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रामगोविंद चौधरी : जिले में चंद्रशेखर के बाद समाजवाद का चेहरा!

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सजपा छोड़कर सपा में शामिल होने को चंद्रशेखर ने ही कहा था

रामगोविंद चौधरी बलिया के समाजवादी धुरी हैं। चंद्रशेखर से वर्तमान समाजवादियों तक, सब के बीच सामंजस्य के साथ नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी आठवीं बार विधायक हैं। पूर्वांचल की समाजवादी राजनीति में रामगोविंद चौधरी हर दौर में प्रासंगिक रहे। छात्र राजनीति में छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे और अपनी पार्टी की सरकार में शिक्षा मंत्री बने। 68 वर्ष की अवस्था में राम गोविंद चौधरी लखनऊ और अपने क्षेत्र में नियमित आवाजाही करते रहते हैं। बाईपास सर्जरी के बाद कोविड से संक्रमित रहे रामगोविंद चौधरी आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर खासे तैयार हैं। बलिया ख़बर  से एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान वह सरकार बनने को लेकर भी आश्वस्त दिखे। समाजवाद की नई-पुरानी सभी तरह की राजनीति देख चुके रामगोविंद चौधरी से ने विस्तार से बात की है। अपने ऑडिओ इंटरव्यू में श्री चौधरी ने अपने शुरूआती दौर के बारे में विस्तार से बताया।

छात्र राजनीति और छात्रसंघ

रामगोविंद चौधरी छात्र राजनीति में सक्रिय थे। मुरली मनोहर टाउन स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय में 1972-73 में महामंत्री और 1973-74 में छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। तब तक किसी पार्टी से जुड़े नहीं रहे। उसी वक्त जेपी के नेतृत्व में छात्र युवा आंदोलन चला, जो संपूर्ण क्रांति के लिए छात्र-युवा संघर्ष समितियों का निर्माण हो रहा था। उससे जुड़े और अगुआई की। अपने सबसे शुरुआती दौर को याद करते हुए श्री चौधरी बताते हैं,’तब जय प्रकाश जी ने मुझे और स्व. गौरी भइया जी को छात्र-युवा संघर्ष समिति का सदस्य बनाया। हमारा रुझान समाजवाद के प्रति वहीं से बढ़ा। इमरजेंसी लगी। हमने तब भी आंदोलन छ: महीने चलाया।

हालांकि हम और गौरी भइया पहले दिन ही गिरफ्तार हो गए। मैं थाने से भाग गया और छ: महीने तक जेल भरो आंदोलन चलवाया। इसी बीच उत्तर प्रदेश छात्र युवा संघर्ष समिति का यह निर्णय हुआ कि अब स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों को बंद कराया जाए। इसी आंदोलन में मेरी गिरफ्तारी हुई। इसके बाद 19 महीना जेल में रहा।’

पूर्व मंत्री स्वर्गीय गौरी भैया के साथ राम गोविन्द चौधरी

जिले से उस वक्त रामगोविंद चौधरी के साथ ही सक्रीय सभी नेता गिरफ्तार हो गए थे। श्री चौधरी याद करते हैं, ‘मेरे साथ जिले के गौरी भइया, राजधारी सिंह, वंश बहादुर सिंह, विश्वंभर सिंह, बाबू शिवमंगल सिंह, विजेंद्र मिश्र, हरेराम चौधरी सहित 200 से अधिक लोग गिरफ्तार थे।’

चंद्रशेखर से मिलना

रामगोविंद चौधरी जेल से आखिरी दिन निकले। वह जेल के आखिरी राजनैतिक कैदी बचे थे। वो बताते हैं कि उस दिन चंद्रशेखर का पर्चा दाखिला था। उन्हें जेल से छुड़ाने बहुत से लोग आए और जब जेल से निकलने के बाद भीड़ उन्हें ले जा रही थी तब चंद्रशेखर ने उत्सुक्तापूर्वक जानना चाहा। इसके बाद चंद्रशेखर ने उन्हें बुलवाया और अपने गाड़ी में उन्हें घर ले गए, खाना खिलाया और तहसीली स्कूल की एक सभा में ले गए। इस सभा के बारे में बताते वक्त श्री चौधरी बहुत खुश होकर बताते हैं कि चंद्रशेखर जी ने उन्हें खड़ा कराया और कहा,

‘बताइये, ये सरकार इतनी जालिम है। ये छात्रसंघ के राम गोविंद चौधरी हैं, इन्हें आज छोड़ा गया है जबकि जेल में कोई नहीं है।’

फरवरी 1977 की इस जनसभा के बाद से राम गोविंद चौधरी और उनके साथी चंद्रशेखर के चुनाव प्रचार में लग गए और इमरजेंसी के ठीक बाद चंद्रशेखर यह चुनाव  भारतीय लोक दल की टिकट पर जीते। इसके 6 महीने के बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। ठाकुर जग्गनाथ सिंह रामगोविंद चौधरी और गौरी भइया को जेपी के पास विधानसभा का टिकट दिलाने ले गए। कहा, ये बढ़िया काम कर रहे, इन्हें टिकट दिया जाए। इसके बाद जेपी ने चंद्रशेखर से कहकर जून 1977 में बलिया के चिलकहर विधानसभा से रामगोविंद चौधरी और कोपाचीट विधानसभा से गौरी भइया को टिकट दिलाया। दोनों चुनाव जीते। इसके बाद लगातार पांच बार 1993 तक रामगोविंद चौधरी चिलकहर विधानसभा से विधायक होते रहे। चंद्रशेखर के प्रिय बने रहे।

मुलायम सिंह से संबंध

राम गोविंद बताते हैं कि मुलायम सिंह से उनके संबंध 1977 से हैं। समाजवादी पार्टी बनने के बाद वह लगातार पार्टी में आने को कहते भी रहते थे। लेकिन हर बार चंद्रशेखर बीच में आ जाते थे। श्री चौधरी बताते हैं,

‘मेरे उनसे बहुत मधुर संबंध रहे। वह लगातार समाजवादी पार्टी में शामिल होने को भी कहते रहे। मैं कहता जब तक चंद्रशेखर जी जीवित हैं, चुनाव हारूं या कुछ भी हो मैं उनको छोड़कर नहीं जाऊंगा। नेता जी ने मुझसे 10-12 बार कहा।’

इसी सब के बीच 1993 से रामगोविंद चौधरी चंद्रशेखर जी की पार्टी सजपा से लगातार हारते रहे। नेता जी लगातार सपा जॉइन करने को कहते रहे। इसी बीच 2002 में रामगोविंद चौधरी सजपा से 2002 में बांसडीह से विधायक बन गए। इधर चंद्रशेखर भी बीमार रहने लगे। रामगोविंद चौधरी पर मुलायम सिंह का भी दबाव था और आगे राजनीति बनाए रखने का भी। श्री चौधरी बताते हैं,

‘चंद्रशेखर जी अस्पताल से घर आए और फिर मुझे बुला कर कहा कि अमर सिंह और मुलायम सिंह सिंह उनसे मिलने आए थे। कहा है कि रामगोविंद चौधरी सपा जॉइन नहीं करते हैं। कहते हैं कि चंद्रशेखर जी जब तक रहेंगे तब नहीं छोड़ूंगा। इसलिए तुम सपा जॉइन कर लो।’

समाजवादी पार्टी जॉइन करने को लेकर श्री चौधरी आगे बताते हैं,

‘मैंने तब भी चंद्रशेखर जी से कहा कि आपके रहते मैं कहीं नहीं जाऊंगा। आपके सानिध्य से एमएलए हो गए, मंत्री हो गए लेकिन वह नहीं माने। इसके छ: महीने के बाद मैंने सपा जॉइन कर ली।’

पहली चुनावी हार

अपनी पहली चुनावी हार को याद करते हुए श्री चौधरी कहते हैं,

‘वो समय उन्माद का था। भाजपा का अपना उपद्रव था। इस सब से पहले भी मुलायम सिंह ने हमसे कहा था कि अब हमारे साथ आ जाओ। जिस राजनीति से तुम जीतते हो वो अब नहीं होगी।‘

इस बात को विस्तार से समझाते हुए रामगोविंद चौधरी बताते हैं कि मुलायम सिंह के कहने का आशय था कि सजपा में ऊंची बिरादरी का वोट मिलता है और राममंदिर प्रकरण के बाद ये वोट भाजपा को मिलेगा। उनका आंकलन सही था। रामगोविंद 1993 का चुनाव हार गए। इस दौर की राजनीति पर भाजपा को कटघरे में करते हुए श्री चौधरी कहते हैं,

‘यहीं से भाजपा ने राजनीति को पटरी से उतार दिया। इससे पहले लोग नेताओं के नियत पर शक नहीं करते थे। बाबरी मस्जिद टूटी, देश में आंदोलन हुआ और देश का माहौल गड़बड़ाया।‘

एक चुनावी सभा में पूर्व मंत्री स्वर्गीय बच्चा पाठक के साथ राम गोविंद चौधरी

रामगोविंद 2002 के बाद बांसडीह से विधायक रहे। यहां का राजनीतिक करियर बच्चा पाठक के सामने रहा। बच्चा पाठक कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे। 1967, 1969, 1971, 1974, 1977, 1980, 1993 और फिर 1996 में कांग्रेस के विधायक रहे। बलिया और बांसडीह से सात बार विधायक रहे बच्चा पाठक रामगोविंद चौधरी के सामने कभी चुनाव नहीं जीत सके। उन्हें याद करते हुए श्री चौधरी कहते हैं,

बच्चा पाठक से मेरे विद्यार्थी जीवन से ही अच्छे संबंध थे। लेकिन एक स्कूल की प्रबंध कमेटी को लेकर हमारा कुछ मामला था। उसमें उनसे थोड़ा हमारा मतभेद हो गया था। मगर इसी चुनाव में 2017 में हमारा कांग्रेस पार्टी से गठबंधन था तो उन्होंने ईमानदारी से हमारे लिए प्रचार किया, वोट मांगा और हम जीते।’

क्षेत्रीय राजनीतिक दलों पर प्रतिक्रिया

रामगोविंद चौधरी अपना 2017 का चुनाव मात्र 1687 वोटों से जीते। इनके खिलाफ केतकी सिंह 49500 वोट पाकर दूसरे स्थान पर थीं। लेकिन रामगोविंद चौधरी के खिलाफ एक प्रत्याशी और था। अरविंद राजभर। उन्हें मिले 40234 वोट। तीसरे नंबर के कैंडिडेट की पार्टी थी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी। सुभासपा का बीते चुनाव में भाजपा  के साथ गठबंधन था। आठ जगह चुनाव लड़े और चार पर जीते। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को कैबिनेट मिला लेकिन कुछ समय के बाद गठबंधन टूट गया। अब ओवैसी की पार्टी  AIMIM और सुभासपा का गठबंधन है। ये सब कुछ इस चुनाव में काफी प्रभाव डाल सकता है। रामगोविंद चौधरी इस सवाल पर रफा-दफा स्टाइल में जवाब देते हैं। श्री चौधरी ने कहा,

हम लोग चंद्रशेखर जी की विचारधारा के लोग हैं। वो किसी भी विरोधी के बारे में कोई टिप्पणी ही नहीं करते थे। मैं भी नहीं कहता हूं। मैं ने कभी किसी भी विरोधी पर मंच या मंच के नीचे भी कोई टिप्पणी नहीं की है। हम अब भी नहीं करेंगे।’

अखिलेश यादव की राजनीति से खासे सहमत हैं नेता प्रतिपक्ष

रामगोविंद चौधरी मानते हैं कि समाजवाद में जातिवाद का कोई स्थान नहीं है। इस सवाल पर कि चंद्रशेखर के बाद मुलायम सिंह के हाथ में की समाजवादी राजनीति का रंग जातिवादी हो गया। श्री मुलायम सिंह के समाजवाद पर श्री चौधरी कहते हैं,

‘समाजवाद में जातिवाद का कोई स्थान नहीं है। चंद्रशेखर जी ने अपने नाम में कभी सिंह नहीं लगाया। मुलायम सिंह भी बहुत पहले से समाजवादी हैं। इस देश में मुलायम सिंह को सौभाग्य है कि वह मुख्यमंत्री बने और पुराने समाजवादीयों के सोच को लागू करने में सफल रहे। और उनसे दो कदम आगे बढ़ कर लागू किया अखिलेश यादव ने। अखिलेश जी समाजवादी पिता के लड़के हैं और पढ़े लिखें हैं।‘

बलिया की राजनीति में बांसडीह से रामगोविंद चौधरी का विधायक होना अब प्रतिष्ठा का भी सवाल नहीं रहा। प्रदेश की राजनीति में हर जरूरी समय में श्री चौधरी विधानसभा के सदस्य रहे हैं। इसके इतर भी रामगोविंद चौधरी का कद समाजवादी पार्टी में शुरु के नेताओं में है। कुल मिलाकर वैचारिक रूप से इतने समृद्ध नेताओं की परिपाटी  के रामगोविंद चौधरी समाजवादी पार्टी में प्रासंगिक हैं, यह सुखद है।

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

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बलिया में दूल्हे पर एसिड अटैक, पूर्व प्रेमिका ने दिया वारदात को अंजाम

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बलिया के बांसडीह थाना क्षेत्र में एक हैरान कर देने वाले घटना सामने आई हैं। यहां शादी की रस्मों के दौरान एक युवती ने दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया, इससे दूल्हा गंभीर रूप से झुलस गया। मौके पर मौजूद महिलाओं ने युवती को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल पुलिस बारीकी से पूरे मामले की जांच कर रही है।

बताया जा रहा है की घटना को अंजाम देने वाली युवती दूल्हे की पूर्व प्रेमिका है। उसका थाना क्षेत्र के गांव डुमरी निवासी राकेश बिंद के साथ बीते कई वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने युवक से शादी करने का कई बार दबाव बनाया, लेकिन युवक ने शादी करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में कई बार थाना और गांव में पंचायत भी हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं।

इसी बीच राकेश की शादी कहीं ओर तय हो गई। मंगलवार की शाम राकेश की बारात बेल्थरारोड क्षेत्र के एक गांव में जा रही थी। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दूल्हे के साथ परिछावन करने के लिए गांव के शिव मंदिर पर पहुंचीं। तभी घूंघट में एक युवती पहुंची और दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया। इस घटना से दूल्हे के पास में खड़ा 14 वर्षीय राज बिंद भी घायल हो गया। दूल्हे के चीखने चिल्लाने से मौके पर हड़कंप मच गया। आनन फानन में दूल्हे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

मौके पर पहुंची पुलिस युवती को थाने ले गई और दूल्हे को जिला अस्पताल भेज दिया। थानाध्यक्ष अखिलेश चंद्र पांडेय ने कहा कि तहरीर मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

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‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
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