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रिटायर IAS सूर्य प्रताप ने बलिया में दर्ज कराया बयान, कहा- इस शहर ने, यहाँ के लोगों ने दिल जीत लिया

बलिया। रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्यप्रताप सिंह ने मंगलावर को बलिया के दुबहर थाने पहुंच अपना बयान दर्ज करा दिया है। सूर्य प्रताप सिंह के खिलाफ नगर कोतवाली पुलिस ने गंगा नदी में शव मिलने वाले एक ट्वीट को लेकर केस दर्ज किया था। इस पर 12 मई 2021 को बलिया कोतवाली में एफआईआर दर्ज होने के बाद विवेचना अधिकारी दुबहर थाना प्रभारी अनिलचंद्र तिवारी को बनाया गया है। बयान दर्ज कराने के लिए रिटायर्ड आईएएस सूर्यप्रताप सिंह को 15 जून को दुबहड़ थाने में तलब किया गया था।
पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्यप्रताप सिंह मंगलवार की शाम 5 बजे बलिया पहुंचे। अपना बयान दर्ज कराने के बाद उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी का सबको अधिकार है। ऐसे में मेरे द्वारा जो ट्वीट किया गया है, उसमें कहीं से भी मुकदमा दर्ज करने की स्थिति नहीं बनती है क्योंकि मेरे ट्वीट में जिन शवों का फोटो लगाया गया है, वह प्रतीकात्मक मात्र थी। इसके अलावा एक ही मामले में मेरे ऊपर उत्तर प्रदेश राज्य में ही दो जगह मुकदमा दाखिल किया गया है जबकि किसी एक अपराध में एक ही व्यक्ति पर कहीं भी एक जगह मुकदमा दाखिल किया जा सकता है।
आज बागी बलिया में!
इस शहर ने, यहाँ के लोगों ने दिल जीत लिया।
लगा था अकेले हूँ, पर जब थाने पहुँचा तो लोग पहले से इंतज़ार कर रहे थे।
अधिवक्ता साथियों, युवाओं एवं पत्रकार बंधुओं को प्रणाम।
मैंने अपना बयान तथ्यों के साथ पुलिस को दे दिया, देर रात 2 बजे तक शायद लखनऊ पहुँच जाऊँगा। pic.twitter.com/M8dSpjTdq6
— Surya Pratap Singh IAS Rtd. (@suryapsingh_IAS) June 15, 2021
उन्होंने कहा कि मेरे ट्वीट से कहीं से भी जनमानस के प्रति कोई भय का माहौल पैदा नहीं हुआ है. यह सीधे-सीधे मुझे परेशान करने की साजिश की जा रही है जबकि इस कोरोना वायरस संक्रमण काल में बयान वर्चुअल माध्यम से भी लखनऊ से ही कराया जा सकता था। वहीँ उन्होंने दुबहर थाने पर बयान दर्ज कराने से पहले दुबहड़ थाने के जर्जर भवन की हालात पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि यह कब ढह जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है। यहां तो बैठने की भी जगह नहीं है। इस जर्जर थाने में पुलिस के जवान और स्टाफ कैसे रहते होंगे ? सरकारों को इस दिशा में ठोस कार्य करना चाहिए।
वहीँ बलिया जिले और यहाँ के लोगों की प्रशंशा करते हुए उन्होंने एक ट्वीट भी किया, उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, “आज बागी बलिया में ! इस शहर ने, यहाँ के लोगों ने दिल जीत लिया। लगा था अकेले हूँ, पर जब थाने पहुँचा तो लोग पहले से इंतज़ार कर रहे थे। अधिवक्ता साथियों, युवाओं एवं पत्रकार बंधुओं को प्रणाम। मैंने अपना बयान तथ्यों के साथ पुलिस को दे दिया, देर रात 2 बजे तक शायद लखनऊ पहुँच जाऊँगा।” उन्होंने एक दुसरे ट्वीट में लिखा,” शायद उत्तरप्रदेश सरकार का लक्ष्य मुझे दौड़ा दौड़ा कर थकाना है।
पर सरकार यह भूल गयी की जितना मुझे दौड़ाओगे उतना ही आपकी तानाशाही का प्रत्यक्ष प्रमाण जनता तक पहुँचेगा। बलिया से लेकर उन्नाव तक शव तैरे हैं, चील कौव्वों ने उन्हें नोचा है। यही सच है और यह सच मैं बार बार दोहराऊँगा” बता दें कि सूर्य प्रताप सिंह जब दुबहर थाने पहुंचे तो उनके साथ लोगों का हुजूम भी देखने को मिला।



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बलिया- जिस चोरी बुलेट को खोज ना सके उसी से तिरंगा जुलूस में निकले थानाध्यक्ष, जांच के आदेश

बलिया में एक बेहद ही चौकाने वाला मामला सामने आया है। जहाँ एक चोर नहीं बल्कि नरहीं थानाध्यक्ष को चोरी की बुलेट पर घुमते देखा गया। मीडिया में वीडियो आने के बाद से हड़कंप मचा है। बताया जा रहा है कि ये वही बुलेट है जो 18 महीने पहले चोरी हो गई थी जिसे खोजने में पुलिस को सफलता भी नहीं मिली। पुलिस ने बुलेट चोरी की फ़ाइल भी बंद कर दी थी। अब इन तस्वीरों के सामने आने से कई सवाल उठ रहे हैं।
बता दें नगरा में पालचंद्रहा के ओमप्रकाश यादव की बुलेट यूपी 60 एएफ 7103 21 जनवरी 2021 को चोरी हो गई थी। काफी कोशिश के बाद नगरा पुलिस ने 27 जनवरी 2021 को मुकदमा पंजीकृत किया। जांच कर कुछ दिनों बाद फाइल बंद दी। पीड़ित ने उच्चाधिकारियों से गुहार लगाकर भी उम्मीद छोड़ दी। तभी नरहीं क्षेत्र में 14 अगस्त को पुलिस ने तिरंगा जुलूस निकाला था। चोरी वाली बुलेट पर नरही थानाध्यक्ष मदन पटेल सवार थे। यात्रा की फोटो और वीडियो इंटरनेट पर वायरल हुई तो बुलेट मालिक ने उसकी पहचान कर ली।
पुलिस को जब मामले की जानकारी लगी तो आनन फानन में बुलेट को थाने में मंगा लिया। हालांकि उक्त वाहन का नंबर गायब था। वाहन की पहचान होने के बाद जब बुलेट मालिक ओमप्रकाश यादव थाने में जाकर संबंधित से संपर्क किए तो उन्हें बताया गया कि उक्त वाहन के कागजात नहीं हैं। अब यह मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में भी आ
गया है। इससे संबंधित की परेशानी और भी बढ़ गई है।
वहीं अपर पुलिस अधीक्षक दुर्गा प्रसाद तिवारी का कहना है कि बुलेट से थानाध्यक्ष के घूमने और इंटरनेट मीडिया में प्रसारित इस प्रकरण की गहनता से जांच होगी। दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
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जिस जगह हुई थी बलिया के आजादी की घोषणा वहां लगा गंदगी का अंबार, अधिकारी बेख़बर

बलिया। पूरे देश ने बड़ी धूमधाम से आजादी का अमृत महोत्सव मनाया। 19 अगस्त को बलिया बलिदान दिवस है। पूरा प्रशासनिक अमला बड़े आयोजन की तैयारी में जुटा है। इस दिन सूबे के मुख्यमंत्री भी बलिदान दिवस के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगे। लेकिन साल 1942 में जिस स्थान पर बलिया की आजादी की घोषणा हुई, उस जगह का हाल विचलित कर देने वाला है।
जिले के क्रांति मैदान बापू भवन के बाहर गंदगी का अंबार लगा हुआ है। नगर पालिका का इस ओर ध्यान नहीं है। एक तरफ आजादी का जश्न मनाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ जिस जगह आजादी की घोषणा हुई, वहां गंदगी पसरी है। आजादी के अमृत महोत्सव में बलिया से सामने आई यह तस्वीर कई सवाल खड़े कर रही है।
Pic Credit- Roshan
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1947 से 5 साल पहले, आज ही के दिन बांसडीह तहसील को मिली थी आज़ादी!

बलिया डेस्क : आज 17 अगस्त है, बलियावासियों के लिए गौरव का दिन। आज ही के दिन बलिया की एक तहसील आज़ादी से पांच साल पहले अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से आज़ाद हो गई थी। हम बात बांसडीह तहसील की कर रहे हैं, जिसे 17 अगस्त 1942 को गजाधर शर्मा के नेतृत्व में तकरीबन 20 हज़ार किसानों-नौजवानों की टीम ने अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ाद करा लिया था।
वीर सेनानियों की इस टीम में सकरपुरा के वृंदा सिंह, चांदपुर के रामसेवक सिंह और सहतवार के श्रीपति कुंअर भी शामिल थे। बताया जाता है कि सेनानियों की टीम ने तहसील पर कब्ज़े की तैयारी इतनी खामोशी के साथ की थी कि इसकी भनक अंग्रेज़ी हुकूसत को भी नहीं लग सकी थी। 17 अगस्त की सुबह होते ही तकरीबन 8 बजे सेनानियों की एक टोली ने तहसील और थाने को चारों तरफ़ से घेर लिया। सेनानियों की तादाद और उनके देश प्रेम के जज़्बे को देखकर तहसीलदार और थानाध्यक्ष ने सरेंडर कर दिया।
जिसके बाद सेनानियों का तहसील और थाने पर कब्ज़ा हो गया। बलिया ख़बर से बातचीत में कॉमरेड प्रणेश सिंह एक किताब का हवाला देते हुए बताते हैं कि तहसील और थाने पर कब्ज़े के बाद सेनानियों ने वहां के ख़ज़ाने को अपने कब्ज़े में ले लिया और उसी खज़ाने से कर्मचारियों को एक महीने का वेतन देकर उन्हें 24 घंटे के भीतर बलिया छोड़ने को कहा।
तहसील पर कब्ज़े के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष गजाधर शर्मा को तहसीलदार बना दिया गया और इसी के साथ सेनानियों ने स्वदेशी सरकार की स्थापना भी कर दी। प्रणेश बताते हैं कि तहसीलदार बनने के बाद गजाधर शर्मा ने दो बड़े केस पर पंचायती राज के तहत फैसला सुनाया था। जिसमें कोरल क्षेत्र का एक खानदानी मुकदमा था और एक नरतिकी से लूट का केस था।
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