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बलिया के मंगल पांडेय ने अंग्रेजों से बगावत कर खुद पर ही चला ली थी गोली

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                                                                           मंगल पांडेय को आज ही के दिन दी गई थी फांसी

बलिया । देश की आज़ादी में सशस्त्र लड़ाई का पहला विद्रोही स्वर देने का श्रेय बलिया के मंगल पांडेय को जाता है। ‘मारो फिरंगी को’ कह कर अंग्रेजो की सेना में प्रथम विद्रोह करने वाले बलिया के वीर सपूत मंगल पांडेय की आज पुण्यतिथि है। बागी कहे जाने वाले बलिया जिले के इस वीर ने अपने बटालियन के साथियों को बगावत का पहला स्वाद चखाया।

इस बगावत का परिणाम यह हुआ कि उस वक्त नैतिकता से हीन अंग्रेजों पर ऐसा भय चढ़ा कि उन्हें तय तिथि से दस दिन पहले 8 अप्रेल 1857 को ही पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में फांसी दे दी गयी। और फिर कमाल ये हुआ कि फांसी के तुरंत बाद मेरठ सहित देश के तमाम जेलों में सैनिकों ने भी विद्रोह करना शुरु कर दिया। लेकिन क्या आपको पता  है कि मंगल पांडेय ने विद्रोह का आखिरी गोली खुद पर ही चलाई थी?

8 अप्रैल, 1857 को मंगल पांडे को फांसी दिए जाने की सूचना का पत्र। साभार- नेशनल आर्काइव

 

क्यों हुआ था विद्रोह

हुआ यूं कि 1850 के बाद अंग्रेजों ने नई इनफील्ड राइफल का प्रयोग शुरू किया। कहा गया कि इस राइफल की कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली है। राइफल में इन कारतूसों को मुंह से काटकर लोड करना होता था। यह बात हिंदुओं और मुस्लिमों दोनों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ थी। ऐसे में मंगल पांडेय ने मोर्चा संभाला। तब वे कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे। मंगल पांडेय ने इन कारतूसों का इस्तेमाल करने से मना कर दिया और साथी सैनिकों के साथ बगावत के लिए मोर्चा खोलने की तैयारी करने लगे।

कब चलाई खुद पर गोली?

मंगल पांडेय ने 29 मार्च 1857 को विद्रोह कर दिया। बीबीसी की एक रिपोर्ट में सैनिक विद्रोह और मंगल पांडेय के बगावत के दौरान खुद पर गोली चला लेने का जिक्र है।  इस रिपोर्ट के अनुसार बैरकपुर में कई तरह की अफवाहें फैल रही थीं इनमें से एक ये भी थी कि बड़ी संख्या में यूरोपीय सैनिक हिंदुस्तानी सैनिकों को मारने आ रहे हैं। इसी दौरान 29 मार्च की शाम जब मंगल पांडेय को इसकी खबर लगी तो उन्होंने अपने बटालियन के सैनिकों को विद्रोह के लिए एकजुट करना शुरू कर दिया।  ब्रिटिश इतिहासकार रोज़ी लिलवेलन जोन्स ने अपनी किताब “द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया, 1857 – 58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश” के हवाले से इस घटना का जिक्र किया गया है।

जोन्स के अनुसार, ”तलवार और अपनी बंदूक से लैस मंगल पांडेय ने क्वार्टर गार्ड (बिल्डिंग) के सामने घूमते हुए अपनी रेजिमेंट को भड़काना शुरू कर दिया। जब अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग को इस बारे में बताया गया तो वह अपने घोड़े पर सवार होकर वहां पहुंचे और मंगल पांडेय को अपनी बंदूक लोड करते हुए देखा। मंगल पांडेय ने गोली चलाई और निशाना चूक गया, बाग ने भी अपनी पिस्तौल से पांडेय पर निशाना साधा, लेकिन गोली निशाने पर नहीं लगी।”

पूरी घटना के चश्मदीद गवाह हवलदार शेख पल्टू के मुताबिक इससे पहले मंगल पांडेय ने सार्जेन्ट मेजर जेम्स ह्वीसन पर भी गोली चलाई थी लेकिन ये गोली ह्वीसन को नहीं लगी जिसके बाद उन्होंने तलवार से ही दोनों अंग्रेज अधिकारियों को घायल कर दिया। लेकिन फिर शेख पल्टू ने मंगल पांडेय को कमर से पकड़ लिया

इतिहासकार जोन्स आगे लिखती हैं, “घुड़सवार और कई पैदल सैनिकों ने मंगल पांडे की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और ये देखकर मंगल पांडे ने बंदूक की नाल को अपने सीने में लगाया, पैर के अंगूठे से ट्रिगर दबाया। गोली से उनकी जैकेट और कपड़े जलने लगे और वह घायल होकर जमीन पर गिर पड़े।”

इसके बाद मंगल पांडेय जख्मी रहे। उनपर बागी होने का मुकदमा चला और 18 अप्रैल 1857 को फांसी देने की तारीख तय हुई। लेकिन उनके बगावत की बात  बहुत तेज़ी से भारतीय सैनिकों में फैल रही थी। अंग्रेजों को डर था कि कहीं यह बगावत देश भर में न फैल जाए। इसी भय से उन्हें आनन-फानन में 8 अप्रैल 1857  को उन्हें फांसी दे दी गई। उनकी फांसी के बाद मेरठ, कसौली, कांगड़ा, धर्मशाली समेत देशभर में कई जगहों पर सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। अमर उजाला की एक रिपोर्ट की मानें तो 20 अप्रैल को हिमाचल प्रदेश के कसौली में सिपाहियों ने एक पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया। मई में मेरठ के भारतीय घुड़सवार सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। लखनऊ में 30 मई को पुराने लखनऊ के तमाम इलाकों के साथ खासकर चिनहट के इस्माईलगंज में किसानों, मजदूरों और सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला।

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

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बलिया में दूल्हे पर एसिड अटैक, पूर्व प्रेमिका ने दिया वारदात को अंजाम

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बलिया के बांसडीह थाना क्षेत्र में एक हैरान कर देने वाले घटना सामने आई हैं। यहां शादी की रस्मों के दौरान एक युवती ने दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया, इससे दूल्हा गंभीर रूप से झुलस गया। मौके पर मौजूद महिलाओं ने युवती को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। फिलहाल पुलिस बारीकी से पूरे मामले की जांच कर रही है।

बताया जा रहा है की घटना को अंजाम देने वाली युवती दूल्हे की पूर्व प्रेमिका है। उसका थाना क्षेत्र के गांव डुमरी निवासी राकेश बिंद के साथ बीते कई वर्ष से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने युवक से शादी करने का कई बार दबाव बनाया, लेकिन युवक ने शादी करने से इन्कार कर दिया। इस मामले में कई बार थाना और गांव में पंचायत भी हुई, लेकिन मामला सुलझा नहीं।

इसी बीच राकेश की शादी कहीं ओर तय हो गई। मंगलवार की शाम राकेश की बारात बेल्थरारोड क्षेत्र के एक गांव में जा रही थी। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दूल्हे के साथ परिछावन करने के लिए गांव के शिव मंदिर पर पहुंचीं। तभी घूंघट में एक युवती पहुंची और दूल्हे पर तेजाब फेंक दिया। इस घटना से दूल्हे के पास में खड़ा 14 वर्षीय राज बिंद भी घायल हो गया। दूल्हे के चीखने चिल्लाने से मौके पर हड़कंप मच गया। आनन फानन में दूल्हे को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

मौके पर पहुंची पुलिस युवती को थाने ले गई और दूल्हे को जिला अस्पताल भेज दिया। थानाध्यक्ष अखिलेश चंद्र पांडेय ने कहा कि तहरीर मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।

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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

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‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
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