बलिया स्पेशल
होर्डिंग हटाने को लेकर नगर पालिका और भाजपा नेताओं में हुई तीखी बहस, वैरंग लौटी टीम
बलिया। नगर पालिका परिषद द्वारा चलाया जा रहा अभियान बुधवार को बवाल की भेंट चढ़ गयी। टीडी कालेज चौराहे और भाजपा कार्यालय के सामने होडिंग हटाने को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं और नपा प्रशासन के बीच तीखी बहसबाजी हुई। मजमा लगने से करीब दो घण्टे तक टीडी कालेज चौराहे पर जाम की स्थिति बनी रही। मामला बढ़ता देख सीओ सदर और सीओ सिटी के साथ भारी मात्रा में पुलिसबल मौके पर पहुंच गया। घंटो तक भाजपा नेताओं और पुलिस प्रशासन के साथ नपा अधिकारियों की बहस होती रही। अंत मे मामला जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत हुआ, जिसके बाद सत्ताधारी पार्टी के सामने नपा प्रशासन को बैक फुट पर आना पड़ा और करीब दो घण्टे की मशक्कत के बाद होर्डिंग हटाये बिना नपा की जेसीबी और कर्मचारी वैरंग लौट गयी।
बतादे कि शहर नगर पालिका परिषद द्वारा इन दिनों शहर से अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत अतिक्रमण हटाया जा रहा है। इसीक्रम में नगर पालिका का दस्ता बुधवार की दोपहर टीडी कालेज चौराहा पहुंचा। जहां चौराहे पर लगे बड़े-बड़े होर्डिंग और बैनर देख अधिशासी अधिकारी दिनेश विश्वकर्मा ने तत्काल हटाने का आदेश दिया। ईओ के आदेश पर नपा कर्मियों ने चौराहे पर लगे भाजपा नेता नागेन्द्र पाण्डेय और सांसद भरत सिंह के होर्डिंग को निकाल दिया। इसके बाद नपा कर्मी छात्रनेताओं के होर्डिंग उतारने लगे, लेकिन वहां मौजूद छात्रनेताओं ने इसका विरोध करते हुए पहले भाजपा कार्यालय के सामने लगे पूर्व विधायक राम इकबाल सिंह के होर्डिंग को हटाने की मांग की।
छात्रों के विरोध पर नपा की जेसीबी का मुंह भाजपा कार्यालय की ओर हो गया। जैसे ही नपा का प्रशासनिक अमला भाजपा कार्यालय के सामने पहुंचा वैसे ही वहां मौजूद भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि नगर पालिका साजिश के तहत केवल गरीब और चुनिंदा लोगों को परेशान कर सरकार की छवि खराब करने का प्रयास कर रही है। कहा कि नगर पालिका प्रशासन अतिक्रमण का कोई स्थायी समाधान न करते हुए केवल लोगों को अनर्थक परेशान कर रही है।
आरोप है कि अतिक्रमण हटाने के लिए नपा बिना कोई पूर्व सूचना के केवल ईओ के दिशा निर्देश पर लोगों को परेशान कर रही है। भाजपा कार्यकर्ताओं और ईओ के बीच घंटो बहस चलती रही, इसबीच ईओ के पक्ष में आये पुलिसकर्मियों के साथ भी भाजपा नेताओं की तीखी बहस हुई। मामला इतना बढ़ा कि सीओ सदर और सीओ सिटी के साथ भारी मात्रा में पुलिसबल को मौके पर पहुंचना पड़ा, किन्तु पुलिस और नपा के अधिकारी सत्ताधारी दल के सामने मूकदर्शक बने रहे।
इसीबीच सूचना पाते ही पूर्व विधायक रामइकबाल सिंह मौके पर पहुंच गए। पूर्व विधायक और ईओ के बीच भी काफी देर तक बहस होती रही। इस दौरान पूर्व विधायक ने ईओ और नपा की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाते हुए साजिश के तहत भाजपा के पदाधिकारियों के होर्डिंग फड़वाने का आरोप लगाया। कहा कि इसकी शिकायत जिला प्रशासन से लगायत मुख्यमंत्री दरवार तक की जाएगी। पूर्व विधायक ने तत्काल जिलाधिकारी से फोन से वार्ता कर घटना से अवगत कराया और आवास पर मिलकर जिलाधिकारी से ईओ की कारगुजारी पर काररवाही की मांग की।
सत्ताधारी पार्टी की हनक और राजनैतिक दबाव के कारण आखिरकार नगर पालिका प्रशासन को अपनी जेसीबी लेकर वैरंग लौटना पड़ा। इस दौरान करीब दो घंटे तक चौराहे पर जाम की स्थिति बनी रही, जिसे नियंत्रित करने में पुलिस और ट्रैफिक पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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