केरल में इन दिनों एक वायरस मौत का ख़तरा पैदा कर रहा है. इसका नाम है निपाह.
पिछले दो हफ़्ते में केरल के तटीय शहर कोझिकोड में एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत की वजह यही वायरस बताया गया है.
एनडीटीवी के मुताबिक राज्य के स्वास्थ्य मंत्री केके शायलजा ने रविवार को कहा था कि इस वायरस की प्रकृति का पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है.
उन्होंने कहा था, ”मृतक की बीमारी के पीछे कौन सा वायरस है, यह अब भी रहस्य है. मृतक के ख़ून और दूसरे सैम्पल पुणे में नेशनल वायरोलॉजी इंस्टिट्यूट को भेजे गए हैं.”
सोमवार को ख़बर आई कि पुणे की इस संस्था ने कहा है कि इन तीनों की मौत रविवार को हुई.
पड़ोसियों ने स्वास्थ्य अधिकारियों को कथित तौर पर बताया कि इन तीनों को फल खाते देखा था.
इन मौतों के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने नेशनल सेंटर फॉर डिजिज़ कंट्रोल के निदेशक को प्रभावित ज़िले में जाने को कहा है ताकि राज्य सरकार की मदद की जा सके.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक तीनों की मौत के 12 घंटे के भीतर कोझिकोड और मलप्पुरम में इन्हीं लक्षणों के साथ आठ और लोगों की मौत की ख़बर आई है.
लेकिन ये वायरस है क्या और कैसे फैलता है? कैसे ये इतना ख़तरनाक हो जाता है कि जानलेवा हो जाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक़ निपाह वायरस (NiV) तेज़ी से उभरता वायरस है, जो जानवरों और इंसानों में गंभीर बीमारी को जन्म देता है.
NiV के बारे में सबसे पहले 1998 में मलेशिया के कम्पंग सुंगाई निपाह से पता चला था. वहीं से इस वायरस को ये नाम मिला. उस वक़्त इस बीमारी के वाहक सूअर बनते थे.
लेकिन इसके बाद जहां-जहां NiV के बारे में पता चला, इस वायरस को लाने-ले जाने वाले कोई माध्यम नहीं थे. साल 2004 में बांग्लादेश में कुछ लोग इस वायरस की चपेट में आए.
इन लोगों ने खजूर के पेड़ से निकलने वाले तरल को चखा था और इस तरल तक वायरस को लेने जानी वाली चमगादड़ थीं, जिन्हें फ्रूट बैट कहा जाता है.
इसके अलावा इस वायरस के एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुंचने की पुष्टि भी हुई और ये भारत के अस्पतालों में हुआ है.
इंसानों में NiV इंफ़ेक्शन से सांस लेने से जुड़ी गंभीर बीमारी हो सकती है या फिर जानलेवा इंसेफ़्लाइटिस भी अपनी चपेट में ले सकता है.
इंसानों या जानवरों को इस बीमारी को दूर करने के लिए अभी तक कोई इंजेक्शन नहीं बना है.
सेंटर फ़ॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक निपाह वायरस का इंफ़ेक्शन एंसेफ़्लाइटिस से जुड़ा है, जिसमें दिमाग़ को नुक़सान होता है.
5 से 14 दिन तक इसकी चपेट में आने के बाद ये वायरस तीन से 14 दिन तक तेज़ बुख़ार और सिरदर्द की वजह बन सकता है.
ये लक्षण 24-48 घंटों में मरीज़ को कोमा में पहुंचा सकते हैं. इंफ़ेक्शन के शुरुआती दौर में सांस लेने में समस्या होती है जबकि आधे मरीज़ों में न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें भी होती हैं.
साल 1998-99 में जब ये बीमारी फैली थी तो इस वायरस की चपेट में 265 लोग आए थे. अस्पतालों में भर्ती हुए इनमें से क़रीब 40% मरीज़ ऐसे थे जिन्हें गंभीर नर्वस बीमारी हुई थी और ये बच नहीं पाए थे.
आम तौर पर ये वायरस इंसानों में इंफेक्शन की चपेट में आने वाली चमगादड़ों, सूअरों या फिर दूसरे इंसानों से फैलता है.
मलेशिया और सिंगापुर में इसके सूअरों के ज़रिए फैलने की जानकारी मिली थी जबकि भारत और बांग्लादेश में इंसान से इंसान का संपर्क होने पर इसकी चपेट में आने का ख़तरा ज़्यादा रहता है.
ये लक्षण दिखें तो हो जाएं अलर्ट
एक्सपर्ट के मुताबिक, निपाह वायरस हवा से नहीं बल्कि एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे में व्यक्ति में फैलता है। इससे इंफेक्शन होने के बाद कुछ खास लक्षण देखे जाते हैं। वायरल फीवर होने के साथ सिरदर्द, मिचली आना, सांस लेने में तकलीफ और चक्कर आने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं तो अलर्ट होने की जरूरत है। ये लक्षण लगातार 1—2 हफ्ते दिखाई दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में सबसे पहले फिजिशियन से राय लें।
सुअर, घोड़े, पेड़ से गिरे फल और ताड़ी
निपाह वायरस का संक्रमण चमगादड़ (फ्रूट बैट) से फैलता है। अब तक सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक निपाह वायरस के इंफेक्शन से बचना है तो सुअर, घोड़े, पेड़ से गिरे फल और ताड़ी से दूर रहें। कोई फल और सब्जी खरीदें तो ध्यान रखें कि ये कहीं से कटा या खुंरचा हुई न हो। साथ ही पेड़ों से गिरे फल या खुले में टंगी मटकी वाली ताड़ी का सेवन न करें।
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