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बलिया कोर्ट में भोजपुरी स्टार पवन सिंह से बदसलूकी, बाउंसर से धक्का-मुक्की

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बलिया कोर्ट में भोजपुरी स्टार पवन सिंह से बदसलूकी का मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि पवन सिंह का पत्नी ज्योति से विवाद चल रहा है। वह तलाक के मामले में परिवार न्यायालय पहुंचे थे। इस दौरान दोनों पक्षों में विवाद हो गया।

पवन सिंह जैसे ही कोर्ट से निकले वहाँ मौजूद जनता ने उनके साथ बदसलूकी की।निजी बाउंसरों से खूब धक्का-मुक्की हुई, उन्हें मारने के लिए दौड़ा लिया गया। यह विवाद वकीलों से शुरू हुआ।

जानकारी के मुताबिक छह महीेने पहले पवन सिंह के खिलाफ उनकी पत्नी ने कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप है कि मानसिक उत्पीड़न के साथ गर्भपात के लिए मजबूर करने और आत्महत्या के लिए वह पत्नी को उकसा रहे थे।

इसी मुकदमे में शनिवार को परिवार न्यायालय में पेश हुए। कोर्ट बंद था, इसलिए पति-पत्नी जज रंजना सिंह के चेेंबर में हाजिर हुए। यहां से निकलते वक्त वहां मौजूद जनता द्वारा पवन के साथ बदसलूकी हुई। विवाद की शुरुआत वकीलों से हुई।

अधिवक्ताओं का कहना था कि पवन के निजी सुरक्षाकर्मी कोर्ट के अंदर दाखिल हो गए थे, यह नियम के खिलाफ है। उन्हें मना किया गया तो वह उलझ गए। बदतमीजी करने लगे।

हालांकि विवाद की खबर लगते ही मौके पर पहुंची पुलिस ने मामले को शांत कराया।

बता दें कि पवन की पत्नी ज्योति सिंह बलिया के मिड्ढी की निवासी हैं। उन्होंने छह महीेने पहले कोतवाली में पवन के ख्रिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, इसमें उन्होंने मानसिक उत्पीड़न, गर्भपात के लिए मजबूर करने और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया है।

मामले में पिछले दिनों कोर्ट ने पवन को पेश होने का आदेश दिया था। अब मामले की सुनवाई 20 नवंबर को होगी। बता दें कि पवन की पत्नी ज्योति ने कहा है कि उनकी शादी छह मार्च 2018 को अभिनेता से हुई थी। लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद पवन सिंह व ससुराल वालों ने उनके लुक को लेकर ताना देना शुरू कर दिया। उसकी सास ने उसके मामा से मिले करीब 50 लाख रुपये छीन लिए। प्रताड़ित करने के अलावा आत्महत्या के लिए उकसाया जा रहा है।

ज्योति ने 22 अप्रैल को फैमिली कोर्ट में अभिनेता के खिलाफ भरण-पोषण का मुकदमा दायर किया है। गौरतलब है कि पवन ने 2014 में नीलम से शादी की थी जिसने 2015 में आत्महत्या कर ली थी।

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जानें कौन हैं UP बोर्ड 10वीं के बलिया टॉपर, जिन्होंने जिले का नाम किया रोशन!

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उत्तरप्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद ने 10वीं की बोर्ड परीक्षाओं का परिणाम जारी कर दिया है। इन परिणामों में बेटियों ने एक बार फिर से बाजी मारी है। हाईस्कूल में सीतापुर की प्राची निगम और इंटरमीडिएट में यहीं के शुभम वर्मा ने टॉप किया है। दोनों टॉपर एक ही स्कूल के विद्यार्थी हैं।

बलिया के युवा भी परिणामों में छाए रहे। पूरे जिले में कुल 29 छात्र—छात्राएं टॉप टेन में शामिल हैं और इनमें सबसे ज्यादा 19 छात्राएं है। इस प्रकार बेटियों ने बेटों को पछाड़ते हुए अपना दबदबा कायम किया है।

तिलेश्वरी देवी विद्यालय की एकता वर्मा पूरे जनपद में प्रथम स्थान अर्जित किया है, उन्होंने 97 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं। 96.67 प्र​तिशत अंक पाकर रामसिद्ध इंटर कॉलेज की श्रेयांशी उपाध्याय दूसरा स्थान हासिल किया। इसी प्रकार 96.67 अंक पाकर आर्य भट्ट विद्यालय के अरूण कुमार भी दूसरे स्थान पर रहे, जबकि 96.33 प्रतिशत अंक पाकर इसी विद्यालय के विपुल चौहान तीसरा स्थान हासिल किया।

वहीं चौथे स्थान पर अभिजीत कुमार चौहान रहे, उन्होंने 96.17 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं। इसी प्रकार आदित्य शर्मा भी 96.17 पाकर चौथा स्थान हासिल किया। वहीं 96 प्रतिशत अंक पाकर शिवानी वर्मा, रंजू कौशल व पियुष मौर्य पांचवें स्थान पर रहे। इसी प्रकार 95.83 अंक पाकर शिखा चौरसिया छठवें स्थान ​हासिल किया। जबकि 95.67 अंक पाकर दिशा राज, वंदना, श्वेता सिंह व लवली आनंद सातवें स्थान पर रही। 95.50 प्रतिशत अंक पाकर साक्षी, सिमरन यादव, गौरी वर्मा, अनामिका चौहान व आकाश यादव आठवें स्थान पर रहे।

जबकि 95.33 प्रतिशत अंक पाकर अदिति प्रजापति, गणेश कुमार, अमित यादव, भव्य तिवारी, मिंटू यादव नौवें स्थान पर रहे। जबकि 95.17 अंक पाकर निधि वर्मा, अभिमान शर्मा, ज्योति, शिवांगी यादव व अंशिका यादव दसवें स्थान हासिल किया।

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बलिया में नए सिरे से होगी गंगा पुल निर्माण में हुए करोड़ों के घोटाले की जांच, नई टीम गठित

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बलिया में गंगा पुल के निर्माण में हुए घोटाले के मामले से जुड़ी बड़ी अपडेट सामने आई है। अब निर्माण में हुए करोड़ों के घपले की जांच के लिए नई समिति गठित की जाएगी। समिति नए सिरे से पूरे मामले की जांच करेगी। बता दें कि विधानसभा में प्रकरण उठने के बाद पुनः जांच समिति गठित करने के आदेश दे दिए गए हैं। साथ ही कहा गया है कि ड्राइंग के मद में 16.71 करोड़ रुपये का प्रावधान शामिल था या नहीं, यह शासन ही स्पष्ट कर सकता है।

जानकारी के मुताबिक, बलिया में श्रीरामपुर घाट पर गंगा पर करीब 2.5 किमी लंबे पुल का निर्माण कराया गया है। यह काम वर्ष 2014 में मंजूर हुआ था। साल 2016 में संशोधित एस्टीमेट और 2019 में पुनः संशोधित एस्टीमेट मंजूर किया गया। कुल 442 करोड़ रूप का एस्टीमेट रखा गया, जबकि ये नियमानुसार 424 करोड़ रूपये होना चाहिए था। दोबारा संशोधित स्वीकृति में बिल ऑफ क्वांटिटी में 16.7 करोड़ का डिजाइन चार्ज के मद में अतिरिक्त प्रावधान किए जाने से निगम और शासन को यह नुकसान हुआ। जीएसटी लगाकर यह राशि करीब 18 करोड़ रुपये बनती है।

जब इस मामले में जांच हुई तो पता चला कि डिजाइन चार्ज से संबंधित दस्तावेज आजमगढ़ में मुख्य परियोजना प्रबंधक के कार्यालय से उपलब्ध नहीं कराए गए हैं और न ही कोई दस्तावेज सेतु निगम मुख्यालय में उपलब्ध हैं। ऐसे में इस मामले में अब गहराई से जांच की जायेगी।

बता दें कि सेतु निगम की ओर से भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यय वित्त समिति को प्रस्तुत किए जाने से पूर्व किसी भी परियोजना की लागत दरों का मूल्यांकन, परियोजना मूल्यांकन प्रभाग करता है। इसलिए इस संबंध में वास्तविक स्थिति प्रभाग ही स्पष्ट कर सकता है। यह भी बताया गया है कि पुनः जांच समिति की जांच प्रक्रियाधीन है।

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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत

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आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.

बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.

चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,

लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.

1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.

‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,

जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि

सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.

(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)

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