बलिया स्पेशल
बीजेपी MLC प्रत्याशी रविशंकर सिंह के सामने सपा के अरविंद गिरी, क्या दे पाएंगे लड़ाई ?

बलिया : बलिया विधान परिषद सीट के लिए बीजेपी ने रविशंकर सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है। वहीं समाजवादी पार्टी की तरफ से अरविन्द गिरी प्रत्याशी बनाए गए हैं। कांग्रेस और बसपा ने अभी तक अपना कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा है। जबकि नामांकन के लिए अंतिम तिथि 22 मार्च है। बेलथरा रोड तहसील के इब्राहिम पट्टी गांव के रविशंकर सिंह ‘पप्पू’ पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पौत्र हैं। रविशंकर सिंह ‘पप्पू’ ने पहली बार 2003 में समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) से MLC बने थे।
उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी संग्राम सिंह यादव को हराया था। फिर 2009 में बसपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और समाजवादी पार्टी के रामधीर सिंह को हराया। तीसरी बार 2015 के चुनाव में सपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और तब उन्होंने भाजपा के ठाकुर अनूप सिंह को हराकर हैट्रिक लगायी थी। विधानसभा चुनाव से कुछ दिनों पहले ही रविशंकर सिंह ‘पप्पू’ बीजेपी में शामिल हुए थे। रविशंकर सिंह ‘पप्पू’ चौथी बार अब बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं और 22 मार्च को अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे।
वहीं समाजवादी पार्टी ने युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष अरविंद गिरि को मैदान में उतारा है। अरविन्द गिरी रसड़ा विधानसभा के अजीजपुर खड़सरा के रहने वाले हैं। टीडी कालेज से छात्र राजनीति की शुरुआत की। युवजन सभा के सचिव और फिर युवजन सभा के ही प्रदेश महासचिव बने। युवजन सभा की ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में काम कर चुके अरविंद गिरि फिलहाल में समाजवादी युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर हैं। अरविन्द गिरी भी 22 मार्च को अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे।
दोनों ही दिग्गज एक ही तारीख को अपना नामांकन दाखिल करेंगे। इसको लेकर राजनैतिक हलचल तेज हैं। दोनों के समर्थकों में बहुत उत्साह है लेकिन जीत किसकी होगी यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा।
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UP- बिहार को सौगात, आरा-बक्सर-हरदिया-बलिया तक बनेगा ग्रीन फील्ड कॉरिडोर

बलिया। उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों को जल्द ही एक और सौगात मिलने जा रही है। जिसका लाभ बलिया वासियों को मिलेगा। बिहार की राजधानी पटना से आरा-बक्सर-हरदिया-बलिया तक ग्रीन फील्ड कॉरिडोर बनेगा। 4 लेन में इसकी लंबाई 118 किमी होगी और इस पर 8500 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसका निर्माण 4 फेज में होगा।
जो पूर्वांचल एक्सप्रेस से भी जुड़ेगा। इसके बाद पटना और आरा से दिल्ली की दूरी आधी हो जायेगी। आरा रिंग रोड भी ग्रीन फील्ड कॉरिडोर से जुड़ेगा। इसके लिए 381 करोड़ की लागत से 21 किमी कनेक्टिंग रोड बनाया जायेगा। बता दें केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पटना-बक्सर फोरलेन को जोड़ने वाले कोईलवर सोन नदी में 266 करोड़ रुपए की लागत से बनकर तैयार सिक्स लेन पुल की डाउन स्ट्रीम थ्री लेन (दूसरी लेन) का शनिवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लोकार्पण किया।
इसके साथ ही यह पुल जनता के लिए खोल दिया गया। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि बिहार में 3 साल में अमेरिका की सड़क के बराबर रोड बनाएंगे। बिहार में 8 ग्रीन फील्ड कॉरिडोर पर एक लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
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देश के टॉप 40 जर्नलिस्ट में बलिया के पत्रकार ने मारी बाजी

बलिया के वरिष्ठ पत्रकार विवेक पांडेय ने पत्रकारिता जगत में बलिया का नाम रोशन किया है। दिल्ली में एक समारोह में उन्हें “पत्रकारिता 40 अंडर 40” का विजेता घोषित किया गया है। उन्हें देश के सम्मानित 40 पत्रकारों की सूची में शामिल किया गया था। एक्सचेंज4मीडिया समूह की हिंदी वेबसाइट ‘समाचार4मीडिया’ ने ‘पत्रकारिता 40 अंडर40’ की सूची में चयनित विवेक को जगह मिली है।
बता दें विवेक कुमार पांडेय ने जन्म स्थान बलिया से ही पत्रकारिता की शुरूआत की थी। फिलहाल अग्रणी OTT प्लेटफॉर्म ZEE5 में सीनियर एडिटर के तौर पर तैनात हैं। बलिया से निकले एक पत्रकार ने पूरे जिले का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया। 40 साल से कम उम्र के पत्रकार जिन्होंने पत्रकारिता में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, उन्हें इस लिस्ट में स्थान मिला है। इस दौड़ में देश के सभी बड़े मीडिया संस्थान आजतक, एबीपी न्यूज, जी न्यूज, न्यूज 18, एनडीटीवी, अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिंदुस्तान आदि के पत्रकार शामिल थे।
बता दें विवेक ने एक स्ट्रिंगर के तौर पर बलिया से शुरूआत की थी। जिसके बाद लखनऊ, कोलकाता, बनारस, चंडीगढ़, झारखंड औऱ दिल्ली होते हुए दुनिया की बड़ी कंपनियों में शुमार Alibaba.com तक पहुंचे। यहां पारंपरिक पत्रकारिता से इतर विवेक ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा और मशीन लर्निंग पर काम किया। विवेक ने बताया कि भविष्य में उनका लक्ष्य और एडवांस टेक्नोलॉजी पर काम करने का है जिससे सही कंटेंट, सही समय पर सही व्यक्ति तक पहुंच सके। विवेक ने दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, एबीपी न्यूज और यूसी ब्राउजर(अलीबाबा) में भी काम किया है।
दिल्ली में स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ (IIC) के मल्टीपरपज हॉल में 28 अप्रैल 2022 को आयोजित एक कार्यक्रम में प्रतिभाशाली पत्रकारों के नामों की घोषणा हुई। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने विजेताओं को सम्मानित किया. इस कार्यक्रम का पहला एडिशन था . इसमें प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल से जुड़े युवा पत्रकारों की ओर से तमाम एंट्रीज प्राप्त हुईं थीं. विभिन्न मापदंडों के आधार पर इनमें से करीब 90 पत्रकारों को शॉर्टलिस्ट किया गया था. इसमें से 40 को चुना गया।
इस बहुप्रतिक्षित लिस्ट को तैयार करने के लिए जो जूरी बनाई गई, उसकी अध्यक्षता ‘हिन्दुस्तान’ के एडिटर-इन-चीफ शशि शेखर ने की। जूरी में बतौर सदस्य ‘बीएजी ग्रुप‘ की चेयरपर्सन व मैनेजिंग डायरेक्टर अनुराधा प्रसाद, ‘एक्सचेंज4मीडिया‘ ग्रुप के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा, ‘टाइम्स नेटवर्क‘ की ग्रुप एडिटर (पॉलिटिक्स) और ‘टाइम्स नाउ नवभारत‘ की एडिटर-इन-चीफ नाविका कुमार, ‘अडानी मीडिया वेंचर्स‘ के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया, ‘दूरदर्शन‘ में कंटेंट ऑपरेशंस हेड राहुल महाजन, ‘एबीपी न्यूज‘ के वाइस प्रेजिडेंट (न्यूज व प्रॉडक्शन) सुमित अवस्थी और एक्सचेंज4मीडिया के प्रेजिडेंट सुनील कुमार शामिल रहे।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत

आज चन्द्रशेखर का 95वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 95वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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