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शौर्यता और राजनीति में पहचान वाले बागी बलिया के बदहाली का ज़िम्मेदार कौन?

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यूं तो बलिया कभी किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा। देखा जाए तो इतिहास के हर पन्ने में बलिया का नाम दर्ज है। 1857 की से लेकर 1942 में भारत की स्वतंत्रता से पूर्व ही समानांतर सरकार की स्थापना कर स्वयं को स्वतंत्र घोषित करने तक, तो वही आपातकाल के बाद की क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण से लेकर युवा तुर्क चंद्रशेखर के रूप में देश को 8वा प्रधानमंत्री देने का गौरव भी बलिया को प्राप्त है। ऐसे में यह उम्मीद करना लाजमी है कि विकास की दृष्टि से भी बलिया को अग्रणी होना चाहिए। लेकिन उसके उलट यदि जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही हैं।

राजनीति के क्षेत्र में भी बलिया का पर्याप्त दखल है। वर्तमान समय में संसद के दोनो सदनो में सांसद प्रदेश के मंत्रिमंडल में 2 मंत्रियों और सत्ता पक्ष के पांच विधायक इस जनपद से हैं बावजूद इसके बलिया आज उपेक्षाओं का शिकार है। बदलते दौर के साथ सियासत के मायने भी बदल गए हैं। जनप्रतिनिधियों को अब जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं रहा। यह विडंबना ही है कि आजादी के 73 वर्षो के बाद भी यहां की जनता मूलभूत सुविधाओं मसलन स्वच्छ पानी, स्वास्थ सुविधाओं आदि से वंचित है।कोरोना के दौरान स्वास्थ्य सेवा की बदहाली खुलकर सामने आई है।

जिले भर में तमाम सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होने के बावजूद स्वास्थ्य उपकरण तथा आक्सीजन व एम्बुलेंस के अभाव के कारण यहां के मरीज इलाज के लिए दूसरे जनपदों में जाने को मजबूर है। देखा जाए तो शिक्षा की दृष्टि से भी बलिया के हालात कुछ बेहतर नहीं है। प्राथमिक और मिडिल स्तर पर पढ़ाई के नाम पर मात्र खानापूर्ति हो रही है। विद्यालय शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। हालांकि 2016 में जननायक चंद्रशेखर यूनिवर्सिटी की स्थापना से शिक्षा के हालात में कुछ परिवर्तन जरूर हुआ है। लेकिन अभी भी से बेहतर नहीं कहा जा सकता है।

चुनाव के वक्त राजनीतिक पार्टियों द्वारा बडीं बडीं घोषणाएं की जाती है, लेकिन जीत हासिल करने के बाद यह घोषणाएं मात्र कागजों तक ही सिमट कर रह जाते हैं। जहां एक ओर बलिया जनप्रतिनिधि की अनदेखी का शिकार है तो दूसरी तरफ प्राकृतिक आपदा से भी त्रस्त है। प्रत्येक वर्ष जिलेवासी गंगा, घाघरा एवं टोंस नदी के बाढ़ और कटान का दंश झेलने को मजबूर है। कुछेक इलाकों में तो लोगों को पलायन तक करना पड़ता है। लेकिन जन प्रतिनिधियों और प्रशासन के तरफ़ से इसका कोई भी स्थाई समाधान नहीं हो सका है, मानो जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया गया है।

रही सही कसर बारिश के पानी से जलभराव ने पूरी कर रखी है। इतना ही नही इलाके वासी आर्सेनिक युक्त जहरीला पानी पीने को मजबूर है, जिससे कि लोग गंभीर बीमारियों के चपेट में आ रहे है। बात अगर रोजगार की कीजाए तो इसमें भी बलिया फिसड्डी है, ऐसे में विकास की कल्पना बेमानी है। यहां सवाल यह है कि वीरता, शौर्यता और राजनीति के लिहाज से देश भर में अपनी पहचान बनाने वाल बलिया विकास का पहचान क्यों नहीं बन सका। आखिर बलिया के बदहाली का ज़िम्मेदार कौन है?

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

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बलिया में दूल्हे पर एसिड अटैक, पूर्व प्रेमिका ने दिया वारदात को अंजाम

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बलिया के बांसडीह थाना क्षेत्र में एक हैरान कर देने वाले घटना सामने आई हैं। यहां शादी की रस्मों के दौरान एक युवती ने दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया, इससे दूल्हा गंभीर रूप से झुलस गया। मौके पर मौजूद महिलाओं ने युवती को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल पुलिस बारीकी से पूरे मामले की जांच कर रही है।

बताया जा रहा है की घटना को अंजाम देने वाली युवती दूल्हे की पूर्व प्रेमिका है। उसका थाना क्षेत्र के गांव डुमरी निवासी राकेश बिंद के साथ बीते कई वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने युवक से शादी करने का कई बार दबाव बनाया, लेकिन युवक ने शादी करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में कई बार थाना और गांव में पंचायत भी हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं।

इसी बीच राकेश की शादी कहीं ओर तय हो गई। मंगलवार की शाम राकेश की बारात बेल्थरारोड क्षेत्र के एक गांव में जा रही थी। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दूल्हे के साथ परिछावन करने के लिए गांव के शिव मंदिर पर पहुंचीं। तभी घूंघट में एक युवती पहुंची और दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया। इस घटना से दूल्हे के पास में खड़ा 14 वर्षीय राज बिंद भी घायल हो गया। दूल्हे के चीखने चिल्लाने से मौके पर हड़कंप मच गया। आनन फानन में दूल्हे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

मौके पर पहुंची पुलिस युवती को थाने ले गई और दूल्हे को जिला अस्पताल भेज दिया। थानाध्यक्ष अखिलेश चंद्र पांडेय ने कहा कि तहरीर मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

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‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
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