बलिया स्पेशल
जानें क्या होता है इंटीग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेंटर? जिसका बलिया में आज किया गया गठन
बलिया डेस्क : बलिया में में कोरोना की गंभीर स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री के निर्देश पर ‘इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर’ तथा ‘सर्विलांस सेल’ का गठन कर दिया गया है। ‘इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर’ का प्रभारी संयुक्त मजिस्ट्रेट विपिन कुमार जैन को बनाया गया है। वहीँ विकास भवन से इसका संचालन किया जाएगा । इस टीम में एक अपर प्रभारी समेत दो सदस्य भी रखे गए हैं।
यह समिति टेलीफोन की व्यवस्था के साथ 24 घंटे कंट्रोल रूम के रूप में काम करेगी। आम लोगों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अन्य सभी विभागों से समन्वय बनाना, प्रतिदिन की हेल्थ बुलेटिन मीडिया व जन सामान्य की जानकारी के लिए जारी करना, महामारी से संबंधित कार्य कर रहे विभिन्न विभागों जैसे स्वास्थ्य, पुलिस, नगर विकास, ग्राम्य विकास की सूचना का संकलन करना तथा शासन में उच्चधिकारियों के स्तर से अपेक्षित दैनिक सूचना भेजना इस समिति का काम होगा।
इसी प्रकार सर्विलांस सेल का भी गठन किया गया है जिसके प्रभारी एसडीएम सदर/संयुक्त मजिस्ट्रेट अन्नपूर्णा गर्ग को बनाया गया है इस टीम में भी अपर प्रभारी समेत दो सदस्य को रखा गया है। सर्विलांस टीम प्रभावी कांटेक्ट ट्रेसिंग, सैम्पलिंग तथा शीघ्र जांच रिपोर्ट प्राप्त हो, इसके लिए समन्वय एवं पत्राचार का काम करेगी। समस्त एल-1 फैसिलिटी हॉस्पिटल में भर्ती होने से लेकर डिस्चार्ज होने तक का तिथिवार अपडेट रखेगी। साथ ही हॉस्पिटल में खानपान व अन्य सुविधाओं से संबंधित व्यवस्था का परीक्षण, रोगियों का फीडबैक नियमित रूप से प्राप्त कर उसके अनुसार सुधार करने की कार्यवाही भी करेगी। डीएसओ पोर्टल का अपडेटशन, कांटेक्ट ट्रेसिंग व सैम्पलिंग कार्य का फील्ड में सत्यापन भी सर्विलांस सेल का ही काम होगा।
क्या होता है इंटीग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेंटर? -नगर पालिकाओं द्वारा COVID- 19 महामारी के प्रबंधन की दिशा में Smart Cities Mission के तहत स्थापित ‘एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र’ (Integrated Command and Control Centres- ICCC) को ‘वॉर रूम’ के रूप में उपयोग किया जाता है।
स्मार्ट सिटी मिशन के तहत स्थापित ICCC का यातायात प्रबंधन, निगरानी, उपयोगी कार्यों तथा शिकायत निवारण के समन्वय केंद्र के रूप में उपयोग किया जाता है। ICCC का उपयोग COVID- 19 महामारी से निपटने के लिये सरकार की अनुक्रिया (Government’s Response) प्रणाली के एक भाग के रूप में होता है।
ICCC तथा COVID- 19 प्रबंधन- राज्य सरकारों द्वारा ICCC का उपयोग COVID-19 महामारी के प्रबंधन संबंधी विभिन्न कार्यों में किया गया जैसे COVID-19 के खिलाफ कर्मचारियों को वर्चुअल ट्रेनिंग देने। सार्वजनिक स्थानों की CCTV निगरानी, COVID- 19 के पॉज़िटिव मामलों की GIS मैपिंग तथा हेल्थकेयर वर्कर्स का GPS ट्रैकिंग करने में उपयोग करना। नगर के विभिन्न क्षेत्रों में वायरस के संभावित क्षेत्रों का विश्लेषण। डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को आभासी प्रशिक्षण में उपयोग करना।
वीडियोकॉफ्रेंसिंग, टेली-काउंसलिंग, टेली-मेडिसिन में। चिकित्सा सेवाओं की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग करने में। हीट-मैपिंग तकनीकों का उपयोग करके संक्रमण रोधी योजना विकसित करना। भू-स्थानिक प्रणालियों का उपयोग करके COVID-19 के मामलों की मैपिंग करना। एकीकृत डेटा डैशबोर्ड तैयार करना तथा संक्रमित लोगों के आसपास के क्षेत्रों की निगरानी करके बफर ज़ोन स्थापित करना।
जनता के लिये सूचना उपलब्धता- ICCC के माध्यम से लोगों को COVID- 19 के मामलों की अपडेट सूचना प्रदान करने के लिये डैशबोर्ड के माध्यम से प्रभावित क्षेत्रों के स्थानिक मानचित्रण सहित COVID- 19 मामलों की जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। दैनिक रिपोर्ट किये गए मामलों को तिथि, क्षेत्र, अस्पताल, आयु और लिंग के अनुसार वर्गीकृत करके पोर्टल पर अपडेट करने में ICCC का उपयोग किया
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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