बलिया स्पेशल
‘मैं आपको अलग से बताऊंगा कि मैंने यह फैसला क्यों लिया’
संसद के गलियारे में इस बात को लेकर काफी चर्चा हो रही थी कि आखिर समाजवादी पार्टी के सांसद नीरज शेखर ने अपना इस्तीफा क्यों दिया और इसके पीछे कारण क्या हो सकते हैं..संसद के संसदीय कक्ष में इस बात पर सांसद गहन चर्चा में दिखे. कुछ ने कहा कि यह कैसे संभव हो सकता है, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सांसद बेटे के आगे ऐसी क्या मजबूरी थी कि उन्होंने एक धुरी की राजनीति करते हुए एकदम से दूसरी धुरी की राजनीति का दामन थाम लिया. खुद नीरज शेखर भी अपने पुराने दोस्तों के सामने थोड़े झेंपे से नजर आ रहे थे..कई लोगों ने उनको कहते सुना कि मैं आपको अलग से बताऊंगा कि मैंने यह फैसला क्यों लिया.
नीरज शेखर ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया, समाजवादी पार्टी छोड़ी और बीजेपी का दामन थाम लिया. कईयों के लिए यह फैसला चौंकाने वाला था. खासकर उन लोगों के लिए जो उनके पिता स्वर्गीय चंद्रशेखर जी की राजनीति के प्रशंसक रहे हैं. मगर आप यदि नीरज शेखर के राजनीतिक सफर को देखें तो उनके इस फैसले की नींव उसी दिन पड़ गई थी जिस दिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनको बलिया से लोकसभा का टिकट नहीं देने का फैसला लिया था. नीरज शेखर को लगता है कि अखिलेश यादव ने उनके साथ धोखा किया. जबकि अखिलेश यादव को लगता है कि नीरज शेखर ने उनके साथ धोखा किया. वजह यह है कि समाजवादी पार्टी ने बलिया से नीरज शेखर, जो कि राजपूत हैं, को टिकट न देकर सनातन पांडे, जो ब्राह्मण हैं, को मैदान में उतारा था. सनातन पांडे बीजेपी के वीरेन्द्र मस्त से केवल 17 हजार मतों से हार गए थे. अब अखिलेश यादव को लगता है कि यदि नीरज शेखर ने सपा उम्मीदवार की मदद की होती तो सनातन पांडे जीत सकते थे. वहीं नीरज का मानना था कि उन्हें टिकट क्यों नहीं दिया गया, इस पर समाजवादी नेताओं का कहना है कि 2014 में लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद पार्टी उन्हें राज्यसभा में लेकर आई थी जिसका कार्यकाल 2020 तक बचा हुआ है.
मगर राजनीति में जो दिखता है दरअसल वह होता नहीं है. कारण कई हो सकते हैं..नीरज शेखर को लगा कि उनका राज्यसभा का कार्यकाल 2020 में खत्म हो रहा है, फिर उसके बाद क्या? क्योंकि उनको भी मालूम है कि समाजवादी पार्टी के पास उत्तर प्रदेश से केवल एक ही सीट आने वाली है वो उन्हें मिलेगी या नहीं इसका कोई भरोसा नहीं था, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही उनकी अखिलेश यादव से कोई बातचीत नहीं हुई थी. ऐसे में पार्टी में उनकी स्थिति कमजोर होती जा रही थी.
दूसरी तरफ बीजेपी राज्यसभा में अपना आंकड़ा बहुमत तक बढ़ाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है. बीजेपी ने राज्यसभा में सबसे पहले तेलगुदेशम को तोड़कर चार सांसदों को पार्टी में शामिल करवा लिया फिर इंडियन नेशनल लोकदल के इकलौते सांसद को भी अपनी पार्टी में ले लिया. इस तरह से बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ राज्यसभा में 116 तक पहुंच गई है और बहुमत के लिए उसको पांच सांसद और चाहिए. वैसे बीजू जनता दल के सात, जगन रेड्डी की पार्टी के दो और टीआरएस के छह सांसदों को मिलाकर 15 सांसदों का एक गुट है जो सरकार को कई मुद्दों पर बचाता रहा है.
मगर बीजेपी अपने बूते पर बहुमत के करीब जाना चाहती है. और अब वह सांसदों का राज्यसभा से इस्तीफा कराकर राज्यसभा की पूरी संख्या ही कम करना चाहती है जिससे बहुमत का आंकड़ा भी कम हो जाए. इसी के तहत नीरज शेखर का इस्तीफा हुआ है और यह भी खबर है कि बीजेपी दो और सपा सांसदों से संपर्क में है, जो आगे आने वाले दिनों में इस्तीफा दें. रही बात नीरज शेखर की तो उनके कैंप का कहना है कि आज के राजनैतिक दौर में बीजेपी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो बेहतर रिटर्न दे रही है. जैसे नीरज शेखर को बीजेपी अपने टिकट पर राज्यसभा में लाने वाली है और यही वादा उनसे भी किया जा रहा है जो राज्यसभा से इस्तीफा दे सकते हैं. जाहिर है निशाने पर सपा ही नहीं और पार्टियां भी हो सकती हैं. मगर जैसे संसद के गलियारे में इस बात पर काफी चर्चा है कि आज की तारीख में जो बेहतर रिटर्न दे उसी के साथ हो लेने में भलाई है, यही आज की राजनीति का ट्रेंड है.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में ‘सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर – पॉलिटिकल न्यूज़’ हैं…)
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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बलिया में नक्सलियों के 11 ठिकानों पर NIA ने मारा छापा
बलिया में एनआईए ने नक्सलियों के 11 ठिकानों पर शनिवार को छापा मारा, जहां से तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और नक्सली साहित्य बरामद किया गया है। एनआईए ने यह कार्रवाई पिछले साल यूपी एटीएस द्वारा बलिया में पकड़े गए पांच नक्सलियों पर दर्ज केस को टेकओवर करने के बाद की है।
बता दें कि यूपीएटीएस ने 15 अगस्त, 2023 को बलिया से नक्सली संगठनों में नई भर्तियां करने में जुटी तारा देवी के साथ लल्लू राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राम मूरत राजभर व विनोद साहनी को गिरफ्तार किया था। आरोपितों के कब्जे से नाइन एमएम पिस्टल भी बरामद हुई थी। जांच में सामने आया है कि तारा देवी को बिहार से बलिया भेजा गया था। वह वर्ष 2005 में नक्सलियों से जुड़ी थी और बिहार में हुई बहुचर्चित मधुबन बैंक डकैती में भी शामिल थी।
इसके अलावा लल्लू राम उर्फ अरुन राम, सत्य प्रकाश वर्मा, राममूरत तथा विनोद साहनी की गिरफ्तारी हुई थी। ये सभी बिहार के बड़े नक्सली कमांडरों के संपर्क में थे।
एनआईए की अब तक की जांच के अनुसार, प्रतिबंधित संगठन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत उत्तरी क्षेत्र अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए सक्रिय प्रयास कर रहा है। जांच एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि भाकपा (माओवादी) के नेता, कार्यकर्ताओं और इससे सहानुभूति रखने वाले, ओवर ग्राउंड वर्कर (ओजीडब्ल्यू) इस क्षेत्र में संगठन की स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
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