बलिया स्पेशल
बलिया में झोलाछाप डॉक्टर ने मासूम बच्चे को बना दिया अपाहिज, FIR दर्ज़
बलिया में डिग्रियां न होते हुए भी झोलाछाप डाक्टरों की दुकानें जनपद के दूरदराज इलाको में आराम से चल रही है। चिकित्सकीय अभाव के कारण गांव के भोले भाले लोगो को इलाज के नाम पर ठगने का गोरखधंधा जोरो पर है। स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता का नतीजा ही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में झोला छाप डाक्टरों की चांदी है। जहां मरीज की जान अप्रशिक्षित झोलाछाप डॉक्टरों के द्वारा ले ली जाती है और बवाल होता है तो कुछ दिनों के लिये चैतन्य होकर जांच पड़ताल करते है और फिर किसी दूसरी घटना के प्रकाश में आने तक आंखे बंद कर सो जाते है ।
एक ऐसे ही घटना प्रकाश में आयी है जिसमे झोलाछाप के इलाज से एक पांच साल का बच्चें को अपनी बाह खोने की कगार पर पहुंच गया है । इस बच्चे का पिता दुबई से अपनी नौकरी छोड़कर एक तरफ अपने बेटे के हाथ को बचाने के लिये भाग दौड़ कर रहा है। वही बच्चे को विकलांग बनाने के स्तर तक पहुंचाने वाले झोलाछाप डॉक्टर को कानून के शिकंजे में पकड़वाना चाहता है ताकि भविष्य में यह किसी अन्य को ऐसी हालत में न पहुंचा पाये ।
पीड़ित पिता का यह भी आरोप है कि मुझे न्याय मिलने में जो देर हो रही है उसमें समाज मे चौथे स्तम्भ कहलाने वाले कुछ तथाकथित लंबरदारों का आरोपी फिजियोथेरिपिस्ट की तरफ से जबरदस्त पैरवी प्रमुख कारण है । पीड़ित पिता जिलाधिकारी बलिया भवानी सिंह खंगारौत को अपने लिये भगवान मानता है जिनके आदेश पर सिकंदरपुर थाने में आरोपी झोलाछाप डॉक्टर के खिलाफ 9 दिसम्बर को दफा 419, 420, 338 के तहत एफआईआर दर्ज हुआ है । अभी यह पीड़ित की छोटी जीत है क्योकि अभी मेडिकल बोर्ड से जांच के बाद ही चिकित्सक पर कार्यवाई होगी । अब देखना है कि सीएमओ बलिया डा. एसपी राय इस मामले में कौन का कदम उठाते है।
पीड़ित पिता ने सीएमओ बलिया से गुहार लगाई है कि मेडिकल बोर्ड में बलिया से ही डॉक्टरों की टीम भेजेंगे तो न्याय मिल पायेगा । एफआईआर दर्ज करने के बाद पुलिस मामले की छानबीन में जुट गई है ।
घटना के सम्बंध में बताया जाता है कि 29 सितंबर को जमुई गांव निवासी चार वर्षीय सिद्धांत यादव पुत्र दिलिप यादव खेलते समय गिर गया था। जिससे उसके हाथ मे चोट लग गई थी। परिजन गांव के ही एक अन्य व्यक्ति को साथ लेकर इलाज के लिए सिकन्दरपुर स्थित दुर्गावती सेवा सदन एवं फिजियोथेरिपी सेंटर पर ले गए।
जहां डॉक्टर ने एक्स रे के बाद हाथ टूटने की बात बताई। चिकित्सक की सलाह पर दिलीप यादव की पत्नी ने अपने पुत्र का प्लास्टर करा दिया और इसके बदले 1460 रुपये भी लिये । प्लास्टर के बाद बालक का हाथ अंदर से सड़ने लगा। पीड़ित पिता दिलिप के अनुसार 2 दिन बाद जब बच्चे को दर्द में कमी नही हुई।
बल्कि बेहद दर्द के साथ फफोले निकलने लगे। तब उपचार करने वाला चिकित्सक कहा कि बच्चें की उंगली चलवाते रहे ठीक हो जाएगा । अगले दिन भी जब आराम नही हुआ तो परिजन बच्चे को लेकर बलिया के हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. जितेंद्र सिंह के पास पहुंचे । डॉ जितेंद्र सिंह ने तुरंत प्लास्टर काटकर देखा तो प्लास्टर वाली पूरी एरिया में फफोले पड़ गये थे ।
चिकित्सक ने पीड़ित के परिजनों को बताया कि बिना फफोलो के ठीक हुए कुछ भी आपरेशन नही किया जा सकता है और इलाज शुरू कर दिया। तीन दिन बाद भी जब ठीक नही हुआ तो जिला अस्पताल के लिये रेफर कर दिया लेकिन परिजन उसे वाराणसी ट्रामा सेंटर लेकर चले गए।
जहां चिकित्सकों ने जांच कर हाथ काटने की सलाह दी। परिजन तथाकथित चिकित्सक के विरुद्ध तहरीर देकर मुकदमा दर्ज कराने के लिए चक्कर लगा रहे थे। लेकिन स्थानीय पुलिस टालमटोल कर रही थी। इसके बाद पीड़ित एसपी श्रीपर्णां गांगुली से मिले बात नहीं बनी तो डीएम से पूरी बात बताई । डीएम के आदेश पर रविवार को पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया। इस संबंध में थानाध्यक्ष सिकन्दरपुर राम सिंह ने बताया कि मुकदमा दर्ज हो गया है।
पीड़ित पिता दिलीप यादव का कहना है कि मैं सऊदी में रहता था सारे काम छोड़ छाड़ कर में अपने पुत्र की इलाज के लिए दर बदर भटक रहा हूं । न्याय भी नहीं मिल पा रहा है अभी तक बच्चे में चार लाख से ऊपर का रकम लग चुका है ।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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