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विधानसभा’वार: फेफना में उपेंद्र तिवारी के पहली बार जीतने की कहानी जान लीजिए

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विधानसभा- फेफना
वर्ष- 2012
विधायक- उपेन्द्र तिवारी (भारतीय जनता पार्टी)

विधानसभा’वार में जिले की विधानसभा फेफना की चर्चा करेंगे। सीट संख्या है 360 । साल 2012 के आंकड़ों के मुताबिक विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख 05 हजार 631 रही, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 69 हजार 337  जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 36 हजार 279 है। इस सीट को भी 2008 में ही स्वीकृति मिली।16वीं विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उपेंद्र तिवारी ने समाजवादी पार्टी के अंबिका चौधरी को हरा अपना परचम लहराया था। एसबीएसपी के संग्राम सिंह यादव तीसरे स्थान पर रहे थे। जबकि बहुजन समाज पार्टी के शिवानंद सिंह को चौथे स्थान पर। परिणाम के अनुसार भारतीय जनता पार्टी से उपेंद्र तिवारी को 51,151 वोट प्राप्त हुए और समाजवादी के कद्दावर नेता कहे जाने वाले अंबिका चौधरी को 43,764 वोट मिले।Upendra Tiwari Brother Wife Allegedly Illegal Appointment And Payment - योगी के मंत्री उपेन्द्र तिवारी की भाभी को अम्बिका चौधरी के भाई ने कोर्ट में घसीटा, लगाया गलत ...क्या रही है फेफना की राजनीतिक स्थिति

फेफना विधानसभा में सपा के उदय होने के बाद 1993 से लेकर 2012 तक 4 बार अंबिका चौधरी का कब्जा रहा। फेफना विधानसभा को पहले कोपाचीट के नाम से जाना जाता था. इस क्षेत्र से सबसे अधिक बार विधायक का पद अपने नाम करने का ख़िताब अम्बिका चौधरी को जाता रहा है परन्तु जब इस क्षेत्र के नाम को कोपाचीट से फेफना में परिवर्तित कर दिया गया तबसे क्षेत्र से लगातार चार बार से विजय प्राप्त कर रहे अम्बिका अपने गांव कपूरी फेफना के नाम पर ही निर्मित फेफना क्षेत्र से चुनाव में असफल हो गये। 

सीट के तत्कालीन धुरंधर का क्या है इतिहास

तत्कालीन विधायक उपेन्द्र तिवारी उच्च शिक्षा के पश्चात स्नातक करने पहुंचे शहर इलाहाबाद। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इनका दाखिला हुआ। विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही इन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा। उसी दौरान विश्वविद्यालय के छात्र संघ में इनकी उपस्थिती रही। डेलीहंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक छात्रों से जुड़े मुद्दों पर मुखर रहने वाले उपेंद्र तिवारी ने 1996 से 1999 तक का समय नैनी जेल(Naini Jail) इलाहाबाद में कैदी के रुप में काटा। जेल में उपेंद्र राजनीतिक बंदी थे। जहां इन्होंने अपने जीवन के तीन साल काट दिये। भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के सदस्य के रूप में इन्होंने कई साल तक मेहनत किया।

Samajwadi Party Comment on Upendra Tiwari BJP Yogi Sarkar | उपेंद्र तिवारी के खिलाफ अभद्र नारेबाजी करने वाले 5 सपा कार्यकर्ता गिरफ्तार | Hindi News, राष्ट्रइनकी मेहनत से प्रभावित पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इन्हें 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के आम चुनाव में फेफना के विधानसभा से टिकट दे दिया। नतीजा इनके पक्ष में नहीं रहा और और तिवारी अपने क्षेत्र के सपा के प्रत्याशी और वरिष्ठ सपा नेता अंबिका चौधरी से चुनाव हार गये। भाजपा ने इस दौरान इन्हें बलिया जनपद का पार्टी का जिलाध्यक्ष बना दिया। जहां ये साल 2008 से 2011 तक इस पद पर बने रहे। फिर से अगले साल 2012 के विधानसभा के चुनाव आ गये। पार्टी ने फिर से उपेन्द्र को उम्मीदवार बना दिया। इस बार के बदले राजनीतिक समीकरण में राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी पर उपेंद्र ने विधानसभा के चुनाव में जीत का पताका लहरा दिया। 

क्या है मुख्य चुनावी मुद्दा

कभी शिक्षा क्षेत्र में पूरे प्रदेश में अपना अलग मुकाम रखने वाला यह विधानसभा क्षेत्र आज एक अदद कन्या इंका व डिग्री कालेज के लिए तरस कर रह गया है। क्षेत्र के दर्जनों गांवों में स्थापित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बदहाली के शिकार हैं। विधानसभा क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बनाने की वर्षों की पुरानी मांग धीरे-धीरे धूमिल पड़ती जा रही है। गाँव में पानी निकास की समस्या सुरसा के मुंह के समान दिन प्रतिदिन विकराल बनती जा रही है। खस्ताहाल सड़कों व अतिक्रमण के चलते आवागमन में जनता बहुत परेशानी होती रही।


बलिया खबर के पाठकों, ये है हमारा नया कार्यक्रम विधानसभा’वार । इस कार्यक्रम में हम जिले की सभी विधानसभाओं पर  2007 से लेकर अब तक के सभी चुनावों पर विस्तृत रिपोर्ट करेंगे। इसके माध्यम से तत्कालीन चुनावी परिस्थितियों, स्थानीय मुद्दों और विजयी प्रत्याशी के राजनीतिक जीवन का ब्योरा देंगे। आप अपने सुझाव balliakhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं।


 

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बलिया में नए सिरे से होगी गंगा पुल निर्माण में हुए करोड़ों के घोटाले की जांच, नई टीम गठित

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बलिया में गंगा पुल के निर्माण में हुए घोटाले के मामले से जुड़ी बड़ी अपडेट सामने आई है। अब निर्माण में हुए करोड़ों के घपले की जांच के लिए नई समिति गठित की जाएगी। समिति नए सिरे से पूरे मामले की जांच करेगी। बता दें कि विधानसभा में प्रकरण उठने के बाद पुनः जांच समिति गठित करने के आदेश दे दिए गए हैं। साथ ही कहा गया है कि ड्राइंग के मद में 16.71 करोड़ रुपये का प्रावधान शामिल था या नहीं, यह शासन ही स्पष्ट कर सकता है।

जानकारी के मुताबिक, बलिया में श्रीरामपुर घाट पर गंगा पर करीब 2.5 किमी लंबे पुल का निर्माण कराया गया है। यह काम वर्ष 2014 में मंजूर हुआ था। साल 2016 में संशोधित एस्टीमेट और 2019 में पुनः संशोधित एस्टीमेट मंजूर किया गया। कुल 442 करोड़ रूप का एस्टीमेट रखा गया, जबकि ये नियमानुसार 424 करोड़ रूपये होना चाहिए था। दोबारा संशोधित स्वीकृति में बिल ऑफ क्वांटिटी में 16.7 करोड़ का डिजाइन चार्ज के मद में अतिरिक्त प्रावधान किए जाने से निगम और शासन को यह नुकसान हुआ। जीएसटी लगाकर यह राशि करीब 18 करोड़ रुपये बनती है।

जब इस मामले में जांच हुई तो पता चला कि डिजाइन चार्ज से संबंधित दस्तावेज आजमगढ़ में मुख्य परियोजना प्रबंधक के कार्यालय से उपलब्ध नहीं कराए गए हैं और न ही कोई दस्तावेज सेतु निगम मुख्यालय में उपलब्ध हैं। ऐसे में इस मामले में अब गहराई से जांच की जायेगी।

बता दें कि सेतु निगम की ओर से भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यय वित्त समिति को प्रस्तुत किए जाने से पूर्व किसी भी परियोजना की लागत दरों का मूल्यांकन, परियोजना मूल्यांकन प्रभाग करता है। इसलिए इस संबंध में वास्तविक स्थिति प्रभाग ही स्पष्ट कर सकता है। यह भी बताया गया है कि पुनः जांच समिति की जांच प्रक्रियाधीन है।

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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत

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आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.

बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.

चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,

लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.

1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.

‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,

जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि

सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.

(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)

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बलिया में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो वायरल करने वाले युवक पर मुकदमा दर्ज

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बलिया के बांसडीहरोड थाना क्षेत्र में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो और वीडियो वायरल करने के मामले में पुलिस ने एक युवक पर नामजद मुकदमा दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि युवक ने एक युवती के अश्लील वीडियो बना रखे हैं और बार बार उन्हें वायरल करके किशोरी को बदनाम कर रहा है। इस मामले में पीड़ित पक्ष ने आरोपी युवक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।

जानकारी के मुताबिक, इलाके के एक गांव की रहने वाली युवती को टकरसन निवासी पवन वर्मा कई दिनों से परेशान कर रहा है। युवती का आरोप है कि कुछ दिनों पहले आरोपी ने सोशल मिडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम पर अश्लील फोटो और वीडियो डालकर बदनाम करने की कोशिश की है। पीड़िता का कहना है कि अब तक तीन बार विवाह तय हो चुका है, लेकिन पवन के चलते हर बार वह ससुराल पक्ष के लोगों के व्हाट्सएप पर अश्लील फोटो व वीडियो भेजकर शादी तुड़वा चुका है।

तीन बार युवती का रिश्ता टूट चुका है। युवती का कहना है कि आरोपी युवक किसी भी तरह से मेरी शादी नहीं होने दे रहा है। इस सम्बंध में एसओ अखिलेश चंद्र पांडेय का कहना है कि तहरीर के आधार पर आईटी एक्ट व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है। इधर युवती के परिवारवालों ने आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग की है।

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