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इन पांच दलीलों से सलमान खान को मिली जमानत

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काला हिरण शिकार मामले में फिल्म अभिनेता सलमान खान की बेल बॉन्ड भर दी गई है और उम्मीद है कि उन्हें जल्द ही जेल से रिहा किया जा सकता है. सेशन कोर्ट के जज रवींद्र कुमार जोशी ने शनिवार को ठीक तीन बजे अपना फैसला सुनाया. सलमान को जमानत मिलने के साथ ही देश भर में उनके चाहने वालों ने राहत की सांस ली.

सलमान की जमानत याचिका पर जोधपुर के डिस्ट्रिक्ट जज रविंद्र कुमार जोशी ने सुनवाई की और शनिवार को लंच के बाद तीन बजे के करीब अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने पचास हजार के निजी मुचलके पर सलमान को जमानत दी. हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि सलमान खान बिना कोर्ट की परमिशन के देश से बाहर नहीं जा सकते.

सरकारी वकील भवानी सिंह भाटी ने सलमान की जमानत का विरोध किया और कहा कि फिल्म अभिनेता को जमानत न दी जाए. उनका कहना था कि यह सजा के निलंबन का मामला है, कोई नियमित जमानत का मामला नहीं. उनका कहना था कि ट्रांसफर के बावजूद जज का फैसला सुनाना ठीक नहीं. लेकिन जज जोशी ने सलमान के वकील की दलीलों को स्वीकार करते हुए फिल्म अभिनेता को जमानत दे दी.

सलमान के वकील की वे पांच दलीलें जिनसे मजबूत हुआ बेल का दावा-

1. सलमान के वकील ने कोर्ट को बताया- इन 20 वर्षों में सलमान ने हमेशा कोर्ट का सम्मान किया. इन 20 वर्षों के दौरान कभी भी बेल जंप नहीं की और हमेशा सुनवाई के दौरान कोर्ट में उपस्थित रहे. उन्होंने जांच में भी पूरा-पूरा सहयोग दिया.

2. वकील महेश बोरा ने कहा- सलमान निर्दोष हैं, उन्हें झूठे केस में फंसाया गया. जमानत के बाद बोरा ने कहा कि हमें इंसाफ मिला है.

3. सलमान के वकील ने अपनी दलील में काला हिरण शिकार केस से ही जुड़े आर्म्स एक्ट के मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि यह पुष्टि नहीं हुई है कि सलमान की बंदूक घटना स्थल पर मौजूद थी. उन्हें इस केस में हाईकोर्ट द्वारा बरी भी किया जा चुका है.

4. वकील ने दलील दी कि सलमान को जमानत दी जानी चाहिए. जमानत न दिया जाना उनके मूल अधिकारों का हनन होगा.

5. बोरा ने कहा कि अगर सलमान को जमानत नहीं दी जाती है तो उन्हें बिना वजह कुछ और समय जेल में बिताना होगा. महेश बोरा ने सवाल भी उठाए कि सलमान द्वारा जेल में बिताए गए दिनों का जिम्मेदार कौन होगा? उन्होंने सलमान द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों का भी हवाला दिया.

बता दें कि याचिका पर सुनवाई कर रहे जोधपुर सेशंस कोर्ट के जज रवींद्र कुमार जोशी का तबादला हो गया है. राजस्थान हाईकोर्ट ने देर रात 87 जजों के एकमुश्त तबादलों का आदेश जारी किया है, जिसमें जोशी का नाम भी शामिल है.

 

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‘इण्डिया’ गठबंधन में दलित लीडरशीप वाले चेहरे गायब!

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जयराम अनुरागी

लोकसभा 2024 के चुनाव को लेकर देश के दो प्रमुख गठबंधन एनडीए और इण्डिया अभी से अपना – अपना कुनबा बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दिये है। केन्द्र में सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने नये- नये साथियों की तलाश कर अपनी संख्या 38 तक कर ली है। वहीं दुसरी तरफ देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने 23 जून को पटना में एवं 17 व 18 जुलाई को कर्नाटक में बैठक कर 26 दलों की ” इण्डिया ” नामक गठबंधन बनाकर सतारुढ़ भाजपा की नींद उड़ा दी है।इसके बावजूद भी विपक्ष के लिए भाजपा को रोकने की राह आसान नहीं दिख रही है , क्योंकि देश की लगभग 20 प्रतिशत आबादी वाले दलित लीडरशीप वाले राजनैतिक दलो के चेहरे पटना एवं कर्नाटक की बैठक से गायब थे । दलित समुदाय से आने वाले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे उस बैठक में जरुर थे , लेकिन वह दलितों के प्रतिनिधि न होकर कांग्रेस के प्रतिनिधि थे।

देश की कुल 542 लोकसभा सीटों मे से 84 सींटे अनुसूचित जाति और 47 सींटे अनुसूचित जन जाति के लिए आरक्षित है और देश की 160 सीटों पर दलित मत सीधे निर्णायक भूमिका में है । इतनी बड़ी आबादी का ” इण्डिया ” गठबंधन में कोई प्रतिनिधि नहीं है, जो एक गम्भीर मामला है। देखा जाये तो समाजवादी पार्टी , राष्ट्रीय जनता दल , जनता दल ( यूनाईटेड) ,सीपीएम , टीएमसी , जनता दल ( सेक्युलर) , टीडीपी , टीआरएस, एनसीपी , अकाली दल , आम आदमी पार्टी और एआईडीएमके में दलित समाज का कोई ऐसा नहीं दिख रहा है , जिनकी राष्ट्रीय राजनीति में कोई चर्चा होती हो । विपक्षी दलों की इस दलित विरोधी मानसिकता के चलते देश के दलित असमंजस में दिख रहे है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसके साथ रहना है।

अब तक विपक्ष में जो राजनैतिक परिस्थितियां बनी है उसमें दलित चेहरे वैसे ही गायब है , जैसे 2020 के बिहार विधानसभा और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से गायब थे। यही कारण है कि बिहार में तेजस्वी यादव और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनते – बनते रह गये थे। यदि उस समय बिहार में तेजस्वी यादव हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ( हम) के जीतनराम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी( वीआइपी) के मुकेश साहनी तथा उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव आजाद समाज पार्टी ( कांशीराम) के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद को साथ ले लिए होते तो चुनाव परिणाम कुछ और होते । बिहार और उत्तर प्रदेश में दलितों की उठेक्षा कोई नयी बात नहीं है। बिहार में रामबिलास पासवान की भी वहां के तथाकथित पिछड़ो के मसीहा लगातार उपेक्षा करते रहे है। यही कारण है कि रामबिलास पासवान अपना अस्तित्व बचाने के लिए न चाहते हुए भी भाजपा गठबंधन में शामिल होने को मजबुर होते रहे है। वही गलती आज विपक्ष के नेता कर रहे है , जो विपक्षी एकजुटता के लिए कहीं से भी शुभ नहीं है।

सबको पता है कि बहुजन समाज पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी हैऔर इसका जनाधार कमोवेश देश के तेरह राज्यों में है। इसकी मुखिया सुश्री मायावती देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चार – चार बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी है। अपनी लगातार उपेक्षा देख बसपा सुप्रीमो अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। यदि समय रहते विपक्षी नेताओं ने मायावती से सम्पर्क साधा होता तो शायद ये विपक्षी खेमे में आ सकती थी । इनके बाद देश में दलित युवाओं के आइकान बन चुके आजाद समाज पार्टी( कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर आज़ाद है , जिनके नाम पर देश के दलित नौजवान अपनी जान छिड़कते है , जिन्हें टाइम पत्रिका ने फरवरी 2021 में 100 उभरते नेताओं की अपनी वार्षिक सूची में शामिल किया है। हालांकि इनके पास कोई सांसद और विधायक नहीं है , लेकिन ये देश के करोड़ो दलितों को किसी के साथ जोड़ने की कूबत रखते है। अभी हाल ही में 21 जुलाई को जंतर – मंतर पर लाखों की भीड़ जुटाकर अपनी ताकत को दिखा चुके है ।

इन दोनों दलित नेताओें के बाद देश में दलितों के लिए एक और बड़ा नाम है प्रकाश राव अम्बेडकर का , जो भारतीय संविधान के जनक भारत रत्न बाबा साहब डा० भीमराव अम्बेडकर के प्रपौत्र है और ये देश के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रह चुके है। देश के करोड़ो दलित इनके लिए भी अपनी जान छिड़कते हैं । ये फिलहाल भारतीय बहुजन महासंघ के संस्थापक अध्यक्ष है। यदि विपक्ष इन तीनों दलित नेताओं को अपने साथ जोड़ने में सफल हो जाते है तो विपक्ष की 2024 की राह बहुत हद तक आसान हो सकती है। इसके लिए विपक्ष के नेताओं को अपना दिल थोड़ा बड़ा करना होगा ।

इन दोनों बैठको में कई दलो से एक ही परिवार के कई – कई सदस्य शामिल हुए थे , लेकिन इसके आयोजकों ने विपक्ष के किसी दलित लीडरशीप वाले नेता को शामिल करना ऊचित नहीं समझा । दलित चिंतक लक्ष्मण सिंह भारती का कहना है कि आजादी के 75 साल बीतने के बावजूद आज भी दलितों के प्रति मानसिकता में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। गांव के दलितों के साथ अलग भेदभाव , दलित ब्यूरोक्रेट के साथ अलग भेदभाव और दलित राजनेताओं के साथ अलग तरह का भेदभाव आज भी जारी है। केवल उसका स्वरुप बदला है। यदि विपक्ष के नेता वास्तव में भाजपा गठबंधन को शिकस्त देना चाहते है तो उसमें दलित हेडेड लीडरशीप को ससम्मान शामिल करना चाहिए । यदि हो सके तो विपक्ष के तरफ से किसी दलित प्रधानमंत्री की घोषणा भी करनी चाहिए । यदि ऐसा होता है तो देश के दलित 1977 के बाद दुसरी बार दलित प्रधानमंत्री बनते देख इण्डिया गठबंधन के साथ तेजी से जुड़ सकते है , जिसका लाभ राष्टीय स्तर पर विपक्ष को मिल सकता है ।

 

लेखक –  दलित सामाजिक संगठनों के प्रादेशिक नेटवर्क ” दलित एक्शन सिविल सोसाइटी उत्तर प्रदेश ” के अध्यक्ष है तथा ” डा० अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान 2002 ” राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं पत्रकार है ।

 

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बलिया के चार विद्यालय ईडी की रडार पर, छात्रवृत्ति योजना में वित्तीय गड़बड़ी का है मामला

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बलिया में समाज कल्याण विभाग की ओर से दशमोत्तर छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति योजना के अंतर्गत साल 2014-15 से 2022-23 में हुई वित्तीय गड़बड़ी के मामले में जिले के 4 विद्यालय ईडी के रडार पर हैं।

ऐसे में प्रवर्तन निदेशालय ने जांच के लिए आवश्यक डाटा मांगा है। इसको लेकर जिला विद्यालय निरीक्षक रमेश सिंह ने चारों विद्यालयों के प्रबंधकों और प्रधानाचार्यों को पत्र लिखकर डाटा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।

जानकारी के मुताबिक ज्ञांती देवी इंटर कॉलेज गायघाट, अंजनी कान्वेंट इंटर कॉलेज गोठाई, रामअवतार इंटर कॉलेज- टंगुनिया और इंटर कॉलेज -हरिपुर जिगनी के प्रबंधक और प्रधानचार्य को बीते 24 जून को लिखे पत्र में डीआईओएस ने उल्लेख किया है कि समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रवृत्ति एवं शुल्क प्रतिपूर्ति योजनान्तर्गत वर्ष 2014-15 से 2022-23 तक की जांच प्रवर्तन निदेशालय द्वारा की जा रही है।

विभागीय सूत्रों की मानें तो शासन समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रवृत्ति में वित्तीय गड़बड़ी की जांच ईडी से करा रहा है। इस मामले में ईडी ने प्रदेश के करीब 225 विद्यालयों को चिह्नित किया है। इसमें जिले के चार विद्यालय भी शामिल है, जिनके प्रपत्रों की जांच होनी है।

इस संबंध में बलिया के समाज कल्याण अधिकारी ने प्रपत्र उपलब्ध कराने को कहा है। इसमें लाभान्वित छात्रों का विवरण निर्धारित प्रारूप पर उपलब्ध कराने की बात कही गई है। डीआईओएस ने निर्देश दिया है कि आवश्यक सूचना दो कार्य दिवस के अन्दर जिला समाज कल्याण अधिकारी को उपलब्ध कराते हुए कृत कार्यवाही से अवगत कराएं।

बलिया डीआईओएस रमेश सिंह का कहना है कि समाज कल्याण विभाग ने चार विद्यालयों से छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति से संबंधित पत्रावली मांगी है। ताकि उसे ईडी को सौंपा जा सके। इस संबंध में संबंधित स्कूलों को पत्र लिखा गया है।

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बालासोर ट्रेन हादसे में बलिया के युवक की भी गई जान, गांव में मातम!

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बलिया। उड़ीसा के बालासोर में हुए दुर्घटना में बलिया के एक नौजवान की भी जान चली गई। जिल के दोकटी थाना क्षेत्र के बहुआरा निवासी देवेंद्र सिंह पुत्र सूर्यदेव सिंह 38 साल के मृत्यु होने से गांव में शोक का हौल है।

बता दें  कि बहुआरा गांव निवासी देवेंद्र सिंह पुत्र सूर्यदेव सिंह दुर्घटना ग्रस्त हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस में पेंटी चेयर कार खाना देने का कार्य करते थे तथा दुर्घटना के दिन भी अपने ड्यूटी पर गए थे दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। कागजी खाना पूर्ति के बाद गांव खबर पहुचने के बाद कल से ही उनके घर पूछन हारो का तांता लगा हुआ है।

स्वर्गीय सिंह अपने परिवार सहित कोलकत्ता में रहते थे और वही से अपनी नौकरी करते थे। वह अपने पीछे अपनी पत्नी पूजा व चार वर्षीय बच्ची सृष्टि को छोड़ गये है। उनके चचेरे भाई वीरेंद्र सिंह ने बताया कि देवेंद्र बहुत मिलनसार व मेहनती लड़का था जो अपने इस नौकरी के बदौलत ही अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।

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