानियों की तादाद और उनके देश प्रेम के जज़्बे को देखकर तहसीलदार और थानाध्यक्ष ने सरेंडर कर दिया।
जिसके बाद सेनानियों का तहसील और थाने पर कब्ज़ा हो गया। बलिया ख़बर से बातचीत में कॉमरेड प्रणेश सिंह एक किताब का हवाला देते हुए बताते हैं कि तहसील और थाने पर कब्ज़े के बाद सेनानियों ने वहां के ख़ज़ाने को अपने कब्ज़े में ले लिया और उसी खज़ाने से कर्मचारियों को एक महीने का वेतन देकर उन्हें 24 घंटे के भीतर बलिया छोड़ने को कहा।
तहसील पर कब्ज़े के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष गजाधर शर्मा को तहसीलदार बना दिया गया और इसी के साथ सेनानियों ने स्वदेशी सरकार की स्थापना भी कर दी। प्रणेश बताते हैं कि तहसीलदार बनने के बाद गजाधर शर्मा ने दो बड़े केस पर पंचायती राज के तहत फैसला सुनाया था। जिसमें कोरल क्षेत्र का एक खानदानी मुकदमा था और एक नरतिकी से लूट का केस था।
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