देश
नेशनल मेडिकल कमीशन बिल- ‘झोलाछाप 6 महीने का कोर्स कर कहलाएंगे डॉक्टर’
डॉक्टरों के भारी विरोध के बाद राज्यसभा में आज नेशनल मेडिकल कमीशन बिल 2019 पास कर दिया गया है. इस बिल के पास होते ही देश के डॉक्टर लंबी हड़ताल पर जाने की योजना बना रहे हैं. गुरुवार को बिल के विरोध में जहां 100 डॉक्टरों को आईपीसी की धारा 144 के उल्लंघन को गिरफ्तार किया गया, बाद में उन्हों छोड़ दिया गया.
इस बिल के विरोध में दिल्ली के लगभग सभी सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने हड़ताल पर जाने की बात कही है. राम मनोहर लोहिया, हिंदूराव, एम्स, सफदरजंग, जीटीबी के डॉक्टरों ने हड़ताल को तेज करते हुए इमर्जेंसी और ओपीडी को बंद रखा.
डॉक्टरों के काम कर रही संस्था फोरडा, आईएमए और डीएमसी का कहना है कि इस विधेयक के आने से मेडिकल कॉलेजों में होने वाली पढ़ाई महंगी हो जाएगी. साथ ही मेडिकल कॉलेजों में प्रबंधन की सीटें 15 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दी गई हैं यानि कोटा और डोनेशन से मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन फीस बढ़ जाएगी.
इस बिल के पास होने पर केंद्रीय मंत्री हर्ष वर्धन ने कहा कि राज्यसभा में यह बिल पास हो गया है, इसका फायदा एमबीबीएस के छात्रों और डॉक्टरों को होगा. उन्होंने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार में यह बिल बड़े रिफॉर्म के रूप में गिना जाएगा.
डॉक्टरों का विरोध यहीं खत्म नहीं हो रहा है. उनका आरोप है कि अब पांच साल एमबीबीएस की डिग्री लेने वाले डॉक्टर और छह महीने का ब्रिज कोर्स कर झोला छाप एक समान हो जाएंगे. महज छह महीने के फार्मेसी कोर्स के बाद उन्हें डॉक्टर माना जाएगा.
राज्यसभा में विपक्षी दलों ने भी उठाई इसके खिलाफ आवाज
राज्यसभा में जब इस बिल पर बहस हो रही थी तो विपक्षी दलों ने भी इसका विरोध किया. राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सरकार छह महीने के ब्रिज कोर्स के बाद कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर के नाम पर 70 फीसदी लोगों की जान से खेलने की कोशिश कर रही है. आज़ाद ने यह भी कहा कि डॉक्टर के साथ काम करने से कोई डॉक्टर नहीं हो जाता है. आपत्ति दर्ज कराते हुए आजाद ने यह भी कहा कि किसी के भी हाथों देश के गांवों में दवा नहीं बंटवाई जा सकती है.
झोलाछाप 6 महीने के कोर्स के बदा कर सकेंगे प्रैक्टिस
डॉक्टरों का यह भी कहना है कि इस बिल में मौजूदा धारा-32 के तहत करीब 3.5 लाख लोग जिन्होंने चिकित्सा की पढ़ाई नहीं की है उन्हें लाइसेंस मिल जाएगा. इससे लोगों की जान खतरे में पड़ेगी. बिल का विरोध कर रहे सुभाष झा ने कहा, इसके मुताबिक अब आयुर्वेद, यूनानी डॉक्टर, नर्स, फार्मासिस्ट और पैरामेडिकल स्टाफ को भी एलोपैथिक दवाओं के साथ प्रैक्टिस करने का सर्टिफिकेट मिल जाएगा.
वहां मौजूद अन्य डॉक्टरों ने कहा कि फिर पांच साल डॉक्टरी की पढ़ाई करने की क्या जरूरत है? जब बराबरी का हक यूनानी, आयुर्वेद और झोलाछाप को दिया जा रहा है. बता दें कि इस बिल के पास होने के बाद झोलाछाप डॉक्टरों को भी मिल जाएगी प्रशिक्षित डॉक्टरों की उपाधि.
देशभर में अब एक परीक्षा, मेडिकल कॉलेज का रेगुलेशन केंद्र के हाथों में
डॉक्टरों का इस बिल को लेकर यह भी कहना है कि इस कानून के लागू होते ही पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए सिर्फ एक ही परीक्षा होगी जिसका नाम होगा नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET). अभी तक यह अथॉरिटी एम्स के हाथ में थी.
इस बिल का विरोध कर रहे डॉक्टरों का यह भी कहना है कि अभी तक निजी कॉलेजों की फीस राज्य सरकारों के हाथ में थी लेकिन इस कानून के आते ही केंद्र सरकार इसे अपने हाथों में ले लेगी. सरकार मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिकार को खत्म कर नए मेडिकल काउंसिल का निर्माण करेगी.
यह जानना जरूरी है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अफसरों की नियुक्ति चुनाव के द्वारा की जाती थी लेकिन इस कानून के आने के बाद मेडिकल कमीशन में सरकार द्वारा गठित एक कमेटी अधिकारियों का चयन करेगी.
नेशनल मेडिकल कमीशन के हाथों में अधिक शक्ति दी जाएगी और यह तय करेगा की निजी मेडिकल संस्थानों की फीस कितनी होगी. हालांकि, वह ऐसा बस 40 फीसदी सीटों के लिए ही करेगा. 50 फीसदी या उससे ज्यादा सीटों की फीस निजी संस्थान खुद तय कर सकते हैं.
इस बिल का विरोध कर रहे डॉक्टरों का यह भी कहना है कि सरकार एक ब्रिज कोर्स कराएगी और इसको करने के बाद आयुर्वेद, होम्योपैथी डॉक्टर भी एलोपैथिक इलाज कर सकेंगे.
विदेश से पढ़कर आए डॉक्टरों की तर्ज पर अब प्रैक्टिस के लिए देना होगा टेस्ट
मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अब डॉक्टरों को मेडिकल की प्रैक्टिस के लिए टेस्ट देना होगा. यह परीक्षा अभी तक विदेश में पढ़कर आए डॉक्टरों को देना होता था. अब देश में पढ़ाई करने वाले डॉक्टर इस परीक्षा को पास करते हैं तभी उन्हें मेडिकल प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस दिया जाएगा.
देश
बलिया DM ने किया कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण, बलिया में मुख्यमंत्री के दौरे को लेकर दिए ये निर्देश
बलिया जिलाधिकारी रविंद्र कुमार बांसडीह मैरीटार मार्ग स्थित पिंडहरा गांव में बघौली मौजे में आयोजित होने वाले महिला सम्मेलन की तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने जनसभा स्थल, हैलीपेड,सेफ हाउस और रास्ते की मरम्मत और घास फूस एवं झाड़ियों की कटाई एवं साफ-सफाई के निर्देश दिए।
जिलाधिकारी के निर्देश के क्रम में लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता ने अपनी टीम लगाकर उपलब्ध भूमि की पैमाइश करवाकर जनसभा स्थल और हैलीपेड के लिए जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित की।
इस कार्यक्रम स्थल के लिए धान की फसल को कटवा लिया गया है और बचे धान की फसल को कटवा लिया जाएगा। इसके बाद जिलाधिकारी ने पास स्थित लोक निर्माण विभाग के गेस्ट हाउस की रंगाई पुताई करवाकर, शौचालय सहित अन्य व्यवस्थाएं दुरुस्त करने के निर्देश अधिशासी अभियंता को दिए।
जिलाधिकारी ने कार्यक्रम स्थल के मंच से 60 मीटर दूर हैलीपेड और जनसभा स्थल से कुछ मीटर की दूरी पर पार्किंग की व्यवस्था करने करने के निर्देश दिए। जिलाधिकारी ने मौके पर उपस्थित अधिकारियों को मुख्यमंत्री के आगमन की तैयारियों में तेजी लाने और अलर्ट मोड में रहने के निर्देश दिए।
इस निरीक्षण के दौरान सीआरओ त्रिभुवन, अपर पुलिस अधीक्षक दुर्गा शंकर तिवारी,एसडीएम राजेश गुप्ता सहित अन्य अधिकारी और लोक निर्माण विभाग के अधिकारी मौजूद थे।
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भाजपा नेता राजेश सिंह दयाल ने परेशान हाल बुजर्ग महिला का कराया इलाज, जीता सबका दिल !
सलेमपुर/ बलिया : सलमेपुर लोकसभा के मशहूर समाजसेवी राजेश सिंह दयाल के एक काम ने लोगों का दिल जीत लिया। यूं तो राजेश सिंह लगातार अपने कामों सामाजिक कामों की वजह से चर्चा में रहते हैं। लेकिन इस बार जो हुआ उसकी हर जगह सराहना हो रही है।
बता दें कि सलेमपुर के रहने वाले अरुण चौहान की मां काफी बीमार थीं। उन्हें किडनी और लिवर में कुछ समस्या थी। वे अपनी मां को लेकर लखनऊ पीजीआई पहुंचे, लेकिन वहां हॉस्पिटल स्टाफ छुट्टी पर होने के चलते उनकी मां का इलाज नहीं हो पाया।
इसके बाद परेशान अरुण ने राजेश सिंह को फोन दिया। राजेश सिंह दयाल ने तत्परता दिखाते हुए फौरन महिला को पीजीआई लखनऊ में भर्ती करवाया और उनका इलाज करवाया। राजेश सिंह पिंडी में लगे मुफ्त स्वास्थ्य केंद्र में अरुण चौहान से मिले थे। इसी दौरान उन्होंने उनकी मां का इलाज पीजीआई में करवाने का वादा किया था। राजेश सिंह ने जो वादा किया, उसे निभाया भी और महिला का इलाज करवाया।
गौरतलब है कि सलेमपुर लोक सभा में स्वास्थ व्यवस्था बेहद लचर है। जिसको देखते हुए राजेश सिंह की संस्था दयाल फाउंडेशन लागतार इस इलाके में स्वास्थ कैंप आयोजित कर रही है। इस संस्था से अबतक 1 लाख लोग फायदा उठा चुके हैं। ये कैंप सभी के लिए एकदम फ्री लगाया जाता है। अबतक ये कैंप बलिया के बेलथरा रोड, सिकदंरपुर , रेवती, वहीं देवरिया के भाटपार , पिंडी , सलेमपुर में आयोजीत हो चुका है। दयाल फाउंडेशन की तरफ से बताया गया है कि आगामी नवम्बर माह में बांसडीह , नगरा समेत कई इलाकों में कैंप आयोजित किया जाएगा।
देश
‘इण्डिया’ गठबंधन में दलित लीडरशीप वाले चेहरे गायब!
जयराम अनुरागी
लोकसभा 2024 के चुनाव को लेकर देश के दो प्रमुख गठबंधन एनडीए और इण्डिया अभी से अपना – अपना कुनबा बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दिये है। केन्द्र में सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने नये- नये साथियों की तलाश कर अपनी संख्या 38 तक कर ली है। वहीं दुसरी तरफ देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने 23 जून को पटना में एवं 17 व 18 जुलाई को कर्नाटक में बैठक कर 26 दलों की ” इण्डिया ” नामक गठबंधन बनाकर सतारुढ़ भाजपा की नींद उड़ा दी है।इसके बावजूद भी विपक्ष के लिए भाजपा को रोकने की राह आसान नहीं दिख रही है , क्योंकि देश की लगभग 20 प्रतिशत आबादी वाले दलित लीडरशीप वाले राजनैतिक दलो के चेहरे पटना एवं कर्नाटक की बैठक से गायब थे । दलित समुदाय से आने वाले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे उस बैठक में जरुर थे , लेकिन वह दलितों के प्रतिनिधि न होकर कांग्रेस के प्रतिनिधि थे।
देश की कुल 542 लोकसभा सीटों मे से 84 सींटे अनुसूचित जाति और 47 सींटे अनुसूचित जन जाति के लिए आरक्षित है और देश की 160 सीटों पर दलित मत सीधे निर्णायक भूमिका में है । इतनी बड़ी आबादी का ” इण्डिया ” गठबंधन में कोई प्रतिनिधि नहीं है, जो एक गम्भीर मामला है। देखा जाये तो समाजवादी पार्टी , राष्ट्रीय जनता दल , जनता दल ( यूनाईटेड) ,सीपीएम , टीएमसी , जनता दल ( सेक्युलर) , टीडीपी , टीआरएस, एनसीपी , अकाली दल , आम आदमी पार्टी और एआईडीएमके में दलित समाज का कोई ऐसा नहीं दिख रहा है , जिनकी राष्ट्रीय राजनीति में कोई चर्चा होती हो । विपक्षी दलों की इस दलित विरोधी मानसिकता के चलते देश के दलित असमंजस में दिख रहे है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसके साथ रहना है।
अब तक विपक्ष में जो राजनैतिक परिस्थितियां बनी है उसमें दलित चेहरे वैसे ही गायब है , जैसे 2020 के बिहार विधानसभा और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से गायब थे। यही कारण है कि बिहार में तेजस्वी यादव और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनते – बनते रह गये थे। यदि उस समय बिहार में तेजस्वी यादव हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ( हम) के जीतनराम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी( वीआइपी) के मुकेश साहनी तथा उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम) के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद को साथ ले लिए होते तो चुनाव परिणाम कुछ और होते । बिहार और उत्तर प्रदेश में दलितों की उठेक्षा कोई नयी बात नहीं है। बिहार में रामबिलास पासवान की भी वहां के तथाकथित पिछड़ो के मसीहा लगातार उपेक्षा करते रहे है। यही कारण है कि रामबिलास पासवान अपना अस्तित्व बचाने के लिए न चाहते हुए भी भाजपा गठबंधन में शामिल होने को मजबुर होते रहे है। वही गलती आज विपक्ष के नेता कर रहे है , जो विपक्षी एकजुटता के लिए कहीं से भी शुभ नहीं है।
सबको पता है कि बहुजन समाज पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी हैऔर इसका जनाधार कमोवेश देश के तेरह राज्यों में है। इसकी मुखिया सुश्री मायावती देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चार – चार बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी है। अपनी लगातार उपेक्षा देख बसपा सुप्रीमो अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। यदि समय रहते विपक्षी नेताओं ने मायावती से सम्पर्क साधा होता तो शायद ये विपक्षी खेमे में आ सकती थी । इनके बाद देश में दलित युवाओं के आइकान बन चुके आजाद समाज पार्टी( कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर आज़ाद है , जिनके नाम पर देश के दलित नौजवान अपनी जान छिड़कते है , जिन्हें टाइम पत्रिका ने फरवरी 2021 में 100 उभरते नेताओं की अपनी वार्षिक सूची में शामिल किया है। हालांकि इनके पास कोई सांसद और विधायक नहीं है , लेकिन ये देश के करोड़ो दलितों को किसी के साथ जोड़ने की कूबत रखते है। अभी हाल ही में 21 जुलाई को जंतर – मंतर पर लाखों की भीड़ जुटाकर अपनी ताकत को दिखा चुके है ।
इन दोनों दलित नेताओें के बाद देश में दलितों के लिए एक और बड़ा नाम है प्रकाश राव अम्बेडकर का , जो भारतीय संविधान के जनक भारत रत्न बाबा साहब डा० भीमराव अम्बेडकर के प्रपौत्र है और ये देश के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रह चुके है। देश के करोड़ो दलित इनके लिए भी अपनी जान छिड़कते हैं । ये फिलहाल भारतीय बहुजन महासंघ के संस्थापक अध्यक्ष है। यदि विपक्ष इन तीनों दलित नेताओं को अपने साथ जोड़ने में सफल हो जाते है तो विपक्ष की 2024 की राह बहुत हद तक आसान हो सकती है। इसके लिए विपक्ष के नेताओं को अपना दिल थोड़ा बड़ा करना होगा ।
इन दोनों बैठको में कई दलो से एक ही परिवार के कई – कई सदस्य शामिल हुए थे , लेकिन इसके आयोजकों ने विपक्ष के किसी दलित लीडरशीप वाले नेता को शामिल करना ऊचित नहीं समझा । दलित चिंतक लक्ष्मण सिंह भारती का कहना है कि आजादी के 75 साल बीतने के बावजूद आज भी दलितों के प्रति मानसिकता में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। गांव के दलितों के साथ अलग भेदभाव , दलित ब्यूरोक्रेट के साथ अलग भेदभाव और दलित राजनेताओं के साथ अलग तरह का भेदभाव आज भी जारी है। केवल उसका स्वरुप बदला है। यदि विपक्ष के नेता वास्तव में भाजपा गठबंधन को शिकस्त देना चाहते है तो उसमें दलित हेडेड लीडरशीप को ससम्मान शामिल करना चाहिए । यदि हो सके तो विपक्ष के तरफ से किसी दलित प्रधानमंत्री की घोषणा भी करनी चाहिए । यदि ऐसा होता है तो देश के दलित 1977 के बाद दुसरी बार दलित प्रधानमंत्री बनते देख इण्डिया गठबंधन के साथ तेजी से जुड़ सकते है , जिसका लाभ राष्टीय स्तर पर विपक्ष को मिल सकता है ।
लेखक – दलित सामाजिक संगठनों के प्रादेशिक नेटवर्क ” दलित एक्शन सिविल सोसाइटी उत्तर प्रदेश ” के अध्यक्ष है तथा ” डा० अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2002 ” राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं पत्रकार है ।
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