बलिया स्पेशल
आ’ज़ादी के 72 साल बाद भी देश की बड़ी आ’बा’दी को नहीं मिला उसका हक़!
बलिया डेस्क: जिले की सुप्रसिद्ध सामाजिक सँस्था डा० अम्बेडकर सोशल वेलफेयर सोसाइटी असनवार की सँस्थापिका अध्यक्ष श्रीमती अनुरागी देवी की छँठवी पुण्यतिथि राम अइगा प्रसाद अनुरागी फाँउडेशन ( रापा फाँउडेशन ) पर मनायी गयी।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रुप मे उपस्थित जनता को सम्बोधित करते हुए राम इकबाल सिंह( पूर्व विधायक ) ने कहा कि आजादी के 72 साल बीतने के बावजूद आज भी देश की एक बहुत बडी आबादी अपने मौलिक अधिकारों से वँचित है। समाज मे पुरुष वर्ग की पितृसत्तात्मक सोच के चलते जहाँ एक तरफ देश की आधी आबादी कही जाने वाली महिला वर्ग अपने बहुत सारे अधिकारों से वँचित है , वहीं पर दुसरी तरफ मुट्ठी भर लोगों की अति अमीरी के वजह से एक बहुत बडे वर्ग को
रोटी , कपड़ा और मकान के लिए बुरी तरह तरसना पडता है ।जरूरत से बहुत कम आमदनी पाकर करोड़ों लोग दवाई , पढाई ,बिजली , पानी और शौचालय का खर्च भी नहीं उठा पाते है ।आर्थिक कमजोरी के चलते लाखो बच्चे अशिक्षित रह जा रहे है और मजबूरन बाल मजदूरी मे लग जा रहे है ।आर्थिक ,सामाजिक ,राजनैतिक , धार्मिक, साम्प्रदायिक और लैंगिक आदि कारणों से वँचित होकर समाज में हाशिये का जीवन जी रहे है ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए जिला रोजगार सेवक सँघ बलिया के अध्यक्ष जमाल अख्तर ने कहा कि हर मानव को बुनियादी सुविधाओं से लैस होना उनका मौलिक अधिकार है, किन्तु सामाजिक एवं आर्थिक गैर बराबरी के चलते देश मे आज भी करोड़ों लोग दोयम दर्जे का अपना जीवन जीने को अभिशप्त है ।कुछ अपवादों को छोड दिया जाये तो शासक वर्ग आम आदमी के प्रति जबाबदेह नहीं है ।
विगत दो दशकों में करीब डेढ लाख से ज्यादे किसानों ने खुदकुशी की है। रोज घोटाले बढते जा रहे है।आदिवासियों को जल , जँगल और जमीन से बेदखल किया जा रहा है।किसान , युवा और ग्रामीण वँचित तबको मे शामिल होते जा रहे है ।यानि कि एक बहुत बडी आबादी आज भी अपने हक हकूक से वँचित है, जिस पर आज गम्भीरता से विचार करने की जरुरत है ।
अपने अध्यक्षीयव सम्बोधन मे जिले के प्रसिद्ध समाजसेवी गोपाल सिंह ने कहा कि यदि भारत मे एक भी वँचित व्यक्ति अपने अधिकारों से वँचित है तो समझिये की भारत विकसित राष्ट्र नहीं हो सकता है ।यदि भारत को दुनिया के स्तर पर विकसित देशो मे शामिल करना है तो समाज के सभी लोगों को समानता और सामाजिक न्याय के लिए कार्य करना होगा ।तब कहीं जाकर समाज के वँचित समाज के लोग सशक्त हो पायेंगे ।
वँचितो का सशक्तिकरण ही श्रीमती अनुरागी देवी के प्रति सच्ची श्रँद्धाजली होगी । इस अवसर पर प्रमुख रुप से भाग लेने वालो मे सर्व श्री धन्नजय सिंह बिसेन ( प्रदेश सचिव , समाजवादी युवजन सभा उत्तर प्रदेश ) प्रधान सँघ के जिला उपाध्यक्ष विनोद कुमार यादव , जनवादी प्रधान सँघ के पूर्व जिलाध्यक्ष राम अवध यादव , पूर्व सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता अरुण कुमार एडवोकेट , युवा काँग्रेस के ब्लाक अध्यक्ष आशुतोष पाँडेय ” कालू ” ,
प्राथमिक शिक्षक सँघ गडवार के ब्लाक अध्यक्ष अँजनी कुमार मुकुल , टैली फिल्म के अभिनेता शाहनवाज खान , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के ब्लाक मँत्री कामरेड विक्रमा सिंह , ओमप्रकाश शर्मा ( पत्रकार हिन्दुस्तान) श्रीनिवास जोशी पत्रकार, पायनियर, मुन्नु राम , रामाधार मास्टर प्रधान गण , मनोज कुमार पासवान पूर्व प्रधान , बहुजन समाज पार्टी के विसर्जन राम , सुरेन्द्र
राम , बच्चा नन्द प्रसाद , अखिलेश भारती , समाजसेवी राणा सिंह , कमलाकर पाँडेय , समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता पवन यादव , व्यापार मँडल चोगडा के पूर्व अध्यक्ष बाबूलाल गुप्ता , समाजसेवी अजीत राजभर , आशुतोष कुमार ” राहुल ” , एस.के . रँजन , अजीत कुमार , ,सँदीप यादव , सुनील कुमार यादव राजू सिंह
विजेन्दर शर्मा , चन्दन पाँडेय आदि लोग प्रमुख रूप से उपस्थित रहे ।अन्त मे आयोजक सँस्था राम अइगा प्रसाद अनुरागी फाउंडेशन ,( रापा फाँउडेशन ) के अध्यक्ष एवं श्रीमती अनुरागी देवी के छोटे पुत्र जयराम अनुरागी ने सभी आगुन्तको के प्रति आभार प्रकट करते धन्यवाद ज्ञापित किया ।
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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल
बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।
सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।
बताया जा रहा है कि सफारी में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।
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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत
आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.
बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.
चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,
लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.
1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.
‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,
जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि
सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.
(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)
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