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बलिया स्पेशल

SP की कारवाई नहीं आई रास तो नगरा पुलिस ने समाजसेवी के परिवार को बनाया आरोपी, पूर्व IPS ने की जांच की मांग

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बलिया। बलिया में पुलिस और गो तस्करों के बीच का रिश्ता किसी से छुपा नहीं है। जिसकी भनक लगने पर एसपी विपिन ताडा ने एसएचओ समेत सात लोंगो पर कार्रवाई भी की थी। लेकिन ऐसा लगता है कि एसपी की ये कारवाई नगरा पुलिस को रास नहीं आई और उसने समाजसेवी के परिवॉर के तीन लोंगो को गो तस्कर बताते हुए उठा ले गयी। पुलिस और गो तस्करों के बीच के रिश्तों को पिछले दिनों बसारिखपुर में हुए खुलासे ने इनके सांठगांठ को प्रमाणित भी कर दिया।

बता दें की शनिवार की रात नगरा पुलिस ने थाना क्षेत्र के गौरा मदनपुरा निवासी एक समाजसेवी के परिवॉर के तीन लोंगो को गो तस्कर करार देते हुए उठा ले गयी। इसमे एक महिला भी शामिल है। पीडि़त परिवार के एक सदस्य ने बताया कि नगरा पुलिस ने गो तस्करों के साथ मिलीभगत कर शनिवार की रात दो पिकअप लदे बछडों के साथ दरवाजे पर पहुंची और बछड़ो को उतार कर वीडियो बनाना शुरू कर दिया। यह देख जब इसका परिवार के सदस्यों ने विरोध किया तो पुलिस ने एक महिला समेत तीन लोंगों को ज़बरदस्ती गाड़ी में बैठा लिया।

आरोप है कि इस दौरान पुलिस ने दरवाजे पर बंधी गायों को पिकअप में लाद ली। इस घटना के बाद से क्षेत्र में पुलिस के इस घिनौने कृत्य को लेकर काफी आक्रोश है। लोग इसे बसारिखपुर की घटना की प्रतिक्रिया बता रहे हैं। ज्ञात हो कि पिछले दिनों सिकन्दरपुर थाना क्षेत्र के बसारिखपुर गांव में बड़े पैमाने पर गो तस्करी का मामला उजागर करने में उसी व्यक्ति का अहम रोल था

जिसके परिजनों को पुलिस रात के अंधेरे में गो तस्कर बनाने में जुटी है। इनकी सूचना पर ही एसडीएम सिकन्दरपुर अभय कुमार सिंह और सीओ अशोक मिश्र ने छापेमारी कर बड़ी मात्रा में गो वंशियों को बरामद किया था। जिसके बाद स्थानीय पुलिस की जमकर किरकिरी भी हुई थी। यही नही इस मामले में एसपी विपिन ताडा ने एसएचओ समेत सात लोंगो पर कार्रवाई भी की थी।

क्या था पूरा मामला- सिकंदरपुर  तहसील क्षेत्र के बसारिकपुर गांव से बीते दो जून की भोर में तस्करी के लिए रखे गए करीब 90 गोवंशियों को बरामद किया गया था। मुखबिर की सूचना पर पहुंचे एसडीएम सिकन्दरपुर अभय कुमार सिंह व सीओ अशोक कुमार मिश्र ने संयुक्त रूप से छापेमारी कर उक्त कार्रवाई को अंजाम दिया था। उक्त सभी गोवंशी बसारिकपुर स्थित एक हाते से बरामद किए गए थे। वहीं मौके का फायदा उठाकर आधा दर्जन तस्कर भागने में सफल हो गए थे। बरामद किए सभी गोवंशियों को जिगिड़सर, हड़सर और नगर पंचायत स्थित गो आश्रय केंद्रों में भेज दिया गया

था। मौके पर पहुंचे एसपी विपिन ताडा ने कार्रवाई से सन्तोष जताया था वहीं इस घन्धे मे लिप्त लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को आदेशित किया था। यह क्षेत्र की अब तक की सबसे बड़ी घटना मानी जा रही है। सात दर्जन से अधिक पशुओं को एक साथ बरामद होने से इलाके का माहौल आज भी गर्म है। सीओ अशोक कुमार मिश्र ने बताया था कि लॉक डाउन के दौरान क्षेत्र में बड़ी मात्रा में गो तश्करी करने की सूचना मिली थी।

पिछले महीने ही पुलिस अधीक्षक ने गो तस्करी कि शिकायत का हवाला देकर कार्रवाई का आदेश दिया था।इसकी सूचना तत्काल सम्बन्धित एसएचओ को दी गयी लेकिन मामले को किसी ने गम्भीरता से नहीं लिया। मंगलवार की शाम को मुखबिर ने बसारिकपुर हाते में भारी मात्रा में गोवंशी रखे होने की सूचना दी थी। जिन्हें बुधवार को बिहार के रास्ते बंगाल भेजा जाना था। इसकी तत्काल एसडीएम अभय कुमार सिंह को दिया और प्लांनिग के तहत तड़के सुबह छापेमारी कर दी गयी।

इस दौरान हाते से निकले एक पिकअप चालक ने हमारी गाड़ी को धक्का देने का प्रयास किया। लेकिन उसी दौरान एसडीएम सिकन्दरपुर ने आगे से घेराबंदी कर ली। अपने को घिरता देख पिकअप में सवार आधा दर्जन तस्कर गाड़ी से कूद का भाग निकले। वहीं मौके से चार पिकअप व एक मोटरसाइकिल भी बरामद की गई थी।

थानाध्यक्ष सहित सात पुलिसकर्मी हुए थे लाइन हाजिर– बसारिखपुर गांव में एक साथ ९३ गौ पशुओं को पुलिस ने बरामद किया था। उसके बाद एसपी ने पूरे मामले की जांच सीओ को सौंपी थी। जांच पूरी होने के बाद एसपी विपिन टाडा ने थानाध्यक्ष सहित सात पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया था। जिसमें थानाध्यक्ष भी शामिल थे।

पूर्व आईपीएस ने की निष्पक्ष जांच की मांग– पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर व एक्टिविस्ट डॉ नूतन ठाकुर ने ग्राम गौरा मदनपुरा निवासी खडकबहादुर यादव की थाना नगरा द्वारा गोकशी में गिरफ़्तारी की गोपनीय एवं निष्पक्ष जाँच की मांग की है। एसपी बलिया को भेजे अपने पत्र में उन्होंने कहा कि उन्हें दी जानकारी के अनुसार खडकबहादुर यादव ने कुछ ही दिनों पहले एसडीएम सिकंदरपुर अभय कुमार सिंह व सीओ अशोक कुमार मिश्रा को गोसाईपुर दियारा में गोवंश की तस्करी करने तथा गोकसी करने की शिकायत की थी जिसके बाद एसडीएम व सीओ ने इलाकाई पुलिस को बिना

सूचना दिए भारी मात्रा में गाय व बछड़े पकडे थे। इसके बाद एसपी बलिया ने इंस्पेक्टर व दरोगा सहित आधा दर्जन से अधिक पुलिस कर्मचारियों को लाइन हाजिर किया था. इसी बात के प्रतिशोध में खड़ा बहादुर यादव को फंसाया गया है। अमिताभ और नूतन ने कहा कि उन्हें वास्तविकता ज्ञात नहीं है, लेकिन उन्हें बताया गया है कि वास्तव में उनकी मात्र 07 गायें हैं। जिनपर टैग लगा है, शेष बछड़े उनके नहीं हैं। उन्होंने समस्त हालात के मद्देनजऱ मामले की निष्पक्ष एवं गोपनीय जांच की मांग की है।

रिपोर्ट- तिलक कुमार 

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा, 4 की मौत 1 गंभीर रूप से घायल

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बलिया में भयंकर सड़क हादसा सामने आया है जहां 4 लोगों की मौत की खबरें सामने आ रही है। वहीं एक गंभीर रूप से घायल बताया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ये हादसा फेफना थाना क्षेत्र के राजू ढाबा के पास बुधवार की रात करीब 10:30 बजे हुआ। खबर के मुताबिक असंतुलित होकर बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रही सफारी कार पलट गई। जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। जबकि एक गंभीर रूप से घायल हो गया।

सूचना मिलने पर पर पहुंची पुलिस ने चारों शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। जबकि गंभीर रूप से घायल को ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। मृतकों की शिनाख्त क्रमशः रितेश गोंड 32 वर्ष निवासी तीखा थाना फेफना, सत्येंद्र यादव 40 वर्ष निवासी जिला गाज़ीपुर, कमलेश यादव 36 वर्ष  थाना चितबड़ागांव, राजू यादव 30 वर्ष थाना चितबड़ागांव बलिया के रूप में की गई। जबकि घायल छोटू यादव 32 वर्ष निवासी बढ़वलिया थाना चितबड़ागांव जनपद बलिया का इलाज जिला अस्पताल स्थित ट्रामा सेंटर में चल रहा है।

बताया जा रहा है कि सफारी  में सवार होकर पांचो लोग बलिया से चितबड़ागांव की ओर जा रहे थे, जैसे ही पिकअप राजू ढाबे के पास पहुँचा कि सड़क हादसा हो गया।

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कौन थे ‘शेर-ए-पूर्वांचल’ जिन्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर बलिया के लोग कर रहे याद !

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‘शेर-ए-पूर्वांचल’ के नाम से मश्हूर दिग्गज कांग्रेस नेता बच्चा पाठक की आज 7 वी पुण्यतिथि हैं. उनकी पुण्यतिथि पर जिले के सभी पक्ष-विपक्ष समेत तमाम बड़े नेताओं और इलाके के लोग नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.  1977 में जनता पार्टी की लहर के बावजूद बच्चा पाठक ने जीत दर्ज की जिसके बाद से ही वो ‘शेर-ए-बलिया’ के नाम से जाने जाने लगे. प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बच्चा पाठक लगभग 50 सालों तक पूर्वांचल की राजनीति के केन्द्र में रहे.
रेवती ब्लाक के खानपुर गांव के रहने वाले बच्चा पाठक ने राजनीति की शुरूआत डुमरिया न्याय पंचायत के संरपच के रूप में साल 1956 में की. 1962 में वे रेवती के ब्लाक प्रमुख चुने गये और 1967 में बच्चा पाठक ने बांसडीह विधानसभा से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बैजनाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. दो साल बाद 1969 में फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बच्चा पाठक ने विजय बहादुर सिंह को हराकर विधानसभा का रुख़ किया. यहां से बच्चा पाठक ने जो राजनीतिक जीवन की शुरुआत की तो फिर कभी पलटकर नहीं देखा.
बच्चा पाठक की राजनीतिक पैठ 1974 के बाद बनी जब उन्होंने जिले के कद्दावर नेता ठाकुर शिवमंगल सिंह को शिकस्त दी. यही नहीं जब 1977 में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में लहर थी तब भी बच्चा पाठक ने पूरे पूर्वांचल में एकमात्र अपनी सीट जीतकर सबको अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवा दिया था. तब उन्हें ‘शेर-ए-पूर्वांचल का खिताब उनके चाहने वालों ने दे दिया.  1980 में बच्चा पाठक चुनाव जीतने के बाद पहली बार मंत्री बने. कुछ दिनों तक पीडब्लूडी मंत्री और फिर सहकारिता मंत्री बनाये गये.
बच्चा पाठक ने राजनीतिक जीवन में हार का सामना भी किया लेकिन उन्होंने कभी जनता से मुंह नहीं मोड़ा. वो सबके दुख सुख में हमेशा शामिल रहे. क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाले बच्चा पाठक  कार्यकर्ताओं या कमजोरों के उत्पीड़न पर अपने बागी तेवर के लिए मशहूर थे. इलाके में उनकी लोकप्रियता और पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सात बार बांसडीह विधानसभा से विधायक व दो बार प्रदेश सरकार में मंत्री बने. साल 1985 व 1989 में चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने अपना राजनीतिक कार्य जारी रखा. जिसके बाद वो  1991, 1993, 1996 में फिर विधायक चुनकर आये. 1996 में वे पर्यावरण व वैकल्पिक उर्जा मंत्री बनाये गये.
राजनीति के साथ बच्चा पाठक शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे. इलाके की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए बच्चा पाठक ने लगातार कोशिश की. उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना के साथ ही उनके प्रबंधक रहकर काम भी किया.
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बलिया के चंद्रशेखर : वो प्रधानमंत्री जिसकी सियासत पर हमेशा हावी रही बगावत

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आज चन्द्रशेखर का 97वा जन्मदिन है….पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिले बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही.

बलिया के किसान परिवार में जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ‘क्रांतिकारी जोश’ और ‘युवा तुर्क’ के नाम से मशहूर रहे हैं चन्द्रशेखर का आज 97वा जन्मदिन है. पूर्वांचल के ऐतिहासिक जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री बनने से पहले किसी राज्य या केंद्र में मंत्री पद नहीं संभाला था, लेकिन संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी. चंद्रशेखर भले ही महज आठ महीने प्रधानमंत्री पद पर रहे, लेकिन उससे कहीं ज्यादा लंबा उनका राजनीतिक सफर रहा है.

चंद्रशेखर ने सियासत की राह में तमाम ऊंचे-नीचे व ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने के बाद भी समाजवादी विचारधारा को नहीं छोड़ा.चंद्रशेकर अपने तीखे तेवरों और खुलकर बात करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की सियासत में आखिर तक बगावत की झलक मिलती रही. बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को जन्मे चंद्रशेखर कॉलेज टाइम से ही सामाजिक आंदोलन में शामिल होते थे और बाद में 1951 में सोशलिस्ट पार्टी के फुल टाइम वर्कर बन गए. सोशलिस्ट पार्टी में टूट पड़ी तो चंद्रशेखर कांग्रेस में चले गए,

लेकिन 1977 में इमरजेंसी के समय उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. इसके बाद इंदिरा गांधी के ‘मुखर विरोधी’ के तौर पर उनकी पहचान बनी. राजनीति में उनकी पारी सोशलिस्ट पार्टी से शुरू हुई और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रास्ते कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता दल और समाजवादी जनता पार्टी तक पहुंची. चंद्रशेखर के संसदीय जीवन का आरंभ 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने जाने से हुआ. इसके बाद 1984 से 1989 तक की पांच सालों की अवधि छोड़कर वे अपनी आखिरी सांस तक लोकसभा के सदस्य रहे.

1989 के लोकसभा चुनाव में वे अपने गृहक्षेत्र बलिया के अलावा बिहार के महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए थे. अलबत्ता, बाद में उन्होंने महाराजगंज सीट से इस्तीफा दे दिया था. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बनने के बाद उन्होंने तेज सामाजिक बदलाव लाने वाली नीतियों पर जोर दिया और सामंत के बढ़ते एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई. फिर तो उन्हें ऐसे ‘युवा तुर्क’ की संज्ञा दी जाने लगी, जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. संसद से लेकर सड़क तक उनकी आवाज गूंजती थी.

‘युवा तुर्क’ के ही रूप में चंद्रशेखर ने 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के बावजूद कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते. 1974 में भी उन्होंने इंदिरा गांधी की ‘अधीनता’ अस्वीकार करके लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का समर्थन किया. 1975 में कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने इमरजेंसी के विरोध में आवाज उठाई और अनेक उत्पीड़न सहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में हुए जनता पार्टी के प्रयोग की विफलता के बाद इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर सैनिक कार्रवाई की तो चंद्रशेखर उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे,

जिन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया. 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल सरकार के पतन के बाद अत्यंत विषम राजनीतिक परिस्थितियों में वे कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. पिछड़े गांव की पगडंडी से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास यानी 7 रेस कोर्स में कभी रुके ही नहीं. वह रात तक सब काम निपटाकर भोड़सी आश्रम चले जाते थे या फिर 3 साउथ एवेन्यू में ठहरते थे. उनके कुछ सहयोगियों ने कई बार उनसे इस बारे में जिक्र किया तो उनका जवाब था कि

सरकार कब चली जाएगी, कोई ठिकाना नहीं है. वह कहते थे कि 7 रेसकोर्स में रुकने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें बहुत कम समय मिला, क्योंकि कांग्रेस ने उनका कम से कम एक साल तक समर्थन करने का राष्ट्रपति को दिया अपना वचन नहीं निभाया और अकस्मात, लगभग अकारण, समर्थन वापस ले लिया. चंद्रशेखर ने एक बार इस्तीफा दे देने के बाद राजीव गांधी से उसे वापस लेने का अनौपचारिक आग्रह स्वीकार करना ठीक नहीं समझा. इस तरह से उन्होंने पीएम बनने के तकरीबन 8 महीने के बाद ही इस्तीफा देकर पीएम की कुर्सी छोड़ दी.

(लेखक इंडिया टुडे ग्रुप के पत्रकार हैं)

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