निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर लगी रोक बुधवार तक बढ़ा दी गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट अब बुधवार को मामले की सुनवाई करेगा। राज्य सरकार ने मामले में शपथ पत्र दाखिल कर दिया है।
सरकरा ने कहा है कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। दायर याचिकाओं के पक्षकारों को उपलब्ध कराए गए जवाबी हलफनामे में सरकार ने कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। शहरी विकास विभाग के सचिव रंजन कुमार ने हलफनामे में कहा है कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
अब इस मामले में कोर्ट में सुनवाई होना है। कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है। इस पर सरकार ने कहा है कि 5 दिसंबर, 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है। वहीं आपको बता दें कि अभी चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी होने पर रोक लगी है। इससे पहले कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि 20 दिसंबर तक बीते 5 दिसंबर को जारी अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत आदेश जारी न करे।
बता दें कि जनहित याचिकाओं में निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का उचित लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दे उठाए गए हैं। याचियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत, जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता। साथ ही कहा है कि औपचारिकता पूरी किए बगैर सरकार ने गत 5 दिसंबर को अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत ड्राफ्ट आदेश जारी कर दिया। इससे यह साफ है कि राज्य सरकार ओबीसी को आरक्षण देने जा रही है। साथ ही सीटों का रोटेशन भी नियमानुसार किए जाने की गुजारिश की गई है।
वहीं सरकारी वकील का कहना है कि 5 दिसंबर को जारी अधिसूचना सिर्फ एक ड्राफ्ट है। जिस पर सरकार ने आपत्तियां मांगी है। वहीं इस चुनाव में नव गठित निकायों के परिसीमन भी पेंच फंसा सकते हैं। इससे संबंधित 100 से अधिक मामले हाईकोर्ट में पहुंच गए हैं। इनमें सीमा विस्तार वाले निगमों और पालिका परिषदों के अलावा नवगठित नगर पंचायतों में वार्डों के लिए किए गए परिसीमन में मानकों की अनदेखी से संबंधित मामले शामिल हैं।
याचिकाओं में राजस्व ग्रामों में से आधे हिस्से को शामिल करने और छोड़ने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं और आबादी विशेष की बहुलता वाले वार्डों को खत्म करने जैसे मामले भी शामिल हैं। वहीं कहा जा रहा है कि इस मामले में अगर याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला आय़ा तो चुनाव अप्रैल-मई 2023 तक टल सकते हैं। सरकार के पक्ष में फैसला आने पर याचिकाकर्ता उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। यानि दोनों ही स्थितियों में चुनाव में डिले संभव है।
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