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बलिया में एकदम ‘वीआईपी’ एंट्री लेने वाले ‘नाव’ पर इस बार कौन-कौन सवार है, जान लीजिए
बलिया में नामांकन का दौर अब खत्म हो चुका है। टिकट मिलने और कटने की गहमागहमी का माहौल समाप्त हो गई है। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने प्रत्याशी उतार दिये हैं। लेकिन इस सब के बीच बलिया के पांच विधानसभाओं पर एक राजनीतिक दल ने गज़ब का दांव खेला है। दल का नाम है विकासशील इंसान पार्टी। लोग बाग कह रहे ‘वीआईपी’ पार्टी है। वीआईपी ने बलिया के दो भाजपा बागी समेत कुल पांच लोगों को मैदान में उतारा है। उन प्रत्याशियों के बारे में जानने से पूर्व हम आपको वीआईपी का कुछ लेखा जोखा देते हैं।
कौन है नाव छाप वाले वीआईपी- नवंबर, 2018 में निर्मित हुई वीआईपी के मुखिया मुकेश साहनी बॉलीवुड के नामी सेट डिजाइनर माने जाते हैं। उन्होंने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रचार किया था फिर पार्टी बना ली। अपने पहले चुनाव, 2019 में बिहार लोकसभा की तीन सीटों मुजफ्फरपुर, खगड़िया और मधुबनी से चुनाव लड़ने वाली वीआईपी का खाता नहीं खुला। लेकिन इन्होंने विधानसभा में बड़ा बदलाव कर दिया। वीआईपी पहले तो महागठबंधन के साथ जुड़ी लेकिन राष्ट्रीय जनता दल द्वारा अपने छोटे सहयोगियों को महत्व नहीं देने का आरोप लगाते हुए मुकेश साहनी गठबंधन से बाहर हो गए।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने उनका स्वागत किया, और उन्हें बिहार में चुनाव लड़ने के लिए कुल 11 सीटें दी गईं। इसमें पार्टी सफल रही। वीआईपी ने कुल चार सीटों पर जीत हसिल की हालांकि साहनी खुद चुनाव हार गए।फिलहाल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने उत्तरप्रदेश चिन्हित 165 विधानसभाओं में से पूर्वांचल की 76 विधानसभाओं में अपना उम्मीदवार उतारने पर विचार करेगी। ये बातें पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देव ज्योति ने बीते दिनों मीडिया को बताईं थी। फिलहाल बलिया के पांच सीटों पर लड़ रहे प्रत्याशियों का ब्योरा जान लीजिए।
भागमनी देवी- (सिकंदरपुर विधानसभा)- वीआईपी ने सिंकदरपुर से भागमनी साहनी को उम्मीदवार बनाया है। भागमनी साहनी पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। इससे पहले भागीदारी संकल्प मोर्चा के घटक दल जनता उन्नति दल के महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकीं भागमनी, देवरिया के धरहरा की रहने वाली हैं। हमसे बातचीत में उन्होंने बताया कि वह अपने परिवार की पहली महिला हैं जो राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। उन्होंने कहा,’मैं पहली बार चुनाव लड़ रही हूं, और इससे पहले भी सक्रिय रही हूं’
जितेंद्र तिवारी-(बलिया सदर)- जितेंद्र तिवारी भाजपा के बागी नेता हैं और भाजपा से टिकट के दावेदार थे। आखिरी समय तक इंतजार करते रहने के बाद उन्होंने निर्दल चुनाव लड़ने का फैसला किया और फिर कुछ समय बाद वीआईपी के उम्मीदवार के तौर पर नामांकन कर दिया। जितेंद्र तिवारी पुराने भाजपा नेता हैं। 2002 में कल्याण सिंह के क्रांति दल से सदर विधानसभा के उम्मीदवार रहे। भाजपा के किसान प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी का हिस्सा रहे जितेंद्र तिवारी फिलहाल भाजपा के बहुप्रतिक्षित प्रोजेक्ट नमामि गंगे के गोरक्ष प्रांत संयोजक हैं। इत्तेफाक देखें कि उनको टिकट भी उस राजनीतिक दल से मिला है जो नाविक समुदाय की नुमाइंदगी का दंभ भरता है। जितेंद्र तिवारी ने हमसे बातचीत में कहा, ‘वीआईपी ने मुझपर भरोसा जताया है इसका धन्यवाद बाकी अगर पार्टी अच्छा काम करेगी तो क्षेत्र में इसको आगे बढ़ाने का काम किया जाएगा।’
सुरेंद्र सिंह- (बैरिया विधानसभा)- सुरेंद्र सिंह, प्रदेश के कुछ चर्चित भाजपा विधायकों में से एक थे। उन्होंने विधायक रहते बड़बोलेपन में विभिन्न राजनीतिक दल और नेताओं पर कई ऐसी टिप्पणीयां की जो अपमानजनक रहीं। योगी आदित्यनाथ को पीएम बनाने की बात कहते रहने वाले सुरेंद्र सिंह का टिकट काट कर वहां से सदर विधायक आनंद स्वरुप शुक्ल को टिकट दे दिया है। यह खबर आते ही श्री सिंह ने निर्दल चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। लखनऊ से लौटे सुरेंद्र सिंह के साथ क्षेत्र में इतनी भीड़ उमड़ गई कि चुनाव आयोग ने मुकदमा दर्ज कर लिया।
निर्दल चुनाव लड़ने के ऐलान के दौरान शीर्ष नेतृत्व पर आरोप लगाते हुए सुरेंद्र सिंह ने कहा,’ मोदी योगी का पैर छूकर राजनीति नहीं कर सकता’ उसके बाद कुछ देर में उन्होंने फेसबुक के माध्यम से अपडेट किया कि, ‘VIP (विकासशील इंसान पार्टी) ने हमारी भावनाओ को ख्याल रखते हुए अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह नाव पर चुनाव लड़ने का आग्रह किया। हमने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए उनके चुनाव चिन्ह #नाव पर चुनाव लड़ने का फैसला किया।’
अजय शंकर पांडेय ‘कनक’-(बांसडीह विधानसभा)- अजय शंकर पांडेय बांसडीह से सक्रीय राजनीति में रहे हैं। बीते दो बार से श्री पांडेय के परिवार से उनकी भाभी नगर पंचायत रेवती की चेयरमैन रहीं। हमने कुछ स्थानीयों से बात की। दबी जुबान से स्थानीय बताते हैं कि कनक पांडेय के नेतृत्व में होने वाले चुनाव में वो ‘दिल खोल कर खर्चा करते हैं’। पहले बसपा में रहे कनक पांडेय बीते कुछ वर्षों से भाजपा में सक्रिय थे और टिकट के दावेदारी में थे। फिलहाल नाव चुनाव निशान के साथ मैदान में हैं।
विवेक सिंह कौैशिक-(फेफना विधानसभा)- विवेक सिंह कौशिक बीते कुछ वर्षों से चर्चा में रहे हैं। कुछ समय पूर्व दरोगा के साथ बदसलूकी इत्यादि के लिए जेल भी गए। सतीश चंद्र कॉलेज से छात्र राजनीति में सक्रिय विवेक सिंह कौशिक अपने वीडियोज़, बयानों और भाषणों में बेहद आक्रामक नज़र आते हैं। सोशल मीडिया पर टिकट मिलने की सूचना देते हुए विवेक सिंह कौशिक ने मुकेश साहनी को गुलदस्ता देते हुए लिखा, ‘विकासशील इंसान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंत्री श्री मुकेश सहनी जी मंत्री बिहार सरकार व प्रदेश उपाध्यक्ष श्री राजाराम बिंद जी के आशीर्वाद से फेफना विधानसभा के प्रत्याशी के रूप में…’
फिलहाल वीआईपी की एंट्री एकदम वीआईपी है। चर्चित चेहरों को चुनाव लड़ाने वाली वीआपी का हाल अब आगे क्या होगा देखने वाली बात होगी।
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बलिया में नए सिरे से होगी गंगा पुल निर्माण में हुए करोड़ों के घोटाले की जांच, नई टीम गठित
बलिया में गंगा पुल के निर्माण में हुए घोटाले के मामले से जुड़ी बड़ी अपडेट सामने आई है। अब निर्माण में हुए करोड़ों के घपले की जांच के लिए नई समिति गठित की जाएगी। समिति नए सिरे से पूरे मामले की जांच करेगी। बता दें कि विधानसभा में प्रकरण उठने के बाद पुनः जांच समिति गठित करने के आदेश दे दिए गए हैं। साथ ही कहा गया है कि ड्राइंग के मद में 16.71 करोड़ रुपये का प्रावधान शामिल था या नहीं, यह शासन ही स्पष्ट कर सकता है।
जानकारी के मुताबिक, बलिया में श्रीरामपुर घाट पर गंगा पर करीब 2.5 किमी लंबे पुल का निर्माण कराया गया है। यह काम वर्ष 2014 में मंजूर हुआ था। साल 2016 में संशोधित एस्टीमेट और 2019 में पुनः संशोधित एस्टीमेट मंजूर किया गया। कुल 442 करोड़ रूप का एस्टीमेट रखा गया, जबकि ये नियमानुसार 424 करोड़ रूपये होना चाहिए था। दोबारा संशोधित स्वीकृति में बिल ऑफ क्वांटिटी में 16.7 करोड़ का डिजाइन चार्ज के मद में अतिरिक्त प्रावधान किए जाने से निगम और शासन को यह नुकसान हुआ। जीएसटी लगाकर यह राशि करीब 18 करोड़ रुपये बनती है।
जब इस मामले में जांच हुई तो पता चला कि डिजाइन चार्ज से संबंधित दस्तावेज आजमगढ़ में मुख्य परियोजना प्रबंधक के कार्यालय से उपलब्ध नहीं कराए गए हैं और न ही कोई दस्तावेज सेतु निगम मुख्यालय में उपलब्ध हैं। ऐसे में इस मामले में अब गहराई से जांच की जायेगी।
बता दें कि सेतु निगम की ओर से भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यय वित्त समिति को प्रस्तुत किए जाने से पूर्व किसी भी परियोजना की लागत दरों का मूल्यांकन, परियोजना मूल्यांकन प्रभाग करता है। इसलिए इस संबंध में वास्तविक स्थिति प्रभाग ही स्पष्ट कर सकता है। यह भी बताया गया है कि पुनः जांच समिति की जांच प्रक्रियाधीन है।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो वायरल करने वाले युवक पर मुकदमा दर्ज
बलिया के बांसडीहरोड थाना क्षेत्र में सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो और वीडियो वायरल करने के मामले में पुलिस ने एक युवक पर नामजद मुकदमा दर्ज किया है। बताया जा रहा है कि युवक ने एक युवती के अश्लील वीडियो बना रखे हैं और बार बार उन्हें वायरल करके किशोरी को बदनाम कर रहा है। इस मामले में पीड़ित पक्ष ने आरोपी युवक के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।
जानकारी के मुताबिक, इलाके के एक गांव की रहने वाली युवती को टकरसन निवासी पवन वर्मा कई दिनों से परेशान कर रहा है। युवती का आरोप है कि कुछ दिनों पहले आरोपी ने सोशल मिडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम पर अश्लील फोटो और वीडियो डालकर बदनाम करने की कोशिश की है। पीड़िता का कहना है कि अब तक तीन बार विवाह तय हो चुका है, लेकिन पवन के चलते हर बार वह ससुराल पक्ष के लोगों के व्हाट्सएप पर अश्लील फोटो व वीडियो भेजकर शादी तुड़वा चुका है।
तीन बार युवती का रिश्ता टूट चुका है। युवती का कहना है कि आरोपी युवक किसी भी तरह से मेरी शादी नहीं होने दे रहा है। इस सम्बंध में एसओ अखिलेश चंद्र पांडेय का कहना है कि तहरीर के आधार पर आईटी एक्ट व अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है। इधर युवती के परिवारवालों ने आरोपी को कड़ी सजा देने की मांग की है।
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