बलिया स्पेशल
संस्कृति राय की हत्या मामले में योगी पुलिस पांच दिन से अंधेरे मे
यूपी की राजधानी लखनऊ और उसके आस-पास के जिलों के लोगों की ओर से सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया जा रहा है जस्टिस फॉर संस्कृति राय. #Justice _for _sanskriti _rai हैशटैग के साथ सोशल मीडिया पर लोग यूपी सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस पर सवालिया निशान लगा रहे हैं और इसकी वजह राजधानी लखनऊ में 22 जून 2018 को हुई 17 साल की एक लड़की की हत्या है, जिसका नाम था संस्कृति राय. उसे अपने घर से मात्र तीन किलोमीटर दूर स्टेशन पर जाना था, लेकिन वो वहां नहीं पहुंच सकी. अगले दिन झाड़ियों में उसकी लाश मिली, जिसके बाद यूपी पुलिस और योगी आदित्यनाथ पर लोगों का गुस्सा भड़क गया.
पू्र्वी उत्तर प्रदेश का एक जिला है बलिया. वहां पर एक जगह है फेफना. फेफना के भगवानपुर गांव के रहने वाले वकील उमेश कुमार राय की 17 साल की छोटी बेटी संस्कृति राय लखनऊ में पॉलिटेक्निक कॉलेज में सेकेंड ईयर में पढ़ती थी. फर्स्ट ईयर में वो हॉस्टल में रही थी, लेकिन सेकेंड ईयर में उसे हॉस्टल नहीं मिला. इसके बाद वो इंदिरानगर में सेक्टर 19 में राजेंद्र अरोड़ा के मकान में किराए पर रहने लगी. पांच जून को संस्कृति भावनगर अपने घर गई थी. सात जून को उसका प्रैक्टिकल होना था, लेकिन वो छह जून को ही लखनऊ पहुंच गई थी. परीक्षाएं खत्म होने के बाद संस्कृति 21 जून रात अपने घर जाने वाली थी. उसने अपनी मां नीलम को फोन करके कहा था कि वो घर आ रही है. इसके लिए उसे बादशाहनगर से ट्रेन पकड़नी थी. उसके साथ उसकी चंदौली की रहने वाली दोस्त पुष्पांजलि को भी जाना था. लेकिन संस्कृति स्टेशन पर नहीं पहुंची. इसके पुष्पांजलि ने संस्कृति को फोन किया तो उसका फोन बंद था. इसके बाद पुष्पांजलि ने एक और सहेली को फोन कर बताया कि संस्कृति स्टेशन पर भी नहीं आई है और उसका फोन भी बंद है. इसके बाद उस सहेली ने संस्कृति के पिता उमेश कुमार को रात के 9 बजकर 52 मिनट पर फोन किया. परेशान पिता ने लखनऊ में रहने वाले एक रिश्तेदार को फोन किया और पूरी बात बताई. इसके बाद रात में ही वो रिश्तेदार गाजीपुर थाने के इंस्पेक्टर सुजीत राय के पास पहुंचा. गाजीपुर थाने के इंस्पेक्टर ने संस्कृति के पिता उमेश से बात की और अनहोनी की आशंका जताई.
अगले दिन 22 जून की दोपहर करीब 12 बजे घैला गांव की रहने वाली एक महिला प्रेमा ने झाड़ियों में एक लड़की को गंभीर हालत में देखा. उसने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और उसे ट्रॉमा सेंटर लेकर गई. ट्रॉमा सेंटर में पहुंचने के बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. लड़की के पास मोबाइल, पर्स या कोई ऐसे कागजात नहीं थे, जिससे पुलिस उसकी पहचान कर पाती. इसके बाद पुलिस ने उसकी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल कर दी. गाजीपुर के इंस्पेक्टर सुजीत राय ने उस लड़की की शिनाख्त बलिया के फेफना के रहने वाले संस्कृति राय के तौर पर की. प्राथमिक जांच में इंस्पेक्टर मडियांव अमरनाथ वर्मा ने बताया कि लूट के इरादे से संस्कृति राय की हत्या की गई है. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक आस-पास खून के छीटें पड़े थे और ऐसा लग रहा था कि संस्कृति ने खुद के बचाव के लिए खूब हाथ-पैर मारे हैं.
हत्या के चार दिन के बाद भी लखनऊ पुलिस के हाथ कुछ खास नहीं लगा है. पुलिस के मुताबिक कुछ मोबाइल नंबर हैं, जिन्हें सर्विलांस पर लगाकर जांच की जा रही है. एक नंबर पर संस्कृति की लंबी बातें होती थी. उसकी भी जांच की जा रही है. एसएसपी दीपक कुमार के मुताबिक पुलिस को संस्कृति राय आईआईएम रोड पर मिली थी, जबकि उसे बादशाह नगर रेलवे स्टेशन जाना था. इसकी जांच के लिए पुलिस पॉलिटेक्निक से मुंशीपुलिया, टेढ़ीपुलिया और आईआईएम रोड पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज तलाश रही है और उसकी जांच कर रही है. एसएसपी दीपक कुमार के मुताबिक चार लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है. पुलिस को संस्कृति के किसी करीबी पर ही शक है, लेकिन अभी तक पुलिस किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है.
संस्कृति राय की हत्या के बाद सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर उसे इंसाफ दिलाए जाने की गुहार लगाई जा रही है. पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है. लोग पुलिस और योगी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. इसके अलावा सियासी दलों ने भी संस्कृति राय को इंसाफ दिलाने के लिए योगी सरकार पर हमला बोला है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लेकर बलिया तक लोग सड़क पर कैंडल मार्च निकालकर उसके लिए इंसाफ की मांग कर रहे हैं.
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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