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Ballia News – कौन हैं रसड़ा सीट पर कांग्रेस की उम्मीदवार ओमलता?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. सभी पार्टियां चुनावी अखाड़े में शक्ति प्रदर्शन में लगी हुई हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी की जुगत में लगी है। समाजवादी पार्टी सोशल इंजिनियरिंग के जरिए खोई हुई कुर्सी वापस हथियाने की कवायद में लगी है। बहुजन समाज पार्टी दलित और ब्राह्मण का समीकरण बनाकर चुनावी चमत्कार करने की कोशिश में जुटी है। तो दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी खिसक चुकी सियासी जमीन को दोबारा हासिल करने के लिए नए-नए दांव चल रही है।
विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी की महासचिव और उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी ने ऐलान किया था कि कांग्रेस 40 फीसदी सीटों पर महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी। चुनाव अब मुहाने पर है। कांग्रेस अब तक 316 सीटों पर टिकट का ऐलान कर चुकी है। इनमें 127 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है।
अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती ज़िला और पूर्वांचल के खास सियासी मायने वाले बलिया की। बलिया में कुल सात विधानसभा सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव (2017) में 5 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं। एक सीट सपा और एक बसपा के हाथ लगी थी। कांग्रेस का खाता भी इस जिले में नहीं खुल सका था। चुनाव एक बार फिर होने वाले हैं। कांग्रेस भी मैदान में है। पार्टी अपनी नई नेता के नेतृत्व में नए तेवर के साथ मैदान में है। बलिया के 7 में से 4 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कांग्रेस की ओर से की जा चुकी है।
बलिया ख़बर के चुनावी रपट की इस खेप में बात रसड़ा विधानसभा सीट की होनी है। रसड़ा से कांग्रेस ने एक युवा चेहरा ओमलता पर भरोसा जताया है। प्रियंका गांधी की ओर से महिलाओं की भागीदारी के लिए किए गए ऐलान के तहत ओमलता को पार्टी का टिकट मिला है।
कौन हैं ओमलता?
राजनीतिक सक्रियता बहुत अधिक न होते हुए भी ओमलता एक चर्चित नाम हैं। वजह उनकी पढ़ाई-लिखाई है। लखनऊ के डॉ. राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी से बीए एलएलबी और एलएलएम की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं। इसके बाद लॉ से ही पीएचडी कर रही हैं। दो बार पीसीएस की परीक्षा में इंटरव्यू तक दे चुकी हैं। पढ़ी-लिखी लड़कियों के राजनीतिक भागीदारी की बात कई दफा प्रियंका गांधी कर चुकी हैं। यूपी चुनाव में कांग्रेस का नारा भी है ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं।’
ओमलता के पिता परशुराम भारती कांग्रेस के नेता हैं। रसड़ा और बलिया में परशुराम भारती एक जाना पहचाना नाम हैं। ओमलता को टिकट मिलने के पीछे परशुराम भारती की सक्रियता ही बताई जा रही है। हालांकि इसके अलावा भी कुछ फैक्टर हैं जिनके चलते कांग्रेस ने यह दांव चला है।
लड़की और अनुसूचित जाति का होना ओमलता को टिकट देने का बड़ा कारण माना जा रहा है। कांग्रेस जिस लाइन पर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लड़ रही है उस खांके में ओमलता सटीक बैठती हैं। ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा और साथ में दलितों को साधने का प्रयास यहां एक साथ काम करता दिख रहा है।
टिकट मिलने पर क्या बोलीं ओमलता?
कांग्रेस से टिकट मिलने पर ओमलता ने मीडिया से कहा है कि “प्रियंका गांधी से ही प्रेरित होकर मैंने कांग्रेस ज्वाइन की थी।” उन्होंने कहा कि “मेरी प्राथमिकता में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करना है।” बंद पड़ी चीनी मिलों और कताई मिलों को दोबारा शुरू कराने की बात भी डॉ. ओमलता ने कही।
कांग्रेस का बनवास:
उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का बनवास काफी लंबा है। मजेदार है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकार का बनवास 32 साल पुराना है। तो वहीं बलिया के रसड़ा विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस का बनवास 32 सालों का ही है। 1989 में उत्तर प्रदेश में आखिरी बार कांग्रेस की सरकार थी।
दूसरी ओर 1989 में ही रसड़ा को आखिरी कांग्रेसी विधायक भी मिला। 1989 के चुनाव में रामबचन ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीता। लेकिन दो साल बाद ही 1991 के चुनाव में रामबचन को शिकस्त झेलनी पड़ी। तब रसड़ा की सीट पर जनता दल के घुराबू ने कांग्रेस के रामबचन को हराया था।
1991 के बाद कभी कांग्रेस रसड़ा सीट को अपने नाम नहीं कर सकी है। पिछले कुछ चुनावों से बसपा का इस सीट पर कब्जा रहा है। बीजेपी की लहर में भी 2017 के चुनाव में बसपा के उमा शंकर सिंह ने इस सीट को अपने नाम कर लिया था।
ओमलता पर कांग्रेस ने भरोसा जताया है। प्रियंका गांधी की यंग महिला ब्रिगेड की सैनिक पर जिम्मेदारी होगी कांग्रेस और रसड़ा सीट की दोस्ती कराने की। हालांकि इस कोशिश में ओमलता कितनी कामयाब हो पाती हैं ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा।
बहुत कठिन है डगर रसड़ा की:
रसड़ा फतह की राह ओमलता के लिए कतई आसान नहीं है। वजह साफ है। उमा शंकर सिंह का इस सीट पर साफ दबदबा है। 2012 की समाजवादी लहर हो या फिर 2017 की भाजपा और मोदी लहर, दोनों ही बार रसड़ा सीट पर ये लहर आकर थम गईं। 2012 में उमा शंकर सिंह रसड़ा से विधायक बने। 2017 में भी उन्होंने अपनी जीत दोहरा दी।
रसड़ा बसपा और खासकर उमा शंकर सिंह का किला है। जिसे भेद पाना मामूली बात नहीं है। देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति की नर्सरी कहे जाने वाले बलिया के इस सीट पर इस बार क्या परिणाम देखने को मिलते हैं। क्या रसड़ा की जनता एक बार फिर ‘हाथी की सवारी’ करने के लिए उमा शंकर सिंह को वोट देगी या फिर कांग्रेस के ‘नए हाथ’ से हाथ मिलाएगी? 3 मार्च को मतदान होंगे और 10 मार्च को नतीजे आएंगे। 10 मार्च को ही इन सारे सवालों के जवाब हमें मिल जाएंगे। तब तक हर पार्टी, हर नेता अपनी जोर-आजमाइश करने में लगे हैं।
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बलिया- एक्शन में स्वास्थ्य विभाग, 5 महीने से गायब डॉक्टर पर होगी कार्रवाई !

बलिया में बिगड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करने के लिए स्वास्थ्य विभाग एक्शन मोड में नजर आ रहा है। जहां अब 5 महीने से गायब डॉक्टर निशांत के खिलाफ कार्रवाई के लिए शासन को रिपोर्ट भेजी गई है। जिनका ट्रांसफर सोनवानी सीएचसी से सोनबरसा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए किया गया था, लेकिन वह सोनबरसा में अपना स्थानांतरण पत्र देने के बाद काम पर नहीं गए। ऐसे में CMO डा. नीरज कुमार पांडेय ने उनके विरूद्ध कार्रवाई का अनुरोध किया है। जिसके लिए उन्होंने विभाग के उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा है।
शिकायत के बाद जांच में खुलासा- दरअसल चिकित्सकों की मनमानी के कारण सीएचसी सोनबरसा की स्वास्थ्य व्यवस्था बिगड़ गई है। लोगों की शिकायत पर सीएमओ की जांच में मामला पकड़ में आया। सीएमओे ने तीन अन्य चिकित्सकों का भी तीन दिन पहले स्थानांतरण किया है। बताया कि व्यवस्था को ठीक करने के लिए लापरवाह लोगों की समीक्षा की जा रही है। चिकित्सा क्षेत्र में किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी
3 साल से एक जगह पर जमे कर्मचारी हटेंगे- वहीं शासन ने ग्रुप-ग (तृतीय श्रेणी) के कर्मचारियों का हर 3 साल में पटल-क्षेत्र में परिवर्तन करने का निर्देश दिया है। यह परिवर्तन 30 जून तक अनिवार्य रूप से करने को कहा गया है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग में बड़े बदलाव की तैयारी है। सीएमओ ने बताया कि 3 साल से एक ही पटल देख रहे संवेदनशील या लोक व्यवहार की व्यक्तिगत रूप से समीक्षा कर बदलाव की किया जाएगा।
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बलिया के बड़े भवनों में नहीं है आग से बचाव के इंतजाम, स्कूलों- अस्पतालों में सुरक्षा उपकरण नदारद

बलियाः गर्मी के मौसम में आगजनी की घटनाओं में इजाफा हो जाता है। कभी-कभार आग इतनी भयानक हो जाती है कि दमकल की गाड़ियां भी आग बुझाने में नाकाम साबित होती है। ऐसे में जरुरी है कि संस्थानों में आग से बचाव की व्यवस्थाएं हों। लेकिन जिले के सरकारी व व्यवसायिक भवनों में आग से बचने के इंतजाम न के बराबर हैं।यहां तक कि स्कूल-कॉलेजों में भी आगजनी से बचने सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। होटल-लॉज, निजी व सरकारी अस्पतालों के भी यही हाल हैं। सभी भवनों में शासन के द्वारा जारी मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
लापरवाही का आलम भी यह है कि मानकों का पालन न करने वाले भवनों को संबंधित विभाग व जिम्मेदार अधिकारियों ने एनओसी भी जारी कर दिया है। जबकि एनओसी देने के पहले अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम को भवनों का भौतिक सत्यापन करना चाहिए, आग से बचाव के उपकरण लगें हैं या नहीं, सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं, इन सभी बातों पर निरीक्षण के बाद ही एनओसी देने का प्रावधान हैं लेकिन विभागीय अधिकारी भवनों का बिना सत्यापन करे ही एनओसी जारी कर रहे हैं।
यही वजह है कि अब गांव देहात ही नहीं बल्कि शहरों में भी बगैर सुरक्षा उपकरणों के ही स्कूल-कॉलेज व अस्पताल संचालित हो रहे हैं। इन भवनों में आग से बचाव के इंतजाम नदारद हैं। इन्हीं लापरवाहियों की वजह से आग की घटनाएं बड़े हादसे का कारण बनती हैं। मानकों के अनुसार सरकारी, गैर सरकारी भवनों में स्प्रिरंकलर सिस्टम बनाना चाहिए। इसमें एक फव्वारा होता है, जो आग लगने की स्थिति में ऑटोमैटिक पानी फेंकने लगता है।
सबसे बुरा हाल बलिया के सरकारी जिला अस्पताल का है। यहां हर रोज हजारों मरीज अपना इलाज करवाने आते हैं, कई मरीज भर्ती रहते हैं। लेकिन इतने बड़े अस्पताल में आग से बचने के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो जिला अस्पताल के नए भवन में स्प्रिरंकलर सिस्टम (फायर हाइड्रेंट) स्थापित किया गया है। इसमें भी नियमित पानी नहीं भरने के चलते शोपीस ही बना रहता है। अग्निशमन विभाग के अफसरों की मानें तो किसी भी एसी कमरे में आग लगने पर तेजी से फैलने का खतरा होता है। शहर के कई अस्पताल ऐसे हैं जहां आपतकालीन स्थितियों में बाहर निकलने के लिए इमरजेंसी एग्जिट की व्यवस्था तक नहीं हैं।
इस संबंध में सीएफओ डीपी सिंह यादव का कहना है कि फायर सुरक्षा नहीं करने वाले संस्थानों व विभागों को समय-समय पर नोटिस भेजा जाता है। इसकी सूची बनाकर जिलाधिकारी व मुख्यालय को भेजी जाती है। इसके अलावा आगजनी रोकने नगरपालिका के इंतजाम भी नाकाफी हैं। नगरपालिका के द्वारा शहर के अलग अलग स्थानों पर करीब 31 हाइड्रेंट लगाए गए थे, लेकिन इनमें से 8 खराब स्थिति में पड़े हैं।
पुराना पोस्ट ऑफिस, विशुनीपुर मस्जिद, एससी कॉलेज, जापलिनगंज नया चौक, आर्य समाज रोड व सतनीसराय में स्थित हाइड्रेंट मिट्टी के नीचे दब चुके हैं। अग्निशमन विभाग के अफसरों का कहना है कि इमरजेंसी में शहर के हाइड्रेंटों की जरूरत पड़ती है, लेकिन कई बार पत्र लिखने के बाद भी नगर पालिका की ओर से इस दिशा में पहल नहीं हो सकी है।
वहीं शहर के प्रमुख प्रतिष्ठान तो खुले स्थानों पर हैं, लेकिन कई छोटे व मझोले प्रतिष्ठान सकरी गलियों में हैं, जिससे आग लगने की स्थिति में फायर ब्रिगेड का वाहन मौके पर नहीं पहुंच पाता है। कई बार यहां आगजनी की घटनाओं में आग बुझाने में परेशानी हुई है। चौक, विशुनीपुर, टाउन हॉल आदि स्थानों पर सकरी गलियों में आभूषणों की दुकानें हैं, जहां हमेशा गैस सिलेंडर मौजूद रहते हैं। हालांकि कई दुकानदारों ने आग से बचने के प्राथमिक उपाय मसलन सीज फायर आदि की व्यवस्था कर रखी है।
बता दें कि शासन व कोर्ट के द्वारा बताए गए मानकों के अनुसार बड़ी बिल्डिंगों में ओवरहेड या अंडरग्राउंड (स्ट्रेटिक) टैंक होने चाहिए। हाइड्रेंट सिस्टम बनाकर हमेशा पर्याप्त पानी की व्यवस्था होनी चाहिए, चौड़ा रास्ता हो ताकि फायर ब्रिगेड की गाड़ी पहुंच सके। भवनों के बाउंड्री वॉल से दोनों ओर रास्ता और भवनों में डबल सीढ़ी होनी चाहिए। लेकिन जिले के सरकारी व निजी भवनों में इन मानकों का पालन नहीं हुआ।
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UP- बिहार को सौगात, आरा-बक्सर-हरदिया-बलिया तक बनेगा ग्रीन फील्ड कॉरिडोर

बलिया। उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों को जल्द ही एक और सौगात मिलने जा रही है। जिसका लाभ बलिया वासियों को मिलेगा। बिहार की राजधानी पटना से आरा-बक्सर-हरदिया-बलिया तक ग्रीन फील्ड कॉरिडोर बनेगा। 4 लेन में इसकी लंबाई 118 किमी होगी और इस पर 8500 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसका निर्माण 4 फेज में होगा।
जो पूर्वांचल एक्सप्रेस से भी जुड़ेगा। इसके बाद पटना और आरा से दिल्ली की दूरी आधी हो जायेगी। आरा रिंग रोड भी ग्रीन फील्ड कॉरिडोर से जुड़ेगा। इसके लिए 381 करोड़ की लागत से 21 किमी कनेक्टिंग रोड बनाया जायेगा। बता दें केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पटना-बक्सर फोरलेन को जोड़ने वाले कोईलवर सोन नदी में 266 करोड़ रुपए की लागत से बनकर तैयार सिक्स लेन पुल की डाउन स्ट्रीम थ्री लेन (दूसरी लेन) का शनिवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लोकार्पण किया।
इसके साथ ही यह पुल जनता के लिए खोल दिया गया। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि बिहार में 3 साल में अमेरिका की सड़क के बराबर रोड बनाएंगे। बिहार में 8 ग्रीन फील्ड कॉरिडोर पर एक लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
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