बलिया स्पेशल
बलिया डीएम ने CHC रसड़ा का किया औचक निरीक्षण,12 कर्मचारियों का रोका वेतन, लगाई फटकार
बलिया। जिलाधिकारी रवींद्र कुमार ने सोमवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र रसड़ा का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान अस्पताल में कई प्रकार के सामान अत्यन्त अव्यवस्थित स्थिति में मिले और काफी गन्दगी पायी गई उस पर उन्होंने नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने निर्देश दिए की विशेष अभियान चलाकर सफाई व्यवस्था सहित सामानों को व्यवस्थित करने के निर्देश दिए। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र रसड़ा का जनरेटर भी खराब पाया गया, जिससे विद्युत आपूर्ति बाधित होने पर मरीजों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र रसड़ा की उपर्युक्त स्थिति कदापि सन्तोषजनक नहीं है। साथ ही जिले के समस्त सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति में सुधार लाने का निर्देश दिया गया था। साथ ही सख्त निर्देश दिए कि सभी चिकित्सक एवं अन्य स्टाफ की उपस्थिति सुनिश्चित करायें, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि आपके द्वारा जनपद में स्थित सामुदायिक/ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति में सुधार लाये जाने हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया है।
यह स्थिति घोर आपत्तिजनक है। उन्होंने कहा कि जिले के सभी सामुदायिक/प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का निरीक्षण करते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार सुनिश्चित करायें। अन्यथा आपका उत्तरदायित्व निर्धारित करते हुए आपके विरूद्ध कठोर कार्यवाही हेतु शासन को पत्र प्रेषित कर दिया जायेगा। निरीक्षण के समय अधीक्षक, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र रसड़ा का कक्ष बन्द था एवं वे अनुपस्थित थे। बाद में निरीक्षण के दौरान वे उपस्थित हुए। निरीक्षण के समय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के कई कर्मचारी अनुपस्थित थे। अनुपस्थित समस्त कर्मचारियों का वेतन रोकते हुए स्पष्टीकरण लिया जाय एवं स्पष्टीकरण सन्तोषजनक पाये जाने की स्थिति में ही इनका वेतन आहरित किया जाय। चिकित्सालय में एआरवी एवं एएसवी रजिस्टर देखा गया। एआरवी का रजिस्टर भी अद्यावधिक नहीं था तथा पूछने पर फार्मासिस्ट द्वारा बताया गया कि वह अपने घर के फ्रीज में इन्जेक्शन रखते हैं।
इसके अतिरिक्त एएसवी भी खुले में रखा पाया गया। साथ ही दोनों स्थितियॉ अत्यन्त आपत्तिजनक है। अधीक्षक, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र द्वारा इस सम्बन्ध में घोर लापरवाही बरती जा रही है, इसलिए स्पष्टीकरण लेकर कार्यवाई की जाय। उनके द्वारा यह बताया गया कि अस्पताल में फ्रीज उपलब्ध नहीं है। साथ ही अनुपस्थित कर्मचारी श्रीमती सुमन देवी चिकित्सा कर्मचारी, श्रीमती नीतू राय वार्ड आया, श्रीमती विजयंती देवी एएनएम, श्री अजय कुमार सिंह एएनएम, श्री अनिल कुमार सिंह स्वास्थ्य निरीक्षक, श्री पंकज कुमार राय फार्मासिस्ट, श्री फिरोज अहमद फार्मासिस्ट, श्री अजय कुमार भारती नेत्र परीक्षण अधिकारी, श्री शैलेश कुमार सिंह चीफ फार्मासिस्ट, श्रीमती कुमुलता राय स्टाफ नर्स, श्रीमती डॉक्टर प्रियंका राय चिकित्साधिकारी एवं श्रीमती कुसुम देवी स्वास्थ्य निरीक्षक।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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