बलिया स्पेशल
बलिया में बोले राज्यमंत्री, अस्पतालों पर जिसकी जहां तैनाती, वहां प्रतिदिन रहें मौजूद
बलिया: प्रभारी मंत्री अनिल राजभर ने मंगलवार को कलेक्ट्रेट सभागार में अधिकारियों के साथ बैठक कर राशन वितरण, बाढ़ से सुरक्षा की तैयारी, वैक्सिनेशन व विकास कार्यों की समीक्षा की। उन्होंने जोर देकर कहा कि ब्लॉक, तहसील, सीएचसी-पीएचसी पर जहां जिसकी तैनाती है वहां प्रतिदिन काम करें, यह सुनिश्चित कराया जाए। सभी अधिकारी फील्ड में भी जाएं। इससे अनेक समस्याएं सामने आती है जिसका समाधान कर जनता को राहत दिलाने का मौका मिलता है। उन्होंने कहा कि नई स्थापित नगर पंचायतों में डूडा द्वारा संचालित योजना व मुख्यमंत्री मलिन बस्ती योजना के तहत तेजी से कार्य कराया जाए।
बाढ़ से निपटने की तैयारियों की समीक्षा करते हुए सुरक्षात्मक कार्यों की परियोजनाओं के बारे में जानकारी ली। कहा कि बाढ़ सुरक्षा पर मुख्यमंत्री जी का भी विशेष ध्यान है। डेंजर जोन में लगातार नजर रखी जाए। उच्चाधिकारी भी ऐसे क्षेत्र में जाते रहें। विधायक सुरेंद्र सिंह ने ड्रेजिंग कार्य में आ रही बाधाओं का तत्काल निराकरण कराने की बात कही। प्रभारी मंत्री ने कहा कि राशन वितरण पूरी पारदर्शिता के साथ हो।
जो कार्रवाई हो उसकी जानकारी प्रेस में जरूर दें। डीएसओ केजी पांडेय ने जुलाई महीने में दुकानों के निरस्त व निलम्बन की कार्रवाई के बारे में बताया।यह भी बताया कि टोटल 1432 दुकानों में केवल 9 दुकाने शेष है, जहां चयन बाकी है। यह भी 15 अगस्त से पहले हो जाएगी। बिजली विभाग में ट्रांसफार्मर के बार-बार जलने की जानकारी मिलने पर प्रभारी मंत्री ने सवाल किया। कहा, मानक के साथ रिपेयर हो तो यह समस्या दूर हो जाएगी। टेक्निकल टीम से वर्कशॉप के कार्य की जांच कराकर रिपोर्ट दें।
बाढ़ प्रभावित गांव में वैक्सिनेशन हो तेज– प्रभारी मंत्री ने वैक्सिनेशन से जुड़ी पूछताछ की। बताया गया कि अब तक 3.87 लाख को पहली डोज व 94,536 को दूसरी डोज सहित कुल 4.72 हजार लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। विधायक सुरेंद्र सिंह के सुझाव पर प्रभारी मंत्री ने कहा कि ऐसे गांव, जो बाढ़ की वजह से एकदम घिरने या उन गांवों संपर्क कटने के कगार पर हैं, वहां सबसे पहले युद्ध स्तर पर वैक्सिनेशन कर लिया जाए। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के संचालन से जुड़ी जानकारी ली। कहा कि गोल्डन कार्ड बनाने में जिले की स्थिति ठीक नहीं, इसमें सुधार लाया जाए। पर्याप्त धन आने के बाद भी सीएचसी-पीएचसी की स्थिति ठीक नहीं है, इसकी भी समीक्षा करने को कहा।
पंचायत भवन पर रोस्टर के हिसाब से बैठें लेखपाल-सचिव- मंत्री उपेंद्र तिवारी ने कहा कि पंचायत भवन पर अनिवार्य रूप से लेखपाल, सचिव एक या दो दिन बैठें। वहां बैठने का रोस्टर निर्धारित हो जाए। बिट का सिपाही भी वहां समय निर्धारित कर बैठे। जिस गांव के लिए जनसेवा केंद्र बना हो, वह उसी गांव में जरूर स्थापित हो। कहीं जगह न हो तो पंचायत भवन पर ही रहें, ताकि जनता का ऑनलाइन कार्य आसानी से वहीं हो सके। गांव में हुए विकास कार्यों का वर्षवार विवरण वाल पेंटिंग के माध्यम से सार्वजनिक रखा जाए, ताकि गांव के लोगों को उसकी पूरी जानकारी हो।
विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा कि बैरिया व मुरली छपरा ब्लॉक में जो कार्य हुए हैं, उसकी सूची दे दिया जाए। उसकी जमीनी हकीकत परख कर जहां कमी होगी उसकी जानकारी दी जाएगी, ताकि दोषियों पर कार्रवाई हो सके। बैठक में विधायक सिकन्दरपुर संजय यादव, भाजपा जिलाध्यक्ष जयप्रकाश साहू, जिलाधिकारी अदिति सिंह, सीडीओ प्रवीण वर्मा, एसडीएम सदर जुनैद अहमद, डिप्टी कलेक्टर सीमा पांडेय समेत अन्य जनपद स्तरीय अधिकारी थे।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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