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पुण्यतिथि विशेष- ‘छात्रनेता’ चंद्रशेखर का ये किस्सा आपको ज़रूर पढ़ना चाहिए

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बलिया : आज पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पुण्यतिथि है. बलिया के पास राजनीतिक तौर पर ‘बागी’ जैसा कुछ कहने-सुनने के नाम पर बचा है, तो वो एक चंद्रशेखर हैं. भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर चंद्रशेखर के पास कुल जमा सात महीने का कार्यकाल था. उस दौर के तेवर भी पढ़ने पर रोमांच आ जाता है. आचार्य नरेंद्रदेव को गुरू मानने वाले चंद्रशेखर ने राजनीति में समाजवाद का दामन आखिरी दम तक थामे रखा. बीएचयू के छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे चंचल कहते हैं कि उनके जन्मदिन को लेकर संशय है. लोग बाग कहते हैं कि चंद्रशेखर का जन्म उस साल हुआ जिस साल साइमन कमीशन आया था. 1927. लेकिन तारीख का कोई हिसाब नहीं.

अब तारीख भी अगर आज की मान ही ली जाए तो क्या प्रासंगिक हो जाएगा? जन्मदिन को जयंती कह देने से समाजवाद का कितना प्रभाव बढ़ जाएगा यह तो सबको देखना होगा. चंद्रशेखर संसद में अथवा कहीं भी जब बोलते थे, कोई खड़ा होकर विरोध नहीं कर पाता था. यह भाषा और व्यक्तित्व का कमाल था. जिले के नेताओं के भाषणों से उनके बोलने की तुलना कर लेने में कोई हर्ज़ नही है. हमने तो जिले को कई नायाब विधायक और सांसद दे रखे हैं, जिनका बोलना चर्चा का विषय बना रहता है. खैर, आज चंद्रशेखर के पुण्यतिथि पर उनके यूनिवर्सिटी के दौर का ये किस्सा पढ़िए. कहानी है पूरब के ऑक्सफोर्ड से. तब उसका नाम सिर्फ इलाहाबाद विश्वविद्यालय ही था.

एक बार गोलवलकर (माधव सदाशिव गोलवलकर ‘गुरू जी’) इलाहाबाद विश्वविद्यालय आने वाले थे. वो तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक थे. ये सन् 1949 था. वहां तब माहौल था चंद्रशेखर का. वो आचार्य नरेंद्र देव के खेमें के कोर समाजवादी थे. चंद्रशेखर के कम्युनिस्ट दोस्तों का कहना था कि इनका विरोध होना चाहिए. हालांकि चंद्रशेखर को लगता था कि जब सब पार्टियों के नेता आते हैं तो गोलवलकर को भी आने देना चाहिए. मगर दोस्तों के लिए वह तैयार हो गए.

तय हुआ कि उनको बोलने नहीं देना है. हल्ला मचाकर या कैसे भी बस बोलने नहीं देना है. इलाहाबाद मंडल, जहां सभा होनी थी, वहां सब जुटे. बगल में चंद्रशेखर का यूनियन कार्यालय था. इन लोगों ने जैसे ही हल्ला मचाना शुरू किया, RSS वाले आ गए. वह भी लाठी डंडा लेकर. समाजवादी लोग कम पड़ गए. यूनियन दफ्तर के अंदर छिपना पड़ा. इतने में पुलिस आगई. उसने सबको बाहर निकलने को कहा. अब बाहर तो संघ वाले थे. अब क्या करें ? फिर वही हुआ.

कोई किसी से कम नहीं- समाजवादीयों का यूनियन दफ्तर बन रहा था. वहां रोड़े पड़े थे. वो उसे चलाकर मारने लगे. संघ वाले लाठी लेकर टूट पड़े. उस वक्त के एक और सामाजवादी नेता थे. नाम था वशिष्ठ नारायण राय. वो हैवीवेट कुश्ती के चैंपियन थे और लाठी भाजने में भी एक नंबर थे. उनके हाथ एक लाठी लग गई. उन्होंने चंद्रशेखर को हिदायत दी कि वो उनके पीठ से सट कर खड़े हो जाएं और कोई अगर पीछे से वार करे तो उन्हें बस इशारा कर दें. फिर क्या था. वशिष्ठ नारायण जिधर लाठी घुमाते हुए निकलते उधर भीड़ भाग खड़ी होती. वो मार मार कर लोगों को भगा रहे थे. भीड़ अब छंट चुकी थी. इसी बीच RSS के एक मुख्य नेता पर वशिष्ठ नारायण ने लाठी चलाई तो वह गिर पड़े. वह दूसरी लाठी चलाने ही वाले थे कि चंद्रशेखर ने उन्हें रोक दिया. वो चंद्रशेखर पर वहीं बिफर गए. कहने लगे मेरा हाथ कभी मत पकड़ना.

राजनारायण चंद्रशेखर की नाक खिंचते हुए

इसी सब के बीच कांड हो गया- वो चंद्रशेखर को हिदायत दे ही रहे थे कि एक RSS के कर्मठ कार्यकर्ता ने उन के सिर पर लाठी चला दी. वो कौन था ये पता नहीं चल सका. चंद्रशेखर ने आव देखा न ताव, तुरंत लाठी पकड़ ली. लाठी सीधे उनके तर्जनी पर लगी और उनकी वो उंगली टूट कर मुड़ गई. टूटी हुई उंगली को उन्होंने रूमाल से बांध दिया. और फिर मारपीट में लग गये. RSS के लोग आखिरकार चले गए. फिर वह अपने घायल कम्युनिस्ट और समाजवादी साथियों को लेकर मोतीलाल नेहरू अस्पताल आये. वहां पर जब उनकी उंगली देखी गई तो पता चला कि उसमें तो फ्रैक्चर है. डॉक्टर ने सलाह दिया कि प्लास्टर करना होगा. प्लास्टर मतलब डेढ़ महिना. चंद्रशेखर के M.A. फाइनल ईयर के इम्तेहान थे. वह फेल हो जाते. सो नया तरिका चुना गया

यह तरीका और भी मजेदार था- प्लास्टर न कराने के इरादे के बाद दोस्तों ने मदद की ठानी. साथी रामाधार ने सलाह दी कि यहां बगल में ही एक हक़ीम साहब हैं जिन्होंने मौलाना आज़ाद का मु़ड़ा हुआ पैर ठीक कर दिया था. सबने हामी भरी तो चंद्रशेखर भी राज़ी हो गये. वो डॉक्टर को प्लास्टर करने से मना कर के हक़ीम साहब के पास गए और पट्टी बंधवा ली. और टूटी उंगली से M.A. की परीक्षा दी.

…और फिर शराब की मदद लेनी पड़ी- चंद्रशेखर के M.A. के इम्तेहान चल रहे थे और बीच इम्तेहान में एक दिन टूटी हुई उंगली में तेज़ दर्द उठा. देखा तो सूजन भी था. तभी किसी ने बताया कि अगर टूटी हुई उंगली को शराब में डूबाकर रखा जाय तो सूजन और दर्द दोनों कम हो जायेगा. और वहीं किसी ने बताया कि उनके रूम पार्टनर के अलमारी में शराब भी है. वे चोरी से पीते हैं. चंद्रशेखर कमरे में गये और सीधे अलमारी खोली. उनके पार्टनर भौचक रह गए. चंद्रशेखर ने उन्हें डांटा और अपनी उंगली दिखाई. फिर रात भर उसे शराब में डूबाकर रखा और तब परीक्षा दी. प्लास्टर न कराने के कारण ही उनकी उंगली हमेशा के लिए टेढ़ी हो गई.

आलेख  – शाश्वत उपाध्याय

यह किस्सा चन्द्रशेखर की आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ से लिया गया है. यह किताब सुरेश शर्मा के संपादन में राजकमल प्रकाशन से छपी है. इसकी कीमत 299 रूपये है. आपको जरूर पढ़नी चाहिए.

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

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बलिया में दूल्हे पर एसिड अटैक, पूर्व प्रेमिका ने दिया वारदात को अंजाम

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बलिया के बांसडीह थाना क्षेत्र में एक हैरान कर देने वाले घटना सामने आई हैं। यहां शादी की रस्मों के दौरान एक युवती ने दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया, इससे दूल्हा गंभीर रूप से झुलस गया। मौके पर मौजूद महिलाओं ने युवती को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल पुलिस बारीकी से पूरे मामले की जांच कर रही है।

बताया जा रहा है की घटना को अंजाम देने वाली युवती दूल्हे की पूर्व प्रेमिका है। उसका थाना क्षेत्र के गांव डुमरी निवासी राकेश बिंद के साथ बीते कई वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने युवक से शादी करने का कई बार दबाव बनाया, लेकिन युवक ने शादी करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में कई बार थाना और गांव में पंचायत भी हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं।

इसी बीच राकेश की शादी कहीं ओर तय हो गई। मंगलवार की शाम राकेश की बारात बेल्थरारोड क्षेत्र के एक गांव में जा रही थी। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दूल्हे के साथ परिछावन करने के लिए गांव के शिव मंदिर पर पहुंचीं। तभी घूंघट में एक युवती पहुंची और दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया। इस घटना से दूल्हे के पास में खड़ा 14 वर्षीय राज बिंद भी घायल हो गया। दूल्हे के चीखने चिल्लाने से मौके पर हड़कंप मच गया। आनन फानन में दूल्हे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

मौके पर पहुंची पुलिस युवती को थाने ले गई और दूल्हे को जिला अस्पताल भेज दिया। थानाध्यक्ष अखिलेश चंद्र पांडेय ने कहा कि तहरीर मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

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‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
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