बलिया में दो बच्चों की मौत से कोहराम मचा हुआ है। बता दें की एक ही परिवार के दो सगे भाइयों को सांप ने डस लिया। जिस समय सांप ने दोनों भाईयों को डसा तब वह एक ही बिस्तर पर सो रहे थे। बच्चों के चिल्लाने की आवाज पाकर परिजनों की भी नींद खुली। अस्पताल ले जाने के बजाए लोग झाड़ फूंक के चक्कर में पड़े जिस कारण दोनों की मौत हो गई।
इसकी जानकारी होते ही पूरे क्षेत्र में माहौल गमगीन हो गया। गांव में चर्चा इस बात की भी थी कि काश दोनों भाइयों को झाड़ फूंक कराने से पहले जिला अस्पताल ले गया होता तो दोनों की जान बच जाती। घटना सुखपुरा थाना क्षेत्र के भरखरा गांव की है।
इसके बाद आसपास के लोगों ने दोनों को पहले अमवां के सती माई स्थान ले गए, जहां झाड़-फूंक के बाद भी हालत नाजुक होता देख दोनों को बिसहर और रतसर मिशन पर ले जाया गया, लेकिन फिर भी हालत सुधारता न देख दोनों को अंतत: जिला अस्पताल ले जाया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
अक्षय को देखते ही जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। वहीं रवि को चार-चार एएसवी लगाने के बाद भी नहीं बचाया जा सका। अपनी आंख के सामने अपने मासूमों को इस तरह खोता देख माता-पिता दोनों बदहवास हो गए।
बच्चों की मौत से हुए रूदन-क्रंदन से पूरा अस्पताल गमगीन हो गया। वहीं मौत की सूचना गांव में पहुंचते ही कोहराम मच गया। डा समीर ने बताया कि दोनों बच्चों को लाने में परिजन देर कर चुके थे, जहरीले सांप के डसने के तुरंत बाद परिजनों को जिला अस्पताल लाना चाहिए था, लेकिन झाड़-फूंक में समय गंवा दिए।
इस कारण दोनों को अपनी जान गंवानी पड़ी। राजकुमार खुद तो मजदूरी करता था, लेकिन दोनों बेटे को पढ़ा-लिखाकर अधिकारी बनाने का ख्वाब देखा था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। सांप ने डसा भी तो दोनों को डस लिया और बेरहम मौत ने छीनी भी तो दोनों को छीन ली।
अब सवाल के खड़ा होता है की यदि पीडि़त को समय पर अस्पताल पहुंचाया जाता है, तो उसका इलाज संभव है। बलिया सांपों की दृष्टि से संवेदनशील है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वर्ष 2017 में सांपों ने 100 से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बनाया था।इनमें से कई लोगों की मौत भी हो गई थी। बता दें कि सर्पदंश के 90 फीसदी से अधिक मामलों में ग्रामीण इलाके के लोग ही शिकार हुए हैं।
सांप के काटने के बाद अंधविश्वास व फूंक-झाड़ के चक्कर में पड़ने से मरीज की जान खतरे में पड़ जाती है। वही अधिकारीयों ने बताया कि सर्पदंश के उपचार के लिए अभी भी लोगों में जागरूकता का आभाव है।
विभाग ने जिलाभर के छोटे-बड़े सभी स्वास्थ्य केंद्रों व अस्पतालों में एंटी स्नेक विनेम की खेप पहुंचा दी है। ऐसा देखा जाता है कि अकसर ग्रामीण इलाकों में लोग नीम-हकीम, झाड़-फूंक व टोने-टोटकों का सहारा लेते हैं। बहरहाल अप्रैल से लेकर अब तक स्नेक बाइट के दो दर्जन से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।
घरों के आसपास घास व झाडि़यां न उगने दें, खेतों में काम पर जाने व घास काटने से पहले डंडे से घास को हिला लें, शरीर को ढक व ऊंचे जूते पहनकर ही खेतों में जाए।
सर्पदंश के बाद पीडि़त को बिना समय गंवाए नजदीकी अस्पताल में ले जाएं, ताकि समय पर चिकित्सक उसका उपचार कर सकें। स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल में सर्पदंश का इलाज संभव है। जागरूकता के आभाव से सर्पदंश के अधिकांश मामलों में लोग झाड़-फूंक या टोने-टोटकों में उलझ जाते है, जिसके चलते पीडि़त का बचना मुश्किल हो जाता है।
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