बलिया स्पेशल
बलिया में इस बार किसके ज़िम्मे होगी चंद्रशेखर की विरासत ?

बलिया. बागी बलिया. चंद्रशेखर का बलिया. तो आपको हम बलिया लिए चलते हैं. यदि इस चुनावी सरगर्मी में हम बलिया को देखें तो हमें बलिया और उसके प्रभाव क्षेत्र के सभी लोकसभा सीटों पर एक बात साफ दिखती है कि आम जनमानस की भावुकता और लोकसभा के प्रत्याशी का चेहरा ही चुनाव में मायने रखता है. 2014 के चुनाव में भी मोदी लहर पर सवार होकर जीते बीजेपी के भरत सिंह को 37% मत मिले. तो चंद्रशेखर के पुत्र व समाजवादी पार्टी के नीरज शेखर को 27% मत मिले, और कौमी एकता दल के अफजाल अंसारी को 16% मत मिले. परंपरागत तौर पर सपा को मिलने वाले मुस्लिम मतों के अफजाल के साथ चले जाने का परिणाम हुआ कि नीरज शेखर हार गए.
इस बार बीजेपी ने वीरेंद्र सिंह मस्त को अपना उम्मीदवार बनाया है. वे खुद को चंद्रशेखर का शिष्य मानते हैं. संघ के ढर्रे पर खेती-किसानी पर राजनीति करते हैं. भदोही के निवर्तमान सांसद हैं. हालांकि भरत सिंह का टिकट कटना बताता है कि बलिया को लेकर भाजपा का आत्मविश्वास डिगा है. भरत सिंह को लेकर आम जनमानस तो असमंजस में था ही वहीं भाजपा का जिला नेतृत्व भी भीतरखाने से बड़ा गेम कर रहा था. इस बीच नीरज शेखर को लेकर लोग आश्वस्त दिखे. आम जन से बातचीत में ऐसा प्रतीत होता है कि नीरज शेखर की उम्मीदवारी पर महागठबंधन फायदे में रहेगा. ऐसे में बलिया का चुनावी माहौल पता करने हेतु हमारी टीम भी बलिया के तीन विधानसभाओं में घूमी. यहां यह भी बताना जरूरी है कि चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा के वर्तमान प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह मस्त चुनाव हार गए थे और नीरज शेखर को जीत मिली थी.

चंद्रशेखर इफेक्ट?
गौरतलब है कि नीरज शेखर बलिया से दो बार सांसद रह चुके हैं. छवि तो साफ सुथरी है लेकिन वे सड़क पर कम ही नजर आए हैं. चंद्रशेखर को लेकर भावुक हो जाने वाली जनता भी नीरज शेखर के प्रति खुल कर स्नेह दिखाती है. हालांकि अब तक उनकी उम्मीदवारी तय नहीं है लेकिन उनकी सुलभता और व्यवहार उन्हें बढ़त दिलवाता है. यहां यह भी बताना है कि बलिया लोक सभा में 5 विधानसभा साझा हो रहे हैं. जिनमे ग़ाज़ीपुर का जहूराबाद और मुहम्मदाबाद एवं बलिया के बैरिया, बलिया सदर और फेफना हैं.
एक नज़र पिछले चुनाव पर
एक नजर पिछले लोक सभा पर डालें तो 2014 के चुनाव में मोदी का कथित मैजिक सबपर तारी था. सांसद के चेहरे से अधिक मोदी मैजिक चर्चा का विषय था. चाय पर चर्चा से लगायत बूथ स्तर पर नए-नए कार्यक्रमों ने भाजपा के पक्ष में एक सकारात्मक माहौल खड़ा कर दिया था. यहां बीजेपी की नाव भले ही जर्जर रही हो लेकिन उसे मोदी लहर ने किनारे लगा दिया. तिसपर से भरत सिंह का एक पुराना नेता होना उनके पक्ष में रहा. नीरज शेखर तमाम प्रभाव व कोशिश के बावजूद हार गए.
कौमी एकता दल और बसपा का कोण
यहां यह भी बताना जरूरी है कि बीते चुनाव में कौमी एकता दल के अफजाल अंसारी को यहां 17 फीसदी वोट मिले थे. इस वोट को सपा के वोटबैंक में तगड़ी सेंधमारी कहा जा सकता है. बसपा के वीरेंद्र पाठक को भी 14 फीसदी वोट मिले थे. इस बार सपा और बसपा साथ हैं और अफजाल अंसारी के बसपा बैनर तले गाजीपुर से लड़ने के चर्चे हैं.
कहां थी कांग्रेस?
बलिया में कहां रही कांग्रेस या फिर कहां रहेगी यह बड़ा सवाल है. अब तो प्रियंका गांधी भी मैदान में हैं. उन्हें खासतौर पर पूर्वांचल का प्रभारी बनाया गया है. बीते चुनाव में किसी जमाने के कद्दावर राजनेता रहे कल्पनाथ राय की पत्नी सुधा राय को कांग्रेस ने टिकट दिया था. उन्हें महज 1.5 फीसदी वोट मिले थे. कुल मिलाकर देखें तो पिछले चुनाव में बलिया मोदी लहर के प्रभाव में आया तो जरूर मगर जातीय व धार्मिक समीकरण के साथ ही सबकी दलगत राजनीति बची रही.
ऐसे में 2019 का चुनाव बलिया लोकसभा के लिए और अधिक उल्लेखनीय हो जाता है. बीजेपी ने बीरेंद्र सिंह मस्त की उम्मीदवारी तय कर दी है. गठबंधन में नीरज शेखर का नाम सबसे ऊपर है. कांग्रेस के पास अब भी प्रत्याशी खोजे नहीं मिल रहा. ऐसे में यह चुनाव विधानसभाओं के समीकरण पर अधिक निर्भर होता दिख रहा है.
बीते सप्ताह हमारी टीम ने बलिया लोकसभा के अंतर्गत आने वाले तीन विधानसभाओं में जा कर सामान्य जनमानस से संवाद किया. हमने पाया कि अब भी कई जगहों खासतौर पर गरीब परिवारों में मोदी इफेक्ट कायम है. लोग किसी भी तरह से ‘विपक्ष के न होने पर मोदी ही’ की बात कर रहे हैं. ऐसे में प्रत्याशी का चेहरा और उनके पार्टी का राजनीतिक पैटर्न, जातीय समीकरण काफी हद तक मायने रखेगा.
बैरिया विधानसभा में हल्दी क्षेत्र के आस पास चाय की दुकान पर बात शुरू हुई तो बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह (विवादित बयानों वाले) के मायावती के बयान पर चर्चा देखने-सुनने को मिली. चाय वाला राजभर था सो उखड़ा हुआ था. मौके पर एक ठाकुर साहब थे जो बलिया अस्पताल से दवा लेकर आए थे और महंगाई पर बहस शुरू करना चाह रहे थे. हमें वहां एक पंडितजी भी मिले जो अखिलेश के साथ थे. लोकसभा पर बातचीत मे लोग ‘मोदी ही’ से शुरू हुए और अंत में ‘कोई विकल्प ना होने के कारण ऐसा होगा’ के निष्कर्ष पर आ गए. कुछ और जगहों पर ऐसी ही बातचीत इस बात की पुष्टि करती हैं कि बैरिया या लगभग सभी जगहों पर कथित मोदी मैजिक के बजाय जातीय समीकरण हावी रहेगा .

बीते विधानसभा में क्या रहा बैरिया का पैटर्न?
एक नजर बैरिया के निर्णायक मतों को देखें तो ठाकुर और यादव बिरादरी के लोग यहां प्रभावी हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में भी सपा के जयप्रकाश अंचल दूसरे स्थान पर रहे. यहां बीजेपी के सुरेंद्र सिंह को जीत मिली. यदि भाजपा और सपा के बीच ठाकुर मत आपस में बंट भी जाएं तो यादव वोट नीरज शेखर को बढ़त दिला सकते हैं. ऐसा साफ दिखता है कि बैरिया में महागठबंधन मजबूत है.
बलिया सदर बणिक समुदाय के प्रभाव में है. शहर के छोटे बड़े कई व्यापारियों से बातचीत यह दिखा कि जीएसटी लागू होने की वजह से बीजेपी को घाटा हो सकता है. नोटबंदी को भी लगभग सभी व्यापारियों ने नकारात्मक करार दिया. बलिया सदर से मौजूदा विधायक आनंद स्वरूप शुक्ला हैं. वे बीजेपी के बैनर तले जीते. वे इलाके के स्थानीय सतीशचन्द्र कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं, मगर शहर के तीनों कॉलेजों में उन्हें लेकर छात्रों में तल्खी दिखी. व्यापारी अथवा सक्रिय लोग भी उनके शहर में कम रहने पर बात करते रहे. इसका भी असर इस चुनाव पर पड़ सकता है.
गौरतलब है कि यहां हम वास्तुस्थिति को तुलनात्मक तौर पर देखने व दिखाने की कोशिश रहे हैं. सदर में काफी संख्या में ठाकुर और ब्राह्मण मत हैं. वे प्राय: उन्हें ही जिताते रहे हैं जो जीत रहा हो. ऐसे में नीरज शेखर का यहां से उम्मीदवार बीजेपी के लिए खासी मुश्किल खड़ा कर सकता है. यहां हम आपको बता दें कि फेफना विधानसभा से उपेंद्र तिवारी विधायक हैं. वे बीजेपी के बैनर तले यहां से जीते हैं. वहीं पूर्व सपाई और वर्तमान में बसपा के साथ राजनीति कर रहे अम्बिका चौधरी भी कद्दावर नेता हैं. मुलायम सिंह के बेहद करीबी हैं, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट कटने पर बसपा से उम्मीदवार थे. वर्तमान गठजोड़ के हिसाब से उन्हें गठबंधन के साथ ही रहना होगा.
क्या है फेफना और जहूराबाद का जातीय समीकरण?
जाति के लिहाज से देखें तो फेफना विधानसभा यादव और राजभर बाहुल्य क्षेत्र है. कई बार भूमिहार भी निर्णायक मतदाता साबित होते हैं. बीजेपी भले ही उपेंद्र तिवारी के उभार का फायदा उठाने की कोशिश करे लेकिन अम्बिका चौधरी और खुद नीरज शेखर का प्रभाव भी कम नही है. यादव बाहुल्यता से यहां गठबंधन का पलड़ा भारी है.
जहूराबाद विधानसभा गाजीपुर जिले में पड़ता है. यहां भूमिहार और राजभर निर्णायक मतदाता हैं. ठाकुर भी भरपूर हैं. इस बात के मजबूत आसार हैं कि भूमिहार मत बीजेपी के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा के प्रभाव में रहेंगे. तो गठबंधन के लिए जहूराबाद में सेंध लगाना एक मुश्किल काम होगा. अपनी बेबाक बयानबाजी के लिए सुर्खियों में रहने वाले ओम प्रकाश राजभर यहां के विधायक हैं. इनकी पार्टी का और बीजेपी का 2014 से गठबंधन है. राजभर समुदाय के ओमप्रकाश का प्रभाव पूर्वांचल के लगभग हर सीट पर देखा जा सकता है. वे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. मुहम्मदाबाद विधानसभा भी गाजीपुर का हिस्सा है. वर्तमान में बीजेपी के चर्चित नेता स्व. कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय वहां से विधायक हैं. मुस्लिम और भूमिहार यहां के निर्णायक वोट हैं.
अंसारी और राजभर इफेक्ट कितना प्रभावी?
पूर्वांचल की राजनीति के लिहाज से यह सवाल सौ टके का है कि अंसारी परिवार किधर है. कभी बनारस से लड़ने वाले मुख्तार अंसारी का कुनबा इस बार किसे सपोर्ट कर रहा है. बीजेपी कोई कोरकसर छोड़ेगी ऐसा दिखता नहीं. राजभर समुदाय का पूर्वांचल में के भीतर वोट और उसके नेता का भाजपा के साथ गठबंधन में होना भाजपा के पक्ष में जा सकता है. जातीय राजनीति से इनकार करने वाली भाजपा साल 2014 से ही ओम प्रकाश राजभर के नाज-ओ-नखरे उठा रही है. यदि भाजपा फिर से इस वोटबैंक को साध पाई तो यहां बड़ा खेल हो सकता है.

राष्ट्रवाद कि जातिवाद?
यहां अंत में हम आपको बताते चलें कि भाजपा खुद को राष्ट्रवाद और विकास की राजनीति करने वाला दल कहती है. जबकि भाजपा ने पूर्वांचल में जातिगत राजनीति करने वाले दो दलों क्रमशः अपना दल और सुभासपा के साथ गठबंधन कर लिया है. अपना दल को कथित तौर पर पटेल बिरादरी की वकालत करने वाले दल के तौर पर देखा जाता है ओम प्रकाश राजभर की पार्टी राजभर समुदाय की वकालत करता है. कहना न होगा कि बीजेपी इस बार कहीं भी विकास के नाम पर वोट मांगती नहीं दिख रही.
गठबंधन के उम्मीदवारों को देखते हुए भाजपा अपने प्रत्याशी उतार रही है. गठबंधन की भी अपनी मुश्किलें हैं किसे कहां से लड़ाया जाए और अपने भीतरघात पर काबू पाया जा सके. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी खोज रही है. कम से कम बलिया और सलेमपुर की स्थिति तो यही है. वर्तमान सरकार के प्रति नाराज़गी का लाभ गठबंधन को मिलने की प्रबल संभावनाएं हैं. कुल मिलाकर बलिया का चुनाव गठबंधन बनाम भाजपा ही दिख रहा है. कांग्रेस कहीं दूर तक नज़र नही आती…
(लेखक बलिया के मूल निवासी हैं और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र है)
साभार सहित धन्यवाद- thebiharmail.com



featured
“कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई कि लोग रोने लगे तालियां बजाते हुए”

कौसर उस्मान
शायरों ने हर मौके के लिए शेर लिखे हैं. अफसोस कि मातम के मौके के लिए भी बातें कही गई हैं. बलिया के हर दिल अजीज़ नेता मनीष दुबे मनन के ना होने कि ख़बर सुनने के बाद मुझे कैफ़ी आज़मी का वो शेर याद आया जिसमें उन्होंने लिखा “रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई. तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई “
बहरहाल! मनन दुबे से मेरी अकसर बात होती थी. पहली बार मेरी बात किसी खबर को लेकर झगड़े से शुरू हूई थी. बाद में मिसन्डर्स्टैन्डिंग क्लियर होने के बाद हम दोस्त तो नहीं लेकिन वो बलिया खबर और मेरे हमदर्द जरूर बन गए थे. हम सूचना आदान-प्रदान, जिले में राजनीतिक घटनाक्रम और खबरों को लेकर बात किया करते थे. मनन दुबे की इतनी कम उम्र में उनकी मकबूलियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके मौत की मनहूस खबर आने के बाद बलिया और गाजीपुर में क्या नौजवान क्या उम्रदराज सबकी आंखें नम थी. अंतिम संस्कार में तो मानो पूरा बलिया ही चल पड़ा है. मैं बदनसीब हूं जो ऐसे चहेते और महबूब नौजवान नेता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सका.
“चेन्नई में जब मुझे यह मनहूस खबर मिली कि बलिया के नौजवानों के दिलों पर राज करने वाले मनीष दुबे मनन अब हमारे बीच नहीं रहे, पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि एक अच्छा और सच्चा नौजवान नेता हमे छोड़ कर चला गया है. दिल उदासी से भर गया आँखें बाहर आने को बेताब थी, हाथ-पाँव काप रहे थे, लेकिन मौत एक हकीकत है, इससे कोई आंख कैसे मूंद सकता है? ये सोच कर बेचैन दिल को कुछ देर बहलाया.”गाजीपुर के अमवा गांव के रहवासी मनीष दुबे उर्फ मनन समाजवादी पार्टी के नेता थे. बीते शनिवार यानि 14 जनवरी को करंट लगने से उनका निधन हो गया. गड़वा रोड स्थित निधरिया नई बस्ती आवास पर छत पर लोहे के रॉड से नाली की सफाई कर रहे थे. इसी दौरान हाईटेंशन तार की चपेट में आने से उन्हें करंट लग गया. जिसके बाद वो इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए. ये ख़बर कुछ ही पलों में पूरे बलिया और गाजीपुर में आग की तरह फैल गई.
ख़बर के साथ दोनों ज़िलों में मातम पसर गया. कोई भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था कि मनन अब इस दुनिया में नहीं रहे. लेकिन मृत्यु तो अटल सत्य है. उसे कौन टाल पाया है. हर किसी स्वीकार करना पड़ता है. लेकिन कहते हैं न कि सत्य से सामना यूं नहीं होना चाहिए. मनन को ऐसे नहीं जाना चाहिए था. बलिया की छात्र राजनीति में मनन वर्तमान दौर में बड़े नाम थे. मुरली मनोहर टाउन डिग्री कॉलेज में महामंत्री रह चुके थे. छात्र संघ का चुनाव लड़ने वाला हर छात्र मनन का समर्थन पाने को आतुर रहता था. कहा जाता है कि मनन जिसके कंधे पर हाथ रख देते थे छात्र संघ चुनाव वही जीतता था.
मनीष दुबे मनन को याद करते हुए मेरे मित्र और बलिया के ही छात्र नेता अतुल पाण्डेय कहते हैं “मेरे छात्रसंघ चुनाव में वो मेरे साथ नहीं थे लेकिन मुझसे भावनात्मक रूप से जुड़े थे. जिसकी वजह से वो उस चुनाव में किसी के साथ नहीं रहे. जबसे वो छात्रसंघ के चुनाव में थे या रहे उसमे ये पहली और आखिरी बार था की वो चुनाव में किसी के समर्थन में वोट नही मांग रहे थे. उन्होंने हमेशा मुझसे कहा की भाई तुम्हारे साथ हैं, विरोध नहीं करेंगे.”अतुल आगे कहते हैं कि “रागिनी दुबे हत्याकांड में न्याय की मांग को लेकर पूरा जनपद प्रदर्शन कर रहा था. जिसका एक हिस्सा मैं भी था. तब मैं और मनन भइया साथ लखनऊ गए और समाजवादी पार्टी की तरफ से मिले 2 लाख के आर्थिक सहयोग का चेक लाकर पीड़ित परिवार को दिए थे. छात्रवृति की समस्या थी तब भी हमने साथ मिल के आंदोलन किया जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन किया.”
उनके साथियों में रहे राघवेंद्र सिंह गोलू बताते हैं “2013 से ही हम मनन भइया को जानते थे. राजनीति में लाने का पूरा श्रेय उन्हीं को जाता है. नारद राय जी तक मनन भइया ही हमको ले गए. जब मैं राजनीति में आया तो घर से रिश्ता नहीं रह गया. घर वालों ने समर्थन नहीं किया. उसके बाद मैंने उन्हें देखकर सीखा कि अभाव में देखकर जीवन कैसे जीया जाता है. मनन भइया प्रेरणा थे हमारे लिए.”
ज़िले के ही साजिद कमाल कहते हैं “मनन को मैं कई सालों से जानता हूं. उसे क्रिकेट का शौक था. उसकी सबसे बड़ी खासियत थी कि वो निस्वार्थ था. वो अपने लिए कुछ नहीं करता था. लोगों के लिए सोचता था. पहली जनवरी को हमलोग साथ थे. उसने हमें कई नेताओं से मिलाया. उसका भरोसा लोगों को जोड़ने में था.”
मनन दुबे के साथ की अपनी यादें साझा करते हुए छात्र नेता धनजी यादव कहते हैं “2015 में मैं छात्र राजनीति में आया. तब मैंने सुना था कि कोई मनन दुबे महामंत्री हैं. जिनके पास जाने पर मदद करते हैं. मैं गया उनको बताया की भइया चुनाव लड़ना है. मनन भइया ने चुनाव में पूरा सहयोग किया. उन्होंने हमें सिखाया कि बगैर पैसे-रुपए के भी चुनाव लड़ा जा सकता है. व्यवहार के बूते पर चुनाव लड़ सकते हैं हम.” वो आगे कहते हैं कि “कोरोना काल में एक प्रकरण में हम जेल चले गए थे. मनन भइया को कोरोना हुआ था. फिर भी उन्होंने हमें बाहर निकलवाया.”
ज़िंदगी में बहुत सारी चीजें मिल जाती हैं. कुछ जरूरी चीजें आपको खुद अर्जीत करनी पड़ती है. कमाना पड़ता है. जिसे सम्मान कहते हैं. आदर कहते हैं. मनन ने अपनी छोटी सी उम्र में इसे कमाया था. बुजुर्ग लोग कह गए हैं कि आपकी अंतिम यात्रा की भीड़ बताती है कि आप कैसे इंसान थे? तस्वीरें जब सामने आईं मनन दुबे की अंतिम यात्रा से तो जनसैलाब दिखा. दो ज़िलों के लोग उमड़े हुए दिखे. और फिर रहमान फ़ारिस का वो शेर याद आया “कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई कि लोग रोने लगे तालियां बजाते हुए!”
कौसर उस्मान ‘बलिया ख़बर’ के संपादक हैं.
featured
UPSSSC Result : बलिया में किसान का बेटा बना अधिशासी अधिकारी

बलिया। उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने बहुप्रतीक्षित अवर अधीनस्थ सेवा (सामान्य चयन) भर्ती परीक्षा – 2019 का अंतिम चयन परिणाम जारी किया है। आयोग ने शुक्रवार रात परिणाम के साथ ही कट ऑफ भी जारी की है। आयोग ने 672 पदों के सापेक्ष 670 अभ्यर्थियों का चयन किया है। इस परीक्षा परिणाम में बलिया जिले के असनवार गांव के अर्जुन कुमार राजभर पुत्र मुन्ना प्रसाद का चयन अधिशासी अधिकारी के पद पर हुआ है।
अर्जुन राजभर की 12 वीं तक की शिक्षा- दीक्षा गांव के ही एल.डी.इण्टर कालेज असनवार में ही हुई है तथा बी.ए. की पढ़ाई गांव के ही पास स्थित जय माता दुल्हमी त्रिभुवन महाविद्यालय चोगड़ा से पूरी हुई है। इस परीक्षा की तैयारी इन्होने इलाहाबाद से की है। अर्जुन राजभर वर्तमान में भूमि अध्याप्ति अधिकारी बलिया के कार्यालय में कनिष्ट सहायक के पद पर कार्यरत है।
एक सामान्य परिवार से सम्बन्ध रखने वाले श्री राजभर की मां एक हाऊस वाइफ है तथा पिता मुन्ना प्रसाद गुजरात में रहकर मजदूरी करते हुए पढ़ाई का पूरा खर्च वहन किये है। इस समय गांव पर ही रहकर खेती किसानी का काम कर रहे है ।
featured
बलिया पुलिस का ट्विटर हैंडल 24 घंटे बाद भी नहीं हुआ रिकवर !

बलिया। बलिया पुलिस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल को हैक हुए 24 घंटे से ज्यादा बीत चुके हैं लेकिन अब तक सफलता हाथ नहीं लगी है. ट्विटर अकाउंट कब तक रिकवर हो जाएगा इस पर कोई भी उच्च अधिकारी बात करने को तैयार नहीं है. हालांकि बलिया पुलिस दावा है कि जांच प्रणाली तैयार कर ली गई है और हैक किए गए ट्विटर हैंडल को जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा.
बता दें कि हैकर्स ने बलिया पुलिस का आधिकारिक ट्विटर अकाउंट बृहस्पतिवार की भोर में हैक किया गया है. हैकर्स ने अकाउंट हैक करने के बाद डीपी हटा दी है और ऑनलाइन गेम से संबंधित ट्वीट रीट्वीट किए हैं. बलिया पुलिस का आधिकारिक ट्विटर हैंडल वेरिफाइड है और @balliapolice के नाम से अकाउंट हैं. अकाउंट को 53.1K हजार लोग फॉलो करते हैं.
-
featured2 weeks ago
नेपाल विमान हादसे में बलिया लोकसभा के 5 लोगों की मौत, सांसद ने कहा- मदद के लिए प्रयास जारी
-
featured3 weeks ago
बलियाः जमीनी विवाद को लेकर दो गुटों में मारपीट, एक बुजुर्ग की मौत
-
featured2 weeks ago
सपा नेता व छात्रसंघ के पूर्व महामंत्री मनीष दुबे का आकस्मिक निधन
-
बलिया5 days ago
कोर्ट ने बलिया DM-SP और प्रभारी निरीक्षक पर कार्रवाई के दिए निर्देश !
-
बलिया1 day ago
बलियाः तहसीलदार के पेशकार व रजिस्ट्रार कानूनगों पर प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश जारी
-
featured3 days ago
बलिया में 480 लाख की लागत से बनेगा पहला मिनी स्टेडियम
-
बलिया5 days ago
बलिया में तेज रफ्तार बोलेरो ने बाइक को मारी टक्कर, 2 युवकों की मौत, एक का इलाज जारी
-
featured2 weeks ago
बलियाः फर्जी नियुक्ति मामले में 100 से ज्यादा कर्मचारी जांच के घेरे में