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बलिया स्पेशल

जन्मदिन विशेष: ‘चंद्रशेखर को और मौके मिलते तो वो सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में होते’

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देश के 11वें प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर का जन्म 17 अप्रैल 1927 को बलिया जिले में इब्राहिम पट्टी गांव में हुआ था.
आज पूर्व प्रधानमंत्री और समाजवादी नेता चंद्रशेखर के 92 वें जन्मदिन पर राष्‍ट्र ने उन्‍हें याद किया और भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की.

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ में सामयिक इतिहास ने न्याय नहीं किया. लगभग डेढ़ साल पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का संस्मरण आया था जिसमें उन्होंने लिखा था अगर चंद्रशेखर को और मौका मिला होता तो वो देश के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों में से एक साबित हुए होते.

जब वेंकटरमन भारत के राष्ट्रपति थे और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने भी कहा कि चंद्रशेखर के पास अगर बहुमत होता तो बेहतर होता. क्योंकि एक तरफ वो अयोध्या में हल निकालने की कोशिश कर रहे थे तो दूसरी तरफ सिख समस्या को सुलझाने की कोशिशों में लगे थे. कश्मीर में सकारात्मक कदम उठाए जा रहे थे. असम में चुनाव कराए गए.

सिर्फ चार महीने की सरकार इतने बड़े काम लेकर निर्णायक रूप से आगे बढ़ रही थी और यही कांग्रेस को अखर रहा था. चंद्रशेखर सफलता की ओर और ज्यादा न बढ़ें इसलिए कांग्रेस ने सरकार को गिरा दिया. जबकि इस वादे के साथ चंद्रशेखर शपथ ली थी कि कम से कम एक साल तक सरकार को चलने दिया जाएगा.

कांग्रेस के डरने के पीछे भी अहम कारण थे. दरअसल चंद्रशेखर का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था. एक प्रसंग है.

चंद्रशेखर ने ऑपरेशन ब्लूस्टार को कहा था हिमालयन ब्लंडर

जब देश में ऑपरेशन ब्लूस्टार हुआ तो वह अकेले राजनेता थे जिन्होंने कहा था कि ये हिमालयन ब्लंडर है. देश को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी. उन्होंने ऐसा कहने के पीछे कारण भी बताया. दरअसल वो इमरजेंसी के दौरान लंबे समय तक पटियाला जेल में बंद रखे गए, वो भी तन्हाई में.

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कम लोगों को पता होगा कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने जॉर्ज फर्नांडिस के बाद अगर किसी को सबसे लंबे समय तक जेल में रखा था तो वो चंद्रशेखर ही थे. उन्होंने बताया था कि इसी दौरान उन्होंने सिख इतिहास और पंजाब का इतिहास पढ़ा. और उसी इतिहास के अनुभव पर वो बोले कि मैं कह रहा हूं कि स्वर्ण मंदिर में हुई कार्रवाई का बहुत खराब असर पड़ने वाला है. दुर्भाग्य से कुछ दिनों बाद इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. उसके बाद देशभर में दंगे हुए.

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इसके बाद खास तौर पर अरुण नेहरू ने कमान संभाली कि कैसे चंद्रशेखर को चुनाव हराना है. वो बलिया भी गए और कुछ अपने चुनिंदा पुलिस अधिकारियों के जरिए इस बात का भी इंतजाम कराया कि चंद्रशेखरजी को हराया जाए. जब लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई तो चंद्रशेखर बलिया गए. वो ट्रेन से स्टेशन पर जैसे ही उतरे तो अचानक कांग्रेसियों की प्रायोजित भीड़ ने उन्हें घेरकर नारे लगाने शुरू कर दिए कि बलिया के भिंडरावाले वापस जाओ और भिंडरावाले की थैली लाए हैं चुनाव में हराएंगे. चंद्रशेखर उतरे और वहीं पर खड़े हो गए तो नारा लगाने वाले सारे लोग स्तब्ध हो गए.

चौधरी चरण सिंह के साथ चंद्रशेखर

चौधरी चरण सिंह के साथ चंद्रशेखर

उन्होंने जो कहा वो आज के राजनेताओं के लिए एक सबक है. उन्होंने कहा, ‘भारत और पंजाब का इतिहास मैंने पढ़ा है और हां, मैने कहा है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार भारत के इतिहास में हिमालयन ब्लंडर है. मैंने ये देशहित के लिए कहा है. चुनाव तो आते-जाते रहते हैं. और मैं तो इतिहास का मामूली कॉमा या फुल स्टॉप भी नहीं हूं. दुनिया में बड़े-बड़े लोग आएंगे-जाएंगे लेकिन जो सच हो वो बोलना चाहिए. जिन लोगों को मेरी ये बात खराब लगे मुझे उन लोगों के वोट नहीं चाहिए. चुनाव जीतने के लिए मैं अपने मत नहीं बदलता.’

चंद्रशेखर ने इंदिरा से कहा था पूरे करें वादे 

ऐसे और भी बहुत सारे प्रसंग है. बलिया के मामूली परिवार से निकले चंद्रशेखर देश की राजनीति में जब तक रहे निर्णायक रूप से उन्होंने अपनी जगह बनाई. इंदिरा गांधी की इच्छा के खिलाफ 1972 में शिमला में उन्होंने कांग्रेस वर्किंग कमेटी का चुनाव जीता. फिर इंदिरा गांधी को उनकी लोकप्रियता देखकर उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी में रखना पड़ा. और वो पहली आवाज थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को चेताया कि हमने जो वायदे किए 71 के चुनाव में, जीतने के बाद पहले हमें उनको पूरा करना चाहिए.

ये ऐतिहासिक तथ्य है कि इंदिरा गांधी के बाद उन दिनों कांग्रेस में जो नेता चुनाव प्रचार की दृष्टि से जो सबसे पॉपुलर नेता थे तो वो चंद्रशेखर ही थे. इसीलिए इंदिरा गांधी ने चंद्रशेखर से कहा कि आप राज्यसभा में ही रहिए क्योंकि आप चुनाव लड़ेंगे तो लड़ाएगा कौन?

जब चुनाव में भारी कामयाबी मिल गई तो चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से कहा कि आप वायदों को पूरा कीजिए नहीं तो देश में असंतोष होगा. जब बिहार आंदोलन खड़ा हुआ तो चंद्रशेखर ने कहा कि जयप्रकाश जी को मलीन न करें आप. वह ऋषितुल्य नेता हैं. उन्होंने देश से कुछ लिया नहीं है, दिया ही है. अगर राजसत्ता संतसत्ता से टकराएगी तो आगे नहीं बढ़ पाएगी. ये उन्होंने एडिटोरियल लिखा और कांग्रेस वर्किंग कमेटी जो उन दिनों नरौरा में मिल रही थी उसके बीच बहस का विषय रहा. वहां पर उसको लेकर काफी चर्चा हुई.

चंद्रशेखर ने की थी जेपी और इंदिरा में समझौता कराने की कोशिश 

उन्हीं दिनों मध्य प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डीपी मिश्र, जो कांग्रेस के चाणक्य कहे जाते थे, उन्होंने चंद्रशेखर को देखा तो बाकी कांग्रेसियों से कहा कि इस आदमी से सावधान रहना क्योंकि इसे कुछ चाहिए नहीं. ये खरी बातें करता है. और चंद्रशेखर से कहा जिसकी पीठ पर कोई बोझ न हो वो ही तुम्हारी तरह हो सकता है. तुम बेलौस बोल रहे हो. लोग ध्यान नहीं देंगे तो इतिहास पलट जाएगा.

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फिर उनकी बात सही साबित हुई. चंद्रशेखर के कहे अनुसार बिहार आंदोलन बढ़ता गया. उनकी कोशिश थी कि इंदिरा और जेपी में समझौता हो लेकिन इंदिरा गांधी के आस-पास ऐसे लोग थे जिन्होंने ऐसा नहीं होने दिया. फिर आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से हटी.

व्यक्तिगत राग द्वेष से दूर रहने वाले राजनेता

एक और अंतिम प्रसंग है. कांग्रेस जब सत्ता से हट गई तो इंदिरा गांधी ने तो बहुत कोशिश की कि चंद्रशेखर फिर से कांग्रेस में आ जाएं लेकिन फिर चंद्रशेखर जी ने मना कर दिया. उन्होंने कहा, ‘मैं किस तरह वापस आऊं. मैंने तो कांग्रेस नहीं छोड़ी थी. मेरे वापस आने का मतलब होगा कि मैं गलत था. लेकिन जब वो चुनाव जीत कर आए तो इंदिरा गांधी के लिए उनके मन में कोई मैल नहीं था.’

जब मोरारजी की सरकार में जब चरण सिंह ने यह तय किया कि इंदिरा का सरकारी आवास खाली कराया जाए तो चंद्रशेखर ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा ये गलत काम नहीं होना चाहिए. वो इंदिरा गांधी से मिले और उन्हें आश्वस्त किया.

वो व्यक्तिगत राग द्वेष से दूर रहने वाले राजनेता थे. देश के बारे में सोचा करते थे. इसलिए लोग उन्हें सुनते भी थे. जब वो संसद में खड़े होते थे बोलने के लिए पक्ष-विपक्ष के सभी लोग उन्हें आदर के साथ सुनते थे. चंद्रशेखर जी का जाना इस देश की राजनीति से साहस की विदाई है. वैसा कोई नेता अभी दिखाई नहीं देता जो पद और राजनीति की चिंता छोड़कर सच कह सके.

चंद्रशेखर के पुत्र एवं राज्यसभा सांसद नीरज शेखर ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री ने हमेशा शोषित एवं वंचित तबके के लिए आवाज उठायी और सामाजिक बदलाव की नीतियों को प्राथमिकता दी. देश उनके योगदान को सदा याद रखेगा.
सपा नेता शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि भारतीय राजनीति में ‘युवा तुर्क’ के नाम से विख्यात पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अपने साहस और अडिग विचारों के लिए जाने जाते थे. छात्र राजनीति के दौर से ही वे अपने तेजतर्रार, आशावादी और क्रांतिकारी तेवर के लिए विख्यात रहे.
(यह लेख पूर्व में छप चुका है)
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

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‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत

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आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.

बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.

चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,

लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.

1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.

‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,

जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि

सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.

(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)

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