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“सियासत के अद्भुत श्रृंगार थे चंद्रशेखर”

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शुभम मिश्र

बलिया की जमीन का असर कहें या कुछ और चंद्रशेखर ने हमेशा हवा को चुनौती दी। युवा कांग्रेस से सियासी सफर शुरू कर समाजवाद के मजबूत प्रहरी बनते हुए इंदिरा गाँधी का युवा तुर्क बनना, इमरजेंसी की जेल यात्रा के बाद जनता पार्टी के अध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुॅंचना, उनकी यात्रा कई पड़ावों से गुजरी।

लेकिन हर पड़ाव में जो बात एक सी थी, वह थी चंद्रशेखर का हर उस आदमी के सामने तनकर खड़े हो जाना, जिसे खुद के होने का गुमान हो। बलिया के दूसरे गांव की तरह चंद्रशेखर का गांव भी तीन नदियों के कछार में है “इब्राहिमपट्टी”जी हां अब उसे चंद्रशेखर की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। सन 1927 में चंद्रशेखर यहीं पैदा हुए।

गांव में तब न दवाखाना था,न कोतवाली, न बिजली ,न सड़के, न कोई स्कूल पर अब सब कुछ है सिवाय चंद्रशेखर के। लेकिन चंद्रशेखर जिंदा है लोगों के दिलों दिमाग में और जेहन में,राजनीतिक गलियारों में, बलिया के कहानियों में ,मां की लोरियों में और पिता के किस्सों में। मुझे चंद्रशेखर के बारे में ज्यादा कुछ याद तो नहीं है पर दिमाग पर जोर डालता हूं तो मेरी जेहन में एक तस्वीर आती है, आषाढ़ का महीना ,धोती-कुर्ता, कंधे पर मोटा सा गमछा , बरामदा, मेरे दादा के साथ जन समूह से घिरे चंद्रशेखर।

शायद ये 2003 कि बात रही होगी। दूसरा किस्सा मुझे याद आता है जब मैं चौथी कक्षा में रहा होऊंगा और चंद्रशेखर जी को केंद्रीय विद्यालय के निर्माणाधीन भवन के उद्घाटन के लिए आना था पर किसी कारणवश वह नहीं आ पाए। तब पहली बार लगा यह कोई बड़ा आदमी होगा। तीसरा किस्सा उनके देहांत का है तब मैं बड़ा खुश था विद्यालय तीन-चार दिनों के लिए बंद था, बलिया सहित पूरा देश रो रहा था, देश का तिरंगा झुका हुआ था पर मुझे नहीं पता था कि बलिया ने अपना बेटा ,हिंदुस्तान ने अपना गौरव और सियासत ने अपना श्रृंगार खो दिया है।

वैसे तो बचपन से ही चंद्रशेखर समाजिक कार्यों में,आजादी के आंदोलनों में और गांधी बाबा में विश्वास करते आये थे,लेकिन बलिया में उनका राजनीतिक उदय 1946 में हुआ जब स्वाधीनता सेनानी परशुराम सिंह आजीवन कारावास काट कर आए थे। उनका सम्मान हो रहा था,बागी बलिया के योद्धाओं की जमघट थी मंच पर धुरंधर नेता थे, पर महफ़िल 19 साल का लड़का अपनी ओजस्वी भाषण से जीत लिया, वह थे भविष्य के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर।

चंद्रशेखर अपने खानदान के पहले मैट्रीकुलेट थे,फिर मिर्जापुर गए और परिवार के पहले ग्रेजुएट बने। 1950 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और राजनीति शास्त्र में एमए किया इन सबके बीच उनकी सामाजिक और राजनीतिक यात्रा चलती रही। इसी दौरान वह आचार्य नरेंद्र देव के संपर्क में आए। सबसे पहले सन 1947 में वह जिला छात्र कांग्रेस के अध्यक्ष बने, 1951 में इलाहाबाद से सोशलिस्ट पार्टी के मंत्री,फिर वापस बलिया आए सोशलिस्ट पार्टी के महामंत्री बने। पार्टी का विभाजन हुआ तो लखनऊ बुलाए गए पहले प्रांतीय उपमंत्री फिर पार्टी के मंत्री बन गए उसी साल लोकसभा का चुनाव लड़ा और हार गए।

5 साल बाद सन् 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के तत्वधान से पहली बार राज्यसभा पहुंचे,1964 में कांग्रेस में शामिल हो गए और 1967 में निर्विरोध कांग्रेस पार्लियामेंटरी पार्टी के मंत्री चुने गए। सन 1971 में शिमला अधिवेशन में श्रीमती गांधी के विरोध के बावजूद चंद्रशेखर कांग्रेस चुनाव समिति के लिए चुनाव लड़ा और जीत भी गए । यह पहली मर्तबा था जब युवातुर्क ,इंदिरा जी जैसी शख्सियत के खिलाफ खुलकर खड़े हुए। कई मौकों पर बतौर संगठनकर्ता और सांसद उन्होंने पार्टी , सरकार की औद्योगिक नीति व मंत्रियों की आलोचना की थी ,पर शायद यह पहली दफा था जब कोई युवा इंदिरा के खिलाफ तनकर खड़ा हुआ हो और जीत भी गया हो ।

राम बहादुर राय , प्रभात खबर में लिखते हैं चंद्रशेखर भेस बदलने में यकीन नहीं करते , प्रधानमंत्री बनने पर उसी धोती कुर्ते में उन्हें कहीं भी पाकर आम आदमी का आत्मबल बढ़ जाता था। चंद्रशेखर जी के सहयोगी ,करीब से जानने वाले बताते हैं कि विचारोंवाली राजनीतिक धारा के अंतिम राजनेता थे। ठेठ गवई अंदाज, धोती, कुर्ता, पैर में चप्पल, साधारण लिवास, सवारे रंग, बेढंगी दाढ़ी, अलमस्त चाल, मजबूत कद – काठी, आकर्षक व्यक्तित्व, आम और खास दोनों से बगैर बनावटी औपचारिकता बातचीत की बेवाक शैली… खासकर ग्रामीण भारत से जुड़ाव उनकी विशिष्टता थी।

वे भारतीय राजनीति के उन पुरोधाओं में थे, जिन्होंने राजनीति अपनी शर्तों पर की, शुद्ध बलियाटिक बगावती अंदाज में। मेरी नजर में वीर लोरिक ,चित्तू पांडे ,मंगल पांडे , हजारी प्रसाद ,केदारनाथ सिंह जयप्रकाश के बाद बलिया के अंतिम बगावती महामानव थे चंद्रशेखर।

बलिया वह जगह है जहां सैकड़ो क्रांतिकारी जन्म लिए उनके हजारों किस्से हैं अपना एक बगावती तेवर है जो आजादी के पूर्व और उसके बाद भी देखने को मिलता है। ये वहीं जगह है जहां भृगुमुनि का उत्कर्ष हुआ। वो विश्व के सबसे बड़े देवता विष्णु के अवतार राम को सिर्फ इसलिए लात मार दिए क्योंकि उन्होंने खड़े होकर उनका सम्मान नहीं किया। 90 के दशक में प्रभाष जोशी ने लिखा था कि अब चंद्रशेखर उस भृगु की स्थिति में पहुंच चुके हैं जहां भी चाहें तो सत्ता की राजनीति को लात मारकर भी अपने ऋषि पद पर प्रतिष्ठित कर सकते हैं।
यह बात बिल्कुल सही है की चंद्रशेखर जी न जाने कितनी दफे राजनीतिक दांवपेच में बड़े- बड़े पदों को स्वीकार मन से लात मारते रहे।

इंदिरा जी का दौर रहा हो ,सन 1977 में मोराजी की सरकार या फिर वी0पी0 सिंह के कार्यकाल में वो चमक दमक को त्यागते रहे। 1990 में वो प्रधानमंत्री बने। नेहरू-गांधी परिवार के बाद इकलौता व्यक्ति जो सीधे प्रधानमंत्री कि कुर्सी पर विराजमान हुआ वो थे चंद्रशेखर ।
प्रधानमंत्री बनने से पहले 10 जनवरी,1983 से 25 जून,1983 तक कन्याकुमारी से दिल्ली की 4260 किलोमीटर की अपनी पदयात्रा के बाद राजघाट पर जब 26 जून 1983 को चंद्रशेखर जी ने भारत यात्रा की 5 सूत्रीय कार्यक्रम घोषित किया।

उनमें प्रमुख रूप से बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा, शुद्ध पेयजल की उपलब्धता गर्भवती महिला व कुपोषण बच्चों की समस्या, संप्रदायिक सद्भाव सहित अन्य विषयों पर विस्तार से चर्चा किया जो वर्तमान के समय में राजनीतिक और सामाजिक रुप से बहुत ही महत्वपूर्ण है और वर्तमान समय में एक प्रबल चुनौती भी है ।

इस यात्रा के बारे में जब तवलीन सिंह ने उनसे पूछा कि “आखिर उन्होंने पदयात्रा शुरू क्यों किया” तो चंद्रशेखर ने बताया कि मुझे लगता है कि विपक्षी पार्टियां तभी श्रीमती गांधी को मात दे सकती हैं जब आम लोगों के हित को अपने से जोड़ें,क्योंकि धन और बल के प्रयोग से श्रीमती गांधी को मात देना मुश्किल है।

रामसेवक श्रीवास्तव ,दिनमान में लिखते हैं यदि “गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ” के संपादकों को यह जानने में दिलचस्पी होगी दुनिया भर में किस राजनीतिक नेता ने सबसे ज्यादा पैदल यात्रा की है तो चंद्रशेखर की पदयात्राओं का हिसाब करना पड़ेगा ।
इस पदयात्रा के बाद चंद्रशेखर विपक्ष के इकलौते नेता के रूप में उभरे परंतु समय को कुछ और मंजूर था। वर्ष 1984 में इंदिरा जी की हत्या हो जाती है, राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत मिलता है। अभी कुछ दिन पहले तक जिस व्यक्तित्व की तुलना गांधी और विनोबा भावे से हो रही थी। जिस चंद्रशेखर पर बलिया अपना प्यार जमकर लुटाती आई थी।

वही जनता 1984 की सर्दियों में हो रहे चुनाव चंद्रशेखर के लिए गरम साबित कर दिया। बागी बलिया की धरती के जो कण-कण कभी चंद्रशेखर के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहता थी,उसके सुर बदले हुए थे। परिणाम आया चंद्रशेखर 50 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हार गए ।

साल 1984 में चंद्रशेखर ने फिर से पद को लात मारा। चुनाव हारने के बाद उनके समक्ष राज्यसभा जाने का प्रस्ताव आया लेकिन उन्होंने यह बोलकर इस पद को ठुकरा दिया की जनता ने मुझे चुनाव हराया है जनता जब सदन भेजेगी तो जाऊंगा।
चंद्रशेखर के व्यक्तित्व की एक सबसे बड़ी पहचान यह रही कि वे फक्कड़ थे और सत्ता में बने रहने के लिए कतई चिंता नहीं करते थे। जो अमूमन आज की राजनीतिक परिदृश्य से बिल्कुल विपरीत है।

वो कांग्रेस के इकलौते नेता रहे होंगे जो आपातकाल में जेल भी गए। वहां बहुचर्चित पुस्तक “जेल डायरी” लिखा। चंद्रशेखर की राजनीति जनता की राजनीति थी । उनका कद राजनीति और विकास से ऊपर रहा उन्होंने कई दफे इसको साबित भी किया।
“धर्मयुग” में अनीस जंग लिखती हैं एक बार मैंने चंद्रशेखर से पूछा राजनीति आपके लिए क्या है ? उन्होंने जवाब दिया राजनीति उनके जीवन का दसवां हिस्सा है पूरी राजनीति में डूबना मेरी प्रकृति नहीं।

बाबू साहेब दूसरों की तरह दिखावटी धार्मिक नहीं थे। न वे जनेऊ पहनते थे न कोई ताबीज, ना उंगली में कोई अंगूठी ,न देवी देवता की कोई तस्वीर। उनको जानने वाले लोग यह जरूर बताते हैं कि उनके कमरे में दो लोगों की तस्वीर लगी रहती थी एक अचार्य नरेंद्र देव और दूसरा जयप्रकाश।

केदारनाथ सिंह लिखते हैं, चंद्रशेखर के जितने प्रशंसक हैं उतने ही आलोचक उनके पक्ष विपक्ष में बहुत सारी बातें कही जाती है। बलिया के संदर्भ में भी मैं जोर देकर कहना चाहता हूं ,चंद्रशेखर केवल बलिया के नहीं है पूरे देश के नेता है। चंद्रशेखर एक बेहतरीन राजनीतिक योद्धा,सफल लेखक, पत्रकार,सर्वश्रेष्ठ सांसद और पर्यावरणविद भी रहे।

वह अपने आत्मसम्मान की रक्षा करना जानते थे दूसरों के सम्मान का भी उतना ही ध्यान रखते थे। उनका कद आज की राजनीति में काफी ऊंचा है आज के प्रधानमंत्री पद के दावेदार उनके समक्ष बौने नजर आते हैं।
चंद्रशेखर का ना होना इसीलिए आज अखरता है कि सड़क से संसद तक वो बेबाकी खत्म हो रही है, जिसमें तर्क भी हो, संयम भी और संवेदना भी उनका यही गुण उनको आज के नेताओं से अलग करता है।

( बलिया से ताल्लुक रखने वाले शुभम मिश्र, लखनऊ विश्वविद्यालय में वाणिज्य के छात्र हैं )

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सलेमपुर लोकसभा: बसपा का वॉकओवर, सपा की मुश्किलें!

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लोकसभा चुनाव चुनाव के लिए रवींद्र कुशवाहा को इस बार भी बीजेपी ने सलेमपुर सीट से टिकट दिया है. सपा ने यहां रमांशकर राजभर को मैदान में उतारा है. लेकिन इस सीट की लड़ाई दिलचस्प तब हो गई जब मायावती की बसपा ने भीम राजभर को ताल ठोकने भेज दिया.

सलेमपुर लोकसभा सीट पर क्या है समीकरण? बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ नाराजगी का कितना असर है? बसपा की ओर से भीम राजभर को टिकट दिए जाने के बाद क्या सपा के लिए ये लड़ाई मुश्किल हो गई है? और क्या बसपा ने बीजेपी को वॉक ओवर दे दिया है?

बसपा का वॉकओवर, सपा की मुश्किलें!

मायावती ने बसपा के पूर्व यूपी अध्यक्ष भीम राजभर को आजमगढ़ से टिकट दिया था. लेकिन फिर उनकी सीट बदल दी गई. अब भीम राजभर को सलेमपुर से चुनाव लड़ने के लिए भेजा गया है. सपा ने यहां से रमाशंकर राजभर को टिकट दिया है. ऐसे में ज़ाहिर है कि सपा की ओर जा सकने वाला राजभर वोट भीम राजभर की एंट्री से बंट जाएगा.

ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा और बीजेपी का गठबंधन है. ऐसे में आजमगढ़ में बसपा का राजभर उम्मीदवार इस वर्ग के वोट के बंटवारे की वजह बनता. ऐसे में चर्चा है कि मायावती ने आजमगढ़ से अपने राजभर प्रत्याशी को कहीं और शिफ्ट करने का प्लान तैयार किया. ऐसे में सलेमपुर सीट सबसे मुफीद साबित हुई क्योंकि यहां सपा के उम्मीदवार रमाशंकर राजभर इसी समाज से आते हैं.

बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ गुस्सा!

2014 में बीजेपी पहली बार सलेमपुर सीट से चुनाव जीत पाई थी. तब पार्टी के उम्मीदवार रवींद्र कुशवाहा थे. कुशवाहा को पार्टी ने फिर 2019 में जीत दोहराने की उम्मीद से मैदान में उतारा और उन्होंने प्रदर्शन दोहरा भी दिया. अब 2024 में पार्टी ने इस सीट पर हैट्रिक लगाने के लिए अपने सीटिंग सांसद को मौका दिया है. लेकिन इस बार पेंच फंस गया है. क्षेत्र की जनता में रवींद्र कुशवाहा के खिलाफ नाराज़गी है. आरोप लगता है कि कुशवाहा कभी अपने क्षेत्र की जनता का हाल जानने नहीं पहुंचते हैं. कोविड जैसे क्रूर दौर में भी उन्होंने लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया. पिछले महीने ही बलिया के गांव भीमपु में सांसद रवींद्र कुशवाहा जनता-जनार्दन का हाल जानने पहुंचे. लेकिन हाथों में पोस्टर लिए गांव के लोगों ने गाड़ी रोक दी. और नारेबाज़ी की, “योगी-मोदी से बैर नहीं, रवींद्र तुम्हारी ख़ैर नहीं!”

सलेमपुर सीट का मूड:

सलेमपुर लोकसभा सीट के तहत कुल पांच विधानसभा सीटें हैं. इनमें देवरिया जिले की दो- भाटपार रानी और सलेमपुर विधानसभा सीटें हैं. जबकि बलिया में पड़ती हैं 3 विधानसभा सीटें- बेल्थरा रोड, सिकंदरपुर और बांसडीह. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सलेमपुर (सुरक्षित) विधानसभा सीट से बीजेपी की विजयलक्ष्मी गौतम, भाटपार रानी से बीजेपी के सभा कुंवर कुशवाहा और बलिया जिले की बांसडीह विधानसभा सीट पर बीजेपी की केतकी सिंह, बेल्थरा रोड (सुरक्षित) सीट से सुभासपा के हंसूराम और सिकंदरपुर से सपा के जियाउद्दीन रिजवी विधायक बने. विधानसभावार तरीके से देखें तो तीन सीटें बीजेपी के पास, एक उसकी साथी पार्टी के पास और एक सपा के पास है.

करीब 17 लाख वोटर्स वाले सलेमपुर सीट की जातिगत समीकरणों की बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक पिछड़ी जाति खासकर कुर्मी जाति (कुशवाहा) के मतदाताओं की संख्या अधिक है. करीब 15 फीसदी ब्राह्मण, 18 फीसदी कुर्मी, मौर्य, कुशवाहा, 14 फीसदी राजभर, 15 फीसदी अनुसूचित जाति, 4 फीसदी क्षत्रिय, 13 फीसदी अल्पसंख्यक जाति के मतदाता है. जबकि लगभग 4 फीसदी वैश्य, 2 फीसदी यादव, 2 फीसदी कायस्थ, 2 फीसदी सैंथवार और 4 फीसदी निषाद और बाकी अन्य जाति के वोटर्स हैं.

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

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बलिया में दूल्हे पर एसिड अटैक, पूर्व प्रेमिका ने दिया वारदात को अंजाम

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बलिया के बांसडीह थाना क्षेत्र में एक हैरान कर देने वाले घटना सामने आई हैं। यहां शादी की रस्मों के दौरान एक युवती ने दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया, इससे दूल्हा गंभीर रूप से झुलस गया। मौके पर मौजूद महिलाओं ने युवती को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल पुलिस बारीकी से पूरे मामले की जांच कर रही है।

बताया जा रहा है की घटना को अंजाम देने वाली युवती दूल्हे की पूर्व प्रेमिका है। उसका थाना क्षेत्र के गांव डुमरी निवासी राकेश बिंद के साथ बीते कई वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने युवक से शादी करने का कई बार दबाव बनाया, लेकिन युवक ने शादी करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में कई बार थाना और गांव में पंचायत भी हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं।

इसी बीच राकेश की शादी कहीं ओर तय हो गई। मंगलवार की शाम राकेश की बारात बेल्थरारोड क्षेत्र के एक गांव में जा रही थी। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दूल्हे के साथ परिछावन करने के लिए गांव के शिव मंदिर पर पहुंचीं। तभी घूंघट में एक युवती पहुंची और दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया। इस घटना से दूल्हे के पास में खड़ा 14 वर्षीय राज बिंद भी घायल हो गया। दूल्हे के चीखने चिल्लाने से मौके पर हड़कंप मच गया। आनन फानन में दूल्हे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

मौके पर पहुंची पुलिस युवती को थाने ले गई और दूल्हे को जिला अस्पताल भेज दिया। थानाध्यक्ष अखिलेश चंद्र पांडेय ने कहा कि तहरीर मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

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