बलिया स्पेशल
“वंदेमातरम के नाम पर बापू और जौहर की विरासत के विंध्वंस की तैयारी थी”
बलिया- जी एम ए एम इंटर कॉलेज मामले पर आज दलित अल्पसंख्यक एकता मंच,रिहाई मंच,इंडियन पीपुल्स सर्विसेज,गोंडवाना गणतंत्र पार्टी,राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा,स्वराज अभियान,दूधिया संघ तथा भाकपा का प्रतिनिधि मंडल श्री राघवेन्द्र राम के नेतृत्व में जी एम ए एम इंटर कॉलेज उभरे मामले की जांच हेतु बिल्थरारोड पहुंचा।
प्रतिनिधी मण्डल ने जांच में पाया कि सम्पूर्ण विवाद कृत्रिम रूप से गढ़ा गया और शहर का माहौल खराब कर समाज को स्प्रदयिकता के रंग में रंगने का प्रयास किया जा रहा है।
रिहाई मंच ने बेल्थरा रोड बलिया में वंदेमातरम के नाम पर भड़के तनाव को योगी सरकार की सुनियोजित साजिश का हिस्सा करार दिया है। मंच ने सवाल किया कि बेल्थरा रोड बलिया के गांधी मोहम्मद अली मेमोरियल इंटर काॅलेज में भाजपा विधायक धनंजय कनौजिया और सांप्रदायिक तनाव के आरोपी शिव कुमार जायसवाल स्कूल में सांप्रदायिक तनाव भड़कानें के षडयंत्रकर्ता हैं।
पुलिस हाईस्कूल-इंटर के नाबालिग बच्चों मुहम्मद कैफ, तंजील सिद्दीकी, मोहम्मद फैजान, मुहम्मद चांद, एकलाख, फिरोज, बुच्ची आदि को उठा ले गई है।
मंच ने आरोप लगाया कि त्योहारों को चिन्हित करते हुए पिछले एक हफ्ते से सूबे में प्रायोजित तरीके से सत्ता संरक्षण में सांप्रदायिक तनाव भड़काया जा रहा है। रिहाई मंच ने कहा की सूबे में बदहाल कानून व्यवस्था से ध्यान हटाने के लिए सांप्रदायिक तनाव का षडयंत्र रचा जा रहा है।
इस पटकथा के पीछे उन्हीं लोगों का नाम आ रहा है जो दो वर्ष पूर्व इस शहर का सौहार्द खराब करने का प्रयास किया था और सभी पर पहले से भी ऐसे आरोप लगे हुए है।
ज्ञातब्य हो गाधी मोहम्मद अली जौहर मेमोरियल इंटर कॉलेज 1929 में स्थापित हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाने वाला एक प्रतिष्ठित कॉलेज है जहां पर लगभग 2500 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते है। यह बात कुछ समाज के अराजकतत्वों को खटक रही थी जो विद्यालय तथा शहर का माहौल खराब कर सौहार्द खराब करना चाहते है।
इस अवसर पर प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष राघवेंद्र राम ने बताया कि देश का संविधान किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं देता की वो किसी व्यक्ति, छात्र या किसी संस्था पर जबरिया बंदे मातरम गाने या भारत माता की जय बोलने का दबाव बना सके ।
यह प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि वह अपनी धार्मिक आस्था के दायरे में रहकर भारत का सम्मान करे और देश की एकता को बनाए रखे ।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जांच में यह भी पाया गया कि जो बातें यह गढ़ी गई कि कॉलेज में भारत माता की जय बोलने पर एक बच्चे को दण्डित किया गया यह सरासर झूठ है एवं पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारे लगाने जैसे समाचार समाचार पत्रों में झूठ छापा गया।
राघवेन्द्र ने शासन प्रशाशन से मांग की कि स्थानीय विधायक धन्नजय कन्नौजिया द्वारा इस मामले को अनावश्यक तूल दिया गया अतः विधायक पर शहर का सौहार्द बीगड़ने का आरोप लगाते हुए उन पर मुकददमा लिखे जाने की मांग की साथ में ऐसे समाचार पत्रो पर भी कार्रवाई की मांग की जिन्होंने बिना सोचे समझे पाकिस्तान जिंदाबाद जैसे नारों का समाचार छापा,साथ में प्रतिनिधि मंडल ने विद्यालय का पठन पाठन तत्काल शुरू कराने की मांग की ताकि छात्र छात्राओं का भविष्य अधर में न हो। प्रतिनिधी मण्डल ने आंदोलन करने की चेतावनी भी दी।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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